वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी ओखला के पश्चिम में छोटा सा इलाक़ा है। यहां टेढ़ी-मेढ़ी गलियां हैं। हर गली अपने आपको एक या दो बार आब-चक में काटती है। ऐसी ही एक बंद गली के छोर पर नसीमा ने अपना आशियाना बना लिया था। उसका एक लड़का था जिसका नाम शाकिर था। वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था और देर रात तक लैंप पोस्ट के नीचे प्रश्नों से माथा पच्ची करता रहता था।यह इलाक़ा कल्लु झपटमार के लिए अनमोल था। उसने निडर होकर आसपास के इलाक़े में बीसियों के हिसाब से अपने शिकार बनाए पर कभी पकड़ा नहीं गया। इसका कारण था वह लूट का माल लेकर फर्राटे से गलियों में होता हुआ अपने घर में घुस जाता था। उसका पीछा करने वाला इस भूल भुलैया में घूमता-फिरता रहता। और वह झपट मार को भूलकर अपने निकलने की राह खोजने लगता था।एक रात की बात है, कोई ग्यारह बजे होंगे। शाकिर पढ़ाई में लीन था। उसने देखा कल्लू हाथ में बेग लिए भागता हुआ आया और अपने घर में घुस गया। उसके पीछे भागता हुआ आदमी जब तक पहुंचा वह गायब हो चुका था। परेशान हाल आदमी ने लड़के से पूछा, 'एक झपटमार मेरा बैग लेकर इस गली में घुसा था, क्या तुमने देखा है?'शाकिर जानता था कल्लु हिस्ट्रीशीटर हैं, मुख़बिर को सज़ा -ए-मौत देता है। हालांकि उसने कल्लु के हाथ में बेग देखा था फिर भी उसने ना में सिर हिला दिया। फिर उस आदमी ने ग़मगीन लहजे में कहा, 'बेटा मेरी पत्नी बीमार है, दिल्ली के अस्पताल से दवाईयां लेकर आ रहा हूं जो इस बैग में रखी थी। रुपए पैसे होते तो कोई बात नहीं थी, फिर आह भरते हुए कहा, 'पता नहीं, दवाई के बिना उसका क्या हश्र होगा, जीएगी या मरेगी?'शाकिर दुविधा में पड़ गया था। सच बोलता है तो उसकी जान पर बन आएगी । झूठ बोलता है तो दवाई न मिलने से इसकी बीवी मर सकती है। उसे याद आया, 'उसके पापा बीमार पड़े थे, दवाई न मिलने से वह मर गए थे।' एकाएक उसने कल्लू के घर की ओर इशारा कर दिया। उस आदमी ने पुलिस को फोन किया और कुछ ही देर में कल्लु इंस्पेक्टर की भारी कलाइयों की गिरफ्त में आ गया।पुलिस की गाड़ी में बैठते समय उसने शाकिर की मां से कहा, 'बुढ़िया, तेरे लौंडे ने मुझे पकड़वाया है, मां क़सम गोलियों से छलनी नहीं किया तो अपने बाप से पैदा नहीं।'शाकिर की मां रोने लगी जिससे उस आदमी का दिल पसीज गया। उसने कहा, 'बहन, हो सकता है जेल से छूटने के बाद कल्लु आपके लड़के से बदला ले। इसकी जान बचाने का एक ही उपाय है, 'आप दोनों मेरे घर चलें और मेरे बीवी बच्चों के साथ रहें। आपको वहां किसी तरह की परेशानी नहीं होगी। बेबस मां रोने लगी और बेटे को साथ लेकर उस आदमी के साथ जीप में बैठ गई। रास्ते में लड़का सोच रहा था, 'काश उसे पता होता, उसके सच बोलने से घर- संसार उजड़ जाएगा, तो कभी सच नहीं बोलता।' उसे अपने से घृणा हो रही थी। उसकी आंखों से आंसू छलक आए।