Sarvatha Moulik Chintan - 2 in Hindi Fiction Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 2

Featured Books
Categories
Share

सर्वथा मौलिक चिंतन - भाग 2

22

पलायन 

हम हमेशा इस या उस गतिविधियों मे व्यस्त रहते हैं।

कभी किताब पढ़ते हैं ,कभी बातों मे व्यस्त रहते हैं ,कभी मूवी ऐंटरमेंट मे मजे लेते रहते हैं । व्यस्त रहना ,माइंड को खाली न रखना ऐक आदर्श सराहनीय कार्य माना जाता है ।

किंतु हम खाली क्यों नही रहते । हम जैसे हैं, जो हैं, उसके साथ क्यों नहीं रहते । हमारा असली रूप हमें असहनीय क्यों लगता है । हम स्वयं से बुक के द्वारा ,मूवी ऐंटरमेंट ,कथा वार्ता ,और न जाने क्या क्या जरिये से भागते रहते हैं। हम स्वयम् को दुनिया भर की चीजों से भर लेते हैं। जरा अपने साथ आप जैसे हों, अच्छे बुरे ,कुरूप कुटिल आदि जैसे हौ ,रूको देखो । उसे बदले बिना ,जैसे आप हो वैसे ही रूको देखो, बिना किसी विचार के बिना निंदा प्रशंसा कै , बिना आलोचना के रूको देखते रहो । मै आत्मा हूं आदि थोपे गये विचार से नही देखना  ,यही ध्यान की शुरुआत है । यह दर्शन आपमें आवश्यक बदलाव कर सकता है । अहं को बदल सकता है । आपके प्रयास से नही, अपने आप ।

 

 

23

  दिमाग सदा भरा रहता है

आपका दिमाग सदैव भिन्नाते हुए विचारों से भरा रहता है ।

अधिक विचार वाला समाज मे विद्वान माना जाता है ।

वह आदरणीय होता है ।

हमारा दिमाग कभी विचारों से रिक्त नही होता । हम कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर किंतु किसी ने भी खाली दिमाग की रिक्तता का अनुभव नही किया । रिक्त दिमाग रिक्त मन मे अत्यंत दिव्य अनुभव की सम्भावना होती है ।

रिक्त मन मे अनिर्वचनीय शांति व आनंद की अनुभूति सम्भव होती है । सदा विचारों से भरा मन मानसिक परेशानियों रोगों का कारण होता है ।

 

 

24

इच्छा भ्रम पैदा करती है

मनुष्य को तमाम इच्छाऐं घेरे रहती है ।

जैसे योगसाधना के दौरान तरह तरह के दिव्य दर्शन ,अनुभूति यां हुआ करती है  । अनेक बार देवी देवताओं के दर्शन होते हैं । ये सब स्वयं के मन की कंडीशनिंग के अनुसार होते हैं जिनमें भ्रम के सिवा कोई सत्य नही होता । ये सब प्रतीति मात्र हैं । ईसाई को ईसामसीह के दर्शन होते हैं तो हिंदू को राम या कृष्ण आदि के  यह सब मन की कंडीशनिंग,जिसे हम संस्कार कहते हैं , के कारण होता है ।

इच्छा मन कौ सदैव बैचेन रखती है । ऐसा मन कभी शांत नही होता । इच्छाऐं अनंत होती हैं । वे कभी खत्म नहीं होती । शंकराचार्य ने इच्छा का बड़ा सुंदर  उदाहरण दिया है  ।

ऐक भयानक खुजली से ग्रस्त कुत्ता जिसके सारे अंग गल गये है ,काम के आवेश मे कुतिया का पागलों सा पीछा कर रहा है

 

 

25

अध्यान असंवेदनशीलता

 हम सदैव हड़बड़ी मे रहते हुए  । किसी चीज पर ध्यान नहीं देते । हम नदी को नहीं देखते । पक्षियो को उड़ते हुऐ कलरव करते हुऐ नही देखते । प्रकृति का सौंदर्य नहीं निहारते ।

