स्थान हरिश्चंद्र घाट हर तरफ लाशें ही लाशें जल रही हैं ,कुछ अधजली है तो कुछ जल के ख़ाक हो चुकी है ,रात्रि का समय है इसलिए काफी शांति है।इसी बीच एक 25 साल का लड़का कोई बड़ी सी चीज कपड़े में लपेटे ,कंधे पर लादे, हरिश्चन्द्र घाट पहुंचता है, आस पास नजर फेरता है जैसे किसी को ढूंढ रहा होतभी थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति दिखाई देता है पास जाकर देखता है तो दंग रह जाता है वो व्यक्ति जलती चिता के ऊपर रोटियां सेक रहा होता है।
शिवम- ये क्या कर रहे हो ,शर्म नहीं आती या डर नहीं लगताव्यक्ति - दोनों से ही मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता न हैं।शिवम- मतलब
भैरव- मतलब ये की अपना ही भोजन पकाने में कैसी शर्म और रही बात डर की तो जो काम मेरा रोज का है उससे कैसा डर
शिवम- रोज का काम... मतलब चांडाल हो?
भैरव- हम्म बदकिस्मती से , तो बताओ किसकी लाश लाए हो ?
शिवम- एक मिनट तुम्हें कैसे पता कि ये मेरे कंधे पर कपड़ें में लाश ही लपेटा है?
भैरव- (रोटियां पलटते हुए)आधी रात को शमशान घाट गांजा फुकने तो आओगे नहीं बच्चे , और इतने सालों में इतनी लाशें देखी है , बक्से में , टिट्ठी पर , कपड़े में लपेटे अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरीक़े से लाते, की अब तो देख के ही बता देता हूं इसमें लाश है।
शिवम- अच्छा ठीक है , अब जल्दी करो मुझे घर जाना है
भैरव - कमाल है आज तक एक से बढ़ के एक देखे, पर इतना निष्ठुर कठोर दिल ,आज तक न देखा , तुम्हें तुम्हारे अपने से जरा भी लगाव नहीं , लाश क्या बना वो बस जला के घर जाने की जल्दी।
शिवम- उससे तुम्हें क्या , फिर भी तुमको बता देता हूँ ये पास के एक ओवर ब्रिज के नीचे 3 दिन से पड़ा था, आते जाते लोग देखते थे, मैं खुद दो दिन तक देखा एक बार पुलिश को भी कॉल किया लेकिन कोई कुछ न किया तो आज मैं खुद इसे उठा लाया।
भैरव - मैं तो तुमको पाषाण हृदय समझा था तुम तो करुणामयी निकले , लाश तक पर दया आ गई।शिवम- ऐसा कुछ न है।
भैरव - तो चलो जलाते है ।
शिवम- रुको रुको , जब इसे मैं लाया हूँ तो ये मेरी जिमेदारी है, मै इसे पूरे कर्म कांड और मंत्र उच्चारण के साथ इस दुनिया से विदा करूँगा।
भैरव - पहली बात तो बेटा ये 3 दिन पहले ही विदा हो चुका है और तुम्हारे साथ कोई पंडित तो दिख न रहा ,(हँसते हुए) मंत्र क्या यूट्यूब से बजाओगे?
शिवम - मजाक अच्छा करते हो , मैं अभी पंडित ढूढ़ के आता हूँ ।
भैरव - जाओ जाओ मिल जायेंगे यहाँ बहुत है।शिवम लाश को वही रख पंडित को ढूंढने चला जाता है,
भैरव रोटियां सेक चुका होता है फिर रोटियां झाड़ कर एक टूटे हुए पुराने से मिट्टी की थाली में रखता है ,उसके बाद उस थाली में से 3 रोटियां निकाल कर हाथ मे लेता और बाकी के थाली में ही रख देता है ये कहते हुए की ये तीन अभी खा लूँगा बाकी के सुबह।हाथ में रोटियां लिये हुये अपने आस-पास जमीन पर देखता है फिर अपने शरीर पर कपड़ो में टटोलता है तभी उसको कमर में कुछ खोसा मिलता है फिर मुस्कुराकर वो बोलता है तो यहाँ छिपा बैठा है तू , तुझे कहाँ -कहाँ नहीं ढूंढा, उसने अपने कमर में एक प्याज खोस रखी थी फिर वो कमर से प्याज निकालता है और दांतों से छील कर,वही उस लड़के के द्वारा लाये गए लाश के सामने बैठ उसे देखते हुए प्याज रोटी खाने लगता है।
भैरव- कमाल है न तेरे अपने तुझे छोड़ गये, जिस समाज के लिए तू जिया वो समाज तुझे छोड़ गया और तेरे अंतिम सफर में तेरा साथ दे कौन रहा है एक 25 -26 साल का लड़का वो भी अंजान।चल आज तू भी इस हरिश्चन्द्र घाट को खुद की आहुति दे रोशन करेगी , जगमगा देगी पूरे घाट को।तुझे पता है लोग यहाँ सिर्फ मर के ही आते है , इसे अशुभ मानते है तरह-तरह की बातें करते है पर तुम ही बताओ जो जगह मुझ जैसे बेघर को पनाह दे , जहाँ से लोग इस माया भरे दुनिया से मुक्ति पाते है , पैरों में पड़े समाज की बेड़ियों से आजाद हो जाते है , न दुःख का भय रह जाता है न सुख का मोह बस रह जाता है तो एक शांत सुकून भरी नींद और फिर इस मिट्टी में मिल जाने का सुख तो बताओ वो जगह अशुभ कैसे ? ये तो सबसे पवित्र और शुभ जगह हुई ना।
तभी शिवम एक 55 साल के व्यक्ति(मंगल , सिर पर एक फिट की चुटिया , थुलथुला तोंद वाला पेट , धोती पहने कंडे पर झोला टांगे हुए) के साथ आता हुआ दिखाई पड़ता है।
भैरव (शिवम को देखते हुए) - आ गए बच्चा?शिवम- हम्म और पंडित जी भी।भैरव (बगल में खड़े मंगल को देख के) - ये किसको लेके आ गए?
