पतझड़
पतझड़ में मुरझाएँ हुए फ़ूलों को खिलाने की आश मत रखो l
छोड़ कर जाने वालों की फ़िर से मिलाने की आश मत रखो ll
दूर जाने का फैसला किया है उस नादान नासमझ ने l
जिद लिये हुए अडिग मन को हिलाने की आश मत रखो ll
वक़्त के साथ है तन्हाइयों का सफ़र तो सदियों से ही l
मुसलसल लम्बी दरारों को सिलाने की आश मत रखो ll
सूखे पत्ते फ़िर ना हरे भरे होगे वो तो मिट ही गये l
उसे खिलाने की कोशिश में झिलाने की आश मत रखो ll
प्रवासी पक्षियां नहीं है कि आएँगे अपने घर को तो l
गुलिस्ताँ में लौटकर वापिस फिराने की आश मत रखो ll
१-४-२०२५
प्रकृति
प्रकृति के सौंदर्य का रसपान करना चाहिए l
फिझाओ की महक साँसों में भरना चाहिए ll
अपनी ही मस्ती में दूर पहाड़ों से आये हुए l
कलकल बहते हुए झरने संग सरना चाहिए ll
पंखी जैसे उड़ना सिखों, तितली से इठलाना l
हिमालय तरह अडिग मन से लडना चाहिए ll
ऋतु वसंत सा खिल खिलाकर जीवन में l
प्रकृति की सुंदरता के साथ पलना चाहिए ll
जिस प्रकार से ईश्वर रखना चाहे ऐसे रहो l
व्योम प्रवाही गंगाजल सा झरना चाहिए ll
२-४-२०२५
पलाश
आशा करते हैं कि जिंदगी पलाश की तरह खिलती रहे l
जीवन के सुबह शाम में ढ़ेर सारी खुशियाँ मिलती रहे ll
ख्वाबों और ख्वाइशे तो बहुत पाल के रखी नादानी में l
गर्दिशियाँ आने जाने से वक़्त के साथ जान हिलती रहे ll
ख़िज़ाँ के बाद बसंत के आ जाने से खिल गया आलम l
गुलिस्ताँ में बहार आने से रूप कुदरत का झिलती रहे ll
मिलन की आश में रोज रोज इन्तजार किया दिलबर का l
नशीली फ़िजाएँ गुनगुनाने से दिल की दरारें सिलती रहे ll
रफ़्ता रफ़्ता आगे बढ़ रहे हैं जिन्दगी में दिन रात और l
बहरगाम किये कर्मों के साथ तक़दीर भी फिरती रहे ll
बहरगाम क़दम क़दम पर गर्दिशियाँ परेशानियाँ
३-४-२०२५
बयार
ये किस गली से नाचता गाता बयार आ रहा हैं l
ये दिल बार बार वहीं पर ही उड़कर जा रहा हैं ll
आज मदमस्त फिझाएं बड़ी खुशनुमा लगे कि l
नशीली सी महकती छलकती खुशबु ला रहा हैं ll
दो अजनबी चाँदनी रात में छत पर बैठे थे तब l
एक अनछुए बहकते अह्सास को पा रहा हैं l
महक सांसों में घुलकर दिवाना बना रही है तो l
शीतल लहर का सुहाना मंज़र दिल को भा रहा हैं ll
किसी आनेका का अंदेशा बयार लेकर आया ओ l
दिल खुशियों के मारे झूम झूमकर गा रहा हैं ll
फागुन
रंगबिरंगी होली लेकर फागुन आयो l
साथ अपने मनमीत सजना लायो ll
मन पुलकित हुआ तन पर गुलाल ओ l
रोम रोम केसर घोल प्रेम रंग भायो ll
रंगों से रची जिन्दगी ओ बसी जिन्दगी l
अक्षर अक्षर रंग लगाके गीत गायो ll
रचा महोत्सव प्रीत का चहु और देखो l
फागुन का बसंत अंग अंग में समायो ll
साँसों में कस्तूरिया की महक भरके l
मिलन की आस के दीपक जगायो ll
५-४-२०२५
बदलता
वक्त के साथ इंसान बदलता क्यूँ हैं?
किसी के लिए दिल धड़कता क्यूँ हैं?
उम्रभर एक ही गलती बार बार करे l
देख रंगीन तितलियाँ बहकता क्यूँ हैं?
आख़िर बार जाने की वजह पूछने को l
एक बार मिलने को मचलता क्यूँ हैं?
अश्क़ न बहाने की कसमें खाई थी तो l
निगाहों से फ़िर आंसू छलकता क्यूँ हैं?
लगता है लब्ज़ खामोश हो गये है ओ l
भादरवे की बारिस सा गरजता क्यूँ हैं?