उगते सूरज की सुंदरता नही देखते । ढलते सूरज के साथ वातावरण मे उतरती शांति को नही महसूसते ।

अवेअर नही होने से अपनी ही धुन मे हड़बड़ी मे होने से सड़कों पर अनेकों ऐक्सिडेंट हो रहे हैं । लोग गरीबोँ के आंसू. उनकी पीड़ा नही देखते सुनते ।

 

 

26

 

उद्देश्य के पीछे की मानसिकता

हमे जीवन मे ऐक लक्ष्य बनाने की सीख दी जाती है ।

उसकी प्राप्ति के लिए पूरी ताकत लगाने की सलाह दी जाती है  । कुछ बनने कुछ कर गुजरने को प्रेरित किया जाता है ।

क्या यह सब अहं की दौड़ नहीं है । जो तुम नहीं हो ,जौ तुम हो से सर्वथा पृथक है । उसे  प्राप्त करने की भागदौड़ अहं के विस्तार की प्रक्रिया है जिसमे मानसिक तनाव., बैचेनी , अभिमान आदि अनेकों प्राबलम जुड़े होते हैं ।

उद्देश्य प्राप्ति अहंकार की संतुष्टि व पोषण करती है ।

 

 

27   मृत्यु

 

हम मृत्यु से बहुत डरते हैं।

मनुष्य का पूरा अस्तित्व ही मृत्यु निगल जाती है ।

हम मृत्यु की चर्चा तक नहीं करना चाहते ।

किंतु क्या मृत्यु इतनी भयानक है ?

हम कभी अपने भूतकाल के प्रति मरकर तो देखें ।

अपनी अच्छी बुरी स्मृतियों के प्रति मरकर देखें ।

शरीर से नही मन कहा द्वारा ,शायद ऐसा करनै से जो अनिर्वचनीय आनंद आपको विस्मित कर सकता है ।

 

 

28 

 ऐक महाप्रसिद्ध आचार्य स्वघोषित भगवान

 द्वारा कृष्णमूर्ति के अनुसंधानों की कापी की गई थी ।

 

मैने आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व कृष्णमूर्ति को पढा था ।

मै उनके सर्वथा मौलिक विचारों को पढ़कर दंग रह गया था ।

उनके विचार पूर्णतया नास्तिक थे व रूढिवाद का खंडन करते हैं। समाज मे सभी दूर सिर्फ और सिर्फ रूढिवाद ही मिलेगा । रूढिवाद पर प्रश्न उठाने पर लोग आपकी बुरी तरह आलोचना करते हैं । सत्य कोई नहीँ सुनना चाहता ।

 तब बहुत समय बाद ऐक आचार्य जो बड़ा हो सुंदर लच्छेदार भाषण देता था उसने कृष्णमूर्ति के अत्यंत मौलिक विचारों की नकल करके सुंदर भाषण व उदाहरणो से जनता को सुनाना प्रारंभ किया । धीरे धीरे उसकी ख्याति आसमान छूती गयीं और दुनिया भर मे उसके लाखो अनुयायी हो गए ।

हमने उस आचार्य के मौलिक लगने वाले विचारों के सम्बंध मे कौन सा विचार कृष्णमूर्ति की किस बुक के किस पेज नं से लिया ऐसा ऐक लेख मे स्पष्ट किया किंतु कृष्णमूर्ति की अंग्रेजी मे कुछ दुरूह गणित विग्यान की भाषा लोग न पढ़ते न समझते । देखिये कृष्णमूर्ति ने जीवन मे सबकुछ नाम ,वैभव, चेले त्याग दिऐ । और तो और मैत्रेय का अवतार पद ठुकरा कर अकेले अनजान जगह निकल पड़े । वह तो चुपके से उनका पीछा  करके उनके शरीर की रक्षा की गयी ।

उधर स्वनामधन्य भगवान ने नाम ,यश ,धन सम्पदा, वैभव ,अनगिनत आश्रम अनगिनत चेले सभी बटोर लिऐ ।

