कहानी का नाम: "बंद दरवाज़ों के पीछे"
रीमा एक 32 साल की सुंदर, स्मार्ट और खुशमिज़ाज महिला थी। उसकी शादी को 7 साल हो चुके थे। उसका पति आरव एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था और अक्सर बिजनेस ट्रिप पर बाहर रहता। रीमा बाहर से बिल्कुल आदर्श पत्नी लगती—संसकारी, खुशहाल और सबकी चहेती—but अंदर ही अंदर उसे अपने जीवन में रोमांच की कमी खलती थी।
(सड़क पर पड़ोस के लड़के के साथ एक सीन)
रीमा (हल्की मुस्कान के साथ): "अरे सुमित, आजकल बहुत जिम जा रहे हो लगता है, बॉडी तो काफी बन गई है।"
सुमित (शरमाते हुए): "नहीं भाभी, आप ही मोटिवेट करती हैं, जब आप बोलती हैं तो और मेहनत करने का मन करता है।"
रीमा (नज़रों में शरारत): "ओह! तो मैं इंस्पिरेशन हूं तुम्हारी? अच्छा लगा सुनकर। वैसे कभी-कभी इंस्पिरेशन को कॉफी पर भी ले जाना चाहिए ना?"
सुमित (हैरान होकर): "आप... मेरे साथ?"
रीमा (हँसते हुए): "क्यों, डर गए क्या? मैं सिर्फ कॉफी की बात कर रही हूँ... और कुछ नहीं।"
धीरे-धीरे रीमा की ऐसे कई लड़कों से दोस्ती हो गई थी—कभी पार्क में टहलते हुए किसी से मुस्कुराकर बात कर लेना, तो कभी कॉलोनी की पार्टी में किसी की बाँह में हाथ डालकर धीरे से कुछ कह देना।
(एक और सीन, बालकनी में फोन पर बात करते हुए)
रीमा: "तो मयंक, तुमने आज वो ब्लू शर्ट क्यों नहीं पहनी? तुम्हारे ऊपर बहुत सूट करती है।"
मयंक: "बस रीमा दी, आपके लिए कल पहनूंगा। वैसे... आप आज बहुत खूबसूरत लग रही थीं।"
रीमा (धीमे स्वर में): "अरे वाह, अब तुम्हें मेरी तारीफ करना भी आ गया है? तुम सुधर रहे हो मयंक… लेकिन अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।". सीन: शाम के वक़्त, कॉलोनी की टेरेस पर रीमा और आदित्य (25 साल का, स्मार्ट और सेंसिटिव लड़का) अकेले मिलते हैं।
रीमा हल्के गुलाबी सूट में थी, बाल खुले हुए, और होंठों पर वही हल्की मुस्कान जो आदित्य के दिल की धड़कनों को बढ़ा देती थी।
आदित्य (धीरे से): "रीमा जी... आज कुछ अलग लग रही हैं आप। कुछ कहूँ तो बुरा तो नहीं मानेंगी?"
रीमा (नज़रे झुकाकर): "अगर कोई और कहता तो शायद मान जाती... लेकिन तुम कहोगे तो सुन लूँगी।"
आदित्य: "आपके पास बैठकर ऐसा लगता है... जैसे सारी दुनिया ठहर सी गई हो।"
रीमा उसकी तरफ देखती है, उसकी आँखों में मासूम सी चाह नजर आती है। रीमा उसके थोड़ा पास आती है।
रीमा (धीरे से): "इतनी बातें करते हो मुझसे... कभी सोचा क्यों?"
आदित्य (काँपती आवाज़ में): "क्योंकि आपसे दूर रहना अब मुश्किल हो गया है। आप बस एक भाभी नहीं लगतीं... आप मेरे ख्वाबों की कहानी बन चुकी हैं।"
रीमा का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने आदित्य का हाथ थाम लिया।
रीमा: "और अगर मैं कहूँ, आज की ये रात... सिर्फ हमारे नाम हो?"
आदित्य की साँसें तेज़ हो गईं। उसने रीमा की तरफ झुककर उसकी आँखों में देखा।
आदित्य: "मैं आपके हर लम्हे को सँभालकर रखूँगा... बस एक बार आप कह दें।"
रीमा ने उसकी उंगलियाँ अपनी उंगलियों में कस लीं और बोली—
रीमा: "तो फिर देर किस बात की?"