६-४-२०२५
आँसू
कोई फ़ायदा नहीं आँसू छुपाने से l
ज़माने को गिला है मुस्कुराने से ll
लाख कोशिशों के बाद न रुके तो l
उदास क्यूँ हो उसीके जाने से ll
खुद को पत्थर बना दिया है तो l
अब डर नहीं लगता है ज़माने से ll
बेकार में वक्त बरबाद ना करो जब l
याद नहीं मीट सकती भुलाने से ll
मुकम्मल गुलिस्तां से भले सजी हो l
अर्थी जिन्दा नहीं होती सजाने से ll
छोड़ कर जाने का मन बनाकर गये l
न आएँगे कभी बार बार बुलाने से ll
जिद पर अड़े हुए को न मनाओ l
मानेंगे अपने आप ही मनाने से ll
७-४-२०२५
दस्तूर
दस्तूर ए मोहब्बत का राज तुम क्या जानो l
प्रथम मिलन रात का राज तुम क्या जानो ll
बोले हुए लब्ज़ तो सब समझ जाते हैं पर l
खामोश जुबान का राज तुम क्या जानो ll
दिल का जहाँ रोशन कर दिया जुगनुओं ने l
प्यार की सौगात का राज तुम क्या जानो ll
वफ़ा करके बेवफा के नाम से मश्हूर हुए l
नशीली सी याद का राज तुम क्या जानो ll
आशिकी और बेपनाह प्यार में डूबे हुए वो l
मेहंदी वाले हाथ का राज तुम क्या जानो ll
फ़ासला
मन का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
दिल का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
मसअला ये है कि मिलों दूर परदेश जा बैठे तो l
घर का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
एक उम्र गुज़र चुकी है इंतजार करते करते ही l
तन का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
कई तरह के भय छुपे हुए है मन के भीतर में ही l
डर का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
मोहब्बतों में कोई सरहदें नहीं होती ना लेकिन l
गर का फ़ासला तय करने में वक्त तो लगता हैं l
छाले हमारे पाँव के देख यूँ उदास ना हो l
घर हमारा चलाने के लिए इसे तो छीलना ही था l
९-४-२०२५
बेनियाज़
रास्तें में सामने गर्दिशों का पहाड़ खड़ा हैं l
बेनियाज बेखौफ होके कारवाँ चल पड़ा है ll
आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जज्बातों ने l
मन के भीतर ख्वाबों अरमानों का दड़ा है ll
गुजिश्ता कर दी ख़ुद की भावनाओं को तो l
कई बार गुस्से में अपने आप से लड़ा है ll
आँधियों के बयार से रास्तें है धुआँ धुआँ l
तस्कीन की पूरी शिद्दत से खुद को जड़ा है ll
लोग क्या कहेंगे उससे बेपरवाह हो गये ओ l
इश्क़ का एलान कर जग के डर को गड़ा है ll
१०-४-२०२५
गुजिश्ता - छिपे हुए
तस्कीन - सुकून
मोहब्बत
मोहब्बत निगाहों से बयान होती है l
तभी से चालू ये दास्तान होती है ll
कभी भी गिरने नहीं देते है जिसमें l
सबसे ज्यादा बसी जान होती है ll
गर खुद के उड़ान पे भरोसा हो l
तो मुकम्मिल आसमान होती है ll
जब आग दो तरफ़ से लगी हो l
तब मोहब्बत जवान होती है ll
बड़ी शिद्दत से चाहो तभी तो l
चंद खुशियाँ महेरबान होती है ll
आसमाँ की ऊँचाई से डर कैसा जब l
हौंसला से परवाज उड़ान होती है ll
खामोशी का मुखौटा पहना हो तब l
दिल की आरज़ू बेज़बान होती है ll
एक दिलबर के आ जाने से ही l
महफिल में सुरीली तान होती है ll
आँखें इशारों से बात करती हैं l
और बेआवाज़ ज़बान होती है ll
आज बड़े गुनहगार बन गए कि l
गवाहीं भी पासबान होती है ll
मिलन की तड़प बढ़ जाए तब l
मुलाकात की अज़ान होती है ll
बेहतरीन हुस्न के इंतजार की l
हर घड़ी ही इम्तिहान होती है ll
११-४-२०२५
शिकवा
शिकवा है दिल के राज़ छुपाने से l
बिना कुछ भी कहे चले जाने से ll
जरा सी खुशी भी खटकती है क्या?
