रचनाकार- दीपक गोस्वामी (चिराग)प्रकाशक एवं मुद्रक -सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन(क )रामायण धर्म ग्रन्थ का इतिहास एवं वर्तमान--रामायण ऐसा ग्रन्थ जो समाज को मर्यादाओं,संस्कृति, संस्कार कि दिशा दृष्टिकोण तो हैँ ही सनातन के ईश्वरीय आचरण का दर्पण हैं! रामायण कि सर्वप्रथम रचना आदि कवि वाल्मीकि ने कि थी जो त्रेता युग मे भगवान श्री राम के काल मे स्वयं थे और भगवान राम के आचरण एवं पृथ्वी पर मनुष्य रूप मे उनके व्यवहार को स्वयं देखा भी गया था अतः महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण मूल श्रोत के रूप मे भविष्य के रामायण रचयिताओ के लिए हैं!सातवीं शताब्दी के बाद एवं भारत मे एवं सम्पूर्ण विश्व मे बढ़ते इस्लामिक प्रभाव के कारण सनातन अपने अस्तित्व के लिए झूझने लगा उससे पूर्व मौर्य साम्राज्य विन्दुसार के बाद सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेने के बाद और सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार पर केंद्रित सत्ता शासन से आर्यावर्त मे लगभग सनातन धर्म समाप्त हो चुका था!शांकचार्य जी द्वारा चार पीठो कि स्थापना कर पुनर्नस्थापित करने का प्रयास किया गया तात्पर्य स्पष्ट हैं कि सनातन धर्म पर प्रहार पर प्रहार होते रहे मुग़ल शासन काल मे यदि महाराणा प्रताप को छोड़ दिया जाए तोतत्कालीन सत्ता के शक्तियों ने मुगलो से या तो समझौता कर लिए थे रिश्ते नातों के बंधन मे बांधकर या उनकी चाकरी करते हुए परिणाम यह हुआ कि सनातन धर्म का पुनः पतन होने लगा और सनातन समाज मे भय का पलायन होने लगा आज बड़े गर्व से हम सभी भरतीय यह कहते है कि इंडोनेसिया मे आज भी रामायण नित्य पढ़ी जाती हैं एवं वहां रामलीलाओ का मंचन होता है क्योंकि इंडोनेसिया के लोंगो पुरुखे हिन्दू थे एवं वर्तमान मे वे इस्लाम अनुयायी है!यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सनातन समाज भयाक्रांत होकर या सनातन धर्म से बोझिल अपमानित होकर देश दर देशों ने सनातन का त्याग कर दिया!तेरहवी शताब्दी से भारतीय उप महाद्वीप मे मुग़ल परचम लहरा रहा था धर्मान्तरण तेजी से हो रहा था और सनातन धर्म ग्रंथो वेद पुराणों आदि के पढ़ने तदानुसार आचरण करने कि बात तो बहुत दूर कि बात थी वेदों पुराण उपनिषदो एवं धर्मग्रंथो को बचाना एक बड़ी समस्या थी ठीक इसी काल खंड मे कुछ भक्ति भाव से ओत प्रोत भक्तों का जन्म हुआ जिसमे सुरदास, मीरा एवं तुलसी दास प्रमुख थे!सूरदास जी एवं मीरा ने कृष्ण भक्ति कि अलख जगए रखा तो तुलसी दास जी ने राम भक्ति को जीवंत रखा!नाम कबीर,रसखान एवं रहीम का भी लिया जाता हैं लेकिन सनातन धर्म के मौलिक चिंतन मे या उसे जीवंत रखने मे इनका योगदान नहीं हैं महान संत कबीर दास जी सूफ़ी संत थे जिन्होंने निर्गुण आराधना के आत्मीय बोध को ही धर्म माना हैं!कबीर दास जी ईश्वरीयअवधारणा को स्वीकार नहीं किया हैं उनका सिद्धांत सदआचरण एवं कर्मवाद है जो वर्तमान मे कबीर पंथ का मूल सिद्धांत है!कबीर दास जी ने हिन्दू कि मूर्तिपूजा पर प्रहार किया हैं तो मुसलमान कि कट्टर आराधना पद्धति पर भी आक्रमण किया है जैसे (पाहन पूजे हरि मिले मै पूंजू पहाड़ ताते तो चाकी भली जाके पिसे खाय)(कंकड पत्थर जोड़ी के मस्जिद लिया चुनाय ता चढी मुल्ला बान दे बहिरा हुआ खुदाय)ऐसे मे सूर, मीरा,तुलसी ने भक्ति भाव मार्ग से राम एवं कृष्ण के ईश्वरीय अवधारणा के सत्यार्थ आदि अनंत सनातन को जीवंत जागृत अपनी भक्ति अभिव्यक्ति के द्वारा रखा!