apnon ke liye in Hindi Moral Stories by prabha pareek books and stories PDF | अपनों के लिए

Featured Books
  • एक मुसाफ़िर एक हसीना: A Dangerous Love Story - 38

    38 बुरा   अब सर्वेश बोलने लगा तो गृहमंत्री  बोले,  “25  दिसं...

  • Kurbaan Hua - Chapter 18

    अंकित के कमरे में जाने के बाद विशाल को मौका मिल गया था। उसने...

  • ONE SIDED LOVE - 1

    नाम है उसका अन्विता शर्मा — एकदम सीधी-सादी लड़की। छोटे शहर क...

  • मेरा रक्षक - भाग 6

     6. कमज़ोरी  मीरा ने रोज़ी को फोन लगाया।"मीरा!!!!!!! तू कहां...

  • राहुल - 4

    राहुल कुछ पेपर्स देने नीती के घर आया था।वो आकाश से कुछ डिस्क...

Categories
Share

अपनों के लिए


अपनों के लिए
स्वदेश की धरती पर पग धरने को आतुर संदीप आज वर्षों बाद अमेरिका से घर लौटा था| शहर में बहुत कुछ बदला हुया नजर आ रहा था| यहाँ तक की उसकी पुरानी गली भी बूढ़ी आँखों में काजल की रेखा सी नजर आ रही थी| घर के दरवाजे पर भाभी को खड़े न देखा होता तो संदीप को तो अपना ही आशियाना पहचान में नहीं आता| अंदर तो सब कुछ नया था ही | कुछ आराम करने के बाद घर के बरामदे में आया तो उसे अपना ही घर पराया लग रहा था| जहन में पुराना घर घूमने लगा| पुराना घर कितना प्यारा छोटा सा था| जिससे उसकी यादें जुड़ी थीं| अब यह घर देखने में सुंदर और विशाल हो गया है| पर इसमें वो अपनापन कहाँ? जैसा उसके बचपन के घर में था| दोस्तों की पुकार उसके कानों में गूंजने लगी थी| आँखें पेड़ों पर पतंगों को तलाश रहीं थी वो बचपन की खशबू कितना भी तलाश कर ले अब कहाँ भाई के साथ खेलना माँ की पुकार कभी पिताजी के स्कू टर की आवाज, घर के सामने लहलहाता नीम का हरा सघन पेड़ ...... मन कैसा कैसा सा हो आया था| उसे कभी किसी मित्र की स्वदेश यात्रा से लौट कर कहा गया वाक्य याद आ गया अतीत जो चला गया उसके लिये अपना समय खराब क्या करना, भविष्य के सपने भी क्या देखना केवल वर्तमान आपके पास है उसी को जी लो|
भैया भाभी के कहने पर उसने घर को नया करवाने के लिए आर्थिक मदद भेजी थी| उसे क्या पता था की घर के साथ उसके बचपन की यादें ही बिल्कुल मिट जाएगीं
इस नए घर में उसके नाम पर जो कमरा था वो बहुत छोटा था और एक कोने में बना था| बड़े भाई व भाभी ने कहा था| तुम तो कभी कभी ही आओगे हमारे साथ ही हो न ...वैसे भी जब मन मिलते हों तो अपना पराया क्या?
भाई भाभी अभी सो कर नहीं उठे थे| पर उसका नींद का चक्र अभी बदल हुआ था इसलिए वह तो कितनी देर से सुबह होने का इंतजार कर रहा था| वह बाहर आ गया उसने देखा घर के सामने नीम का पेड़ कैसा हो गया है| उसके बचपन की यादों के नाम पर वह यह पेड़ अकेला बचा था|

