Who is the bigger actor - Dilip Kumar vs Rajkumar in Hindi Anything by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | कौन बड़ा अभिनेता - दिलीप कुमार v s राजकुमार

Featured Books
Categories
Share

कौन बड़ा अभिनेता - दिलीप कुमार v s राजकुमार

भाग (1)

अभिनय में कौन नंबर वन? दिलीपकुमार बनाम राजकुमार

-------------------------------------------

अभिनय एक कला है और जन्मजात गुण भी है. परन्तु उसे क्राफ्ट की तरह लेना और तराशने का हुनर बहुत कम लोगों में आता है. फ़िल्म सभीजन सामान्य रूप से मनोरंजन और समय काटने के लिए देखते हैँ. हम थोड़ा सा अभिनय कला, क्राफ्ट की जादूगरी के लिए देखते हैँ.जिस अभिनेता ( अभिनेत्री तो गिनती की भी नहीं जो अपने अभिनय पर मेहनत करें.)को यक़ीनन अपनी अभिनय क्षमता और उसके विभिन्न आयामों को निखारना होता है वह मेहनत करता है. अभिनय जन्मजात है परन्तु द्वितीयक और अन्य गुण उसमें समय के साथ साथ विकसित होते हैँ. फिर ज़ब दो अच्छे अभिनेता एक ही फ़िल्म में टकराते हैँ तो अभिनय कला और सुधी दर्शकों को नई ऊँचाइयाँ देखने को मिलती हैँ. इस लेख में हम ऐसी ही कुछ यादगार दृश्यों और अभिनेताओं की टक्करों को रोचक ढंग से जानेंगे.

** दिलीप कुमार /पृथ्वीराज कपूर/अमिताभ बच्चन/राजकुमार:--- अभिनय सिखाने के एक्टिंग स्कूल सत्तर के दशक से खुल गए थे. पर क्या अभिनय सिखाया जा सकता है? क्या सांस लेना, दौड़ना,जीना, हंसना, रोना स्वाभाविक नहीं? फिर अभिनय का प्रारम्भ स्कूल, कॉलेज से हो जाता है. दिलीप कुमार ऐसे ही अभिनेता रहे जो पेशावर, अविभाजित भारत से मुंबई फलों के कारोबारी अपने पठान पिता के साथ मुंबई आए. फिर पिता से छिपकर अभिनय करने लगे. ज्वारभाटा, पहली फ़िल्म के पोस्टर लगे तो अब्बा हुजूर को मालूम पड़ा साहबजादे क्या कर रहे हैँ. खूब डांट पड़ी. उससे जरुरी यह की इन्होने कोई तालीम नहीं ली. हाँ, बाद में, कब लोकप्रिय हो गए तो कुछ विदेशी फिल्मे जरूर देखीं पर इनसे भी जो सीखा उसे बेहद बारीकी से अपने अभिनय में उतारा. क्लिंट ईस्टवुड, हॉफमेन अभिनय में छाए हुए थे तो उधर मर्लिन ब्रांडो ने गॉडफादर में चेहरा बिगाड़ने के लिए ऑपरेशन तक करवाया।

मैथड एक्टिंग और स्वाभाविक अभिनय की कुछ ऐसी ही दिलचस्प मुठभेड़ों से रूबरू होते हैं।यह जितनी रोमांचक वर्षों पूर्व थी आज भी उनका जादू वैसा ही है।