सुर दास जी द्वारा कृष्ण भक्ति कि अभिव्यक्ति सुर सागर एवं तुलसी दास जी द्वारा रामलला नेहछू, रत्नावली, रामचरित मानस आदि ने रामभक्ति की शक्ति संवेदना क़ो जीवंत रखा यह वह दौर था ज़ब ज़ब वेदव्यास जी के पुराणो एवं महर्षि वाल्मीकि जी के रामयण कि सामाजिक धार्मिक प्रसंगीता तो थी किन्तु संस्कृति भाषा होने के कारण धार्मिक भाव प्रवाह मे प्रमाणिक नहीं रह गयी थी ऐसे समय मे आम बोल चाल कि भाषा मे रचित सूर सागर एवं रामचरित मानस कृष्ण एवं राम भक्ति और सनातन आस्था अस्तित्व के मूल श्रोत बन गए!(ख़ )रामायण का वैश्विकरण---ज़ब मुग़ल शासन समाप्त हों गया और देश अंग्रेजो के अधीन हो गया वह काल खंड था ज़ब कहावत मशहूर थी विकटोरिया के शासन मे सूर्यास्त नहीं होता अंग्रेज भारत से मजदूरों के रूप मे गुलाम मुल्क अशिक्षित गरीब लोंगो क़ो बंधक बनाकर लें जाते थे जिन्हे गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था जिनकी वर्तमान पीढ़ीयों ने देश बसा दिया है जिसमे माँरिशस, सुरीनाम, गुयाना, त्रिदिनाद, दक्षिण अफ़्रीकी आदि देशों मे रामचरित मानस सनातन के मूल धर्म ग्रन्थ के रूप मे गिरमिटिया मजदूरों द्वारा पहुंची और वर्तमान मे भी प्रसंगिक हैं!सम्पूर्ण विश्व कि बिभिन्न भाषाओ मे अब तक तीन सौ से अधिक रामायण लिखे जा चुके है जिनके मूल श्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एवं गोस्वामी जी द्वारा रामचरित मानस ही हैं!(ग )बलरामायण कि प्रसंगिगता--दीपक गोस्वामी द्वारा रचित बाल रामायण वास्तव मे सनातन संस्कृति क़ो समाज राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से जोड़ने एवं उसके मन मस्तिष्क भाव मे प्रतिस्तापित करने का अनुकरणीय सराहनीय प्रयास है!महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण मे चौबीस हज़ार श्लोक है तो गोस्वामी जी के रामचरित मानस मे सात खंड छियालिस सौ आठ चौपई, सत्ताईस श्लोक छियासी छंद एक हज़ार चौहत्तर दोहे एवं दो सौ सात सोरठा जो बारह सौ पृष्टो मे हैं!दीपक गोस्वामी जी ने सात खंडो क़ो मात्र छंदो कि बाल रामयण कि विशेष विशेषता यह है कि आदि से अंत तक सभी पत्रों का परिभाषित परिचय है एवं एक सौ ग्यारह छंदो मे मात्र छप्पन पृष्टो मे हैं जो जिससे कि पाठक क़ो समझने मे सुविधाजनक है साथ ही साथ बालको मे संस्कृति संस्कार कि दृढ नीव रखने मे बाल रामायण परिणाम परक प्रभावी हैं साथ ही साथ वर्तमान भौतिकतावादी भागम भाग समय युग मे संचार क्रांति एवं मोबाइल के दौर मे जहाँ कोई पुस्तक पढना नहीं चाहता गूगल गुरु से ज़ब जो जानना चाहा पूछ लिया ऐसे दौर मे ज़ब छोटे से छोटे प्रश्न जो सनातन धर्म से संबधित हैं बड़े से बड़ा आदमी नहीं बता सकता टी वी पर महानायक द्वारा एक शो आयोजित किया जाता हैं कौन बनेगा क़रोड़पति मे अनेको बार उनके द्वारा राम के पिता माता आदि का नाम पूछा गया और हाट सीट पर बैठा जो वर्तमान के संचार क्रांति का कमाल था जिससे वह हाट सीट तक पहुंच तो गया किंतु उनकी जानकारी एवं ज्ञान का स्तर न्यून था जबकि बहुत तो ऐसे थे जिन्होंने ने बहुत से धार्मिक धरावाहिक मे महत्वपूर्ण भूमिकाओ का निर्वहन किया था! यह स्थिति तब और हास्यास्पद बन जाती है ज़ब स्वर्गीय रामआनंद सागर सहित रामायण पर जाने कितनी फिल्मे एवं धरावाहिक बना दिए गए है जिसके प्रतिदिन विडिओ रील आडिओ सोसल मिडिया पर चलते रहते है!ऐसे काल खंड मे दीपक जी द्वारा रचित पात्र परिचय सहित बाल रामायण बहुत प्रभावी सकारात्मक सार्थक परिवर्तन का आदर्श शांखनाद है!