मंगल - तुमको कोई समस्या?
भैरव - (बात घूमने के स्टाइल में) मुझे भला क्या समस्या होगी , मैं तो बोल रहा था कि कितने पुण्य आत्मा विद्वान को को लेके आये हो इनके हाथों तो व्यक्ति स्वर्ग नहीं बल्कि सीधे वैकुंठ ही पाता है।
मंगल- (गर्व से सीना चौड़ा कर के चुटिया घुमाते हुए) , सच बोला तू , मुझसे ज्यादा विद्वान पंडित इस काशी तो क्या पूरे समूचे जम्मूद्विप में नहीं मिलेगा , अरे मुर्दे बोल पाते तो बोलते मुझे दाह संस्कार से लेकर श्राद्ध तक सब सिर्फ पंडित मंगल से ही करवाना है , वो है तो स्वर्ग की गारंटी है।
भैरव- जी जी महाराज।तभी मंगल बगल में खड़े होकर अपनी कंधे पर लड़के झोले में कुछ खोजने लगता है।उधर खड़ा शिवम, पंडित को देखकर भैरव को मुंह बनाता देखता है और पास जाके धीरे से पूँछता है ,क्या हुआ क्यूँ मुँह बना रहे हो?
भैरव - तुमको नहीं पता तुम क्या नमूना लेकर आये हो शिवम- मतलब?भैरव- मतलब तुमको अभी कुछ देर में पता लग जायेगा, बस भोले से दुआ करो कि शांति से काम हो जाये तुम्हारा और तुम घर चले जाओ।
मंगल- क्या खुसुर फुसुर चल रही है ? जल्दी करो मुझें जाना भी है।
भैरव- (हड़बड़ी में) जी ,जी प्रभु, (शिवम को देख के) अरे खड़े क्या हो महाराज थोड़ा हाथ बटाओ ।दोनों मिल कर चिता सजाते है और लाश को चिता पर लेटा देते है मंगल मंत्र पढ़ना शुरू करता है
मंगल- व्यक्ति का नाम
शिवम- नहीं पता
मंगल- गोत्र
शिवम- नहीं पता
मंगल- कुल
शिवम -नहीं पता
मंगल-जाति
शिवम- नहीं पता
शिवम के मुंह से हर बात पर नहीं पता सुन के मंगल का पारा हाई हो गया था गुस्से में बोलता है
मंगल-(गुस्से में) मेरे साथ ठिठोली करने आये हो यहाँ ?नाम , कुल , गोत्र जो पूँछ रहा हूं सब नहीं पता - नहीं पता बोले जा रहा है , अरे सड़क से उठा के लाया है क्या?एक बार और मुझसे पाखंड किया तो यहीं श्राप देके भस्म कर दूँगा।
भैरव- अरे महाराज गुस्सा न करें , ये लड़का सच में सड़क पर से ही उठा के लाया है।मंगल- तू मुँह बन्द रख नहीं तो तुझे भी भस्म कर दूँगा
शिवम- पंडित जी वो सच कह रहे हैंमंगल कुछ न बोला बस चेहरे पर गुस्सा बना रहा,थोड़ी देर दोनों का मुंह देखने के बाद मंत्र पढ़ना फिर शुरू किया।थोड़ी देर मंत्र जाप के बाद
मंगल - यहाँ पित्र देव के नाम से 1001 रखो
शिवम- आँखे बढ़ी कर के 1001 …
मंगल- हाँ जल्दी करो नहीं तो मंत्र छूट जाएगा
शिवम- पर महाराज हमारी बात तो सिर्फ दक्षिणा की हुई थी , ये एक्स्ट्रा 1001 कहाँ से आ गया?