यादों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था| संदीप बच्चा बनकर उसे देखता रहा जैसे उससे बातें कर रहा हो|
‘नीम दादा क्या बूढ़े हो गए’| संदीप के सवाल पर नीम दादा ने जैसे मायूसी से जवाब दिया हो “नहीं बेटा समय के थपेड़ों ने मुझे बूढा बना दिया है| ये घर क्या बना सारा रोड़ा सीमेंट मेरे इर्दगिर्द ही था| ये तो कल तुम आने वाले थे इसलिए साफ करवाया गया है | मैने तो कितने महिनों के बाद आज ही चैन की सांस ली है| बेटा तुम्हें तो पता ही है तुम्हारे बड़े भाई ने कितनी बार मुझे कटवाने के लिए आदमी बुलवाए पर उन्होंने काटने के पैसे बहुत मांगे थे| इसलिए भाई ने कहा था संदीप आएगा तभी उससे पैसे ले कर कटवाऊँगा| अब बेटा तुम आ गए हो तो शायद मेरी भी कटाई की घड़ी आ गई है”|
नीम के बारे में सोच कर ही उसका मन व्यथित हो आया| वो माँ पिताजी की यादों से जुड़ा था| संदीप रूआसे मन से अंदर आ गया| माँ पिताजी की बड़ी बड़ी तस्वीरों पर उसका ध्यान गया| याद आया इलाज के लिए कितने पैसे भिजवाए तो भी पिताजी बच न सके| संदीप को उनसे अंतिम समय तक नहीं मिल पाने का अफ़्सोस जीवन भर सालता रहेगा| जानता था संदीप कि बडे बुर्जगों की अंगुलियों में वो ताकत तो नहीं थी मगर जब मेरा संतान का सिर झुकता है तो सिर पर रखे कांपते हाथों से जमाने भर की दौलत दे दिया करते थे|
पिताजी की बीमारी का समाचार मिला| भाभी कहती रही अभी कोई इमरजेंसी नहीं है| बस डॉक्टर का इलाज चल रहा है| भाभी से तो पैसे की जरूरत की बात ही अधिक होती थी| अम्मा के समय में समय एक एक्सीडेंट में अपना पाँव तुड़ा बैठा था | भाई किसी की सहायता ले कर आने के पक्ष में नहीं थे| भाई की बात माननी भी तो जरूरी थी| कहते थे तेरे आने में व्यर्थ पैसा खर्च होगा हम हैं ना यहाँ ! इससे बेहतर है ये पैसा पिताजी के इलाज में लगाया जाए| पिताजी का समाचार उसे एक तो दिया ही देर से फिर भैया ने आने से बिल्कुल मना कर दिया| आर्थिक स्थिति भी नहीं थी कि वो आ पाता इसलिए एक वर्ष आने के लिए इंतजार तो करना ही था|
इस बार संदीप जब से आया है भैया व्यस्त नजर आ रहे हैं| साथ बैठने का अवसर ही ही नहीं मिला| भाभी से जब भी घर के बाहर किसी से मिलने जाने की बात करता भाभी कोई ना कोई बहाना बना देती | चाय बनाकर इधर उधर की बातों में लगा देती | बीस दिनों के बाद संदीप ने आज बाहर जाने का मन बना ही लिया| छोटे भतीजे को साथ चलने के लिए कहा, जाते समय भाभी ने भतीजे को अकेले में बुलाकर कुछ कहा और भतीजा संदीप चाचा को मोटरसाईकिल पर ले गया |
संदीप ने पिता जी के घनिष्ट मित्र रघु काका से मिलने की बात की तो भतीजा बोला”उनसे मिलकर क्या करना है वो बूढ़े हो गए है” श्याम बिहारी काका से मिलने की बात आई तो उनके घर के सामने होते हुए भी भतीजे ने कहा “हम फिर आएंगे चाचा” अंत में संदीप अपने खास दोस्त रवि से मिलकर वापस आ गया| रवि लंबी बीमारी से उठा था| इसलिए उसे आराम की जरूरत होगी यह सोच कर संदीप जल्दी घर वापस आ गया| अब तो भतीजा सीधा घर चलने की बात कर रहा था|
घर में घुसे तो जैसे भाभी इंतजार ही कर रही थीं | संदीप बाथरूम में हाथ धोने गया तो कान में आवाज आई “रघु काका और बिहारी जी से तो नहीं मिलवाया ना”तब संदीप ने सुना भतीजा अपनी माँ को बोल रहा था “नहीं मेने सफाई से टाल दिया|
भाभी की आवाज थी “बस इनके जाने में दो दिन बचे है वो भी निकल जाएँ इनको कुछ पता नहीं चलेगा”
आज संदीप को पहली बार समझ आया था कि दाल में कुछ काला है| भैया को फुरसत न मिलना, भाभी का दूसरी दूसरी बातें करते रहना| उसे अपने कमरे में अकेले न रहने देना| ये एसी बातें थीं किनका कारण उसे समझ नहीं आया या उसके दिमाग में विचार भी नहीं आया|
आज उसने मन बना लिया था कि वह रघु काका ओर बिहारी जी से मिलने अपने आप ही चला जाएगा| अपने कपड़े तलाशते समय उसने अपने कमरे की बड़ी अलमारी खोली वो कपड़ों व अन्य सामान से भरी हुई थी| संदीप ने अलमारी बंद कर दी| उसे अचरज भी हुआ की अलमारी के एक खन में कुछ खाने पीने का समान, साबुन, जूते, चप्पल आदि भी ठूंस कर रखे हुए थे|
संदीप कपड़े बदल कर घर से निकल पड़ा| घर का दरवाजा उसने इस बात का ध्यान रखते हुए खोला था कि कोई आवाज न हो| घर से निकलते ही सामने वाले माथुर अंकल का पोता मिल गया| जिसे संदीप ने सालों के बाद देखा था पर वो संदीप को पहचान गया| नमस्ते कह कर रुक गया था|
उसी ने पूछा “आपको कहीं छोड़ दूँ क्या?”
संदीप ने कहा “ मुझे रघु काका के घर जाना है पर मैं चला जाऊंगा” वो बोला चाचा मैं उधर से ही निकलूँगा आप बैठिए पीछे मैं आपको छोड़ देता हूँ”
संदीप पाँच सात मिनट में रघु काका के घर पहुँच गया| सुबह का समय था रघु काका मंदिर जाने के लिए बाहर निकल ही रहे थे| संदीप को देख कर बाग बाग हो गए पूछा “कब आए बेटा?”
संदीप ने बताया दस दिन हुए आया हूँ| तब उन्होंने अचरज से कहा “तुम्हारा बड़ा भाई रोज ही तो मंदिर में मिलता है उसने बताया नहीं की तुम आए हो.... परसों तो तुम्हारे समाचार भी पूछे थे तब भी नहीं बताया कि तुम आए हो|
रघु काका बैठ कर पिताजी की बातें बताने लगे| बातों बातों में उन्होंने अपने मित्र को याद किया |
रघु काका ने कहा बेटा मेरा दिमाग बुढा गया पर इतना भी नहीं... कि किसी की फितरत को न् समझ पाऊँ |
पिछले दो वर्षों से तो रमेश मकान का काम करवा रहा है| उसके दो साल पहले तक उसके नए मकान का काम चल रहा था| तुम्हारे माताजी जिस वर्ष गुजरी उसी के चार महिने बाद तो रमेश ने प्लाट खरीद था| पिताजी तो बेचारे तो सर्दी गर्मी घर के सामने वाले नीम के नीचे ही अपना समय बिताते रहे|
“तुम ने भी बेटा उनकी कोई खैर खबर नहीं ली”
संदीप अचरज से उनकी बाते सुनता रहा पर संदीप के हाव भाव में रघु काका को अचरज हुआ अब बुजुर्ग रघु काका सब समझ गए| वे संदीप को अंदर ले गए, पिता के मित्र बिहारी जी को भी वहीं आने का फ़ोन किया और संदीप को पूरी बात बताई कि कैसे तुम्हारे माता पिता तो सदा स्वस्थ ही रहे| बेटे बहु का सारा काम करते रहे| मलेरिया हुआ और तुम्हारे पिताजी इलाज की कमी से कुछ दिनों में ही चल बसे और माँ तो तुम्हारी हार्ट अटैक से चली ही गई थी| संदीप को समझ आ गया कि पिता की लंबी बीमारी और इलाज की बात मिथ्या थी |
संदीप का मन रोने रोने को हो रहा था| अब उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| उसी समय एक युवक ने प्रवेश किया द्य रघु काका ने उसका परिचय कराया और संदीप को बताया कि यह तुम्हारे घर के ऊपरवाले कमरे में किराये पर रहता है| आजकल किसी कारण से मेरे घर पर रह है परसों चल जाएगा|
संदीप की आँखों के सामने खुली अलमारी का द्रश्य घूम गया| इतना सब समझ में आने के बाद भी संदीप चुप ही रहा क्योंकि कभी कभी सत्य जानते हुये भी शान्त रहना पडता है| उसे हम मर्यादा की कमी कहें अथवा संबध निभाने की जिम्मदारी कहें|