तभी जीप एक फार्म हाउस के गेट पर रूकी। लड़का जान चुका था, यह जाने-माने फार्मर मजीद ख़ां हैं। वह लड़के और उसकी मां को घर में ले गए। घर में उनकी बेगम दर्द से छटपटा रही थी। मजिद खां ने उनसे कहा, 'हमीदा दवाई खा लो' और दवाई उनके मुंह में डाल दी। कुछ ही देर में बेगम की बेचैनी दूर हो गई और वह नॉर्मल हो गई। घर में अनजान मेहमान देखकर उन्होंने शोहर से उनके बारे में पूछा।मजीद खां ने बेगम को पूरा वृत्तांत सुनाया। उन्होंने मां बेटे को गले लगा लिया। नौकर से उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था करने को कहा। लड़का जो अभी तक अपने से घृणा कर रहा था, उसे अपने पर गर्व हुआ। मजीद खान की एक बेटी थी, नाम था निलोफर। वह उम्र में शाकिर से कुछ छोटी थी। उसे शुरू में शाकिर अनमना सा लगा। लेकिन जब शाकिर ने अच्छे कपड़े पहन कर सलीक़े से रहना सीख लिया तो दोनों में दोस्ती हो गई थी। वे लुका छुपी खेलते और तितलियों के पीछे भागते थे। वह शाकिर की मां को नसीमा ख़ाला कहने लगी थी। निलोफर गले में बैग डालकर, हाथ में टिफिन लेकर स्कूल जाती तो शाकिर सोचता, वह भी इसी तरह स्कूल जाता था। यहां उसे अच्छा खाने-पीने व रहने को मिलता है। पर वह चार दिवारी तक सीमित हो गया है। एक दिन हमीदा बेगम ने खां साहब से कहा, 'शाकिर यहां आया था तो कैसा गोरा- चिट्टा था, गाल भी भरे हुए थे। अब तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने इसके शरीर का खून निचोड़ लिया हो। ख़ां साहब ने कहा, 'ठीक कहती हो। यह बच्चा पढ़ने का शौकीन था, पढ़ाई छुटने के ग़म मैं घुला जा रहा है।' फिर आह भर के कहा, 'कल्लु ने इसे मारने की क़सम खाई है। अगर यह स्कूल गया और ख़ुदा-न-ख़ास्ता कल्लु ने इसे मार दिया तो लोग कहेंगे, 'मजीद खां एक बच्चे की हिफाज़त नहीं कर सके।'एक छुट्टी के दिन निलोफर ने शाकिर से बाग में चलने को कहा। वह चला तो गया पर नहर किनारे बैठकर पानी में बहते पत्तों को देखने लगा। निलोफर ने उससे पूछा, 'क्या मैं तुझे अच्छी नहीं लगती?' शाकिर ने कहा, 'तुम बहुत सुंदर हो, तुम्हारी आंखें बहुत अच्छी है।''फिर मुझसे क्यों दूर रहता है, सच-सच बता नहीं तो 'तेरी- मेरी कुट्टी।' नीलोफर ने रूंधे गले से कहा।'कभी मैं भी तुम्हारी तरह स्कूल जाता था लेकिन यहां आकर मेरी पढ़ाई छूट गई।'घर लौटकर नीलोफर ने मम्मी से कहा, 'आप शाकिर को स्कूल क्यों नहीं भेजती?'अम्मी को उसे सब कुछ बताना पड़ा।निलोफर ने कहा, 'अम्मी, शाकिर ने आपकी जान बचाई। आपने उसे नेकी का यह सिला दिया।'हमीदा बेगम शर्मिंदा हो गई। कुछ सोचने के बाद उन्होंने कहा, 'मैं उसे तुम्हारे मामू के घर भेज देती हूं। वहां वह पढ़-लिख जाएगा और उसकी जान भी बची रहेगी।'