मंगल - ये मैं कहाँ ले रहा हूँ ये तो पित्र देव का चढ़ावा हैभैरव - (धीमे स्वर में) जी जी महाराज आप कहा ले रहे हो वो अलग बात है जाएगा आपके ही पोटली में ..मंगल- क्या बोला तू?भैरव- कुछ न महाराज।मंगल- जो बोलना रहे जोर से बोला कर नहीं तो भस्म कर दूँगा।शिवम - माफ करना महराज जो कुछ भी मेरे पास था सब इस लाश के कफ़न में , सवारी कर के यहाँ लाने में और आपके दक्षिणा में ही खत्म हो गए अब तो इस चांडाल को भी देने तक के पैसे न है मेरे जेब में , आपको अलग से 1001 कहाँ से दूं
भैरव - घबरा मत मैं पैसे नहीं लूँगा वैसे भी तू निःस्वार्थ भाव से पुण्य का काम कर रहा है , और पंडित जी लड़के ने आपको दक्षिणा तो पूरी दी ही है वैसे भी पित्र देव को दिन भर में अनगिनत चढ़ावे मिलते हैं एक जगह नहीं मिलेगा तो वो नाराज नहीं होंगे।
मंगल- ऐसा नहीं होता कुछ रीति रिवाज होते है जिन्हें करना अनिवार्य है।
भैरव - पंडित जी इतना लालच अच्छा नहीं , अरे एक जगह थोड़ा कम ही कमाओगे तो भूखें नहीं मरोगे।
मंगल- अपमान , घोर अपमान न केवल मेरा बल्कि पित्र देव का भी, अरे तू मुझे जानता ही क्या है एक श्राप दूँगा तो
भैरव- भस्म हो जाऊँगा यही न, सुनते-सुनते कान पक गए हैमंगल- अब तूने सारी हदें पार कर दी है नीच चांडाल जिस तरह तेरा पिता और तेरी पत्नी भूख और प्यास से तड़प-तड़प के मर गये थे वैसे ही तू भी मरेगा ।
भैरव- (ऊँचे स्वर में) पंडित मंगल , मैने अभी तक आपका बहुत सम्मान किया लेकिन आप मुझ पर चढ़े जा रहे हो और इतना बढ़ गए कि मेरे मृत परिवार तक चढ़ गए , कसम शमशान घाट की अब एक और लब्ज भी मेरे परिवार के बारे में बोले तो जुबान खिंच लूँगा।
मंगल- (कंधे पर अपना झोला सम्हालते हुए भैरव के पास जाकर) बोलूंगा एक नहीं हजार बार बोलूँगा , मैं डरता नहीं हूं तुझसे।
भैरव - पंडित अब बचो मेरे वार से…. बोलते हुए पंडित के पेट मे जोर से मुक्का मारता हैपंडित दो कदम पीछे जाता है फिर पंडित अपना झोला घुमा के भैरव को मारता है तो भैरव दो कदम पीछे चल जाता है,फिर दोनों पास आकर लड़ने लगते है कभी भैरव ,पंडित की चोटी खिंच रहा होता है तो कभी पंडित , भैरव के हाथ मे दाँत काट रहा होता है , फिर कभी भैरव पंडित का हाथ मरोड़ता था तो कभी पंडित भैरव के पैर की अंगुलिया मोड़ता था दोनों एक दम गुत्थम गुत्था हो रखे थे इसी बीच पंडित की धोती खुल गई,
शिवम- ओ तेरी
पंडित मंगल- हे राम ! हे भोले! क्या- क्या देखना बचा था तेरे भक्त हो , आज तेरे इस भक्त का भरे बाजार में चीर हरण हो गया , क्या मुँह दिखाऊँगा इस समाज को
शिवम- अरे पंडित जी शांत-शांत हम तीन ही है , वैसे तो चार पर मुर्दा बोलता नहीं है न इसलिए तीन ही है तो ये बाजार कहाँ से आ गया? हम दोनों भी किसी को नहीं बतायेगे आप भी मत बताना ,और आप दोनों एक बात बताइये इतने बड़े और समझदार होकर लड़ाई करते शर्म नहीं आती ये क्या हरकत है?
मंगल - हरकत ?अरे इसने अपराध किया है एक सीधे सादे पंडित का अपमान कर के , और जितना जिम्मेदार ये है उतना तू भी क्यूंकि ये सब तेरे ही कारण हो रहा है तू ही मुझे यहाँ लाया है , रुक सबसे पहले तुझे बताता हूँ।ये कहते हुए मंगल , शिवम की तरफ बढ़ने लगता है
शिवम- देखिए पंडित जी ये गलत कर रहे है आप ।मंगल - अभी शुरू ही कहाँ किया है
शिवम धीरे धीरे कदम पीछे हटाने लगता है।मंगल , शिवम की ओर बढ़े जा रहा है,तभी भैरव आवाज लगाता है …भैरव -- पंडित जी अब किसी को परेशान किया तो मैं कुछ कर दूँगा।मंगल -( शिवम की तरफ बढ़ते हुए) तुझे बाद में देखता हूँ दुष्ट भैरव, पहले इसे तो ठिकाने लगा लूँ ।
भैरव - अंतिम बार कह रहा हूँ कुछ कर दूँगामंगल - क्या कर देगाभैरव - भस्म कर दूँगामंगल - (व्यंगात्मक मुस्कान के साथ)मैं दुनियां को करता हूँ तू मुझे करेगा, कैसे?.... ये कहते हुये भैरव की तरफ घूमता हैतभी भैरव चिता की एक मोटी सी लकड़ी हाथ में लिए हवा में लहराता है जिसके एक छोर पर तेज आग भभक रही होती है औऱ फिर लहराते हुएभैरव कहता है - ऐसे..भैरव के हाथ मे जलती हुई लकड़ी को देख मंगल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है ।