समझदार संदीप बिना कुछ बोले घर आ गया| घर आकार भाभी ने नाश्ता दिया जिसे संदीप ने बिना कुछ कहे बेमन से खतम किया और अपना सामान समेटने लगा| भाभी ने देखा तो पूछा “कल जाने वाले थे आज ही क्यों सामान समेट रहे हो” संदीप ने भारी मन से बताया “उसे कोई जरूरी फ़ोन आ गया है इसलिए आज ही दिल्ली के लिए निकलना होगा| इंतजाम भी करना है| भीभी ने भैया का इंतजार करने के लिए कहा पर संदीप ने कहा वो व्यस्त हैं,उन्हें काम करने दें | संदीप बहुत भारी मन से कभी वापस न आने के लिए घर के बाहर निकला और दो बूँद आँसू नीम दादा को चढा कर रिक्शे में बैठ गया|
अपने हमें कभी दर्द नहीं देते दर्द तो हमें वो देते है जिन्हे हम अपना समझने की भूल कर बैठते हैं मन में माता पिता के साथ अनजाने में किए अपराध बोध के साथ संदीप ने भाई भाभी को अपने हाल पर छोड़ कर एक नए सुबह की आशा से आगे कदम बढ़ाया वो सोच रहा था कि विदेश में रहकर उसका अपनों के लिए किया त्याग ,अच्छी सोच सब बेकार है यदि उसके माता पिता अपने पुत्र के होते हुए इलाज के अभाव में चले जाएँ| क्या उसका अपने भैया पर अंधा विश्वास करना गलत था ? विदेश जाना अपराध था या ये कि उसने पैसा भेजना महत्वपूर्ण समझा माता पिता से मिलने आना नहीं क्योंकि भैया ने कहा वो पिताजी की ठीक से देखभाल कर रहे हैं तब संदीप ने दूसरी तरह से अपना कर्तव्य निभाया जिन्दगी मे ंहम कितने सही और कितने गलत है ये सिर्फ दो ही जानते है ईश्वर और अपनी अर्न्तआत्मा

अब तक तो संदीप विदेश में भी अपने लिए एक रहने की स्थाई व्यवस्था कर चुका होता और माता पिता को अपने साथ रखने का संतोष भी उसे मिलता |
प्रभा पारीक , भरूच