अब तो एतराज है मुस्कुराने से ll
लोग क्या कहेंगे इसी ही भीती में l
हर बार डर लगा रहे ज़माने से ll
बहुत नाज़ है खूबसूरती पर कभी l
कमियां छिपती नहीं सजाने से ll
पहली नजर के प्यार की कसक l
भूले भी नहीं भूलती वो भुलाने से ll
१२-४-२०२५
दुनिया ना तुमको देखती है l
ना तुम्हें क्या बनना है l
बस ऐसे ही देखती है l
जैसे उनको देखना होता है ll
आश्वी
आंसू
आंसूओ की अपनी भाषा होती हैं l
खुद भिगकर औरों को भिगोती हैं ll
आंख का जल छलाँग लगाकर ही l
दिलों में भावना के बीज बोती हैं ll
अपने आप ही नहीं बरसती कभी l
दिल रोता है तो आँखें रोती हैं ll
आँखे पलकों के पीछे छुपाकर l
कितनी ही यादों को संजोती हैं ll
जीने के ज़ज्बे को बढ़ाकर वो l
हौसलों को खुद ही पिरोती हैं ll
१२-४-२०२५
अजनबी
अपने ही शहर से अजनबी हम हैं l
शुक्र है अपनेआप से करीबी हम हैं ll
दो पल मिलने की फुर्सत नहीं जिसे l
कहने को दोस्तों के हबीबी हम हैं ll
चाहें ज़माना कुछ भी समजे सुन लो l
रिस्तों के मामले में सरीफी हम हैं ll
इंसान है ओ इंसानों को चाहते हैं l
इंसानियत के नाते मजहबी हम हैं ll
क़ायनात में रह्ते है मिलजुलकर l
ईश्वर से सब से नजदीकी हम हैं ll
१२-४-२०२५
ईश्वर
इंसान ईश्वर के हाथ का खिलौना हैं l
अंधेरी उजाली रात का खिलौना हैं ll
बालपन से लेकर जवानी तक उसके l
हसींमज़ाक की बात का खिलौना हैं ll
उम्रभर अपने ओ चाहने वालों की l
मोह माया की याद का खिलौना हैं ll
वक्त के साथ बीते लम्हों के सफ़र में l
जीवन मृत्यु के साथ का खिलौना हैं ll
आती जाती साँसें सीने मे धड़कती l
उस धडकनों के राग का खिलौना हैं ll
क्या कह गए?
१३-४-२०२५
बयार
झूमती बयार कानों में ये क्या कह गए?
नशीली रात ख़्वाबों में ये क्या कह गए?
निगाहों से जाम पिलाते रह्ते रातभर तो l
छलकी शराब प्यालों में ये क्या कह गए?
महफ़िल में यार दोस्तों के बीच इशारों से l
आज अनकहे लफ़्ज़ों में ये क्या कह गए?
आलम हसीन, हर समां जवा जवा सा है l
महकती हुईं फ़िज़ाओं में ये क्या कह गए?
दिल ए बेकरार का हाल ही मत पूछो तो l
चंद टूटेफिटे अल्फ़ाज़ों में ये क्या कह गए?
दो लम्हों की तड़पती मुलाक़ातों में जल्द l
लगातार पूछे सवालों में ये क्या कह गए?
हर पल हर लम्हा ख्यालों में रह्ते है और l
प्यारे बहकाते कलामों में ये क्या कह गए?
१४ -४-२०२५
पेड़
अब पेड़ों को काटने से बचाना होगा l
प्रकृति की रक्षा करना सिखाना होगा ll
जीवन को हरा भरा रखने के लिए l
आज इंसानियत को दिखाना होगा ll
फल ओ छाया दे प्रदूषण हटाता l
उसके फ़ायदे को बताना होगा ll
धरती हरीभरी, जीवन में खुशहाली l
सुरक्षा का विश्वास दिलाना होगा ll
मिलजुल एक साथ फूले फलेंगे सब l
कायनात से रिश्ता निभाना होगा ll
१४ -४-२०२५
यादों के पेड़ उगने लगे हैं भीतर l
अब ख्वाब जगने लगे हैं भीतर ll
अधिकार
अधिकार पाने के लिए वक्त बरबाद ना करो l
बदलाव लाने के लिए वक्त बरबाद ना करो ll
परिस्थिती बदलते ही ख़ुद को समजाओ यू l
गैर को समजाने के लिए वक्त बरबाद ना करो ll
मोहब्बत होगी तो अपनेआप आएँगे दौड़कर l
प्यार को जताने के लिए वक्त बरबाद ना करो ll
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं जग में लोग l
मतलबी ज़माने के लिए वक्त बरबाद ना करो ll
सोशियल मीडिया के वक्त में जान ही लेंगे l
खबर बतलाने के लिए वक्त बरबाद ना करो ll
१५-४-२०२५