मंगल- (घबराए स्वर में ) देख भैरव ये पागल पन है इसे नीचे रख हम बात भी तो कर सकते हैं नभैरव - अरे ना- ना पंडित जी बात वात में क्या रखा है मुक्का- लात अच्छा विकल्प है वैसे भी मुर्दे बहुत जलाये है पर ज़िंदा नहीं तो आज अनुभव कर लेता हूँ वो क्या कहते हैं अंगेजी में फस्ट टाइम एक्सपीरियंस तो बनता है।
मंगल- अरे तू चांडाल है या बेताल जो मेरे जान के पीछे पड़ गया है
भैरव- कोम्बो, अब तुम यहाँ से नही गए तो मैं नहीं जानता पर कुछ तो हो जाएगा।पंडित मंगल अपना झोला और धोती उठाता है और उल्टे पैर दुम दबा के रफूचक्कर हो जाता है।शिवम- मुझे बचाने के लिए शुक्रियाभैरव- कोई बात नहीं
शिवम- (हताश के साथ) तो चलो फिर ऐसे ही जलाते हैं पैसे भी गए काम भी न हुआ।
भैरव- चिंता न करो तुम्हारा मन है की इसका विधिवत दाह संस्कार हो तो वही होगा। (एक दूर मशाल की रोशनी दिखाते हुए) वो रोशनी दिख रही हैशिवम - हाँभैरव- हाँ तो बस वहाँ चले जाओ वहाँ एक बस्ती है , जब उस मशाल के पास पहुंच जाओगे तो वहाँ से उत्तर की तरफ चार घर आगे ,एक पत्थर का मकान मिलेगा उसका दरवाजा खटखटाना , जब कोई किवाड़ खोले तो उससे पूँछना गिरधर है ? एक बात और अगर कोई महिला किवाड़ खोले तो बिना एक भी क्षण की देरी किये तुरंत पूँछना गिरधर है क्या? क्योंकि अगर उसको कुछ उल्टा सीधा शक हुआ तो तुम्हारी लायी लाश बाद में जलेगी पहले तुम्हारी ही लाश जलेगी
शिवम- (घबराहट के मारे गले मे आये थूक को निगलते हुए) बाप रे इतने खतरनाक लोग है यहाँ ? आप साथ चल लो न आप तो यही के हो मैं अकेला कैसे जाऊं , आपको तो यहाँ के सब जानते ही होंगे तो खतरा न होगा मुझे।
भैरव -( हँसते हुए) डर गये क्या महाशयशिवम- कौन नहीं डरेगा , अब मेरा मजाक बाद में उड़ाना जल्दी चलोभैरव - नहीं चल सकताशिवम- क्यूँ?भैरव- क्यूंकि तुमको पहले ही बताया था मैं चांडाल हूँशिवम- हाँ तो
भैरव - तो यहाँ के लोग चांडाल को अशुभ और चांडाल के कदम उनके बस्ती में पड़ने को वो अपशगुन मानते हैं। अभी कुछ देर पहले पंडित मंगल बोला था न मुझे कि तेरे पत्नी और पिता की तरह भूखे तड़प के मरेगा तू ,
शिवम- हम्म पर उसका इससे क्या संबंध
भैरव- सम्बन्ध है गहरा संबंध है , सुनो तो पता लग जायेगा , कुछ साल पहले यहाँ कुछ समय का अध्भुत दौर चला कि कई महीनों से किसी की मृत्यु ही नहीं हुई , सुनने में तो बहुत अच्छा है न कि किसी की मृत्यु नहीं हों रही , कोई अपने प्रिय को खो नहीं रहा , इससे अच्छा और क्या होगा पर हमारी आजीविका तो इसी पर निर्भर थी जैसे एक चिकित्सक की लोगों के बीमार होने पर , धीरे-धीरे जो हमने थोड़ा बहुत राशन इकट्ठा रखा था वो भी खत्म होने लगा, अब हम लोगों ने सोचा कि ऐसे काम नहीं चलेगा चल के कुछ मजदूरी ही कि जाए बिना दो पैसे के हम भूखे ही मर जायेंगे ,पर किसी ने हमें काम पर नहीं रखा सबको यही भय था अगर इनको काम पर रखा तो धंधा मंदा पड़ जाएगा , मेरे बूढ़े पिता ने ये तक सोचा कि चल के भीख ही मांग लेता हूँ शायद बुढ़ा हूँ यही सोच के मुझपे तरस खा जाए और कुछ भीख दे दे , लेकिन बदकिस्मती का हाल ये था कि इसका भी कोई लाभ न हुआ उल्टा एक दिन एक महिला ने उन्हें धक्का दे दिया ये कहते हुए कि अगर मेरे बच्चों पर तेरी मनहूसियत छायी तो टांगे तोड़ दूँगी उस धक्के से वो पास के नाली में जा गिरे जिससे उनके भूख से कमजोर बेजान बूढ़े शरीर पर काफी चोटें आई । अब मेरे पास केवल एक ही सहारा था यहाँ से बाहर निकलूँ और अपनी पहचान छिपा के कुछ काम करूं ताकि दो पैसे आये, अपनी पत्नी को, पिता जी का ख्याल रखना बोल के वहाँ से निकल गया