कहानी
सीमा असीम सक्सेना ,बरेली
मेरे हाथ में किताब थी और मैं इधर-उधर देखे जा रही थी क्योंकि वो मेरे हाथ में किताब पकड़ा कर गायब हो चुका था, या यूँ कहें वो कहीं छुप गया या वहां से दूर भाग चुका था, शायद मेरी ही मति मारी गई थी, जो मैंने उससे किताब ले ली थी ! सच कहूं तो वो काफी समय से मेरे को impress करने में लगा हुआ था हालाँकि कभी कुछ कहा नहीं था और आज जब उसे पता चला कि मुझे इस सब्जेक्ट की किताब की जरुरत है तो न जाने कहाँ से फ़ौरन उस किताब को अरेंज करके मेरे हाथों में पकड़ा कर चला गया था !
मैंने उस समय तो वो किताब पकड़ ली थी लेकिन अब उसके छुप जाने या गायब हो जाने से मेरा दिमाग बहुत परेशान हो रहा था और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ! मैं इस तरह परेशान हाल ही उस पार्क में पड़ी हुई एक बेंच पर बैठ गयी ! वहां पर कुछ लोग जॉगिंग कर रहे थे और वे लोग मेरे आस पास ही घूम रहे थे ! मुझे लगा कि शायद मेरी परेशान हालत देखकर ही वे सब हमारे और करीब आ रहे हैं ! खैर, हर तरफ से मन हटाकर मैंने किताब का पहला पन्ना खोला, सरसराता हुआ एक सफ़ेद प्लेन पेपर मेरे पैरों के पास आकर गिर पड़ा ! न जाने क्यों मेरा मन एकदम से घबरा गया, समझ ही नहीं आया क्या होगा इसमें, फिर भी झुककर उसे उठाया और खोलकर चेक किया, कहीं कुछ भी नहीं लिखा था !
मैं खुद को ही गलत कहने लगी, वो तो एक समझदार लड़का है और मेरी हेल्प करना चाहता है बस ! मैंने दूसरा पन्ना पलटा तो एक और सफ़ेद प्लेन पन्ना सरककर गिर पड़ा, इस समय मैं अनजाने में ही जोर से चीख पड़ी…आधा पार्क तो पहले से ही मेरी तरफ देख रहा था और बचा खुचा आधा पार्क भी अपनी सेहत पर ध्यान देने की बजाये हमारी ओर ध्यान देने लगा !.
क्या हुआ सौम्या ? अचानक से आशीष दौड़ कर मेंरे पास आ गया ! वो मेरे चीखने की आवाज से काफी घबराया हुआ लग रहा था !
कुछ नहीं बस इस घास के कीड़े से डर गयी थी यह मेरे पैर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था ! उसने घास पर चल रहे हरे रंग के एक छोटे से कीड़े को दिखाते हुए कहा !
तुम बहुत डरती हो सौम्या, इस नन्हें से कीड़े से ही डर गयी, देखो वो तुम्हारी जरा सी चीख से कैसे दुबक गया ! आशीष मुस्कुराते हुए बोला!
सौम्या भी थोड़ा झेपते हुए मुस्कुरा दी !
तुम अभी तक कहाँ थे आशीष ? मेरी एक चीख पर दौड़ते हुए अचनाक से कहाँ से आ गए ?
अरे पागल, मैं तो यही पर था, जॉगिंग कर रहा था !
ओह्ह !! तो क्या तुम यहाँ डेली आते हो ?
हाँ और क्या ! तुम्हें क्या लगा, आज तुम्हारी वजह से पहली बार आया हूँ ?
नहीं नहीं ! ऐसा नहीं है, मैंने यूँ ही पूछा !
चलो अब मैं घर जा रहा हूँ तुम आराम से इस किताब को पढ़कर वापस कर देना !
और आशीष बिना कुछ कहे और रुके वहां से चला गया !
कितना बुरा है आशीष, बताओ उसने एक बार यह भी नहीं पूछा, तुम साथ चल रही हो ? उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो किताब देकर उस पर कोई अहसान करके गया है !
“मैं उदास और मरे कदमों से घर की तरफ वापस चल पड़ी !
मन में उसके लिए न जाने क्या क्या सोच रही थी और वो एकदम से उसका उल्टा ही निकला !