बाद मे तो वह आचार्य स्वच्छंद सेक्स के तरह तरह के प्रयोगों को तंत्र व कुंडली जागरण के नाम पर करके अनेक महिलाओं  को बरगलाने लगा ।

कृष्णमूर्ति सेक्स के आलोचक नहीं थे किंतु उन्होंने पाश्चात्य जगत मे जीवनभर रहने के बाद भी सेक्स की स्वच्छंदता

को बढ़ावा नही दिया ।

 

 

29  क्या भगवान हैं 

 

कृषणमूर्ति से अक्सर पूछा जाता क्या भगवान है

क्या आप भगवान को मानते हो

इस पर वे कहते आस्तिक और नास्तिक दोनो ऐक समान है ।

आप भगवान है या नही खुद खौज क्यों नहीं करते ।

यदि दुनिया भगवान ने बनाई तो उसे भगवान के समान होना था । किंतु दुनिया मे दुख असमानता गरीबी हिंसा लालच आदि क्यों है 

यदि आपको भगवान ने बनाया तो आपके अंदर सभी भागवत गुण होने चाहिए ।

भगवान की बात करनेवाले के पहले आपमें संवेदनशीलता ,अहिंसा, दया ,पृकृति कै पृति सूक्ष्म निरीक्षण,गरीबो के प्रति आत्मीयता आदि सभी मानवीय संवेदना का होना आवश्यक

है तब आप देखेंगे कि हर चीज पवित्र है, हर जगह मंदिर है ।

ऐक फूल मे भी भगवान है।

 

 

 

 

30   

  पृश्न करो   

 

हर विचार पर प्रश्न करो ।

हर मान्यता पर प्रश्न करो ।

हर रूढिवाद पर प्रश्न करो । संदेह करो ।

भगवान क्यों ,देवी देवता ,श्रद्धा क्यों , पूजा क्यों , क्या ये आपके भय कहा उत्पाद हैं । प्रेम क्यों नही ।

प्रश्नों के रटेरटाऐ सरल उत्तर न दो ,न लो ,न स्वीकार करो ।

प्रश्नों को अपने मन मे चलने दो ,घुटने दो ,मंथन करने दो ।

प्रश्न मे ही उत्तर सन्निहित है ।

 

 

31 

कोई वाद संसार की समस्याएं हल नहीं कर सकता

 

संसार मे मनुष्य अनेक समस्याओं से ग्रस्त है ।

इनके हल के लिऐ अनेक विभिन्न वाद प्रचलित हैं जैसे कोई समाजवाद से ,कोई कम्यूनिज्म से , तो कोई भगवान की शरण आदि हल बतलाता है । किंतु सभी वादों को आजमाने के बाद भी समस्याऐं जस की तस बनी रहती हैं। अतः हमें समस्याओं के किसी भी सुझाऐ  हल को सरलता से स्वीकार नही करना चाहिऐ वरन् सभी पर प्रश्न करना चाहिये । हमे सरल हल की ओर भागना व सरलता से हर हल को स्वीकार नही करना चाहिए । हमें अपना असंतोष सदैव जागृत रखना चाहिए ।

हमे समस्याओं के पृति उसका सरलता से हल खोजने के बजाय उसका सूक्ष्म जागृत निरीक्षण करना चाहिए । धैर्य से ,बिना बदलने की इच्छा रखे उसके अवलोकन से, उसका हल मिलता है । समस्या मे ही हल छुपा रहता है ।

अपना असंतोष सदैव जागृत रखिये । सरल उत्तर के झांसे व समूह सहमति के जाल मे न पड़िए ।

 

 

32  

संसार का सर्वथा मौलिक चिंतक

 

कृष्णमूर्ति संसार के अद्वितीय मौलिक चिंतक थीं ।

उन्होने मानव सभ्यता के हर कांसेप्ट्स पर मौलिक चिंतन किया । उनके हर वाक्य पर संसार भर की युनिवर्सिटी मे रिसर्च चल रही है ।

