Monster the risky love - 43 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | दानव द रिस्की लव - 43

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दानव द रिस्की लव - 43

अदिति कमजोर हो रही है.....

.......... Now on.......

 आदित्य : क्या बताना भूल गए.....
डाक्टर : यही आप इन्हें ब्ल्ड डोनेट मत करने दिजिए इन्हें ब्ल्ड डोनेट करने की जरूरत नहीं है .... इन्हें उससे काफी वीकनेस हो रही है.....
आदित्य : अदि ब्ल्ड डोनेट करती है इसने तो कभी नहीं बताया......
डाक्टर : इन्होंने आपको नहीं बताया....बस आप इनका ध्यान रखना ये medicine है इन्हें ले आना बस ठीक हो जाएंगी...
आदित्य : ठीक है डाक्टर चलिए मैं बाहर तक छोड़ देता हूं....
दोनों अदिति के कमरे से बाहर आते हैं.....
आदित्य : ओके डाक्टर......(विवेक जोकि इतनी देर से चुपचाप बैठा था अब उससे रहा नहीं गया...)
विवेक : भाई..... अदिति ठीक है.....
आदित्य : हां..... ठीक है....बैठो तुम सब ..... बबिता सबके लिए कोल्ड ड्रिंक ले आओ....
बबिता : जी......
कंचन : भाई हम तो अदिति से मिल ने आए थे.... मिल ले उससे.....
आदित्य : हां मिल तो सकते हो तुम सब लेकिन आधे घंटे बाद.....और अगर वो पैनिक न हो तो..
विवेक : मतलब......(तभी तक्ष बोल पड़ता है)...
तक्ष : उसने शायद कोई बुरा सपना देखा होगा तो डर गई थी...और जबसे बस डरी हुई है.....
कंचन : एक सपने से डर गई ..... वो तो कभी फियर नहीं होती.... कुछ और बात होगी भैय्या...
विवेक : कंचन ठीक कह रही है भाई आपने पुछा उससे...
आदित्य : हां..... पर वो बस डरी हुई सी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं.....
विवेक : मैं पुछू उससे.....
आदित्य : हां पुछ लेना शाय़द तुम्हें कुछ क्लियर बता दें.... वैसे एक बताओ.....
विवेक : पूछिए....
आदित्य : अदि.... ब्ल्ड डोनेट करती है....(ये सवाल सुनते ही तक्ष के चेहरे का रंग उड़ जाता है)
विवेक : (हैरानी से)... अदिति ब्ल्ड डोनेट करती है....?
आदित्य : यही तो मैं तुमसे पुछ रहा हूं.....
विवेक : नहीं भैय्या ....इस बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता.... क्या हुआ वैसे....?
आदित्य : डाक्टर कह रहे थे अदि...को इसकी वजह से काफी विकनेस हो रही है.....(आदित्य सवालिया आंखों से तीनों की तरफ देखता पर सब मना में सिर हिला देते हैं इतने में बबिता हाथ में ट्रे लेकर आती है.. आदित्य बबिता से भी वही सवाल करता है जिससे बबिता साफ मना कर देती है)..
विवेक : भैय्या....आप अदिति से बात करना.....!
आदित्य : वो कहां बात करने लायक लग रही है पता नहीं कल रात से क्या हुआ है उसे बस डरी डरी सी हो रही है.... वैसे तुम बताओ....
कंचन : भाई....हम आपसे एक परमिशन लेने आए थे....
आदित्य : कैसी परमिशन....?
कंचन : भाई कल अदिति का बर्थडे है तो हमने सोचा था उसे एक सरप्राइज़ पार्टी दे......
आदित्य : ये तो अच्छी बात है..... इसमें मेरी परमिशन की क्या जरूरत है....?
कंचन : नहीं भाई....हम चाहते हैं की अदिति को ये पार्टी यहां नहीं रोज वैली में विवेक के फ़ार्म हाउस पर देंगे तो आप अदिति को हमारे साथ भेज दें.....और हां क्या पता वहां के एनवायरमेंट में अदिति ठीक हो जाए......!
आदित्य : ये तो बिलकुल ठीक कहा...... ठीक है अदिति को ले जाना.....और कल शाम को मैं पहुंच जाऊंगा.....
कंचन : थैंक्स भाई......!
