मल्लिका मुखर्जी
आज 25 दिसम्बर, क्रिसमस का दिन। सालों से इस दिन को बड़े उत्साह से मनाती आ रहीं सोफिया डिसूज़ा के मन में अब कोई उत्साह नहीं जागता। सोफिया, ब्रायन डिसूज़ा की पत्नी है। अमीर घराने से ताल्लुक रखती है। मि. डिसूज़ा का थाणे में बड़ा कारोबार है।
पिछले आठ सालों से सोफिया क्रिसमस के दिन चर्च में जाकर अपनी इकलौती बेटी सारा और दामाद डेविड की सलामती के लिए चुपचाप प्रार्थना करती आ रही हैं। प्रार्थना में उनका विश्वास तब खो गया जब पिछले साल तीस साल के युवा दामाद डेविड का निधन हो गया और इस साल सत्ताइस साल की बेटी सारा का भी चल बसी।
आज फिर वे चर्च आई हैं। चर्च में शांति है, लेकिन सोफिया के दिल में यादों का सैलाब उमड़ा है। पिता ब्रायन ने अपनी प्यारी इकलौती बेटी का नाम ‘सारा’ इसलिए रखा था कि इसका अर्थ ‘राजकुमारी’ होता है। जैसा नाम वैसी ही सुंदर और स्मार्ट बेटी थी सारा। वह न केवल पढ़ाई में तेज थी, बल्कि गीत-संगीत में भी उतनी ही माहिर थी। पापा ने बचपन से ही उसकी संगीत शिक्षा का प्रबंध भी कर दिया था। मधुर आवाज़ की स्वामिनी सारा को अक्सर आकाशवाणी मुंबई से संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में गाने के लिए निमंत्रण मिलता था।
जब सारा को मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला, तो मिस्टर डिसूजा ने अपनी बेटी के लिए हॉस्टल में रहने की व्यवस्था कर दी। भले ही वह मेडिकल की छात्रा थी, लेकिन उसका पहला प्यार संगीत था। इस बार जब सारा को आकाशवाणी मुंबई से निमंत्रण मिला तो उसकी मुलाकात गिटार वादक डेविड से हुई।
डेविड ग्रेजुएट था। संगीत में रुचि के कारण वह अपनी किस्मत आजमाने के लिए महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव से अपने बूढ़े पिता को छोड़कर मुंबई आया था। बोरिवली में अकेला ही रहता था और एक साधारण सी नौकरी भी कर रहा था।
गीत में संगत देने वाले इस युवक ने सारा का मन मोह लिया। दोनों हकीकत से ज़्यादा कल्पनाओं में जीने लगे। सारा को डर था कि भले ही जाति या धर्म की कोई समस्या नहीं थी, लेकिन वह एक अमीर परिवार की बेटी थी। एक साधारण परिवार के युवक डेविड को उसके पिता कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
इसी डर से उसने डेविड को मना लिया और दोस्तों की मदद से चुपचाप चर्च में शादी कर ली। उसके मन में कहीं न कहीं यह उम्मीद थी कि उसके पिता डेविड को आखिरकार अपना ही लेंगे। ब्रायन डिसूज़ा को जब यह खबर मिली, उन पर मानो आसमान टूट पड़ा। उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि बेटी को उच्च शिक्षा दिलाने का निर्णय समाज में उनकी बदनामी का कारण बनेगा।समाज की नजरों में उनकी बेटी ने उन्हें धोखा दिया था। सारा के लिए अपने माता-पिता के घर जाने के सारे रास्ते हमेशा के लिए बंद हो गये।
धर्मनिष्ठ पत्नी सोफिया जानती थीं कि परिवार में उन्हें अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं है, फिर भी वे पति ब्रायन डिसूजा को बताना चाहती थी कि बाइबिल में प्यार का एक प्रमुख घटक स्वतंत्रता है। ईसाई धर्म में प्यार को सभी सामाजिक और धार्मिक बाधाओं से परे माना जाता है। वे अपनी बेटी को क्षमा कर दें और डेविड को दामाद के रूप में स्वीकार कर लें। चाहने से कहाँ कुछ होने वाला था?
उधर सारा का खूबसूरत ज़िंदगी का सपना धीरे-धीरे टूट रहा था, फिर भी वह बोरिवली के उस छोटे से किराये के फ्लैट में डेविड के साथ ख़ुश रहने की कोशिश करती रही। इसी दौरान सारा एक बेटे की माँ भी बनीं। उसकी पढ़ाई छूट गई थी। मुंबई जैसे शहर में डेविड की साधारण नौकरी और आकाशवाणी से मिलने वाली छोटी सी रकम पर तीनों का गुजारा नहीं हो सकता था।
जब बेटा इरविन पाँच साल का हुआ, तब डेविड को टीबी हो गई। डेविड के लिए सारा का प्यार गहरा था। अनगिनत कठिनाइयों के बावजूद, सारा ने डेविड के साथ रहना चुना था क्योंकि प्यार का शुद्धतम रूप हमेशा बिल्कुल अलग होता है। सारा ने अपने पति की बहुत सेवा की, लेकिन वह उसे बचा नहीं पाई।
अपने नाबालिग बेटे के साथ सारा इस दुनिया में बिल्कुल अकेली हो गई थी। सिर्फ मरियम बुआ के घर उसका आना-जाना था जो बोरिवली में उसके फ्लैट से कुछ ही दूरी पर रहती थीं। दामाद डेविड की मौत की खबर सुनकर मरियम सारा से मिलने गई थीं। नन्हें इरविन को देखकर उनका दिल पसीज गया था। उन्होंने भाई ब्रायन को संदेश भेजकर अपनी बेटी को माफ करने को कहा था, लेकिन उन्हें अपने भाई से कोई जवाब नहीं मिला था।
ईशु के सामने बैठी सोफिया की बंद आँखों से टप टप आँसू गिर रहे हैं। वे सोच रही हैं कि उम्र के नाज़ुक मोड़ पर सारा ने जो क़दम उठाया था उसके केन्द्र में प्रेम ही तो था। पति ब्रायन क्यों नहीं समझ पाए? बेटी सारा का जीवन इस कदर मिट्टी में मिल गया और वे देखती रह गई!