चलो अच्छा है खामखां की एक टेंशन ख़त्म हुई ! वैसे हम जो कुछ सोचते हैं जरुरी तो नहीं हर बार वो सही हो क्योंकि मैं उसे उच्श्रंखल समझ बैठी थी जबकि वो बेहद समझदार और सिंसियर निकला !
घर आकर भी बिलकुल मन नहीं लगा ! कमरे में बेड पर लेटकर उसके बारे में ही सोचती रही आखिर ऐसा क्यों होता है ? क्या है यह सब ? मन उसकी तरफ से हट क्यों नहीं रहा ? क्या वो भी मेरे बारे में सोच रहा होगा ?
शायद नहीं ! अगर वो सोच रहा होता तो जरूर कुछ न कुछ अवश्य कहता ! लेकिन कहते हैं जैसा हम किसी के बारे में सोचते हैं ठीक बिल्कुल वैसा ही वो भी हमारे बारे में सोचता है ! मन न लगने के कारण उसकी दी हुई किताब को उलटने पलटने लगी, इस आशय से कि कहीं कुछ लिखा हो या मन की बात का कोई हिंट ही दिया हो, पर पूरी किताब को देखने के बाद भी कहीं कुछ नहीं !
ओह्ह यह आज मेरे मन को क्या हो गया है ! उसने हल्के से सर को झटका दिया ! पर दिमाग था कि उसकी तरफ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था ! चलो थोड़ी देर मां के पास जाकर बैठती हूँ ! अब तो वो स्कूल से आ गयी होंगी ! थोड़ी देर उनसे बातें करुँगी तो उधर से दिमाग हट जायेगा !
वो माँ के पास आकर बैठ गयी !
तुम आ गयी सौम्या बेटा?
हां माँ !
बेटा एक कप चाय बना लाओ ! आज मेरे सर में बहुत दर्द हो रहा है ! स्कूल में बच्चों की कापियां चेक करना बहुत दिमाग का काम है अगर जरा सा भी ध्यान हटा या कुछ चूक हुई तो फ़ौरन बच्चे या उनके पेरेंट्स सर पर आकर खड़े हो जायेंगे !
वो बिना कुछ बोले चुपचाप किचिन में आकर चाय बनाने लगी ! आज उसका मन माँ से बात करने का कर रहा था तो उनके पास समय नहीं और जब उसका मन नहीं करता है तो माँ के पास इतनी सारी बातें आ जाती हैं खैर ..... वो दो कप चाय बनाकर वापस माँ के पास आकर बैठ गयी !
लेकिन आज माँ ने कोई बात नहीं की, उन्होंने चुपचाप चाय पी और आँखें बंद करके लेट गयी शायद वे आज बहुत थकी हुई थी !
सौम्या वहां से उठकर अपने कमरे में आ गयी ! इसी तरह १० दिन गुजर गए ! मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था दिन रत उसके ख्याल परेशान किये रहते ! किसी एकांत की तलाश करती और पुराने सेड सांग सुनती रहती !
आज कालेज में फेयरवेल पार्टी थी ! येलो कलर की साडी पहन कर वो कालेज पहुंची ! वहां सब उसे ही देख रहे थे ! उसे लगा आज तो पक्का आशीष उससे बात करेगा क्योंकि मैं सच में बहुत खूबसूरत लग रही हूँ ! सौम्य ने मन मे सोचा !
लेकिन पूरी पार्टी निकल गयी पर आशीष ने एक बार भी उसकी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा ! अब सच में उसे बहुत गुस्सा आने लगा था और उसने डिसाइड कर लिया था कि चाहे कुछ हो जाए वो अपने दिल और दिमाग से आशीष का ख्याल निकल कर रहेगी !
गुस्से और रोने के समय अक्सर सौम्य के चेहरे पर लालिमा आ जाती है, जो उसकी सुंदरता मे इजाफा कर देती है ! वो यूँ ही कालेज गेट से बहार निकल कर आ गयी ! अचानक से लगा कि कोई उसके पीछे आ रहा है कौन हो सकता है मन में थोड़ी घबराहट का भाव आया और दिल तेजी से धड़कने लगा !
वो एकदम से सौम्या के सामने आ गया !
ओह्ह आशीष तुम ! मैं तो एकदम से घबरा ही गयी थी ! उसका दिल वाकई मे घबराहट के कारण तेजी से धड़कने लगा था !