दिलीप कुमार को सबसे अधिक मुकाबला करना पड़ा दिग्गजों के साथ। वह अपने समकालीन अभिनेताओं राजकपूर, देवानंद, शम्मी कपूर से कोसों आगे थे। पर फिर आई पैगाम उन्नीस सौ उनसठ, एक नए, युवा एक्टर ने दिलीप कुमार के मिल मजदूर बड़े भाई का रोल किया। निर्देशक एस एस वासन ने बड़े सलीके से मोतीलाल, वेजन्तीमाला, दिलीपकुमार और नया सह कलाकार, हीरो नहीं, राजकुमार को लिया। उस वक्त दिलीप कुमार के सामने खड़े होने में ही टांगे कांपती थीं। पर नया कलाकार राजकुमार न केवल टिके बल्कि कुछ दृश्यों में अपने अभिनय से दिलीप कुमार पर भारी पड़े। उस वक्त अधिकतर सितारे मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार फिर कुछ आगे अमिताभ और शुरू से ही शाहरुख खान तक दिलीप कुमार की स्टाइल और एक्टिंग कॉपी करते रहते हैं। ऐसे अभिनेता के सामने राजकुमार अपनी बिल्कुल नेचुरल अभिनय शैली से आते हैं और कमाल कर जाते हैं। निर्देशक वासन हो या केदार शर्मा यह खुद्दार और दबंग निर्देशक थे। हीरो को ठीक करने के लिए दृश्य में चांटे अथवा अपमानित करने के दृश्य ऐसे पिरोते की फिल्म स्क्रिप्ट का हिस्सा मालूम पड़ते। उस वक्त निर्देशक बहुत बड़ी हस्ती थे। आज के जैसे हीरो के पीछे पीछे भागने वाले नहीं। तो वह दृश्य जब दिलीप कुमार को बड़े भाई राजकुमार थप्पड़ मारते हैं, आज भी यूट्यूब पर बेहद लोकप्रिय है। अभिनय का मुकाबला कौन जीता आप तय करो पर उसके बाद तीस साल तक दिलीप कुमार ने राजकुमार के साथ कोई फिल्म नहीं की। राजकुमार उसके बाद और आगे बढ़ते चले गए। दुनिया ने काम देखा फिर तो दिल अपना प्रीत पराई, काजल, वक्त, मदर इंडिया में धूम मचा दी।

मुगले आजम में सुपरस्टार दिलीप कुमार का शहजादे सलीम के रूप में पृथ्वीराज कपूर से टकराव हुआ। भारी, बनावटी आवाज और क्रोधित दृश्यों से पापाजी कुछ दृश्यों में दिलीप पर भारी पड़े। पर दिलीप अपनी सहज, स्वाभाविक और बिना चिल्लाए (लाउड) हुए अभिनय में अच्छा काम कर गए।

फिर जमाना सुपरस्टार राजेश खन्ना का आया तो ट्रेजेडी किंग खास नहीं चले। फिर सात आठ वर्षों बाद अस्सी के दशक तक अमिताभ बच्चन एंग्री यंगमैन बन चुके थे। प्रारंभिक फिल्मों की सफलता का श्रेय सलीम जावेद इतनी बार लेते हैं कि हमें भूल जाते हैं कि दीवार, त्रिशूल के बाद सलीम जावेद की कोई फिल्म अमिताभ ने नहीं की। फिर इनसे दुगनी फिल्में खून पसीना, हेराफेरी, ब्लॉक बस्टर मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, नमक हलाल, कुली, अमर अकबर एंथोनी, याराना, शराबी, हम, सूर्य वंशम तक एक जबरदस्त लेखक अभिनेता कादर खान ने लिखी। जिसने कभी भी ढोल नहीं पीटा की अमिताभ बच्चन की सलीम जावेद से ज्यादा हिट फिल्में मैने लिखीं। उपर से शानदार अभिनय भी कुछ में किया। तो उसी दौर में सलीम जावेद जोड़ी की लिखी आखिरी फिल्म अमिताभ के साथ शक्ति आई। दिलीप कुमार के साथ अमिताभ बच्चन। ऐसी असंभव कहानी और कमजोर स्क्रीनप्ले जिसमें एक पिता अपने तीस साल के युवा बेटे को हर कदम पर टोकता और रोकता है।

कुछ दृश्य अमिताभ और दिलीप कुमार के आमने सामने के रचे गए। दुनिया उत्सुक थी कि बिग सुपरस्टार और पूर्व स्टार की टक्कर क्या रंग लाती है?