बाल्याकाल से ही सत्य आचरण के लिए प्रेरणा प्रेरक एवं दिशा दृष्टि कोण प्रदान करने मे सक्षम एवं सफल है!(घ )साहित्यिक सिद्धांतो पर बाल रामायण --बाल रामयण भगवान राम कि स्तुति से प्रारम्भ होती बालकाण्ड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्कीधा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड,उत्तर कांड तक सुगम सतत प्रवाहित होती राम स्तुति पर समाप्त होती है!बाल रामायण के रचानाकार दीपक गोस्वामी जी द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को बड़ी सहजता रोचकता से प्रस्तुत किया गया है जिससे कोमल मन सुकुमार बाल मन को विशेष आनंद कि अनुभूति हो और जिसके कारण सुगमता से पूरी राम कथा को समझ कर आचरण मे आत्म साथ करने मे सुगमता होंगी!बाल रामायण कि अति विशिष्टता यह भी है कि एक बैठक मे लगभग एक घंटे से कम कि अवधि मे आद्योपंत पतानीय है!भगवान राम के जीवन दर्शन आचरण मर्यादाओ नैतिकताओ को बड़े सरल पद्धति भाव मे दीपक गोस्वामी जी द्वारा बाल रामायण के रूप मे प्रस्तुत किया गया है!निर्विवाद रूप से किसी सरगर्भित बिषय को सरल सुगम बनाकर प्रस्तुत करना बहुत दुरूह कार्य है जिसे दीपक गोस्वामी जी ने अपनी दृढ इच्छाशक्ति संकल्पशक्ति ज्ञान एवं निष्ठां लगन के साथ बाल रामायण के रूप मे प्रस्तुत किया गया है!इस उदाहरण से स्पष्ट है -#तहस नहस कर कर दीन्हा उपवन, उच्चारे फिर जय श्री राम! मारे सारे भट रखवारे अक्षय कुमार का काम तमाम!सब बलशाली निशिचर मारे, आया मेघ नाथ बलवान!ब्रह्मफांस मे बधते हनुमत ब्रह्मा जी का रखकर मान!#शब्दों का चयन समन्वय प्रवाह बहुत ही परिभाषित एवं परिषकृतसाहित्यिक शैली मे है जो साहित्यिक दृष्टिकोण एवं साहित्यिक कसौटी पर खरी उतरती है!वीर आल्हा छंद मे पूरी बाल रामायण निबद्ध है स्तुतिया विधाता एवं हरि गीतिका छंदो पर आधारित हैं!बाल रामायण के साहित्यिक पहलू पर बहुत से ख्याति लब्ध विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इसे श्रेष्ठतम सैद्धातिक साहित्य कि रचना के रूप मे व्यखित किया गया है!बाल रामायण कि भाषा मुख्यत हिंदी ख़डी बोली है बीच बीच मे कहीं कहीं अवधि के प्रयोग ने रचना को माधुर्य मे पिरो दिया है रचनाकार अपने उद्देश्य संकल्प भाषा शैली के बंधन से मुक्त रहते हुए बाल मन सुलभ आकर्षक अभिव्यक्ति को सुगम सरल उपयोगी सुबोध बनाना है!निष्कर्ष ---बाल रामायण दीपक गोस्वामी जी की ऐसी कृति है जो समय काल परिस्थिति के अनुसार है!तेज संचार क्रांति के वर्तमान युग मे पुस्तक पढ़ना कम ही प्रचलन मे रह गया है मोबाइल लगभग सभी के पास उपलब्ध है आवश्यकता अनुसार जिस विषय कि जानकारी आवश्यक होती है उसे गूगल के माध्यम से प्राप्त कर लेते है ऐसे मे गोस्वामी तुलसीदास जी बारह सौ पृष्ठ कि रामचरित मानस पढ़ने कि एवं समझने कि कोशिश सिर्फ वहीं लोग करते है जो सनातन के संत प्रहरी है और जिन्हे सनातन धर्म कि सेवा प्रसार एवं भगवान कि भक्ति करनी होती है!भरतीय गाँवों मे विशेषता उत्तर भारत मे पांडित्य करने वाले एवं संस्कार कर्म पद्धतियों क़ो सम्पन्न कराने वाले परिवारो मे सनातन के कुछ ग्रथो का नियमित पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरण होता रहता है जिसमे रामचरित मानस, श्री मद भगवत गीता प्रमुख रूप से सम्मिलित है!