पात्र - कहानीकार ( हरिराम साहू)
हुकारू देवईया (कुलेश्वर जायसवाल)
बियारी के बेरा लोधीपारा जगदीश जायसवाल के घर में लोगन मन जूरियाय राहय, वतके बेर हरि बबा लाठी धर के निहरे -निहरे आईस। आके सब लोगन के बीच म बईठ जाथे ।
कुलेश्वर - बबा आज जल्दी आ गेच।
हरि बबा- हव बाबू काली जुवर के कहानी आधा बाचे हे तेखर सेती सरलग आ गेव।
कुलेश्वर - अच्छा बबा ओ कऊवा हाकनी वाले ।
हरि बबा -हाव।
कुलेश्वर - बबा पहिली थोर कन मय पूछत हाव तेंन ल बता न।
हरि बबा- पूछ न बाबू का बात ऐ।
कुलेश्वर - बबा तोला कतेकन कहानी याद होही।
हरि बबा - मोला तो 100 ले ज्यादा कहानी याद ही बाबू ।
कुलेश्वर - बबा तय ज्यादा पढ़े - लिखे नई हस फेर तोला अतका कन कहानी कईसे सुरता रहिथे।
हरि बबा- एखर बर का पढ़े - लिखे ल लगही बाबू ओ तईहा ले चलत आत परंपरा हरय । हमला हमर सियान मन सुनाइस हे अऊं उनला उखर सियान मन ।
कुलेश्वर - सिरतोंन काहत हाव बबा ये कहानी, कंठली, दरिया ए सब हमर लोक परंपरा अऊ संस्कृति हरय।
हरिबबा - देखव बाबू हमला हमर संस्कृति,संस्कार मन ला सजो के रखना चाही । अतका दिन ले हमन रखत आत हन अवईया दिन म ए सब के बोझा तुमन ल उठाना हे ।
कुलेश्वर - हाव बबा हमर संस्कृति अऊ परंपरा ल हम सजो के रखबो अऊं अपन अवईया पीढ़ी मन ला घलो बताबो ।
कहानीकार
कुलेश्वर जायसवाल
सेमरिया कबीरधाम,छत्तीसगढ़