Literature of New Consciousness S. Shankhan Narendra Kohli in Hindi Book Reviews by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | नव चेतना के साहित्य एस शंखन नरेंद्र कोहली

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नव चेतना के साहित्य एस शंखन नरेंद्र कोहली


नव चेतना के साहित्य शंखनाद नरेंद्र कोहली --

किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में परिस्थितियों परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है यह सत्यार्थ नरेंद्र कोहली जी पर बिल्कुल सत्य है कोहली जी का जन्म 6 जनवरी ऊँन्नीस सौ चालीस को स्याल कोट जो अब पाकिस्तान में है हुआ था यह वह दौर था जब गुलामी की वेदना से छटपटाती माँ भारती के योद्धा स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हर स्तर पर जूझ रहे थे।।

तो देश मे धर्म के आधार पर सामाजिक विभाजन की पृष्ट भूमि तैयार हो रही थी जो आजादी के बाद द्विराष्ट्रवाद के परिणाम में परिवर्तित हुई और देश विभाजित हुआ।।

जीवन के सात वर्ष बचपन के कोहली जी ने इन्ही परिस्थितियों में बिताए पुनः बटवारे के बाद हिंदुस्तान चले आये और नई स्वतंत्रता प्राप्ति एव उसके बाद राष्ट्र कि चुनौतियों को बड़े करीब से देखते पढ़े और बढ़े जिसका प्रभाव कोहली जी की साहित्यिक रचनाओं में स्प्ष्ट परिलक्षित होना स्वाभाविक है यही कारण है कि कोहली जी के साहित्य में सांस्कृतिक राष्ट्र वाद जीवंत एव जाग्रत है।।

कोहली जी ने सभी विधाओं में अपने श्रेष्ठ अधिकार को प्रमाणित किया है उपन्यास ,व्यंग ,नाटक ,कहानी, स्मरण निबन्ध लगभग सभी विधाओं के हिंदी साहित्य में नए आयाम स्थापित किया है ।।

महाकाव्यत्मक उपन्यास की विधा के शुभारंभ का श्रेय कोहली जी को ही जाता है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की साहित्य के प्रखर प्रज्वलित मशाल मिशाल है कोहली जी जहाँ महासमर में पौराणिक कथा सार तत्व है तो साथ साथ सहा गया दुःख में सिर्फ दो पत्रों पर आधारित है तो पुनरआम्भ तीन पीढ़ियों का लेखा जोखा है।।

संम्मान--
पदम् श्री, शलाका, दींन दयाल उपाध्याय, सम्मान अट्टहास सम्मान
हजारी प्रसाद द्ववेदी जी के हिंदी साहित्य के शुभारंभ के पथ प्रकाश को कोहली जी संपूर्णता को परिभाषित करते है जिसे हिंदी साहित्य का सबसे प्रखर निखर अध्याय कहना अतिश्योक्ति नही होगा ।।


इस नव चेतना का श्रेय महर्षि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जिनकी आभा में कोहली जी को दक्ष दृष्टिकोण का सारथी है।।

परम्परा एव विचार धारा से प्रभावित हुये बिना तर्क ,मौलिक दृष्टि, चिंतनशील साहित्यक ,पौराणिक, वैज्ञानिक विश्लेषण की नींव हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने रखी थी जिसकी कड़ी की लड़ी में राम
कथा,महाभारत ,एव कृष्ण कथाओं आदि के बृहद नव आयाम दर्शन प्रस्फुटित का साहित्य कोहली जी का है आचार्य हजारी प्रसाद जी की पीढ़ी परम्परा के ओज कोहली जी ही है।।


 महासमर--कोहली जी के सर्वाधिक महाकाव्य उपन्यास हिंदी साहित्य में नव आयाम का प्रादुर्भाव है जिसका प्रथम संस्करण उपन्यास महासमर स्वयं ही है महाभरत पर आधारित है महाभारत स्वय में एक विलक्षण विराट कालजयी कृति है पुनः इस कालजयी जीवन दर्शन में परिवेश काल के अनुरूप उसके नए जीवन दर्शन में प्रस्तुत करना कोहली जी के ही बस की बात है ।।