टेरेस की ठंडी हवा में दोनों के करीब आने का वो पल किसी ख्वाब जैसा था। रीमा की पलकों की हलचल, आदित्य की धड़कनों का शोर… और उस रात का हर पल एक राज़ बनकर चुपचाप उन दोनों के दिलों में उतर गया।
सीन: एक बारिश भरी रात, आदित्य का फ्लैट, हल्की रौशनी और खामोशी
रीमा ने बहाना किया कि वो बाहर फंसी है और घर नहीं लौट सकती। आदित्य ने तुरंत उसे अपने फ्लैट पर बुला लिया। बारिश की रिमझिम और कमरे में हल्की सी मद्धम लाइट्स… माहौल खुद-ब-खुद कुछ कह रहा था।
आदित्य (दरवाज़ा खोलते हुए): "आप भीग गई हैं… अंदर आइए, कपड़े बदल लीजिए।"
रीमा (हँसते हुए): "शायद किस्मत चाहती थी कि आज की रात कुछ अलग हो।"
आदित्य ने उसे टॉवेल दिया, और अपनी शर्ट ऑफर कर दी।
थोड़ी देर बाद रीमा, आदित्य की शर्ट में बाहर आई—गीले बाल, चेहरे पर हल्की थकान, और आँखों में कुछ अधूरा-सा सपना।
आदित्य: "आप... बेहद खूबसूरत लग रही हैं।"
रीमा (धीरे से): "तुमने कभी ये सब किसी और के लिए महसूस किया है?"
आदित्य (करीब आते हुए): "नहीं… सिर्फ तुम्हारे लिए।"
रीमा ने उसकी आँखों में देखा—कहीं कोई झूठ नहीं था। बस सच्चा एहसास था।
धीरे-धीरे दोनों पास आए। आदित्य ने उसके गीले बाल पीछे किए, और रीमा ने उसकी उंगलियाँ अपने चेहरे पर महसूस कीं। साँसें तेज़ हो रही थीं, लेकिन पल बहुत शांत था।
रीमा (फुसफुसाकर): "ये जो हम कर रहे हैं… क्या गलत है?"
आदित्य (धीरे से): "शायद… लेकिन जो महसूस हो रहा है, वो बिल्कुल सच्चा है।"
और फिर बिना किसी और सवाल के, दोनों ने खुद को उस रात की नज़दीकियों में बह जाने दिया।
कमरे की रौशनी धीमी थी, लेकिन उनके बीच की भावना बहुत गहरी… वो रात सिर्फ जिस्म की नहीं, रूह की भी नज़दीकी थी।
का टाइटल: "रातों की रहगुज़र"
रीमा अब हर रात किसी न किसी बहाने से बाहर होती—कभी कॉलोनी में किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी, कभी योगा क्लास का लेट सेशन, कभी किसी पुरानी सहेली से मिलने की बात। लेकिन सच ये था कि हर रात वो किसी अलग लड़के के साथ होती।
उसके लिए ये अब सिर्फ फिज़िकल नहीं रहा था—ये एक तरह की तलाश बन चुकी थी… शायद खुद की, शायद किसी अधूरे रिश्ते की।
सीन: एक रात, किसी नए लड़के—विशाल—के घर
विशाल: "रीमा, तुम हर बार इतनी आसानी से कैसे…? तुम्हें डर नहीं लगता?"
रीमा (शांत मुस्कान के साथ): "डर तो तब लगता था जब खुद से सवाल करती थी। अब सवाल बंद हो चुके हैं… सिर्फ जवाब महसूस होते हैं।"
विशाल: "तुम्हारा पति कुछ नहीं पूछता?"
रीमा (थोड़ा सख्त लहज़े में): "वो हमेशा काम में डूबा रहता है। उसे मेरी ज़रूरत कब महसूस होती है?"
हर लड़के के साथ उसका रिश्ता अलग था—किसी के साथ वो मासूम थी, किसी के साथ शरारती, किसी के साथ जज़्बाती… और हर रात, वो एक नई भूमिका में ढल जाती थी।
सीन: एक और रात, किसी कॉलेज बॉय—नील—के साथ
नील (हिचकिचाते हुए): "रीमा दी, मैं शायद इतना मैच्योर नहीं हूं… पर मैं आपको पसंद करता हूं।"
रीमा (धीरे से उसका चेहरा छूते हुए): "तुम्हारा मासूम होना ही तो मुझे खींच लाता है… बस आज की रात के लिए जियो, नील… कल कौन जाने क्या हो।"
उसकी ये ज़िंदगी एक ऐसा जादुई चक्र बन गई थी—जहाँ हर रात एक नया चेहरा, एक नया एहसास और एक नई कहानी होती।