निलोफर ने यह खबर शाकिर को सुनाई तो उसने रूंधे गले से कहा, 'तुम मेरी दोस्त हो। मैं तुम्हारा यह एहसान ज़िंदगी भर नहीं भूलुंगा...।' निलोफर ने कहा, 'मैं भी कभी नहीं भूलुंगी, तुमने मेरी अम्मी की जान बचाई है...।' आधी रात को मजीद ख़ां शाकिर को साथ लेकर चल दिए। इस तरह दोनों दोस्त बिछड़ गए। लगभग दस-बारह वर्ष बाद बाद यह वाक्या निलोफर की ज़िंदगी के सबसे अहम समय में हुआ था। अगले जुमे की शाम को उसका निकाह सलमान के साथ होना था। वह यूनिवर्सिटी में उसके साथ पढ़ा था और एक कंपनी में नौकरी करता था।एक और अच्छी ख़बर उसे मिली। वह कभी-कभी गज़ल लिखती थी। इस बार उसने ग़ज़ल लिखी, वह एक अख़बार के संडे एडिशन में प्रकाशित हुई थी। शहर के मशहूर शायर फैसल बेग ने उसे फोन पर मुबारकबाद दी थी, जिससे उसके हौसले बुलंद हो गए थे और वह शायरा बनने के सपने देखने लगी थी। फैसल बेग देश- विदेश में प्रसिद्ध थे। शहर के मेयर ने उन्हें सम्मानित करने के लिए कम्युनिटी हॉल में एक मुशायरे का आयोजन किया था जिसे 'जशने फैसल बेग' नाम दिया था।शहर वासी इस मुशायरे को लेकर बहुत उत्साहित थे। उन्होंने निमंत्रण पत्र पाने के लिए डोनेशन दिए थे तथा कुछ ने नेताओं तथा बड़े अधिकारियों से जुगाड़ लगाई थी। फैसल बेग का एक नुमाइंदा मुशायरे का इनविटेशन कार्ड लेकर निलोफर के घर आया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि इंटरनेशनल लेवल के शायर उसे मुशायरे में बुलाएंगे। उसने अब्बु से मुशायरे में चलने को कहा तो उन्होंने दो टूक मना कर दिया था। उनकी दलील थी, 'मुशायरे में जाना हमारे ख़ानदान की लड़कियों की रिवायत नहीं है।' फिर उसने मुशायरे में शिरकत के लिए अपनी अम्मी से मिन्नतें की। उन्होंने कहा, 'तुम जानती हो तुम्हारे ससुराल वाले दक़ियानूसी मिजाज़ के है। उन्हें तुम्हारा मुशायरा में जाना रास नहीं आएगा। कुछ ऊंच नीच हो गई तो मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगी?' सवेरे निलोफर सोकर उठी। उसकी सूजी हुई आंखें रात भर जागने और रोने की गवाही दे रही थीं जिंहें देखकर अब्बु का दिल पसीज गया था। उन्होंने बेटी को मुशायरे में जाने की परमिशन दे दी।निलोफर मुशायरे में पहुंची तो शायर फैसल बेग ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, 'मुझे खुशी है तुमने मुशायरे में आने की हिम्मत जुटाई ।' मुशायरा कमेटी वालों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। इसका कारण था- मुशायरे की एकमात्र शायरा मलिका-ए-तरन्नुम, शबनम हैदराबादी का मुशायरा में देर से पहुंचने की ख़बर। हैदराबाद एक्सप्रेस आठ घंटे लेट हो गई थी। कमेटी वाले सोच रहे थे, 'शमा-ए-महफिल, देर से पहुंची तो लोग कहेंगे, शमा परवानों के बाद जली।' इस शमा को मुशायरा जमाए रखने के लिए रात भर जलना पड़ता था। जब कोई शायर मुशायरा सुनने वालों को निराश करता और मुशायरा उखड़ने लगता, तो शबनम अपनी