फिर काफी दिन भटकने के बाद,मैं लंका(बनारस) के एक छोटे से कारखाने में काम पाया मैंने मैनेजर से थोड़ा उधार मांगा ये कह के ही जब तनखाह आये मेरा तो उसमें से काट लेना , तो उसने कहा अभी बैंक का काम अटका है जैसे ही सुलझ जाएगा ले लेना पैसे, ऐसे करते करते दस दिन फिर बीस दिन करते करते महीना हो गया , जब महीना पूरा होने पर मैंने पैसे मांगे तो मैनेजर ने बोला अभी बैंक का काम सुलझ नहीं पाया है कुछ दिन बाद मिलेगा मैंने बोला मालिक रहम खाओ मेरी बीबी और बीमार बाप भूखे मर जायेंगे उन्हें अकेला छोड़ के आया हूँ घर में एक दाना अनाज का न है पानी पी-पी के कब तक जियेंगे बोलते-बोलते उसके पैरों में गिर गया गिड़गिड़ाता रहा, भीख मांगता रहा लेकिन वों जरा सा भी न पिघला , फिर एक दिन खबर मिली कि मेरे पिता और पत्नी दोनों भूख से तड़प तड़प के मर चुके हैं ,जब मैं रोते बिलखते घर पहुँचा तो देखता हूँ एक फटे चटाई पर मेरे पिता की लाश पड़ी है जो कि सूख के पूरा कंकाल हो चुकी है वही थोड़ी दूर पर ही दीवार से सिर टिकाये मेरी पत्नी भी बेजान पड़ी थी, ये दृश्य देख के मैं पिता जी के पास गया बोला( रोते हुए) पिता जी, पिता जी उठिए , उठिए तो , देखिए आपका भैरव आया है पिता की देह से कोई जवाब न पाया तो छटपटाते हुए अपने पत्नी के शरीर के पास गया , किशोरी , ए किशोरी , चल उठ , देख तो मैं आया हूँ , अरे कुछ बोलती क्यूँ नहीं , बोल , बोल न ,अपनी पत्नी के शरीर को कंधे से पकड़ हिलाते हुए फुट फुट के रोया ,उस दिन मैं बहुत रोया ,चीखा, चिल्लाया ,जानते हो मैंने बहुत लाशें जलाई हैं पर जब इन हाथों से अपने पत्नी और पिता की लाश जला रहा था तो अंदर जो जो वीरान अनुभव हुआ था वो आज भी झकझोर के रख देता है।
भैरव जैसे-जैसे अपनी कहानी सुना रहा रहा था वैसे-वैसे उसकी आँखे लाल हों रही थी मानो फुट- फुट के रोना चाहती है पर एक अंजान के सामने खड़े होने के कारण रो नही पा रही है।ये सब सुन के और देख के शिवम की आंखों में भी पानी भर आता है
शिवम- अब तो आपके साथ कोई नहीं तो कभी मन नहीं किया कि यह सब कुछ छोड़ के कही और बस जाऊ??
भैरव- मन तो बहुत किया पर ये शमशान मेरा घर है इसे छोड़ कर कही और बस जाना मेरे लिए इतना आसान नहीं यही पला यही बड़ा हुआ और इन सब को भूल भी जाऊ एक पल के लिए तो मैं अपने परिवार को छोड़ के कैसे जा सकता हूँ वो देख रहे तीन शिलाएं वहाँ एक के नीचे मेरी माँ की राख है जो की बहुत पुरानी हो गयी है और बाकी के दो तो समझ ही गये होंगे मेरी पत्नी और पिता ,इन सब को छोड़ मैं नहीं जा सकता , इसी मिट्टी में एक दिन मैं भी मिल जाऊँगा और अपने परिवार को पा लूँगा।
कुछ देर की मुर्दाशान्ति के बाद …….
भैरव - खैर ये सब छोड़ो , तुम जाओ गिरधर को बुला के आओ , बोलना भैरव ने भेजा है।
शिवम- ठीक है।
शिवम जाता है और गिरधर के घर का दरवाजा खटखटाता है खट-खट की आवाज के साथ ही आवाज भी लगाता है - कोई है?? कृपया दरवाजा खोलियेअंदर से एक आवाज आती है - अरे आ रहा हूँ भाई पीट पीट के किवाड़ ही तोड़ दोगे क्या?किवाड़ खुलते हैं शिवम देखता है कि अंदर से एक चुस्त दुरुस्त व्यक्ति मानो अभी नींद से उठा चला आ रहा हो जिसके कांधे पर जनेऊ हाथ मे कड़ा और माथे पर राधे राधे का अधमिटा आधे अधूरे अक्षर चिन्ह थे,
गिरधर- क्या है भाई ?क्यूँ आधी रात को मेरी नीदं उड़ा रहे हो?
शिवम-पंडित गिरधर आप ही है?
गिरधर- (शिवम को ऊपर से नीचे तक देखने के बाद) नहीं पर वो कहाँ मिलेगा ये जरूर बता दूँगा पर उसके पहले तुमको अपना परिचय देना होगा
शिवम- मेरा नाम शिवम है , वैसे तो मैं सारनाथ का रहने वाला हूँ पर अभी यही पास के एक कॉलेज में पढ़ता हूँ और वही के छात्रावास में रहता हूँ ।
गिरधर- अध्भुत महात्मा बुद्ध की भूमि से वैसे बुरा न मानो तो मैं तुम्हारा किसी भी प्रकार का परिचय पत्र देख सकता हूँ??
शिवम - एक मिनट मेरे जेब मे हमेशा मेरे कॉलेज का आईडी कार्ड रहता है रुको दिखाता हूँशिवम, गिरधर को अपने कॉलेज का परिचय पत्र दिखाता है फिर
गिरधर- (धीमे स्वर में) सामने से तो बंदर है ही पर फ़ोटो में तो और भी बंदर है
शिवम- कुछ कहा क्या आपनेगिरधर - ना ना , बस आईडी में फ़ोटो अच्छी हैशिवम- शुक्रिया तो अब बताइये गिरधर जी कहाँ मिलेंगे
गिरधर- अरे ठहरो भी , इतनी भी क्या जल्दी है , पहले ये बताओ तुम ढूंढ किस लिए रहे हो और यहाँ का पता कौन बताया तुमको
शिवम- एक दाह संस्कार करवाना है और मुझे चांडाल भैरव ने भेजा है
गिरधर - अच्छा , रुको बुलाता हूँ
गिरधर अंदर जाता है और कुर्ता पहन कंधे पर झोला टांगे गले में पीला गमछा डाले बाहर आता हैशिवम- आप तो गिरधर जी को बुलाने गए थे खुद ही वापस आ गएगिरधर- ,मैं ही हूँ पंडित गिरधर
शिवम- मैं समझा नहीं जब आप ही पंडित गिरधर है तो ये क्या नाटक कर रहे थे आप और क्यूँ??गिरधर- बड़ा तो हों गए हो मुन्ना पर अभी अकल का कच्चा हो , जीवन का एक सबसे महत्व पूर्ण सिख आज तुमको सिखाता हूँ , जब तक ये न समझ आ जाये सामने वाला कौन है मामला क्या है वो क्यूँ आया है तब तक अपना परिचय नहीं देना , क्योंकि कभी कभी भेड़ के भेष में भेड़िये भी मिल जाते है और तुम्हारे लिए दिक्कते खड़ी हों सकती है।
शिवम- वाह रे गुरुदेव
शिवम और गिरधर बात करते-करते थोड़ी दूर आगे बढ़े ही थे कि तभी पीछे से एक आवाज आती है अबे ए गधे इतनी रात को एक अनजान के साथ कहाँ भटक रहा हैगिरधर और शिवम पलट के देखते है कौन है रात के अंधेरे में थोड़ा धुंधला लगता पर उन दोनों को ये समझ आता है कि कोई लड़की है , जब वो लड़की पास आती है तो गिरधर पहचान जाता है
गिरधर- पल्लवी तू , तू यहाँ क्या कर रही है(पल्लवी , गिरधर की होने वाली पत्नी , हाथ में एक छोटा सा डंडा लिए हुए आती है )
पल्लवी - (डंडा हाथ मे घुमाते हुए) मेरी छोड़ पहले अपनी बता कितनी बार कहा है रात को यूँ आवारागर्दी न किया कर लेकिन नहीं, महाराज कंधे पर झोला लटका लिए माथे पर टिका लगा के दबे पांव चल दिये तो पल्लवी कुछ समझेगी ही नहीं , पकड़े गए तो बोल देगें अरे पल्लवी काम से गया था , कसम गंगा मैया की , तुम्हारा काम खत्म कर 2 मिनट में यहीं दफन कर दूँगीगिरधर-( थोड़ा घबराते हुए )अरे पागल क्या बोले जा रही है मैं कुछ आवारागर्दी न कर रहा और वैसे भी दफनाने का काम मुस्लिम भाइयों में करते है
शिवम- तो उसमें क्या है जला देगी
.गिरधर शिवम को सिर घुमाके के घूरता है जैसे मन ही मन बोल रहा हो अबे साले …
पल्लवी - उसे क्या देख रहा है इधर जवाब दे, हमारी शादी होने वाली है और तू रात-रात भर गायब रहता
गिरधर- अरे मेरी माँ सच में मैं काम से ही जा रहा हूँ , न विश्वास हो तो इस महाशय से पूँछ लो
पल्लवी शिवम की तरफ सिर घुमाती हैंशिवम - ( हकलाते हुए बोलता है) जी , जी , ये , ये सही बोल रहे हैं हम लोग काम , काम से ही जा रहे है मेरी मालकिन को इनकी याद आ रही थी तो उन्होंने इनको याद किया थागिरधर शिवम की बात काटते हुए
गिरधर- ये सब क्या बोले जा रहे हो भाई , खुद तुमको भी समझ आ रहा है, मुँह बन्द करोपल्लवी- एक तो खुद झूठ बोलता , कोई सच बोल तो उसका मुँह पकड़ता , आज तो तू गया गिरधरपल्लवी डंडा लेकर गिरधर के पीछे दौड़ती हैगिरधर भी बच के भागता है
गिरधर- अरे पल्लवी , सुन , सुन तो यार , ये झूठ बोल रहा है
पल्लवी- हाँ और तू तो बड़ा सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र है , आज मैं तेरी एक भी न सुनूँगी
गिरधर- अरे सच में
पल्लवी गिरधर को एक कोने में दबोच लेती हैऔर बाह पर एक एक डंडा धुन देती है
गिरधर- आह, लग रही है यारपल्लवी- बाबा सही कहते थे , गिरधर की कुंडली साफ बता रही है इसके चाल चलन ठीक न है
शिवम को इन दोनों की नोक झोंक देख के बहुत मज़ा आ रहा होता है
गिरधर- वो क्या मेरी कुंडली पढेंगे , अपनी कुंडली तो वो खुद बिरजू काका से पढ़वाते है , मुझे तो लगता है ससुर जी सटिया गए है, बताओ एक दिन बोल रहे थे कि मैं तेरे भैंस की की हस्त रेखाएं पढ़ सकता हूँ
पल्लवी- हाँ तो वो अति विद्धवान है पढ़ सकते है
गिरधर- पढ़ने के लिए उसके खुर में रेखाएं भी तो होनी चाहिए , दोनों बाप बेटी एक जैसे है पूरे के पूरे पगलैठ
शिवम हँस रहा होता है , तभी पल्लवी जोर से गुस्से में गिरधर पुकारते हुए गिरधर को डंडा फेक के मारती है ,गिरधर झुक जाता है और डंडा जाके शिवम के सिर पर लगता है , शिवम को दिन में तारे नजर आ जाते है ,गिरधर और पल्लवी दौड़ के शिवम के पास आते है।
गिरधर- महाशय ओ महाशय ठीक तो ही
पल्लवी- भईया आप ठीक हो है न , माफ करना आपको लग गईपल्लवी गिरधर को कुहनी मारते हुए कहती है सब इस गधे की गलती है
शिवम- अरे नहीं-नहीं बहन , गिरधर जी की कोई गलती न है मैने तो बस एक छोटा सा मजाक किया था , लेकिन उस मजाक में मैं ही फस गया, किसी ने सच ही कहा है अगर किसी के लिए गड्ढा खोदोगे तो उसमें तुम ही गिरोगे
पल्लवी- मतलब?शिवम- मतलब ये की लड़की , मालकिन , मिलने जाना सब झूठ था , मैं तो इनको एक दाह संस्कार के लिए ले जा रहा था , भैरव ने इनको बुलाया था
पल्लवी- अच्छा ,(गिरधर की तरफ देख के) सॉरी गिरधरगिरधर - अरे कोई न पगली , चल अच्छा तू घर जा मैं इनका काम करवा के सुबह तुझसे मिलता हूँ,पल्लवी ठीक है कहने के बाद चली जाती है।गिरधर- क्या महराज तुम अपने साथ लाये लाश का अंतिम संस्कार करवाने आये थे या मेरा
शिवम - (हँसते हुते) अरे ना ना महाराज , वो आपने मुझे थोड़ा परेशान कर के मजे लिए तो मैंने भी थोड़ा मजे ले लिए
गिरधर - अच्छा जी
गिरधर और शिवम हँसते और बातें करते करते शमशान पहुंच आते है वहाँ पर वे देखते है भैरव अपने परिवार के मिट्टी के पास बेसुध बैठा है
शिवम- भैरव.. , भैरव जी .. गिरधर जी आये हैपर अभी भी भैरव बेसुध पड़ा थातभी गिरधर गर्मजोशी से भैरव के कंधे पर हाथ रखता है और बोलता है मुझे आधी रात को जगा के तू यहाँ सो रहा है चल उठतभी भैरव होश में आता हैभैरव - अरे तू आ गयागिरधर- आ गया नहीं , भूखा आया
हूँ , अब कुछ खिला कुछ पेट में जाये तो काम आगे बढ़ेभैरव - मेरे पास कुछ न है खाने को
गिरधर - चल ज्यादा भाव न खा मुझे पता है तू सुबह की रोटी रात को ही सेक लेता हैभैरव - (व्यंगात्मक अंदाज में) हाँ तू बहुत विद्धवान है तुझे तो सब पता रहता हैगिरधर कोई शक कह के हँसने लगता हैतब तीनो चल के शिवम द्वारा लायी गयी लाश के पास पहुँचते है वही पर थाली में पड़ी रोटी देख के गिरधर खुद ही उठा के खाने लगता है
शिवम (गिरधर से)- बुरा न माने तो एक बात पूछूँ?गिरधर( रोटी चबाते हुए) - पूछो
शिवम - बस्ती के सभी भैरव को अशुभ मानते और आप ऐसा व्यवहार कर रहे जैसे ये आपका दोस्त हो
गिरधर-हाँ तो ये मेरा मित्र ही है और रही बात बस्ती वालों की तो वो सब पगलैठ है तो उसका मैं क्या करूँ। तुम्हारे कर्म प्रसंसनीय है तो तुम शुभ हो और निंदनीय है तो अशुभ हो , बस यही सत्य है
शिवम - अच्छाभैरव - अब जिस काम के लिए हम लोग आए है उसे पूर्ण किया जाए??गिरधर-( हाथ झार कर कुर्ते के आस्तीन से मुँह पोछते हुए) निःसंदेह बालक , चलो शुरू करें
गिरधर झोले में से एक शीशी निकालता है जिसमें गंगा जल रखा है , उसमें से निकाल के वो चिता पर गंगा जल छिड़कता है , उसके बाद गिरधर मंत्र पढ़ना शुरू करता है
शिवम और भैरव हाथ जोड़ के खड़े रहते हैं फिर गिरधर अपने पोटली में से कुछ फूल और चावल के दाने निकाल के दोनों को देता है और कहता है मेरे मंत्र उच्चारण के साथ एक एक कर के चढ़ा देना , गिरधर मंत्र पढ़ता है पहले भैरव फिर शिवम दोनों एक एक कर के चिता पर फूल चढ़ा देते हैं