तक्ष इनकी बात से परेशान हो जाता है..." अब मैं क्या करूं कहीं ये वशीकरण खत्म न‌ हो जाए...(ये बात तक्ष ने अपने मन में सोची..)
आदित्य : तो ठीक है अदिति के होश में आने के बाद मैं उससे बात करता हूं....जबतक तुम नाश्ता कर लो....!
सब कल की प्रिपरेशन के बारे में आपस में डिस्कस कर थे तभी अदिति के कमरे से कुछ टूटने की आवाज आती है जिसे सुनकर आदित्य तुरंत अदिति के रूम की तरफ जाता है बाकी सब भी आदित्य के पीछे जाते हैं आखिर क्या हुआ है.... आदित्य अदिति के रुम में पहुंचता जहां... अदिति के बेड के पास कांच के टुकड़े पड़े थे उन्हें देखकर आदित्य समझ जाता है अदिति अभी भी घबराई हुई है ... इसलिए उसके पास जाकर बैठता है.... अदिति तुरंत आदित्य से लिपट जाती है.....
अदिति : (घबराती हुई कहती हैं).. भ ....भै..य्या.. मुझे...छो..ड़..क..र ... क्यूं...ग..ये...वो ... फिर....आ ... गया...तो...
आदित्य : (थोड़ा डांटकर कहता है)...अदि बस बहुत हुआ...(आदित्य झटके से खड़ा होकर खिड़की के पास जाकर पर्दे हटाते हुए पूछता है).. कोई है...देख यहां कोई नहीं है....अब इधर देख कुछ नहीं है यहां....(अदिति के पास जाकर दोनों हाथों से अदिति के चेहरे को पकड़ते हुए कहता है)....अदि... यहां कुछ नहीं है....तेरा वहम होगा....
अदिति : पर .. भैय्या मैंने देखा था...
आदित्य : क्या देखा था....?
अदिति कल की घटना याद करती है उसे ध्यान आता है कोई भयानक चेहरे वाला उसके करीब था और बार बार त्रिषूल लाकेट को उतारने के लिए कहता है... इतना सोचकर अदिति के चेहरे पर डर के कारण पसीना आने लगता है.... तभी विवेक उसके पास जाकर उसे पकड़ कर झंझोरता है...
विवेक : अदिति.... क्या सोच रही हो...?
अदिति : विवेक.....वो मुझसे त्रिषूल.(अदिति को बीच में ही टोकता है)..
विवेक : अदिति... कुछ नहीं हुआ जरूर तुमने कोई डरावना सपना देखा होगा....
अदिति : लेकिन 
कंचन : लेकिन वेकिन छोड़....और सुन‌ तू चल हमारे साथ....
अदिति : कहां...?
कंचन : घुमने कहीं बाहर...
आदित्य : हां अदि ....तू जा इनके साथ थोड़ा घुमेगी फिरेगी तो तेरे दिमाग़ से ये भूत का बोझ उतर जाएगा.....
तक्ष : (मन में).. नहीं कभी नहीं ....ये डर अभी और बढ़ेगा...
अदिति : मुझे कहीं नहीं जाना भैय्या....!
आदित्य : ( थोड़ा गुस्से में कहता है)..अदिति......अब बस .... मैंने बोला न जा इनके साथ...
अदिति : भैय्या
आदित्य : चेंज करके आ बाहर .....चलो....(सब बाहर आते हैं)...
विवेक : ( मन में).. आखिर अदिति को हुआ क्या है.... क्यूं इतनी डरी हुई है.... कुछ तो बात हुई...(अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा)..तू भी न कल अगर अदिति का फोन पिक कर लेता तो सही होता... पता नहीं मेरी अदिति को क्या हुआ...
हितेश : ओ भाई क्या सोच रहा है....?
विवेक : कुछ नहीं....(मन में)... अदिति तुम्हारे डर को खत्म करने का अब एक ही तरीका है...मेरा प्यार.. तुम्हारे लिए वही काम आएगा.. मेरी स्वीट हार्ट बहुत जल्द तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान वापस लाऊंगा......(तक्ष बहुत देर से सिर्फ विवेक को ही घूर रहा था.. विवेक के चेहरे की हल्की सी मुस्कान उसे शक भरी नजरों से देखने के लिए मजबूर कर रही थी... तभी उबांक तक्ष से पुछता है....
उबांक : क्या बात है दानव राज....?
तक्ष : इसके दिमाग में जरूर को खिचड़ी पक रही है.... मैं नहीं चाहता अदिति से मेरा वशीकरण टूटे .... उबांक सुन तुझे क्या करना है.....
 
..................to be continued............