महर्षि वाल्मीकि रामायण विरले ही पढ़ते है एवं उसके विषय मे ज्ञान रखने कि चेष्टा करते है कारण वाल्मीकि रामायण संस्कृत भाषा मे हैं और संस्कृत भाषा भारतीय समाज मे मात्र अतीत कि छाया का अभिमान बनकर रह गयी है जबकि भगवत गीता को जो संस्कृत मे ही हैं फिर भी भारतीय समाज मे ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार मे जीवन दर्शन के ग्रन्थ के रूप मे मान्यता के साथ साथ अन्य धर्म ग्रंथो के मूल ग्रंथो के बराबर सम्मान प्राप्त है! भरतीय समाज मे सनातन परम्परा मे नारायण अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चरित्र कि कथा नियमित कहीं न कहीं होती रहती है जिसके मर्मज्ञ मे स्वर्गीय राम किकर उपाध्याय वर्तमान मे मोरारी बापू जी राम भद्राचार्य जी को मानस मर्मज्ञ का सम्मान प्राप्त है!नित्य निरंतर श्री राम कथा प्रवाह मे गोस्वामी तुलसीदास जी का रामचरित मानस ही मूल श्रोत है महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण संदर्भ हेतु ही प्रचलन मे है ऐसी स्थिति मे भरतीय धर्म दर्शन एवं सनातन संस्कृत का प्रभावआचरण के रूप नई पीढ़ी पर पड़ना असंभव है!सामान्य भरतीय परिवारों मे रामचरित मानस का नवाह, मास परायण, पाठ घर के उस सदस्य द्वारा किया जाता है जो वरिष्ठ एवं बुजुर्ग होता है तथा उसके पास समय कि पर्याप्तता होती है और परिवार कि नई पीढ़ी परिवार के बुजुर्ग से बहुत सरोकार अपनी व्यस्तता के कारण नहीं रख पाती किसी विशेष उत्सव अवसर पर अखंड रामचरित मानस का पाठ कराया जाता है जो उत्सव मे धार्मिक तड़का ही होता है ऐसे मे मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन दर्शन को भरतीय समाज के आचरण मे समम्मिल कर पाना दुरूह है!धर्म संस्कार के प्रति जागरूक कुछ भारतीय परिवारो मे अपने भवी पीढ़ी के बच्चो को रामचरित मानस कि कुछ महत्वपूर्ण दोहे चौपई को कंठस्थ करा कर धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारियों कि इति श्री समझ ली जाती है!वर्तमान परिस्थितियों मे राम राज्य कि कल्पना एवं राममय समाज राष्ट्र कि अवधारणा अवनी अस्तित्व बिहीन होंगी कारण कान्वेंट कल्चर के वर्तमान समय तथा भारत कि सामाजिक वर्तमान स्थिति मे बाल रामायण के रचयिता दीपक गोस्वामी का प्रयास वास्तविकता के धरातल पर रामराज्य कि स्थापना एवं राममय समाज का यथार्थ अनुष्ठान यज्ञ है!वर्तमान से भारत के संगठित जागृत सनातन समाज को उसकी सांस्कृतिक चेतना धार्मिक आचरण का बोध कि व्यवहारिकता का पराक्रम है बाल रामायण!भारत के भविष्य बचपन से संस्कार धार्मिक मूल्यों से सुसज्जित करती परिपूर्ण बनती है बाल रामायण!बाल रामयण पढ़ने मे सरल एवं सुलभ है एवं मात्र छप्पन पृष्टो मे पात्र परिचय के साथ एक सौ ग्यारह छंदो मे है गेय है समझने मे सरल एवं रुचिकऱ है बच्चो को आकर्षित करती है और उनमे बाल रामायण पढ़ने कि ललक जिज्ञासा एवं उत्साह ऊर्जा का संचार करती है!यही यथार्थ सत्यार्थ दीपक गोस्वामी द्वारा रचित बाल रामयण महर्षि वाल्मीकि के रामायण एवं गोस्वामी जी के रामचरित मानस कि रचना कि अवधारण विचार संकल्प उद्देश्य को मुर्तता प्रदान करती है और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन आदर्शो नैतिक मूल्यों को आत्म साथ करने का आवाहन करती है एवं आचरण को व्यवहारिकता का पराक्रम पुरुषार्थ प्रदान करती है दीपक गोस्वामी जी द्वारा बाल रामायण कि रचना करके राष्ट्र एवं समाज को उसके भविष्य के लिए बाल रामायण के रूप मे शास्त्र तथा जीवन कि चुनौति काल मे आचरण के धीर धैर्य शस्त्र के रूप मे है बाल रामायण!बाल रामायण जैसी अद्भुत काल जयी रचना के लिए रचनाकार दीपक गोस्वामी जी को साधुवाद!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!