मुकाबला इक्कीस बीस का रहा। दिलीप अभिनय से इक्कीस रहे पर अमिताभ भी टिके रहे। वह दृश्य जहां पुलिस अफसर पिता बेटे अमिताभ को ही थाने में बंद कर देता है एक जमानती इल्जाम में। पर तभी नारंग,यह रोल कुलभूषण खरबंदा ने क्या खूब निभाया है, अमिताभ की जमानत उसके पिता दिलीप कुमार को देता है। पिता कहता है,"जिस रास्ते पर जा रहे हो वह खतरनाक है। लौटना मुश्किल होगा।"

अमिताभ कहते हैं, जो पिता की उल्टी सीधी हर बात में उसूलों से तंग हैं,"अब मैं वापस आने के लिए नहीं जा रहा।"

यह दृश्य अमिताभ की अभिनय क्षमता का विस्तार है। लेकिन असली दृश्य इससे पूर्व आता है जिसकी नकल कई फिल्मों में हुई। जब लॉकअप में बंद पुत्र से बात करने पिता अंदर आता है वह दृश्य फिल्मों के इतिहास ने दर्ज है। अभिनय कला की इतनी बारीकियां और तरीके उस दृश्य से सीखे जा सकते हैं। दिलीप कुमार सवाल जवाब करते हैं, एक जागरूक अधिकारी और चिंतित पिता का मुश्किल मनोभाव। पुत्र अमिताभ अपनी नाराजगी और खीज दिखाते हुए संयमित अभिनय करते हैं। दृश्य पूरी तरह दिलीप कुमार ले जाते हैं।

कहते हैं शक्ति का प्रीमियर देखने के बाद राज कपूर ने रात को दिलीप कुमार को फोन किया और कहा," ओय लाले, तय हो गया इंडस्ट्री में एक ही सुपरस्टार है ......दिलीप कुमार।"

बड़े फिल्मकार सुभाष घई, नब्बे के दशक में एक बार फिर दोनों को साथ लाए फिल्म सौदागर में। ऐसी स्क्रिप्ट जिसमें दो दोस्त हो और दोनों के बराबर रोल हो लिखना बहुत मुश्किल था। पर ग्रेट शोमैन घई ने यह कर दिखाया। एक पॉडकास्ट में सुभाष घई बताते हैं," सौदागर की कहानी दिलीप कुमार को सुनाई तो वह तैयार तो हुए फिल्म करने को।क्योंकि पहले विधाता और कर्मा मैं उनके साथ कर चुका था। " कहकर वह रुके,मुस्कराए फिर पूछा कि," दूसरे दोस्त का रोल कौन कर रहा?" मैंने कहा," राजकुमार साहब "। तो कुछ देर मौन रहे फिर सहमति दे दी।

इस तरह नई पुरानी दोनों पीढ़ियों ने फिर एक बार अभिनय का उच्चतम मुकाबला और कला की गहराई देखी।

आज भी दोनों का अभिनय दिलो दिमाग पर दर्ज है। दिलीपकुमार अभिनय की अपनी रेंज और राजकुमार से अंदाज फिल्म के तीस वर्षों बाद अभिनय में मुकाबले के लिए आए की कौन भारी पड़ता है। उस वक्त के सबसे बड़े निर्देशक सुभाष घई कैमरे के पीछे थे। ऐसी फिल्म का मजा तब ही है जब दिग्गजों की टक्कर सही सिचुएशन पर हो। वह तीन चार जगह हुई। मैथड अभिनय और स्वाभाविक अभिनय के साथ अपना अपना अंदाज का शानदार मुकाबला देखने को मिला। और बताता चलूं वक्त, हमराज,लाल पत्थर,कुदरत की तरह नई फिल्म सौदागर में भी राजकुमार का किरदार नेगेटिव शेड लिए था। वह दृश्य जब झूठे इल्ज़ाम में जेल से छूटकर राजकुमार हेलिकॉप्टर से आते हैं और दुश्मन दिलीप कुमार के गांव में खराबी के कारण लैंडिंग होती है तब दिलीप कुमार और उनकी फौज के सामने जो सहजता और बुलंद आवाज के साथ राजकुमार संवाद बोलते हैं वह आइकॉनिक दृश्य है। यादगार है। दिलीप कुमार ने उसमें हरियाणवी टच रखा दादा बीर के किरदार में। यह सारी बातें सुभाष घई ने पहले ही बता दी थी। राजकुमार बोले थे, तब तो दिलीप रंग जमा लेगा। फिर कहा कोई बात नहीं देखते हैं। वह जैसे थे वैसे ही प्रस्तुत हुए सामान्य संवाद परंतु उनकी डिलीवरी का जो जादू सत्तर एमएम में स्टीरियोफोनिक साउंड के साथ राजकुमार ने जगाया वह हिन्दुस्तान में अकेला ही उद्धरण काफी है। किस तरह अपनी अभिनय कला और डायलॉग डिलीवरी से दिलीप कुमार के हरियाणवी एक्सेंट को उन्होंने बच्चों का खेल बना दिया।

