ईश्वर शक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। संसार के समस्त जीव भगवान के शक्ति के समक्ष बोने हैं। वह सभी जीव धारियों को अपनी अद्भुत माया से मोहित किए हुए हैं । जब कभी भगवान की कृपा जीव को प्राप्त हो जाती है तो वह करूणा करके उसे देवताओं को भी दुर्लभ मनुष्य शरीर उसे प्रदान करते हैं । मनुष्य शरीर धारण कर जीव कृतकृत्य हो जाता है क्योंकि यह शरीर ही उसे ईश्वर के सबसे निकट लाने का साधन है। वास्तव में इसे मोक्ष का द्वार कहा गया है इसको प्राप्त करके जीव समस्त प्रकार का ज्ञान और ईश्वरीय शक्ति प्राप्त कर सकता है, इसे प्राप्त करके ही मनुष्य लोक परलोक को सुधार सकता है, इसे प्राप्त करके ही मनुष्य ईश्वर से अपनी निकटता स्थापित कर सकता है । अनन्त शक्ति और समप्दाओं से परिपूर्ण है मानव शरीर। इसको प्राप्त करके भी मनुष्य यदि संसार सागर में भटकता रहा है तो यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। मनुष्य शरीर प्राप्त होने पर हमें केवल और केवल भगवान के श्री चरणों में अनुरक्ति होना चाहिए। इसी में जीवन की सार्थकता है ।
ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सबसे श्रेष्ठ हैं। संसार के सभी क्रियाकलाप उनकी इच्छा मात्र से होते हैं। जीवन और मृत्यु के बीच में झूलता हुआ आत्मा वास्तव में अजर अमर है। वह परमात्मा की माया के समक्ष कठपुतली की तरह नाचती है । यह मनुष्य का अज्ञान ही जिसके कारण वह स्वयं को कर्ता मानता है और ईश्वरीय माया के वशीभूत होकर संसार के प्रपंच में पड़ा हुआ है । अपने समस्त कर्मों को भगवान के श्री चरणों में समर्पित कर उनकी भक्ति में अनुरक्ति रखने से ही यह जीवन सार्थक होता है ।
भगवान मनुष्य के भाव के वशीभूत रहते हैं वह समस्त जीव धारियों में मनुष्य को अधिक प्रेम करते हैं इसलिए उनसे प्रेम करने वाले महान मानव उनकी कृपा के पात्र बन जाते हैं और उनसे अपनी निकटता स्थापित कर लेते हैं ऐसे महान भक्त को ही भगवान अपनी कृपा से परिपूर्ण कर अपने ही समान बना देते हैं । ईश्वर की शरण में आने वाले भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं है अर्थात अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सभी उसे प्राप्त हो जाते हैं ।
भगवान की कृपा का एकमात्र साधन भक्ति है यह सम्पूर्ण गुणों से युक्त है। युग और कल्प को ध्यान में रखते हुए मनीषियों ने भक्ति के अनेक रूपों का वर्णन किया है फिर भी किसी भी रूप में की गई भक्ति ही मनुष्य के मोक्ष का साधन ही है । इसीलिए भक्ति ही एकमात्र मनुष्य के लोक परलोक के सुधार का साधन है । ईश्वर को कृपा का बादल भी कहा जाता है जब वह स्वयं कृपा करने के लिए आते हैं तो मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता इतना सबकुछ उसे प्राप्त हो जाता है। यद्यपि संसार की समस्त वस्तुएं इस शरीर की ही भांति नष्ट होने वाली है इसलिए विवेकी मनुष्य भगवान से केवल और केवल उनकी निकटता ही प्राप्त करके अपने जीवन को धन्य समझता है ।
ईश्वर अजन्मा और अव्यक्त है वह निर्गुण और निराकार है फिर भी स्वयं की इच्छा मात्र से भक्ति के वशीभूत होकर संसार में अवतार लेकर साधारण मनुष्य की भांति विभिन्न प्रकार की लीलाएं करते हैं और अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करते हैं । भगवान की ऐसी ही लीलाओं का चिंतन मनन करने वाले भक्त जिनकी ईश्वर के चरणों में अनुरक्ति है वे ही उनके अनन्य आश्रय के योग्य होते हैं ।
श्री चरणानुरागी
आनन्द गुर्जर सहोदर