NARI-VEDNA in Hindi Women Focused by Reshu Sachan books and stories PDF | नारी-वेदना

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नारी-वेदना

सही ही कहा गया है शायद बेटियों के कोई घर नहीं होते | पैदा होने से लेकर शादी तक उनके माँ बाप यही कहते नहीं थकते कि जो भी है शादी के बाद करना जाकर अपने घर में , उधर शादी के बाद सास-ससुर का रोना कि अपने घर से कुछ सीखकर नहीं आई, आधी से ज्यादा जिन्दगी यह सुनते गुजर जाती है कि फिर बची कुची जिन्दगी में पति के हिसाब से चलाना सीख ही रही होती हैं कि बच्चे बड़े हो गए अब उनके हिसाब से जिंदगी अपना रूप लेना शुरू कर देती है | जब शरीर में क्षमता होती है अपने मर्जी का कुछ कर पाती नहीं, फिर शरीर कमजोर और अपने मन का कुछ करने का सामर्थ्य ही रहता है| शायद वो बहुत खुशनसीब होते हैं जिनके पास ससुराल में वो मान सम्मान होता है, जो एक बहु को एक पत्नी को मिलना चाहिए अन्यथा बहुओं को वो जगह ही नहीं मिलती जो उनके बेटों की हो या उनके घर की बेटियों की हो | दामाद को बेटे की जगह तो बिना सोंचे समझे दी जाती है पर बहुओं को अपनाने में एक जनम भी कम ही पड़ जाता है समाज का यह रूप देखकर तो समझ ही नहीं आता शायद औरत रूप में जनम लेना ही गुनाह होगा | अगर आप कामकाजी महिला हैं तो आपको थकना नहीं है, क्यूंकि नौकरी करना आपकी व्यक्तिगत पसंद है | आप बच्चे देर से करो तो सुनो, पैदा कर दो पाल हम देंगे , परन्तु जब पालने की बारी हो तो ऐसा अनुभव कराया जायेगा जैसे वो बच्चा अकेले बहु का हो | बेटियों के बच्चे पालने में उन्हें कहना भी नहीं पड़ता और बात अगर बहू की गर्भावस्था के दौरान देखभाल की भी हो तो अपने मायके चली जाओ, वहाँ तुम्हारी देखभाल अच्छे से होगी | घर के छोटे बड़े फैसलों में बहुओं को भनक भी नहीं लगने दी जाती जबकि बेटियों और दामाद को बिन बताये उन्हें शामिल किये कोई काम भी नहीं होता| हमारा मन यह मान ही नहीं पाता कि बहु को पूरे समाज के सामने गाजे बाजे के साथ ब्याह के लाये हो, तुम्हारे बेटे की जीवन संगिनी है वो , तुम्हारे घर को चिराग देने वाली महिला है वो, अपना घर, माँ-बाप, सारे रिश्ते सब कुछ अपना छोड़कर, तुम सबपर अपना भरोसा जताकर तुम्हारे घर आई है | अब इस परिस्थिति में किसी और को क्या ही दोष दिया जाये , शायद किसी भी ब्याहता की जिम्मेदारी, ससुराल में उसके मान सम्मान, आत्मरक्षा का ख्याल सबसे पहले उसके पति का नैतिक कर्तव्य है , पाणिग्रहण संस्कार के समय लड़की के माता पिता अपना सर्वस्व कन्यादान के रूप में पति को ही समर्पित कर देते हैं और यह भरोसा जताते हैं कि अब वो कन्या कि जिम्मेदारी से उन्मुक्त हो गए हैं | बात बहुत छोटी सी है, पर अगर आप अपनी पत्नी को सम्मान देते हैं, अपने परिवार में उसे मान सम्मान का अधिकारी बनाते हैं, उसे अपने घर में अपनी बराबरी का जिम्मा दिलवाते हैं तो यह आपको मिले संस्कार की झलक है| आपके माँ – बाप ने आपको सिखाया है कि औरतों का सम्मान कितना कीमती होता है वो आपके लिए उदाहरनार्थ साबित हुए और कही न कही आप अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों को भी स्त्री सम्मान रक्षा का पाठ पढ़ा सकते हैं |