बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में हरिया नाम का एक किसान रहता था। हरिया गरीब तो था, लेकिन मेहनती बहुत था। उसके पास खेती के लिए ज़मीन ज़्यादा नहीं थी, लेकिन एक पुराना-सा गधा जरूर था जो उसका सच्चा साथी था।
गधे का नाम था – गोपाल।
अब भले ही गधा जानवर हो, लेकिन गोपाल कुछ अलग ही किस्म का था। वो बाकियों से थोड़ा ज़्यादा चालाक, थोड़ा बोलने में माहिर (अपने अंदाज़ में), और कभी-कभी तो अपने मालिक से भी दो कदम आगे निकल जाता।
हरिया रोज़ सुबह गोपाल के ऊपर सब्ज़ियों की टोकरी लादता और शहर की मंडी में बेचने जाता। गोपाल को बोझा उठाना पसंद नहीं था, लेकिन क्या करता... नौकरी करनी थी, वरना भूखे मरने का डर था!
एक दिन की शुरुआत
एक दिन गोपाल बहुत परेशान था। उसने सोचा –
"हर दिन यही काम। सुबह उठो, पीठ पर बोझा लादो, 10 किलोमीटर पैदल चलो, फिर वापस आओ। मैं क्या कोई मशीन हूँ?"
उसने ठान लिया – "आज कुछ नया किया जाए!"
सुबह-सुबह जब हरिया ने गोपाल को टोकरी बांधनी शुरू की, तो गोपाल ने एक लाइट एक्सरसाइज की, दो-चार अंगड़ाइयाँ लीं और फिर अचानक "धड़ाम!" से ज़मीन पर गिर गया।
हरिया चौंक गया – "अरे गोपाल! क्या हुआ रे?"
गोपाल आँखें बंद कर ऐसे लेटा था जैसे कि वो अंतिम साँसें ले रहा हो।
हरिया घबरा गया। उसने गधे की नाक के पास हाथ रखा, पैर खींचा, और पेट सहलाया, लेकिन गोपाल तो "बिलकुल नाटकबाज़" निकला। उसकी एक्टिंग देखकर तो शाहरुख़ खान भी शरमा जाए!
गाँव वालों की भीड़
हरिया की आवाज़ सुनकर गाँव वाले इकट्ठा हो गए। कोई बोला –
"लगता है गधा स्वर्ग सिधार गया।"
दूसरे ने कहा –
"अरे भई, इसका अंतिम संस्कार करो। सड़क पर पड़ा है, बीमारियों का खतरा है!"
हरिया उदास हो गया, लेकिन साथ ही परेशान भी –
"अगर गोपाल मर गया तो अब मंडी कैसे जाऊँगा?"
उसी वक्त गाँव के बुज़ुर्ग पंडित जी आ पहुँचे और बोले –
"इसे पास के गड्ढे में दफना दो, अच्छा रहेगा।"
हरिया ने फावड़ा उठाया और गड्ढा खोदना शुरू कर दिया।
गोपाल की आंखें खुली की खुली रह गईं!
गोपाल सब सुन रहा था। उसे यकीन नहीं हुआ कि इतना बड़ा नाटक करने के बावजूद, हर कोई उसे सच में मरा हुआ समझ रहा है। जब उसने देखा कि फावड़ा ज़मीन में घुस रहा है और गड्ढा गहरा होता जा रहा है, तो उसका सारा "नाटकीय आत्मसम्मान" हवा हो गया।
गोपाल फौरन उछलकर खड़ा हो गया और ज़ोर से चिल्लाया –
"ठहरो! मैं मरा नहीं हूँ!"
हर कोई भौंचक्का! गाँव वाले डर कर पीछे हट गए। एक बच्चा चिल्लाया –
"गधा भूत बन गया!"
हरिया ने माथा पीट लिया –
"अबे तू ज़िंदा है? तो मरने का नाटक क्यों किया?"
गोपाल ने जवाब दिया –
"मालिक, रोज़ बोझ उठाते-उठाते ज़िन्दगी बोझ बन गई थी! सोचा छुट्टी मारी जाए।"
पंडित जी मुस्कराए और बोले –
"अरे, ये तो बहुत बुद्धिमान गधा निकला!"
फिर क्या हुआ?
उस दिन के बाद गोपाल मशहूर हो गया। बच्चे उसे देखने आते, और लोग कहते –
"देखो, वो है बुद्धिमान गधा!"
गाँव में गोपाल को लेकर कहानियाँ बनने लगीं। कुछ लोग तो कहते कि गधा इंसानों की भाषा समझता है, कुछ कहते कि उसमें आत्मा किसी पुजारी की है।
लेकिन गोपाल को इन बातों से फर्क नहीं पड़ा। उसका ध्यान सिर्फ एक चीज़ पर था –
"काम कम हो, मस्ती ज़्यादा!"
अब गोपाल हर हफ्ते कोई नया बहाना बनाता – कभी पैर में मोच, कभी सिर दर्द (गधे का सिर दर्द?), कभी बुखार!
हर बार हरिया उसका इलाज करवाने जाता और खर्चा बढ़ता जाता।
अंत में क्या हुआ?
हरिया परेशान होकर एक दिन बोला –
"गोपाल, तू तो मेरे लिए घाटे का सौदा बन गया है। अब तुझे किसी स्कूल में दाखिल करवाऊँगा।"
गोपाल चौंक गया –
"स्कूल? मैं?"
हरिया ने हँसते हुए कहा –
"हाँ! तू इतना बुद्धिमान है कि बच्चों को चालाकी सिखा सकता है!"
और फिर गोपाल गाँव के स्कूल में "पशु शिक्षा मॉडल" के तहत सबसे पहला गधा बन गया जो बच्चों को "ईमानदारी से नाटक करना" सिखाता था।
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सीख:
ज्यादा चालाकी कभी-कभी आपको ही मुश्किल में डाल सकती है। लेकिन सही समय पर अपनी एक्टिंग से आप गड्ढे में गिरने से भी बच सकते हैं!