चंदू की चौखट बहुत पुराना है,उसे देख ऐसा मालूम पड़ता है मानो कई सालों से इसकी मरम्मत न हुई हो। चंदू की चौखट को देखना या वहां से गुजरना लोगों के लिए सबसे "मनहूस घड़ी" मानी जाती थी । इसके चौखट के सामने से गुजरे तो मानो जैसे कि कोई जकड़ रहा हो।कोई ऐसी बुरी शक्ति हो जो लोगो को अपनी ओर खींच रही हो।
उस चंदू के घर में उसकी पत्नी फूलवती,उसके तीन बेटे नवल, रंजित और ननुआ रहते थें।
चंदू अभी हट्टा– कट्टा जवान था ।ये गांव में ताड़ के पेड़ों से ताड़ी उतारा करता था। उससे जो 10–12 रुपए मिल जाते थे उसी से अपना घर,परिवार चलाया करता था। चंदू स्वाभिमानी था। एक बार उसके घर पर उसका दूर का रिश्तेदार रंजन आया और उसने चंदू से कहा
रंजन –क्यों चंदू बाबू ,अब तो तुम्हारे दुःख के दिन गाएं।अब तो तुम्हारे दोनों बेटे नवल और रंजीत बड़े हो गाएं हैं,अब इन्हें नागपुर या कानपुर भेज दो। वहां काम करेगें तो चार पैसे भी कमाएंगे। हमारी किस्मत में पढ़ना लिखना कहां ? तुम तो जानते ही हो कि लोग हमलोगो से नीची जाति होने के कारण अच्छी दृष्टि से नहीं देखतें हैं कैसा बर्ताव करते हैं ,हम कहा ये बड़े –बड़े सपने पाल सकते हैं ।
चंदू बोला –देख तुम बात तो सही कह रहे हो रंजन लेकिन मैं जो दुःख झेल चुका हूं ,भले ही हमारे पीढ़ियों से ये ताड़ी का काम करने का है मैं उसे अपने बच्चों को करने नहीं दे सकता।मैं चाहता हूं वो पढ़ लिख कर बड़े बनें। क्योंकि चंदू का मन अपने बच्चों के प्रति बहुत ही सजग रहता था इसलिए वह अपने तीनों बेटे को गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजता हूं तुम्हे तो पता ही है कि नवल बड़ा बेटा मेरा नौवी कक्षा में पढ़ता है ,वो पढ़ने में बहुत ही होशियार भी है , दूसरा बेटा रंजित भी पढ़ने अच्छा पढ़ रहा है , लेकिन हमारा ये ननुआ को पढ़ाई में कम और गांव के लड़कों के साथ खेलने में ज्यादा मन लगता है ।
जब नवल ने अपनी बोर्ड परीक्षा के फॉर्म भरने के फीस 100 रुपए के बारे में बताई तब ये सुन चौधरी थोड़ा चौक गया और उसी रात जब बच्चे सो गए तब चौधरी अपनी पत्नी से बोला – तुम वो जो चांदी की पायल रखी थी न उसे बेच देते है तो कोई 70 ,80 रुपए तो मिल ही जायेगें।
पत्नी – मेरे पास एक ही जेवर है ,वो भी आपकी मां की आखिरी निशानी और इसे भी बेच दूं ।
चंदू– क्या करें तुम तो जानती ही हो अभी इस समय परीक्षा की फिश भरना जरूरी है । पायल तो बाद में भी आ जाएगी ।
पत्नी– ठीक हैं जैसा तुम्हें अच्छा लगे। ये सारी बात नवल सुन रहा था ।नवल को ये सब अच्छा न लगा।उसने सोचा क्यों न मैं कुछ काम करके अपने और आपने पिता की मदद करूं।उसने गांव के ठाकुर के यहां जाकर बात की तब ठाकुर ने उसे अपने दोनों बेटों को पढ़ाने को कहा तब नवल ,ठाकुर साहब के दोनों लड़कों को पढ़ना शुरू कर दिया । अपने मेहनत और पापा के मदद से बोर्ड की पढ़ाई तो किसी तरह पूरी कर लिया लेकिन अब आगे की पढ़ाई के लिए खर्चे ज्यादा थें,अब खर्चे खुद उठाने लगा ।वो अपने लगन से बारहवीं की परिक्षा में बहुत ही अव्वल दर्जे से पास हुआ ।इसके बाद, उसे आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिल गई । उसने कॉलेज में अपना दाखिला करवाया और अपने भाई रंजित के बोर्ड की तैयारी शुरू करवा दी । एक बार ऐसा हुआ जिसकी किसी ने सोचा नहीं था । जिस दिन रंजित की बोर्ड की परीक्षा थी ठीक उसी दिन चंदू बाबू की मौत हो गई। उसे कई दिनों से कैंसर थी ,लेकिन बार –बार बच्चो और पत्नी के पूछने पर वो कहता कि मैं ठीक हूं, बदलते मौसम का असर है ,मैं दवाई ले लूंगा, लेकिन घर और बच्चो की पढ़ाई की जिम्मेदारी के कारण वो अपनी सेहत पर ध्यान कम देता था ।बार –बार इसे टालते रहता था।इसी आदत ने उसकी जान ले ली।
उसके मरने के बाद नवल बहुत ही टूट गया ।एक वहीं थे जो उसे हमेशा हौंसला देते थें।अब नवल को पढ़ाई के साथ – साथ ,घर भी संभालना था। दोनों भाई की पढ़ाई भी।अब वो घर पर ही 15,20 बच्चों को ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया।उसने अपने भाई का कॉलेज में नाम लिखवा दिया । ननुआ को खेल कूद में रुचि थी , उसका नाम स्पॉट्स में लिखवा दिया ।
चार साल बाद —
अब नवल नवोदय विद्यालय में शिक्षक भर्ती की परीक्षा देने को था और उसका भाई रंजित सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। एक बार शाम को जब रंजित अपनी साईकिल से दूध लेकर घर आ रहा था कि सामने से एक कार वाले ने ठोक दिया । गंभीर चोट लगने के कारण उसका दायां हाथ काटना पड़ा। इस कारण उसे चार महीने तक बेड पर ही रहना पड़ा। इस घटना ने नवल को तोड़ दिया परंतु रंजित अपने पापा को याद करते हुए ।अपना संघर्ष जारी रखा ।उसने इन चार महीनों में अपने बाएं हाथ से लिखना सिख लिया,और अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत की । वह अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखी।इस बार नवल ने नवोदय विद्यालय भर्ती की परीक्षा दी और उधर रंजित ने सिविल सेवा परीक्षा में बैठा। उसने बाएं हाथ से ही परीक्षा दी । कुछ महीने बाद, परिक्षा का परिणाम आया,दोनों भाइयों ने परीक्षा पास कर ली।अब था इंटरव्यू ,दोनों ने इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर दिया।इन दोनों ने इंटरव्यू में भी सबसे अच्छा रैंक हासिल की । अब नवल अपने जिले के नवोदय विद्यालय में +2 का शिक्षक बन गया और रंजित किशनगंज जिले का जिला शिक्षा पदाधिकारी बन गया ।उसका छोटा भाई ननुआ भी अपने खेल में राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया ।अब तीनों भाई सफल थे ।ये देख सभी गांव बालों का "सीना गर्व से चौड़ा" हो गया ।उसकी मां की पुराने दिनों को याद से आंखे भर आई । अब सभी लोग जिस चंदू की चौखट से गुजरना पसंद नहीं करते थे। अब वहीं चौखट लोगों का मिशाल बन गई।
लेखक–अमन कुमार