उनके प्रसिद्ध वाक्यो जैसे  सत्य का.कोई मार्ग नहीं है ।

आपको जीवित ही म्रत्यु की टनल मे प्रवेश करना चाहिए आदि । अनेक आचार्यों ने कृष्णमूर्ति के विचारों को अपना बताकर बहुत ख्याति अर्जित की ,उन् खिलाड़ी आचार्यों ने ऐसा खेल खेला कि कृष्णमूर्ति की सारी रिसर्च जैसे उनकी ही हो । दिमाग से कच्चे. व कृष्णमूर्ति से अनजान उनके बड़ी संख्या मे उन बनावटी आचार्य के प्रशंसक व फोलोवर बन गए ।

 

 

33  

 आपकी पहचान आपके मन का खेल है |

अपनी पहचान बनाना अहं को द्रड करना है | एक विशिष्ट धर्म , जाति, ग्रुप से सम्बद्ध होना अपनी पहचान को स्थापित करना है |

साधारण तया लोगों मे योग के नाम पर ,भक्ति के नाम पर ,तप के नाम पर अनेक साधनाए की जाती हैं। साधक को कुछ दिव्य अनुभव होते हैं ,देवी देवता आदि के दर्शन होते हैं । इन सब दर्शनों को बड़ी उपलब्धि माना जाता है । किंतु ये सब अनुभव खुद के मन के ही खेल हैं । क्योकि जिस विजन को आदमी नाम रूप से पहचानता है वह मन का खेल है ।

 

 

34  

मनोरंजन की लगातार मांग

आदमी का जीवन बड़ा उथला है । उसे रंगीन बनाने के लिए

वह तरह तरह के मनोरंजन जैसे संगीत ,नाटक, सिनेमा आदि अनेक चीजों की लगातार मांग करता रहता है ।

हर मनोरंजन के बाद भारी बोअरडम अवश्यंभावी रूप मे आता है और फिर मनोरंजन की अनवरत मांग  , यह ऐक तुच्छ जीवन को दर्शाता है । हर सुख के साथ दुख जुड़ा हुआ है ।

इंसान को सीधा साधा सरल जीवन अच्छा नहीं लगता। तड़क भड़क अच्छी लगती है । ये मनोरंजन ,सेक्स, आदि सब अंत मे शरीर व मन का नाश करता है 

 

 

35  

कृष्णमूर्ति के अत्यंत मौलिक चिंतन

 

को पढ़ने के लिए उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें कमेंटरीज आन लिविंग पार्र्ट 1,2,3 व ध्यान पर द ओनली रिवोल्यूशन आदि

बुक्स मे उनके अद्वितीय विचार व अनुभूतियां दी हूई हैं ,ये किताबें उनकी लिखी हुई नहीं हुआ वरन उनके भाषणों वार्तालाप का संकलन है । उनमे वो विचार हैं जो आपने पहले न कभी पढ़ा न सुना न सोचा होगा । ये किताबें अब हिंदी व अन्य भाषाओं मे भी मिलती हैं । हमारे समय ये सब फारेन पब्लिकेशन की थी और बहुत महंगी थी ।

अब यू ट्यूब पर कृष्णमूर्ति के अनेकों वीडियो उपलब्ध हैं ।

अवश्य देखिये ,पढ़िये ,सुनिये । हमें लीक से हटकर नये विचारों को ,अध्यात्म के क्षेत्र मे सर्वथा मोलिक अनुसंधानों को सुनना समझना. चाहिए ।अध्यात्म के क्षेत्र मे भी अपार अनुसंधान ो की समभावनाऐं है । जो परम दिव्य अनुभूतियाँ कृषणमूर्ति को हुई और जैसा अत्यंत. लोमहर्षक वर्णन उन्होने किया वह.मानव इतिहास के साहित्य मन अन्यत्र मिलना असंभव है । जे कृष्णमूर्ति  लेखक पुपुल जयकर जो इंदिरा गांधी की सेक्रेटरी थी, ने  उनकी पूरी जीवनी व उनके जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना पर पृकाश डाला है ।