गिरधर मंत्र फिर शुरू करता है शिवम हाथ जोड़ खड़ा रहता है और भैरव एक लकड़ी पर कपड़ा बांध रहा होता हैगिरधर मंत्र पूरा करने के बादगिरधर- शिवम आगे आओ और चिता को मुखाग्नि दोभैरव जिस लकड़ी पर कपड़ा बांध रहा था अब उस लकड़ी को शिवम को पकड़ा देता है और फिर उसमें आग लगा देता है
शिवम , हे ईश्वर इस व्यक्ति की आत्मा को शांति देना कह के चिता में आग लगा देता है।तीनों चिता को देख रहे होते है तभी
शिवम - (जलती चिता को देखते हुए ही) पंडित जी क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँगिरधर( चिता को देखते हुए ही) पूछो
शिवम- इस व्यक्ति की इतनी दुर्गति क्यूँ हुई ऐसा क्या कारण रहा हो
गागिरधर - कर्म
शिवम- अर्थात?गिरधर- अर्थात ये कि प्रत्येक जीव अपने साथ होने वाली प्रत्येक घटना का उत्तदायी स्वयं होता है ,कुछ इस जन्म के कर्म फल होंगे तो कुछ पूर्व जन्म के
भैरव -( हँसी के साथ) -तो क्या ये मृत शरीर अपने पापों का बोझ लेकर गयी होगी मेरे समझ से तो सब यही चिता में जल के खाक हो गया
गिरधर- पुराणों की माने तो आत्मा अनंत है और देह नश्वर, देह तो यहीं जल जाता पर कर्म आत्मा के साथ ही जाते हैं
शिवम- यदि यह सब पुनर्जन्म का ही खेल है तो पुनर्जन्म ,जीवन है या अभिशाप
भैरव- मुझे कई लोगों ने कहा है कि तुझे तो चांडाल होने का तेरे पिछले जन्म के कर्मो का अभिशाप मिला हैऔर मैं उनसे हँसते हुये कहता हूँ कि जिन्हें देख के लोग रोते है उनके अंतिम सफर का साथी बनना क्या ये अभिशाप है?
अरे ये तो सबसे ज्यादा पुण्य का काम है मैंने उन्हें अपने हाथों में तब थामा जब पूरे संसार ने उनका साथ छोड़ दिया।
गिरधर- आज के दौर में समाज ने पुण्य और पाप की परिभाषा अपने फायदे के अनुसार बना रखी है लेकिन कितना भी रूप परिवर्तन कर दे पर अंतिम सत्य तो सभी का एक ही है मृत्युघाट , इसी मिट्टी में ही मिल जाना है चाहे जल के या चाहे दफ्न होके
शिवम- तो मृत्युघाट क्या जीवन के सारे संबंधों और संघर्षो का अंतिम उत्तर है?
भैरव(सोचते हुए) - शायद
गिरधर- नहीं मृत्युघाट जीवन के सारे संघर्षों का तो अंतिम उत्तर है किंतु सारे संबंधों का नहीं क्योंकि आप से जुड़े लोग आज भी है जो आपके कर्मों के आधार पर या आपसे संबंध के आधार पर आपको प्रेम, स्नेह ,सम्मान से लेकर मन को खट्टे कर देने वाले शब्द तक भेंट चढ़ाएंगेतीनों बात कर ही रहे होते हैं कि जलती चिता की लकड़ी खिसकने की आवाज आती है वो पलट के देखते है तो लड़कियां खिसक जाने के कारण चिता थोड़ी अस्त व्यस्त हो जाती है जिसे भैरव फिर से ठीक करने लगता है
भैरव को चिता ठीक करते देख शिवम कहता है
शिवम- (दबे हताश स्वर में) एक दिन मैं भी यहीं आऊँगा
गिरधर- सिर्फ तुम जो लाश को यहाँ लाये हो, वो ही लाश नहीं बनेगा बल्कि ये लाशों को जलाने वाले भैरव की भी लाश जलेगी और लाशों के लिए मंत्र पढ़ने वाले पंडित के लिए भी एक दिन कोई और मंत्र पढ़ेगा ,यही विधि का विधान है , मृत्युघाट ही अंतिम सत्य है।शिवम ( गिरधर की बात दुहराते हुए) - मृत्युघाट ही अंतिम सत्य हैतीनों चिता को जलता हुआ देखते हैंचिता जल के खत्म हो जाती है उसकी लव बुझ जाती है अब बस धुंआ बचता और आस पास बस अंधेरा ,घोर अंधेरा छा जाता है
थक जाता हदिन
सिमट जाती है रात
हर परिंदा यहीं है ढलता
जिसे कहते मृत्युघाट
निर्धन कायर कोढ़ी हो
या फिर रूपवती अति गुणवान
मृत्युघाट पर सब एक
चाहे हो बालक वृद्ध ,या युवान
मचलती चिताओं का अमर राग
काँपता दीपक मिटता पराग
जीव जगत काअंतिम संवाद
जय हो मृत्यु घाट
जय हो मृत्युघाट
-kumar shivam hindustaniधन्यवाद