आगे की कहानी तो और भी दर्दनाक थी। सारा के पास स्थाई रोजगार का कोई साधन नहीं था। उसे अपने घर के पास चलने वाली एक संगीत कक्षा में बच्चों को संगीत सिखाने का काम मिला। कुछ दिनों बाद सारा की तबियत भी बिगड़ने लगी, जब वह डॉक्टर के पास गई तो पता चला कि डेविड की सेवा करते-करते उसे भी टीबी ने ग्रस लिया था!
सारा के पास न तो अपने इलाज की कोई सुविधा थी और न ही खाने की उचित व्यवस्था। वह इतनी अभिमानी थी कि किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला पाती थी। उसकी बीमारी बढ़ती जा रही थी, मज़बूरी की चरम सीमा थी। एक दिन सारा ने बेटे इरविन को मरियम बुआ के पास भेजा। इरविन ने नानी बुआ मरियम को बताया कि घर पर खाने के लिए कुछ नहीं है और माँ बीमार है।
मरियम ने इरविन को प्यार से खाना खिलाया। कुछ पैसे दिए और माँ को उनके पास भेजने को कहा। मरियम को सारा की बीमारी की गंभीरता के बारे में कुछ भी पता नहीं था। कुछ समय के बाद अचानक एक दिन इरविन मरियम के पास रोते हुए आया और बोला, ‘नानी बुआ, माँ आज सुबह बिस्तर से नहीं उठीं और कुछ बोल भी नहीं रही हैं।’ मरियम ने भतीजी सारा की हालत जानने के लिए तुरंत अपने बेटे को इरविन के साथ भेजा।
जब डॉक्टर को बुलाया गया तो पता चला कि सारा इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है। मरियम ने फिर भाई ब्रायन को संदेश भेजा लेकिन कोई जवाब न मिलने पर उनके बेटे ने पड़ोसियों की मदद से सारा का अंतिम संस्कार कर दिया।
कुछ दिनों बाद लोक-लाज से ही सही, ब्रायन डिसूज़ा ने पत्नी सोफिया से बहन मरियम से मिलने की इच्छा जताई। सारा का साढ़े छह साल का बेटा इरविन मरियम के पास था। सोफिया अपने पति के साथ मरियम के घर पहुँची। पहली बार उन्होंने अपने नाती इरविन को देखा तो नम आंखों से उसे गले लगा लिया।
उनका दिल यह सोच कर रो रहा था कि एक पिता ने अपनी प्यारी बेटी को समाज के डर से नारकीय जीवन दे दिया था। शाम को, जब दोनों थाणे के लिए अपनी कार में सवार हो रहे थे, मरियम ने भाई ब्रायन से सारा के बेटे इरविन को अपने साथ ले जाने का अनुरोध किया।
ब्रायन ने सख्ती से जवाब दिया, 'बहन, अगर तुम चाहो तो इस बच्चे को अनाथालय भेज सकती हो। मैं इसे अपने साथ नहीं ले जा सकता। जिस दिन मेरी बेटी ने अपनी मर्जी से शादी की, वह मेरे लिए मर चुकी थी।’
सोफिया सोच रही थी, क्या एक पिता इतना बेरहम हो सकता है? अचानक वे कार से उतरीं, इरविन का हाथ पकड़कर उसे कार में बैठा लिया। अपने 28 साल के विवाहित जीवन में पहली बार, सोफिया ने अपने पति ब्रायन को दिखा दिया था कि उन्हें भी पारिवारिक निर्णय लेने का अधिकार है। उनकी प्रार्थना आख़िरकार प्रभु ईशु तक पहुँच गईं थीं! ब्रायन ने उन्हें नहीं रोका।
प्रभु ईशु को धन्यवाद देने के बाद, जब वे चर्च से बाहर आईं तो उन्हें पता चला कि उनके पति ब्रायन चर्च के कन्फ़ेशन बॉक्स में गए हैं। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि आज ब्रायन अपनी बेटी के साथ किए अन्याय के लिए प्रीस्ट के माध्यम से प्रभु ईशु से क्षमा मांगने गए हैं। सोफिया फिर मन ही मन प्रभु ईशु से प्रार्थना करने लगीं कि वे उनके पति ब्रायन को क्षमा कर दें। उन्होंने अपनी प्रार्थना में एक लाइन और जोड़ी, ‘इस दुनिया में प्रेम हमेशा सलामत रहे।’