मधुर आवाज़ से ग़ज़ल पेश करती जो उनके चाहने वालों के कानों में अमृत घोल देती और वह वाह-वाह करने लगते थे। शबनम के लेट होने से वही हुआ जिसका डर था। मुशायरा धीरे- धीरे उखड़ने लगा था। तभी फैसल बेग ने माइक संभाला, 'हजरात आपकी चहीती शायरा तबस्सुम को पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त और लगेगा। मैं आपके सामने नई शायरा निलोफर को पेश कर रहा हूं। मैं बयां नहीं कर सकता, कितना दर्द छुपा है इनकी शायरी में।' तभी श्रोताओं ने अपने बीच से एक उज्जवल आभा को स्टेज पर जाते देखा। निलोफर ने ग़ज़ल पढ़ी, 'जमीन- आसमान।' हाल तालियों की गडगड़ाहट से गूंजने लगा था। एक ही आवाज़ सुनाई पड़ रही थी, 'वाह-वाह, फिर से पढ़िए।'निलोफर ग़ज़ल पढ़ने के लिए स्टेज पर श्रोताओं के बीच से उठ कर गई थी पर लौटी तो शायरों ने उसे अपने बीच बिठाया था। कैमरे की लाइट्स उसके चेहरे पर पड़ रही थीं।तबस्सुम अपने चहितो के दिलों से दूर हो गईं थीं और उनका दिल निलोफर के लिए धड़कने लगा था। अख़बार में उसका फोटो छपा था, जिसके नीचे लिखा था 'शमा-ए-महफिल, शायरा निलोफर।'सवेरे निलोफर के होने वाले शोहर सलमान के फोन की घंटी बजी। निलोफर ने धड़कते दिल से फोन उठाया तो सलमान ने बिना हाय- हेलो के कहा, 'अब्बू को तुम्हारा यह मुशायरे में गज़ल पढ़ना पसंद नहीं है।'निलोफर ने रूंधे गले से कहा, 'क्यों नहीं पसंद है?' वह कहते हैं, ,'यह बेहयाई और बेशर्मी है। तुम्हारी होने वाली बहू को तुम्हारे देखने से पहले सारी दुनिया देख चुकी है।' 'तुम मेरे दोस्त हो, उनसे कुछ कहते क्यों नहीं?''वह कह रहे थे तुम अपने होने वाली बीवी को इतना भी कंट्रोल नहीं कर सकते।' 'हां, तो तुम मुझे कंट्रोल नहीं कर सकते। और दुनिया के किसी भी इंसान को किसी को कंट्रोल नहीं करना चाहिए। तुम अब्बू को समझाओ ना मुझे गज़ल लिखने का बहुत शौक है। यकीन है, तुम उन्हें समझा लोगे और मैं यह बंद करने वाली नहीं हूं। मैंने शौक-शौक में गज़ल लिखना शुरू की थी। वैसे मुझे यह सब अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन मैं सोचती हूं, इट इस नॉट राइट शायद ठीक नहीं है।' 'यह जो तुम्हें ठीक लगता है, वह गलत कैसे हो सकता है।' सलमान ने तंज़िया लहजे में कहा। 'तुम्हारे अब्बू को भी मेरा यह शौक पसंद नहीं है और मेरे अब्बू को भी यह शौक पसंद नहीं है। तो क्या तुम सबके लिए मैं मुशायरे में जाना बंद कर दुंगी?'तुम अपनी ज़िंदगी में जी रही हो। अगर तुम्हें मेरी बीवी बनना है तो मेरी और मेरे अम्मी अब्बा की ज़िंदगी जीना होगी। हमारे घर के तौर-तरीके और रिवायतों को अपनी जिंदगी में उतारना होगा। यह फैसला तुम्हें निकाह से पहले लेना है। तुम मेरी दोस्त हो, तुम्हारे अंदर बहुत ज़्यादा पोटेंशियल है। तुम वही करो जो तुम करना चाहती हो। पर इसके लिए तुम्हें मुझको भुलाना होगा, अच्छी तरह सोच समझ के जवाब देना क्योंकि शादी में ज़्यादा वक्त नहीं बचा है। गुड लक...।