हर दृश्य, हर संवाद जो उनका दिलीप कुमार के साथ हुआ राजकुमार भारी पड़े। ब्लॉकबस्टर फिल्म में दर्शकों के ज़हन में एक ही नाम था राजकुमार...राजकुमार।

यह सोचना आज दिलचस्प लगता है कि अपने किरदारों में उतरने और प्रभाव छोड़ने के लिए दोनों ने क्या तैयारी की होगी? कैसे और कहां की होगी? क्योंकि दोनों की तैयारी, किरदार की प्रस्तुति, ड्रेस आदि सब डायरेक्टर सुभाष घई ही जानते थे और उन्होंने कभी एक की तैयारी दूसरे को नहीं बताई। तभी यह फिल्म आइकॉनिक बन गई।

कुछ दृश्य तो ऐसे फिल्माए आमने सामने के की दोनों ने अलग अलग दिन शूटिंग की।फाइनल स्क्रिप्ट में कोई बदलाव नहीं होगा यह अहम शर्त थी राजकुमार की जो मानी गई। तो दोनों अलग अलग संवाद और अभिनय करते हैं कोई सामने नहीं है। बाद में वह दृश्य एडिटिंग से जुड़ते हैं तो उनमें भी कमाल दिखता है। आप आराम से अपनी मर्जी, संतुष्टि कर अपना दृश्य फाइनल करते हो, दूसरे का घई साहब ने दिखाया नहीं। फिर दोनों के अलग अलग जोड़े और वहां भी अभिनय की ऊंचाइयां दिखाई दोनों ने।दिलीप कुमार की मैथड एक्टिंग और सहजता दिखी तो वहीं राजकुमार की अभिनय की सहजता और गूंजदार, झन्नाटेदार संवादों का जादू नजर आया। कहना होगा अलग अलग शूट करके जोड़े गए दृश्यों में भी राजकुमार बाजी मार ले गए।

सोचता हूं यह कौनसा स्कूल, कला है जहां अभिनय इतना उम्दा,निखरता है और व्यक्ति अपने घर बाहर सहज भी रहता है। कोई शो ऑफ नहीं करता। फिर भी अभिनय की ऊंचाइयां छूता है?

नए हीरो हीरोइन लॉन्च किए थे विवेक मुश्रान और मनीषा कोइराला।दोनो का काम अच्छा था। मुकेश खन्ना, अमरीश पुरी, गुलशन ग्रोवर ने भी मेहनत की थी। संगीत सुभाष घई के प्रिय लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का था और इलू इलू गाना आज भी आप देखेंगे तो प्रकृति, निश्चल प्रेम की शीतलता और सुकून महसूस करेंगे।

दोनों दिग्गज आज इस दुनिया में नहीं हैं परंतु उनकी अभिनय कला और प्रतिभा के खजाने को हम अब भी देख सकते हैं। यह आप तय करें अभिनय में नंबर एक कौन? दर्शकों ने तो तय कर लिया था जब वह सौदागर फिल्म देखकर बाहर आए और राजकुमार के संवाद बोलते हुए, ",वीर सिंह, जब हम तुम्हे मारेंगे तो वह वक्त भी हमारा होगा और गोली भी हमारी होगी।"

________________

 

(डॉ.संदीप अवस्थी, जाने माने कथा और पटकथा लेखक हैं।

संपर्क : मो 7737407061,8279272900)