जीवन की विराटता को मौलिकता के समन्वय में पिरोकर कोहली जी ने महाभारत को अपने काल युग की जीवन्तता प्रदान की है यदि महाभरत पढ़ते है तो अर्जुन युधिष्ठिर कर्ण कुंती कृष्ण को परिवेश की वास्तविकता के सांचे में उतार कर महाभारत के आदर्शों को प्रासंगिक बना दिया है।।


संक्षिप्त में महा समर--
एक -शान्तनु भीष्म सत्यवती पात्रों की मनोवैज्ञान जीवन की मौलिकता के परिवेश सापेक्ष एक सार्थक चिन्ताशीलता का बेबाक चित्रण है सत्यवती का हस्तिनापुर पुर आना एव महारानी बनाया जाना उसकी स्वीकारोक्ति एव हस्तिनापुर जाते समय भविष्य की आशंकाओं से मुक्त हुये बिना त्याग एव हस्तिनापुर सत्यवती शान्तनु और भीष्म के महासमर बंधन कर्म बंधनो से बंधा और मुक्त नही हो पाता है।।

दो -अधिकार शैशव से षड्यंत्र अधिकार संघर्ष की याथार्त वास्तविकता की मौलिकता का काल की नव परिभाषित करता है।।
तीन -युधिष्ठिर का राज्याभिषेक कर्म धर्म दायित्व बोध शक्ति साथ का समन्यव जीवित पांडव का पंचालो की राजधानी काम्पिल्य पहुचना महत्वपूर्ण है।।

चार- खांडवप्रस्थ की अराजगता युगीन चित्रण है खांडव प्रस्थ का अर्जुन और कृष्ण की संयुक्तता द्वारा समाप्त किया जाना जरासंध की भीम द्वारा मृत्यु हस्तिनापुर पुर की द्यूत सभा धर्म राज का स्वय द्यूत में सम्मितल होना तत्कालीन को वर्तमान में भाष्य है।।

पांच - द्यूत पराजय पांडव वनवास कुंती का शत सृंगार बनवास लाक्षागृह से हिडिम्ब वन गमन विदुर गांधारी धृतराष्ट्र के साथ वनवास पुत्रो के विकट काल मे वन में साथ न जाना एव विदुर के घर रहना तर्क एक अन्तरारालीय अभिव्यक्ति है।।

छ -अज्ञातवास दुर्योधन की से पांडवों का बचना अज्ञात वास को विराट नगर को चुनना आदि प्रश्नों को इस खंड में वर्णित है।।

सात- उद्योग युद्ध भीष्म पर्व कथा मित्रो की सहायता कृष्ण की सहायता कुंती कर्ण का साक्षात्कार कर्ण का महान युग पुरिषार्थ का उदय विशेषताओं का महासमर।।

आठ -शांति पर्व तक समेटे जो कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि से होती हुई आगे बढ़ती है जो सिर्फ शत्रो के युद्ध को परिभाषित नही करती है बल्कि मुल्यों सिद्धांतो प्रकृति प्रबृत्ति की टकराहटों की प्रतिध्वनी है सम्बन्ध मोह रिश्तो के बंधन का टूटना एव जीवंत वास्तविकता का दृष्टिगत होना स्वर्गारोहण एव संसार रोहण महासमर है।।

नौ -अति विशिष्टता लिये यह खण्ड इसमें महासमर के कारण कारक एव सूत्र को समझने समझाने का प्रायास है महासमर जहां बंधन है धर्म है जय है महासमर की भूमिका भी कहा जा सकता है ।।

कोहली जी की चौरासी कृतियों में पौराणिक एव मान्यताओं को संस्कृतिक राष्ट्र वाद एव वर्त्तमान परिदृश्य परिवश की सामाजिक चिन्ताशीलता एव यथार्थ की स्वीकार्यता को चुनौती के साथ सकारात्मता बोध का साहित्यिक संवाद है जो नव युग जागृति का संस्करण साहित्यिक संबोधन है कोहली जी का साहित्य सामाजिक राष्ट्रीय परिपेक्ष में युगात्म परिवर्तन की प्रेरणा का प्रसंग है कोहली जी के सहित्य में संवेदना को वास्तविकता के धरातल पर प्रस्तुत किया गया है भावों की प्रधनता तो है मगर विवशता या बाध्यता के माप दंडो की बाध्यता नही है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश