आजकल ठगी करना आसान नहीं है। जब से तकनीक खुद ठग बन गई और किस्मत पैदल चल रही तब से ठगी करना आसान नहीं। वरना पहले बड़ा आसान था,यह सोने की ईंट ,चूड़ियां ले लो कौड़ियों के दाम। औरतें कम आदमी झांसे में तुरंत। उसे ईंट दिखाई जाती कायदे से सिर पर मारनी चाहिए ।उस वक्त की बीस लाख की ईंट स्पेशल जरूरत में वह मात्र एक लाख में दे रहा। घर में इतने न निकले तो यार दोस्तों से उधार पूछा भी तो कोई न दिया।सबसे ले चुके थे और ईट के सहारे पार होने की सोच रहे थे।उधर आंगन में बैठा हरा चोगा पहने बैठा बाबा अपने शिष्य से आंखों ही आंखों मंत्रणा कर रहा की,यह फक्कड़ था तो फंसा है पर अपने काम का नहीं। वह सामने कोठी है वहां चक्कर चला। शिष्य बोला,महाराज वह अपने से भी बड़े ठग हैं दुनिया सिर पर बाल उगाने का तेल बेच बेचकर के तो कोठी बनाई है। बाल आए या नहीं लेकिन धन बहुत आ गया। जरा सी शीशी दो हजार की छूट के बाद नौ सौ रुपए की। "बाल आए तो दिखेंगे यह तो झूठ हाल पकड़ा जाता होगा। शिष्य बोला, " जनता इतनी भोली है कि ठगे जाने को तब तक नहीं मानती जब तक कोई खुद न बताए।वरना ठग को तो वह सिद्ध बाबा ही मानती है।तो उसे कहते तेल कम लगाया है।दो बोतलें और लो पंद्रह सौ में ही दे देंगे। तो यह दो बार नहीं बल्कि जब तक भेड़ के चली न जाए तब तक उसे मुंडते हैं।"
"बाबा का आशीर्वाद है यह सोना तुझे मालामाल कर देगा।" बाबा ने कामचोर,लालची भक्त द्वारा बीवी के दो चार गहने और नोट पोटली में देखते हुए कहा।
शिष्य ने सब समेटा और कहा ," एक ईट कल और बाबा बनाएंगे भक्तों का कष्ट दूर करने। कोई जरूरतमंद हो तो बताओ।" अक्ल के अंधे भक्त को अपनी बहन बहनोई याद आए जो कच्ची बस्ती के पास ठेला लगाते। नहीं पैसा न है उस पर। फिर ख्याल आया अपना दोस्त रहमान जो पुलिस कॉन्स्टेबल है पर बड़ा गरीब है। अभी तक एक मकान,एक दुकान और एक गाड़ी ही बना पाया है।उसे जरूर जरूरत होगी।
" बाबा,यह मित्र है मेरा।इसे जरूरत है आप चले जाओ।"
पता लेकर बाबा शिष्य चलते चलते बोले," और कुछ भी सोचना मत।आज से चौथे दिन इस ईट को खड्डे से निकालना यह तुझे मालामाल कर देगी।"
राह चलते चलते दोनों को एक सुनार की दुकान दिखी, शिष्य से बोले यह धंधा सदा ही फलता फूलता है।यह ससुरे चोरी भी करते हैं सोने को कम करके ।और ऊपर से अपनी इस कलाकारी का मेकिंग चार्ज भी वसूलते हैं। ऐसा ही कोई धंधा सेट हो जाए तो यूं गली गली,नगर नगर भटकना न पड़े।
बाबा शिष्य दिए पते पर फोन किए, तो आवाज आई ,"अच्छा ,अच्छा बताया है आपके बारे में।आ जाओ पर देखो कोई गड़बड़ी निकली तो वापस नहीं जाने दूंगा।पुलिस में हूं।" सुनकर शिष्य की हालत पतली ,लगा कि अभी निकल लो शहर से। पर बाबा ने कई मजारों और योग्य महा ठगों की शागिर्दी बचपन से की थी,वह चैलेंज लेते थे। ऐसे व्यक्ति को भी ठगों जिसे ठगना असंभव हो तो वह है कला। ठगी भी एक कला है। सामने वाला जानता है दस हजार में बीस लाख का सोना? पर वह ठगा जाता है क्योंकि अंदर से आवाज आती है क्या पता सच हो? नकली नोट चलाना भी ऐसा है जैसे रोज शॉपिंग करना। कहीं भी जाओ डेढ़ दो सौ का सामान लो और पांच सौ का नकली नोट चलाओ। बाकी पैसे असली आपके। वह जो सामने से दो उज्जड से दूधवाले दिखते आ रहे हैं ,यह बाबा के गुरु भाई हैं।दोनो ने चाय वाले बाबा की दस साल चिलम भरते हुए यह कला सीखी थी। आज भी गुरु वचन कानों में गूंजते हैं," तुम सबकी अलग अलग विधाएं हैं। कई बार मिलोगे,सामना भी होगा पर कभी भी एक दूसरे की पोल नहीं खोलनी।न ही कभी वफादारी छोड़नी। चोर ठग हमेशा एक दूसरे के प्रति वफादार होते हैं। देख लो,कोई भी बड़े से बड़ा नेता एक दूसरे की पोल खोलता है? कभी ऊंचे अफसर तो छोड़ो हवलदार, हवलदार की कभी शिकायत या घूस खोलता है? सब एक हैं।
दो तरह के ही लोग हैं संसार में ।एक सीधे सादे और दूसरे इन जैसे कलाकार।
नोट बस ढंग के कागज पर अच्छे इंकजेट प्रिंटर द्वारा आजकल गली गली छप रहे। क्या करें जमाना आगे जा रहा। आर बी आई का काम आउटसोर्स हो गया,खुद ही। स्कैन करने पर सारे पंच मार्क,थ्रेड सब हूबहू आ जाते हैं।
बाबा चेला जब पहुंचे कोठी के अंदर तो उन्हें आदर से बिठाकर माताजी ने पानी पिलाया। श्रद्धा भाव से पंखा झलने लगी। बाबा इतने मान सम्मान से समझ गए कुछ समस्या है इसकी। "बोल,क्या दिक्कत है माई? "
अम्मा सामने ग्लास में पानी लेकर आ रही बहु को देखती रही। बहु ने घूंघट की आड से बाबा के चरण स्पर्श किए।पानी दिया और अंदर चली गई। अम्मा बोली ," सुशील,संस्कारी है बेटा भी अच्छा कमाता है।पर क्या फायदा जब घर में कोई खेलने वाला ही नहीं?सारी धन संपत्ति बेकार। हमारी यह समस्या इतने तीर्थ कर आए पर दूर न हुई।अब आप आए हो तो कोई उपाय निकालो।"
बाबा ने आकाश की तरफ देखा।एक हाथ से ग्लास केजल को चारों ओर छिड़का फिर कुछ देर आंखे बंद की, मनन किया। दअरसल हर घर में इतनी समस्याएं हैं कि कोई संतुष्ट नहीं। या यूं कहो कि हमारा मन ही हमेशा समस्याओं से घिरा रहना चाहता है। नौकरी,व्यापार, विवाह,घर,बच्चे ,गाड़ी सब हो गया तो नई समस्याएं। दो घर,दो गाड़ी और पूंजी और तरक्की हो जाए। कितनी तरक्की? क्या आसमान में चढ़कर अल्लाह मियां,भगवान से हाथ मिलाओगे? दान पुण्य या दीन दुखियों की सेवा बिल्कुल नहीं। कोई दिक्कत हो मजबूरी हो तो ही दान पुण्य।वरना तो ....।यह ऐसा ही अवसर लग रहा था बाबा और शिष्य को।
अम्मा शुरू थीं, "......बच्चे होने के लिए ताबीज और मंत्र फुकवाए बहु के।हर देहरी मत्था टेका पर सब बेकार । दस साल से एक चिड़िया भी पैदा नहीं हुई।" कहकर बहु की निंदा पुराण सुनते हुए शिष्य को लगा यहां दूसरी ठगी के भी अच्छे आसार हैं। पर दो बार आना पड़ेगा। "माताजी,बाबा ने तो पचपन साल की औरतों तक की गोद हरी कर दी।इनसे किसी का दुख देखा नहीं जाता।इन्हें सिद्धि प्राप्त है।" बाबा ने आंख के इशारे से मना किया कि ज्यादा नहीं बोलना। शिष्य जोश में था "बाबा एकादशी से अमावस्या के मध्य को विशेष साधना करते हैं। फिर विशेष अनुष्ठान से संतान प्राप्ति। उससे अनेक घरों में चिराग जल रहे ।" सास हाथ जोड़े सब बातें सुनती हुई हष्ट पुष्ट बाबा का मुआयना भी करती गई। चौड़ा ललाट,घुंघराले बाल, चेहरे पर विशेष भाव,हालांकि यह संघर्ष ,चालाकी नहीं आने की खीज और धोखा दूं या नहीं दूं कि आत्म नियंत्रण से उपजा भाव था।जो ईमानदारी और बेइमानी के मध्य, सदाचारी और भोगी के मध्य, अच्छे होने से बुरे की सीमा में जाने से हिचक रहे कदमों का प्रताप था। कईयों के चेहरे पर आप देख सकते हो। माताजी संतुष्ट होंउ या नहीं में फंसी थी। इस अवसर पर हर बाबा,फकीर के पास होता है तरीका। बाबा ने आंखे आकाश की ओर हाथ किया और तेजी से नीचे लाए और मुट्ठी अम्मा के सामने खोली। अम्मा इसी चमत्कार के इंतजार में थी। उसमें एक तावीज,भभूत थी। "लो ,इसे बहु के दाईं तरफ बांधना।भभूत को दूध में घोलकर बेटे को पिला देना।" बाबा अब वह चालीस पार कर गया है।कहता है संतान होना न होना सब भगवान की देन है।अरे तो मनुष्य के काम करने भी कोई भगवान आएगा? आप ही कुछ कहना उसे।
बाबा ने फिर हाथ ऊपर से नीचे झटका तो इस बार एक ताजा सेब प्रकट हुआ।क्या करें? प्रातः यही ठेले वाले के पास से मिला था। " लो माता,अभी यह रखो। अगली बार हम आएंगे तो कुछ करेंगे।इस बार जल्दी है हमें।"
अम्मा धक से रह गई। फल श्रद्धा से आंखों से लगाया और बांध लिया। सोचा था की चलो पुत्र का वंश बढ़ेगा और नासपीटे बहु भी समझेगी की औलाद को पालना क्या होता है।पर बाबा तो जा रहे आज ही।
"बाबा,आपको आज तो हमारे यहां ही प्रवास करना होगा।क्योंकि यह शुभ मुहूर्त फिर नहीं आता" कहते कहते वह बाबा के चरणों में। जाने नहीं देगी उन्हें आज।इतने सिद्ध पुरुष ईश्वर की कृपा से ही मिलते हैं।
बाबा कुपित थे।क्योंकि प्लान था कि ईंट टिका कर शाम की ही गाड़ी से रफूचक्कर होना है।वरना पकड़े जाने का खतरा। कोई कलमाड़ी, माल्या,नीरव मोदी तो हैं नहीं जो करोड़ों खाने के बाद कायदे से बाय बाय करके जाएं। गरीब,ठगी की लोक कला से जीवन पालते। गांव में बीवी,बच्चे,माता पिता सभी होते।कोई सीधे गुगल से डाउन लोड तो होते नहीं ठग और चोर। तभी आवाज आई "दिखाइए महाराज,आपका असली सोना?" कहते हुए वर्दीधारी, स्नान किया पुलिसिया सामने। "यही,छोरा है म्हारा" कहते हुए माताजी अंदर गईं। बाबा और शिष्य का आधा दम बाहर,आधा भी निकलने को आतुर। प्राण पखेरू मचल रहा।कोई रोको उसे उड़ने से। अब क्या हो सकता ?पुलिस ,साक्षात सामने?
बाबा ने निकल आई बड़ी बड़ी आँखें और दाढ़ी में छुपी हवाइयां काबू में की और मुश्किल से बोलना चाहा,तो बोल नहीं निकले। शिष्य चतुर था जल्दी संभल गया,"भक्त,बाबा कह रहे की उन्हें जल्दी है यात्रा पर जाना है। अगली बार आएंगे तब सोना ही सोना बनाकर लाएंगे। इन्हें सिद्धि प्राप्त है मिट्टी से सोना बनाने की।" पुलिसिया, हवलदार था और पिछले वाले का गांव का दोस्त,बोला,"पर बाबाजी,मुझे तो रमेश बताया कि एक ईंट तो है अभी तुम्हारे पास। दे दो। बस पहले जांच करूंगा असल है के नहीं।"
बाबा फंसते लगे पर इसका उपाय हर ठग रखता है। प्रतिकूल हालातों में ही ठगी विद्या और ठग का असली कौशल सामने आता है। गला साफ कर ,शिष्य को मोन रहने का संकेत कर बोले," देखो बच्चा, यह साधना से बना असली सोना है। इसे सुयोग्य को ही देते हैं वह भी मजबूरी में। जिससे हमारा वर्ष भर का खाने पीने का खर्चा निकल आए। तुम क्या करोगे लेकर?"
"अरे बाबा जी ,आप के लाख रुपए यह धरे और चाहिए तो बता देना " पुलिसिया ने लालच से चमकती आंखों से देखते हुए कहा ,"अब ईट दिखाओ मने। और यह सुयोग्य हाथों ही में जाएगी।"
बाबा शिष्य समझ गए कि यह वह है जिसके पास अच्छी तगड़ी कमाई है, हराम की।संतान सुख से वंचित है और प्रभु के सहारे गाड़ी चला रहा। थोड़ी देर की आना कानी के बाद, बाबा ने झोले में हाथ डाला। कुछ मंत्र पढ़े और चमचमाती,किसी अज्ञात धातु की ईंट निकाली। ईंट पर सूर्य की रश्मियां पड़ रही थी और वह चमचम कर रही थी। पुलिसिये की आँखें चौंधिया गई। उसने श्रद्धा से हाथ मे ईंट ली,आंखों से लगाई। "जय हो बाबा की।"
"रुको,पहले इसकी जांच कराओ।" बाबा कुपित हुए,फिर सही लगे तो बात करेंगे। कहकर बाबा ने ईंट पर एक कोने हाथ लगाया और चोगे से चालाकी से कुछ स्वर्ण चूर्ण निकालकर हाथ में दिखाया। "यह ले जाकर जांच कराके लाओ।"
"नहीं बाबा,कोई जरूरत नहीं।आप तो अंतर्यामी हो। मुझे पूर्ण विश्वास है आप पर।"
नहीं,नहीं,जाओ पहले मन साफ करो। जहां संदेह हो वहां हम नहीं रुकते।
वह उठा और प्रणाम कर बाहर गया। बाबा,शिष्य जानते थे क्या नतीजा आएगा। पर वह थोड़े भ्रमित थे। इसे कितना लूटे और छोड़ें या क्या करें? मोन मशवरा चल रहा था।
उधर अम्मा फिर आ गई थी इस बार हलवा,मिठाई और गर्मागर्म पूरियां और आलू की तरकारी के साथ। " भोजन का समय हो रहा है। संत के कदम पड़े हैं तो यह अवसर कैसे हाथ से जाने दूं? यह सभी बहु ने बनाया है।"
कुछ हो सके तो अभी कर दो के अनुरोध के साथ।
शिष्य इच्छुक था रुकने का जबकि बाबा काम खत्म कर निकलना चाहते थे। पुलिस वाले के घर में ही ठगी का यह पहला अनुभव था।कोई नटवरलाल या शातिर फिल्मी बाबा तो थे नहीं जो कहकर लूटते। यह वह थे जो गुमनामी में और चेहरा छुपाकर रखने में ही भलाई समझते थे। बड़ी दाढ़ी,बढ़े बाल सभी इसी बहुरूप का हिस्सा थे। इसके पीछे जो असली सूरत थी वह खुद बाबा भी नहीं पहचानते थे। दस वर्ष हो गए थे उन्हें इस धंधे में उतरे। काम सही चल रहा था। जमीन,घर सब बन गया था।दोनो बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे। घरवालों को कह रखा था कि दूसरे शहर में काम करता हूं। शिष्य अभी तीन साल से साथ था। जेब काटते पकड़ा गया था और भीड़ जान लेने पर उतारू थी।यह सामने दुकान से पान सिगरेट ले रहे थे।भीड़ इतने गुस्से में होती है कि बिना बात के कोई भी आकर इस पर हाथ साफ कर रहा था। कुछ देर देखते रहे फिर आगे बढ़े और चिमटा जोर से बजाते हुए जयघोष किया। भीड़ थमी ,देखा इसने भी बाबा की आंखों में देखा ,भाव था बचा लो मुझे आज, वरना मार डालेंगे यह। हाथ जोड़ पांव पकड़ लिए, गलती हो गई अब कभी नहीं करूंगा।
"गलती मान ली है उसने।अब उसे मारोगे तो पाप लगेगा।छोड़ दो उसे।"
कहते हुए उन्होंने चारों तरफ हाथ लहराए।भीड़ जितनी हिंसक होती है उतनी ही धर्मांध भी। वह आईएएस ,कलेक्टर का कहना नहीं मानेगी लेकिन बाबा ,साधु जिस राह चलने को कह दें,उस राह चल पड़ेगी lबिना एक भी सवाल किए। आस्था सदैव तर्क से भारी है। साथ ही कुछ रहस्यपूर्ण,क्योंकि हर कोई साधु नहीं बन सकता,हरे,पीले वस्त्र,चोगा नहीं पहन सकता । बस बाबा की बातों का और कुछ लहूलुहान पड़े व्यक्ति का असर हुआ और भीड़ छंट गई। तबसे यह बाबा की शरण में ऐसे आए कि आज तक पक्के चेले बने हैं और जन्म भर रहेंगे। बाबा को भी धजा जमाने के लिए एक वफादार चेला चाहिए था। पिछला वाला बिहारी था जो दो साल साथ रहा पर आखिर में सब सीख कर खुद बाबा बनने निकल पड़ा।कमबख्त में यह अक्ल नहीं थी कि गुरु से कुछ और सीखता,अनुमति लेता। बाबा जैसा गुरु वैसे भी कहां सब कुछ ऐसे ही बता देता? कुछ राज थे जो वह किसी चेले के सामने नहीं बताते। उनके गुरु ने यही सिखाया था ,वह भी अपनी मृत्यु से चंद दिन पहले।जब लग गया अब जाना तय है तो सिखा गए उन्हें,जो पिछले दस साल से एकनिष्ठ और ईमानदार थे उनके प्रति। साथ ही यह भी की यह बातें किसी और से साझा मत करना। इसमें कुछ जरूरी मंत्रों की पुस्तिकाएं,कुछ रुद्राक्ष और कुछ ताबीज आदि थे। बोले,सब तो नहीं पर कुछ तो अवश्य ही असर करेंगे और तुम्हारी धाक जम जाएगी। लेकिन किसी भी दिन अधिक नहीं रुकना और जो जगह छोड़ दो तो उधर अगले पांच साल तक दुबारा देखना भी मत।
वह चेला जल्दबाजी में धोखा देकर निकल पड़ा बाबा बनने की राह। कुछ महीने बाद ही पता चला गिरफ्तार हो गया और अभी तक जेल में है। बाबा फोन जैसी भौतिक सुविधाएं कभी नहीं रखते।क्या काम? जो है आज है।जो है कर्म है।गुरु जी ने सिखाया भी था कि यह आधुनिक यंत्रों से जितना दूर रहोगे उतने ही सुरक्षित रहोगे।लेकिन आजकल उसके बिना काम नहीं चलता। फिर भी हर शहर बदलते ही सिम तोड़ देते हैं।
गुरुजी अपनी कुल जमा पूंजी लाख रुपया,कुछ कम्बल,बिस्तर, बरतन सब यही छोड़ गए। जाते जाते कह गए कि अमुक गांव में पत्नी और बहनें रहतीं है,तेरा मन करे तो उन्हें कुछ पैसे दे आना।बता आना की राम ओतार चला गया। वह गए थे पूरी ईमानदारी के साथ सारी पूंजी लेकर,हालांकि कम क्यों थी यह रहस्य भी उनके गांव जाकर खुला।अच्छा खासा पक्का घर था,गाड़ी और गाय भी थी। पता लगा बाबा अनेक शिष्यों के द्वारा समय समय पर धन राशि भेजते रहते थे। बच्चे बड़े हो गए थे और एक नौकरी तो एक दुकान कर रहा था। उनके जाने का समाचार सुन परिवार पर कोई असर हुआ हुआ हो ऐसा उन्हें नहीं लगा। जो व्यक्ति परिवार छोड़ आया उसकी चिंता परिवार क्यों करे? भले ही बाद में वह धन से मदद करके अपने गुनाह माफ करवाता रहा हो। पर ऐसे ही तो गौतम बुद्ध भी महल,पत्नी,बच्चे सब कुछ छोड़कर चले गए थे पर क्या उन्होंने कभी वापस सुध ली अपनी पत्नी और बच्चे की? बुद्ध तो तथागत बन गए,नाम,भगवान हो गए पर उस राजकुमारी पत्नी का क्या? जो न सुहागन रही न विधवा? बड़े लोगों को बड़ी बातें अपन सिर कहां खपाएं? सोचते हुए धन राशि उनके हवाले कर शिष्य निकल पड़े गुरु के दिखाए मार्ग पर।
यह नया शिष्य कुछ ही दिनों में बाबा की सेवा करते हुए धीरे धीरे सीखता और समझ गया। उसे जेबकाटने से अधिक लाभदायक और सुरक्षित यह काम लगा। यहां तो व्यक्ति,परिवार और समुदाय खुद ही हाथ जोड़, प्रार्थना कर बुलाते है कि आओ और हमें अल्लाह के नाम पर,भगवान के नाम पर ठगों। ऊपर से ठगे जाने पर चीखते भी नहीं बस खामोश हो जाते हैं। कुछ दिनों बाद कोई नए बाबा,गुरु मिल जाते तो वही सिलसिला फिर प्रारंभ। देश में कोई कमी नहीं है लुटने वालों की बस जरा सलीके से,हुनरमंद तरीके से। नेताओं की तरह सीना ठोककर नहीं जो जनता को धोखा देते और पीछे से जी भरके उनकी सात पुश्तों को जनता गरियाती।बाबा को सब हुनर आते थे। उतना ही निकलवाते जितना देने पर किसी को अखरे नही.कुछ चमत्कार हो गए थे. किसी की भभुत से बीमारी ठीक हो गई तो कोई ताबीज के बल ओर रोग मुक्त ही नहीं हुआ काम पर लग गया.कुछ के संताने हो गई, नियोग पद्धति और जड़ी बूटी का प्रयोग गुरुदेव सिखा गए थे. भले आदमी थे, बोलते थे की मेरे गुरु ने कहा की यह विद्या तभी काम करेगी जब आगे तुम किसी और को सिखाओगे, तो तू भी सीखने के बाद आगे योग्य शिष्य को सिखाना.
तो ऐसे ही गाडी चल रही थी. धन सम्पत्ति मांगते नहीं थे जो भक्तों ने दे दिया सर आँखों पर. भक्त भी ऐसे की डॉक्टरो को लाखों दे देंगे भय से परन्तु जो बाबा, फकीर देसी विद्या से समस्या हल कर रहा उसे सौ रूपये भी ऐसे देंगे मानो अहसान कर रहे. अब आज सौ रूपये में एक चप्पल भी न आती. बाबा क्या इंसान नहीं होते? क्या उनके पेट नहीं होते? कपड़े न पहने वह? बीमार पड़ जाए तो और मुसीबत. कभी आपने देखा किसी सरकारी अथवा प्राइवेट क्लिनिक में किसी भी पीर फकीर, बाबा को इलाज कराते? यह वह हजारों बाबा, सन्यासी हैँ जो संकोच करते कुछ मांगने से. सच में, साधना भी करते और आपके दुखों को दूर करने का उपाय भी.
वह अलग होते जो आश्रम में आने, जाने,यह पूजा, वह उर्स, यह पर्व के नाम पर हजारों रूपये पहले ही धरवा लेते. और ठाट से गाड़ियों के काफिले और बड़े बड़े आश्रमों और इबादतगाहों में राज करते. किसी ने कहा है की दूसरों के दुख दूर करने से बड़ा पुण्य कोई नहीं. लेकिन मनुष्य असली और नकली के प्रपंच में नहीं पड़ता. वह तो सभी को श्रद्धा से देखता हर मजार,पीर से लेकर बाबाओं तक मत्था टेकता. क्या पता, कहाँ से कृपा हो जाए?
बाबा ने सुस्वादु भोजन का आनंद लेते हुए शिष्य की ओर देखा. शिष्य इत्मीनान से पकवान उदरस्थ करता हुआ कह रहा था,'बहुत अच्छा भोजन बनाती है आपकी पुत्रवधु. बाबा की कृपा हो जाए तो समझो इस आंगन में किलकारियां गूंजेगी. तर जाओगी अम्मा आप.. तर जाओगी.'
शिष्य के शब्द मानो अम्मा की आँखों के सामने दृश्य बनकर नाच रहे थे. उसने हसरत भरी निगाह से आँगन को देखा तो उसे नन्हे नन्हे पग चलते हुए दिखाई दिया. हाथ जोड़ अम्मा बाबा के सामने बैठी रहीं. बाबा ने भोजन कर हाथ धोए और निकलने को झोला उठाया की अम्मा साक्षात् चरणों में गिर पड़ी. "नहीं बाबा मुझ दुखीयारी के कष्ट दूर किये बिना नहीं जाने दूंगी. मेरा उद्धार करके ही जाओ. " बाबा धर्मसंकट में. कार्य हो चुका था. धन जितना चाहिए था मिल चुका था. अब निकलना ही बनता था. ऊपर से इकलौता पुत्र अम्मा का पुलिस में था. दो दिन दौरे पर उत्तरप्रदेश से बाहर गया था. पर आता तो और फिर कुछ दिनों बाद मालूम पड़ जाता. वह पीछे लगता और खोद निकालता बाबा और इस मुर्ख शिष्य को जो जरा से आराम के लिए कही भी पसर जाता है. "नहीं माते, अब हमें निकलना ही होगा. संझा हो रही है और बहुत दूर जाना है." तभी अंदर से अम्मा की बहु भी आ गई. साड़ी का पल्लू सर पर लेकर सीधे चरणों में झुकी. जब बोली तो ऐसा दर्द था आवाज में की बाबा हिल गए. हाथ जोड़,आँखों में आँखे डाल बोली, " आप ही मुझसे यह अभिशॉप हटा सकते हो की मैं माँ नहीं बन सकती. शादी के सात साल हो गए. अब मैं जान दे दूंगी यदि इस आँगन में किलकारी नहीं गुंजी. " बाबा, गौरवर्ण, प्रभावशाली व्यक्तितव,आँखों में खास गहराई और चेहरे पर संतोष और गुरुसेवा का तेज,धर्म संकट में. सोचा, आज के कार्यक्रम को एक दिन टालकार देखा, क़ल जाएं तो क्या पकड़ सकता है पुलिस वाला इसका पुत्र? फोन तो था ही नहीं.तो ट्रेक होगा नहीं परन्तु हुलिया पकड़ लेगा. ऊपर से यह महामूर्ख शिष्य जो हर बार सोने के एक अंडे से संतुष्ट नहीं होता और दूसरे अंडे के इंतज़ार में एक दो दिन जानकर रुक जाता है.इसे इतना समझाया की तू तो मार खाकर बच जाएगा पर बाबा का पुलिस जहाज बना देती है. कुछ थानो में तो कोई मंत्र, तंत्र काम नहीं आता. साले, डरते ही नहीं कितने ही श्राप दे दो. कहते हैँ हम ही काल हैँ. वह तो थोड़ी बहुत साधना और चतुराई गुरूजी सिखा गए तो उस विद्या का प्रयोग कर बच लेते हैँ. पिछली बार देर हो जाती तो आज तक जेल में ही होते.
शिष्य आँखों से ही रुकने का इशारा कर रहा था.
*****
संध्या वंदन करने से पूर्व बाबा ने स्नान किया. अंदर आँगन में चापकल लगा था,अम्मा खुद दो बाल्टी भरने लगी तो शिष्य ने टोक दिया, "अम्मा जी, आप मति करो. पाप लगेगो. जाने कृपा चाहिए बई को भेजो.इतने साल हो गए कब तक छुई मुई की नाइ बनी रहेगी बहुरिया?"
अम्मा ने सहमति में सर हिलाया और अंदर गई. कुछ देर बाद मध्यम कद, देहयष्टि की युवती घूंघट काढ़े बाहर निकली. कुर्सी पर बैठे बाबा को चरणस्पर्श किया. फिर चापाकल से जो उसने दनादन पानी निकाला है दो क्या दस बाल्टी भर जाएं. अम्मा के कहने पर आँगन में रखी टंकी में शिष्य बाल्टी डालता रहा और बहुरिया भरती रही. टंकी ऊपर से दिखने में छोटी पर इतनी बाल्टी पानी पी गई फिर भी भरने का नाम न ले. शिष्य थक गया बोला, "बस काफी है.क्या पूरे महीने का पानी भरवा लोगी अम्मा? रहने दो बहनजी बहुत हो गया. " उधर बहु अभी भी तैयार, बिना थके. न जाने कबका और किस किस पर आक्रोश था जो निकल रहा था. उसकी घूंघट से झाँकती आँखों में हँसी छलक आई.मीठी, सुरीली आवाज आई, "अच्छा, बाबा जी की दो बाल्टी भर देती हूं." उसने दो बाल्टी हाल भरी और उसमें अपनी कलाई डुबोकर पानी का ठंडापन परखा. मौसम ठंडा था न गरम. बाबा आँगन में विराजे. शिष्य ने सारी बातें पहले ही समझा दी थीं की बाबा बड़ी मुश्किल से आज रुकेंगे और क़ल चले जाएंगे. अतएव यह सारी पूजन, हवन की सामग्री और फल, मिष्ठान मंगवा लेना. थानेदार का जलवा था की लिखवाने के घंटे भर में सामान आ गया. अब शिष्य और अम्मा अंदर के कमरे में पूजा की तैयारी कर रहे थे. बाबा आँगन में स्नान, बहु रसोई में.गौरवर्ण,अच्छी कदकाठी,हष्ट पुष्ट बाबा ज़ब स्नान कर रहे थे तो उन्हें लगा कोई उन्हें देख रहा है. रुके,चारों तरफ देखा, कोई नहीं. सब व्यस्त. वह लम्बे बालों को खोलकर आगे किये और अच्छे, खुशबूदार साबुन से खूब धोए. फिर लगा कोई देख रहा है पर तब तक नहाने में वाह डूब चुके थे.कुछ देर बाद उठे और बदन पोंछते हुए निगाह गई तो रसोई की खिड़की आधी खुली थी और उसकी ओट में से दो आँखे उन्ही की ओर देख रही थीं.
वह पीठ करके मंत्रोच्चारण करते हुए तैयार होने अपने कमरे में चले गए.
शिष्य ने संतान उत्तप्ति यज्ञ की सारी तैयारी अंदर वाले कमरे में कर ली थीं. सुस्वादु भोजन चल रहा था. अम्मा बैठी हुई थी. बहु ने स्नान आदि कर लाल रंग की साड़ी पहन सारी रसोई स्वयं बनाई थी. सिर्फ तीन सब्जियां और कचोरी पूरी बाबा के आदेश पर अम्मा ने बनाए थे.दही बड़े और चार मिठाइयाँ, राजभोग, मालपुए, अखरोट का हलवा और देसी घी की सुगंध फैलाती इमरती मशहूर गंगाराम हलवाई का आदमी खुद देकर गया था. शिष्य दबाकर खा रहा था. महीनों बाद को इतनी अच्छी पार्टी कब्जे में आई थी, जो मना करने के बाद भी वही काम करवाने कों उत्सुक थी. शिष्य ने हर संभव शर्त मनवा ली थी. अच्छे वस्त्र, अच्छी दक्षिणा और क़ल शाम की गाडी की दो टिकिट भी बुक हो गई थी. शिष्य ने बताया था अम्मा को की बाबा चमत्कारी हैँ. और कई वंश आगे बढ़ा चुके हैँ.पीछे ख़डी बहु सारी बात सुन रही थी. सुन्दर, स्नातक तक पढ़ी थी पर इस बड़े घर के कारण सारे अरमान खत्म थे. फिर ज़ब दस वर्षों तक गोद नहीं भरी तो सास तो सास उसके घरवाले भी उसे कोसते थे. पति हर तरह से सहयोग करता परन्तु वह भी संतान न होने से आलोचना सुन रहा था. भले ही पुलिस की वर्दी के सामने कोई न बोले पर पीछे सब उसका मज़ाक उड़ाते थे. पता नहीं कहाँ कृपा अटकी थी. दाम्पत्य जीवन ठीक ठाक था जो शादी के दस वर्षों बाद होता है. पत्नी के पास जाने का मन नहीं करता था.
बड़े मुश्किल हालातों से पूरा घर घिरा था.
"बाबाजी, यह खीर तो लेनी ही पड़ेगी. बहु ने खास अपने हाथ से बनाई है."अम्मा ने बहु कों आवाज देकर खीर लाने कों कहा. बाबा बेहद सोच समझकर और संतुलित ढंग से भोजन ग्रहण कर रहे थे. बहु आई और उसने चांदी की थाली में रखी कटोरी में खीर डाली. पूरी कटोरी भर गई तो बाबा ने ऊपर निगाह उठाई और सीधे बड़ी बड़ी बोलती हुई आँखों से टकराई. आँखों के भावों को पढ़ा उनमें एक उत्सुकता और विश्वास था की उसकी दस वर्षो की यातना अब खत्म हो जाएगी.
"यह बर्तन साफ करके बैग में रखवा देना, और यह दोनों चांदी के लोटे भी." बाबा शिष्य की इस चिन्दीगिरी से बड़े कुपित रहते थे. ज़ब भरपूर दक्षिणा मिल रही तो फिर यह सब क्योँ? लेकिन शिष्य आगे की सोचता था और सारा हिसाब ईमानदारी से देता था, तो उसे कुछ कहने की जगह बाबा हाथ धोने उठ खडे हुए.
***रात्रि के बारह बजे थे. सर्वत्र इत्र की खुशबु, हवन की सुगंधि और शीतलता व्याप्त थी. हवन की पूर्ण आहुति के बाद बहु कों लेकर बाबा पीछे लगे बगीचे में एक वृक्ष के नीचे दीप जलाने और वहीं दोनों नारियलों कों बने खड्डे में दबवा रहे थे.पीछे शिष्य को काम पता था. अम्मा तो भाव विभोर थी इतना मंत्र -तंत्र बाबा की गंभीर आवाज में सुनकर. बार बार बाबाजी की जय कर रही थीं.
बहु ने दिए जोड़, प्रणाम किया और वृक्ष की परिक्रमा प्रारम्भ की. दूर गली की लाइट का हल्का प्रकाश आ रहा था.
तभी उसका पाँव किसी पत्थर से लगा और वह आड़ी होकर गिरने लगी, सहारे के लिए हाथ हवा में लहराए तो बाबा ने थाम लिए. अब बाबा और वह नजदीक थे. उसकी आँखें कुछ तलाश रही थीं पर बाबा असमंजस में थे. पूरे बिगड़ने और ठीक राह चलने के मध्य की अवस्था थी. इधर हो या उधर रहे बंदा यदि यही तय नहीं कर सका तो उसे कुछ भी करे पर आस्था, धर्म, दरगाह, पीर फकीर नहीं बनना चाहिए. यदि है तो फिर जो सामने है उसी में आगे बढ़ो.कोई भ्रम की स्थिति नहीं.लेकिन कोई बुरा न कर सके तो? कोई मजबूरी से इसमें हो और वास्तव में साधना, भक्ति और तप से कष्ट दूर करना चाहे तो उसे जमाना पत्थर मारता है.भगा देता है. यह वह दौर है ज़ब भगवान भी आ जाए तो लोग उसे भी नहीं मानेंगे. परसाई ने इसे विकलांग श्रद्धा का दौर कहा तो ज्ञान चतुर्वेदी इसे देवताओं की ठग लाइफ कहकर पूरी कथा कह चुके.
वापिस हवन हॉल में आए दोनों, बहु लाज से दोहरी सर झुकाए. अंदर अलग ही माहौल था. अम्मा बेसुध सी गहरी नींद में थी. शिष्य बाहर जा चुका था.
बाबा कक्ष में गए, बैठे. कुछ देर में बहु ट्रे में दूध के ग्लास लिए हाजिर हुई. बाबा सामने बैठी बहु को गहरी दृष्टि से देखते रहे और दूध पीते रहे. "तुम्हारी क्या मर्जी है? जीवन में ऐसे क्षण आते हैँ ज़ब आगे बढ़ने के लिये कठोर फैसले लेने पड़ते हैँ.अनुष्ठान पूर्ण हुआ है. पति ज़ब आ जाए तो यह......"कहकर बाबा रुके, एक रुद्राक्ष निकाला, " केसर वाले दूध में इसे डालकर उबालना और छान कर पिलाना. उसी रात्रि तुम गर्भ धारण कर लोगी." बहु सर झुकाए सुनती हुई अचानक सर उठाती है और सीधे उनकी आँखों में देखती है, ", क्या आपको लगता है जिंदगी मेरे साथ इतनी दयालु है? कतई नहीं. यह सभी लोग चाहते हैँ मेरे संतान हो. अन्यथा यह तलाक देकर दूसरी शादी करेंगे." वह रुकी, कुछ सोचा और फिर बोली, "अम्मा जी चाहती हैँ मुझे पर पुलिस वाले बेटे के सामने बेबस हैँ. आपके व्यवहार और ज्ञान से प्रभावित हुई तो पहली बार किसी साधु कों घर में अनुष्ठान के लिए रोका. मैं पूछती हूं आपसे की इससे भी,"...... वह रुकी और वह रुद्राक्ष आँचल से निकाला, उसे देखती मुस्कराती बोली, " यह भी यदि संतान नहीं दे सका तो मेरे पास क्या विकल्प होगा?इसी घर के कोने मेँ पड़े रहने या फिर आत्महत्या करने के अलावा? " कहते हुए उसने बाबा के दोनों हाथ पकड़ लिए, "बताइये, क्या करूँ मै जिससे यह ग्रहण हट जाए मुझसे, बताइये न?"
बाबा ने उसकी आँखों में देखा पर कुछ नहीं बोले. सहसा उसकी आँखे भर आईं और उसने लाल साड़ी का पल्ला नीचे गिरा दिया. बाबा ने चेहरा दूसरी ओर घुमाया.उसने उनका हाथ पकड़ा ओर घूमी. पीठ पर हाथ ले जाकर उसने डोरी खोली. बाबा ने आँखे नीची कर ली. उसने कहा, " ऊपर देखो.. देखो ऊपर.. " वह नहीं देखे तो उसने कहाँ, "मैं कह रही हूं ऊपर देखो.... उन्होंने झिझकते हुए आंखे ऊपर पीठ की तरफ की.
उफ़, अरे...., वह सिहर गए. यह सब? पूरी पीठ पर कांटे नुमा निशान कोमल खाल में बने हुए थे. मानो किसी ने नुकीली चीज से बार बार और बहुत जोर से मारा हो. "यह पिछले ही दिनों पति ने किया जब वह अपनी कमी पर काबू नहीं कर पाए. तो उन्होंने सारा गुस्सा मुझ पर उतारा "... वह घूमी और दूर अँधेरे में देखती धीरे से बोली, "मुझे नहीं लगता मैं और ज्यादा जिन्दा रह पाऊँगी......कुछ कर सकें तो आपका यह उपकार होगा मुझ पर." कहते हुए वह प्रणाम करती झुकी. बाबा ने दो पल सोचा, हालात समझे,"तो छोड़ क्योँ नहीं देतीं? अपने घर चली जाओ. ज़ब समझ आए उसे तब आ जाना."
इस बात कों सुनने मात्र से वह स्त्री कांप उठी. फिर आंखो में आँखे डाल बोली, " आप नहीं जानते क्या पुलिस वाले कैसे होते हैँ? कभी एक भी केस पढ़ा अख़बार में जो इनकी बीवी ने कभी किया हो इन पर? और अपनी फ़िक्र न भी करूँ पर मेरे मम्मी पापा, छोटे भाई,बहनों का जीना हराम कर देंगे. इसीलिए ऐसा कदम नहीं उठा सकती. तो बस अक्सर यही होता है मेरे साथ." कहकर उसने पीठ उनकी तरफ कर दी.बाबा व्यथा से भर उठे. कोई मनुष्य कैसा जानवर भी हो सकता है और जानवर फिर भी मानवीय होता है. कुछ पल उन्होंने सोचा, फिर उसकी पीठ के ज़ख्म पर धीरे से अपनी हथेली रखी. शीतलता और भरोसे की एक लहर से उतरती चली गई उसके अंदर.