निलोफर कशमकश में थी। वह जानती थी, उसने अम्मी को बताया तो वह दूध का वास्ता देकर मुझे मना लेंगी, अगर उसने अब्बू को बताया तो वह राज़ी -राज़ी नहीं तो ज़बरदस्ती वाला फार्मूला अपनाएंगे। वह इसी कशमकश में थी कि मामू-मामी शादी में शिरकत के लिए आ गए थे। मामू ने यह कहकर सबको चौंका दिया, 'मेरे कोई औलाद नहीं थी। मेरी बीवी को शाकिर नेक बच्चा लगा, हमने इसे गोद ले लिया पर कल्लु के डर से इस ख़बर को कॉन्फिडेंशियल रखा। यह एम.टेक पास करके एक कंपनी में सी.ई.ओ. हो गया है। इसका पोस्टिंग अमेरिका में हो गया है। मैंने सोचा विलायत जाने से पहले इसे इसकी मां और आप सभी से मिलवा दूं और शादी में भी शिरकत कर लूं। शादी से ठीक एक दिन पहले सलमान के अब्बू घर आए। उन्होंने गुस्से में मजीद ख़ां से कहा, 'सलमान ने आपकी बेटी को समझाया था, 'तुम्हें मुझ जैसे मिडिल क्लास के लड़के से निकाह करना है तो यह मुशायरा पिक्चर सब में नहीं जा सकती। मेरे बेटे ने उसे बहुत सी हिदायतें दी थी और अपना फैसला देने को कहा था। आपकी बेटी ने होने वाले शोहर की बात का जवाब नहीं दिया...।' मजीद ख़ां ने उन्हीं के लहजे में कहा, 'आपको कोई शिकायत थी तो मुझसे कहना चाहिए था। अभी वह शोहर- बीवी नहीं है। इसी को लेकर बहस होने लगी। सलमान को प्यार और शादी के बारे में उतना ही पता था जितना उसके अब्बू ने उसे बताया था। इस बहस में उसने भी अपने अब्बू का साथ दिया, बात बढ़ गई और शादी टूटने के बाद ही ख़त्म हुई।घर में मातम छा गया था। फिज़ा में एक ही गूंज थी, 'अब इससे कौन शादी करेगा।' निलोफर ने अपने को एक कमरे तक सीमित कर लिया था।शाकिर ने निलोफर से कहा, 'जब मैं तुम्हारे घर आया था, मेरी पढ़ाई छूट गई थी। तुमने अपनी अम्मी से मुझे पढ़ाने की ज़िद की जिससे मैं इस पोज़ीशन तक पहुंचा। मैं इसका क्रेडिट तुम्हें देता हूं। मेरा दिल तुम्हारे लिए धड़कता है, तुम्हारी झील सी आंखों में डूब जाने को मन करता है। फिर रूंधे गले से कहा, 'ज़मीन-आसमान का मिलन नहीं होता...।' 'तुम ठीक ही कहते हो।'निलोफर ने रूंधे गले से कहा, मैंने मुशायरे में ज़मीन-आसमान के मिलन पर गज़ल पढ़ी थी जिसे लोगों ने बहुत सराहा था।दोनों ने अपने को अपने-अपने कमरों में कैद कर लिया था,पर दो जवान दिलों के धड़कने की गूंज फैमिली मेंबर्स के कानों तक पहुंच गई। और सब ने मिलकर उन्हें मिलाने का फैसला किया। कल्लु के डर से सादगी से उनका निकाह हुआ जिसमें न बाजा बजा न शहनाई, न कानो-कान किसी को खबर हुई। खिले हुए चांद ने उनके मिलन की गवाही दी और झिलमिलाते सितारो ने खुशी का इज़हार किया। 348 ए, फाइक एंक्लेव फेस 2, पीलीभीत बायपास बरेली,(उ प्र) 243006, मो : 9027982074 ई मेल wajidhussain963@gmail.com