"जैसी श्री प्रभु की इच्छा. समझो तुम अपने कष्ट से निकल आई हो." कहकर वह अविचल, सधे कदमो से आगे बढे.
अंदर हॉल में अम्मा बेसुध पड़ी थी. शिष्य अपनी कोठरी में जाकर कबका सो गया था. वह भी अंदर उनके लिए तैयार रेशमी बिस्तर, सुगंध और हल्के नीले प्रकाश वाले विशेष कक्ष में चले गए.
शीतल पवन बह रही थी. हरसिंगार की खुशबु सब तरफ बिखरी हुई थी.भोर हो चली है, इसकी सूचना पंछी ख़ुशी से चहचहाकर और कोयल अपनी कूक से दे रहे हैँ. रात कब बीती पता ही नहीं चला. दुख, कष्ट, अवसाद के बादल छंट गए थे. उम्मीद की किरणे निकलने ही वाली हैँ.
बहु ने सुबह ही स्नान कर पूजा ध्यान कर चाय बनाई और सासु माँ कों उठाया. अम्मा वेदी के पास से उठी. मन शांत था, सामने ठाकुरजी थे.प्रणाम किया उनको.बहु कों जी भर देखा. बहु शांत, मधुर और मीठी आवाज में बोली, "बाबा जी तो प्रातःस्नान कर टहलने निकल गए हैँ. आते ही होंगे". अम्मा ने चाय पीते हुए चारों तरफ देखा.शिष्य चापाकल के पास बैठ मंत्र के स्नान कर रहा था.
कुछ देर बाद बाबा आए,अम्मा ने चरण छुए और हाथ जोड़ खड़ी हो गईं.
बाबा मुस्कराते हुए अपने कक्ष में चले गए. कुछ देर बाद पूर्ण तैयारी कर,सफ़ेद धोती और गहरे भूरे चोगे में बाहर आए और आसन पर विराज बोले, " अम्मा,कुछ विशेष बाधा थी, उपाय कर दिया है.परन्तु विशेष सावधानी रखनी होगी आपके पुत्र को. उसे खतरा है.किसी ने वंश बेल बाँध दी थी."
अम्मा सकते में आ गई कुछ देर.फिर सिर हिला बोली, " मोए तो पहले ही शक था. क्योंकि सब कुछ है परन्तु कोई इन्हे काम में लेने वाला, आँगन में दौड़ने वाला, मुझे दादी कहने वाला ही नहीं. महाराज, क्या जतन करूँ? "
बाबा ने चारों ओर देखा, बहु रसोईघर में नाश्ता लगा रही थी. " बेहद सावधान रहे लड़का आपका. और कोई गलत कार्य न करे. यह किसी ऐसे व्यक्ति की हाय लगी है जो अब इस दुनिया में नहीं है. उपाय फिलहाल मैंने तो कर दिया है पर उससे कहना कम गलत करे. हो सके तो गलत करना छोड़ ही दे.पर पुलिस की नौकरी में कहाँ कोई बच पाता है? तो संकट फिर आएगा पर तब हम नहीं होंगे. " कहकर बाबा ने आँखें बंद कर ली.
अम्मा हाथ जोड़े कृपा बनी रही, कृपा बनी रहे की रट लगाए रही. बहु की बड़ी बड़ी बोलती आँखे बाबा के चेहरे पर कुछ तलाश रही थी. दूध ग्लास में डालते हाथ हल्के से काँप गए.
"बाबा जी, यहाँ से सीधे बनारस भोले बाबा की नगरी जाएंगे. वहां भक्तों से मिलकर फिर आगे नेपाल हिमालय की तराई में निकल जाएंगे. कुछ वर्ष वहीं रहेंगे." शिष्य ने पूरा कार्यक्रम बनाकर बता भी दिया. बाबा आँखे बंद किये जुँझलाए, यह अनर्गल कुछ अधिक ही बोल देता है.
"बाबा जी, जलपान ग्रहण करें." एक मीठी सुरीली आवाज़ कानो में टकराई.
उन्होंने आँखें खोली, ठीक सामने बहु का आशा, विश्वास और अपनेपन से दमकता चेहरा था.
नाश्ते में बहुत कुछ था, मिठाइयां,केसर युक्त दूध,दाल की कचोरियां और विशेष रूप से मेवों का हलवा, जो बहू ने खुद अपने हाथों से बनाया था.
"वंश बेल आगे बढ़ेगी. लेकिन बेल कों सहारा देने वाली डाली का विशेष ख्याल रखना. बेटे के लिए जो कहा, वह उसका उपाय करे.ज़ब दादी बन जाओगी तो सारे गरीबों को भोजन और कपड़ा बाँट दोगी अम्मा?" बाबा मुस्कराते हुए पूछ रहे थे.
अम्मा ने हाथ जोड़, खिले मन से हामी भरी.
काशी विश्वनाथ ट्रेन ठीक ग्यारह बजे निकलती है. अम्मा ने पुत्र से कहकर परसों ही एसी में आरक्षण करवा दिया था.शिष्य सामान बाँध कर बाहर ले आया था. अम्मा पडोस के ड्राइवर कों बुला लाई थी. बाबा और शिष्य बैठ गए. अम्मा और बहु ने प्रणाम किया.कार आगे बढ़ी, बाबा ने आशीर्वाद स्वरूप दायां हाथ ऊपर किया. तभी एक आवाज..... धीमे से आई......."फिर कब आओगे?"
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(डॉ. संदीप अवस्थी, जाने माने कथाकार,आलोचक,चार कथा संग्रह, देश विदेश से सम्मानित.
सम्पर्क 894, विजय सरिता,एनक्लेव, बी ब्लॉक पंचशील, अजमेर.305001
मो 7737407061)