वो कुछ नहीं बोले फिर थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद एक खूबसूरत सा लिफाफा देते हुए बोले, यह सर ने आपके लिए भिजवाया है !
क्या है इसमें ?
आपकी ड्रेस के लिये शायद बेस्ट कॉम्प्लिमेंट्स है !
उसके चेहरे को पढ़ते हुए लगा कि वो सच ही कह रहा है ! क्योंकि उसके चेहरे पर कोई भी भाव ऐसा नहीं था जिससे लगे कि वो मजाक कर रहा है ! उस वक्त अचानक से उसके मन में यह ख्याल आया कि यह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा तो शायद लिख कर दिया हो !
सौम्या अगर तुम कहो तो आज मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूँ ? आज मैं अपने पापा की कार लेकर आया हूँ ! आशीष ने उसे जाते देखकर कहा !
उसने बिना देर किये फ़ौरन सर हिला दिया था क्योंकि वो आशीष के साथ थोड़ी सी देर का साथ भी गबाना नहीं चाहती थी !
ड्राइविंग सीट पर बैठे आशीष के चेहरे को सौम्या बराबर पढ़ती रही पर उस पर ऐसा कोई भाव नहीं था जिससे अनुमान भी लगाया जा सके कि उसके दिल में कोई कोमल भावना भी है !
सौम्या का घर आ गया था और वो उतर गयी ! उसने आशीष से कहा, आशीष घर के अंदर नहीं आओगे ?
नहीं आज नहीं फिर कभी, आज तो मुझे जल्दी घर पहुंचना है !
ओह्ह कितना खड़ूस है यह, इसकी नजर में उसकी कोई वैल्यू ही नहीं, जबकि न जाने कितने लड़के उसके दीवाने हैं औए वो किसी को घास तक नहीं डालती !
मैं ही पागल हूँ जो इससे एकतरफा प्यार कर रही हूँ आज से इसके बारे में सोचना बिलकुल बंद ! उसने मन ही मन एक कठोर निर्णय लिया था ! चाहे कैसे भी हो मुझे अपने मन को समझाना ही पड़ेगा !
मुझे पता था कि यह काम बहुत मुश्किल होगा लेकिन करना तो पड़ेगा ही !
बड़ा फ्री फ्री सा महसूस हो रहा था इस निर्णय को लेकर मानों कोई सर से बोझ सा उतर गया हो !
चलो अब कभी उसका नाम लेकर उसे याद नहीं करुँगी ! मैं मुस्कुराती गुनगुनाती अपने कमरे में आ गयी ! आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारा ! आज मैं इस पीले रंग की साडी में कितनी खूबसूरत लग रही हूँ कालेज में सभी लोग तो कह रहे थे पर आशीष ने एक बार भी कुछ नहीं कहा ! मन में उदासी का भाव आया ! उसकी बजह से ही तो इतना सज सवर के गयी थी खैर अब छोडो !
उसने हाथ में पकडे लिफाफे को बेड पर रखा और कपडे चेंज करने के लिए अलमारी से कपडे निकलने लगी !
चलो पहले इस लिलाफ़े को ही खोलकर देख लूँ, सर ने न जाने क्या लिखा होगा ?
बेमन से उसको खोला !
उसमे से सफेद रंग का प्लेन पेपर निकल कर नीचे गिर पड़ा ! ओह्ह्ह तो यह आशीष की बदतमीजी है !
आज उसे फोन करके कह ही देती हूँ कि उसे इस तरह का मजाक पसंद नहीं है !
क्यों वो उसके दिल के साथ खेल रहा है ! कोई प्यार खेल तो है नहीं !
गुस्से में आकर वो फोन मिला ही रही थी कि लिफाफे के अंदर रखे एक कागज पर नजर चली गयी !
वो निकाल कर पढ़ने को खोला ही था कि मम्मी के कमरे में आने की आहट सी हुई !
मम्मी को भी अभी ही आना था !
बेटा जरा मार्किट तक जा रही हूँ, कुछ मगाना तो नहीं है ?
नहीं मम्मी कुछ नहीं चाहिए !
आज तो इस ड्रेस में बहुत प्यारी लग रही है मेरी बेटी ! कितनी बड़ी और खूबसूरत भी !
ओहो रहने दो मम्मी, आपको तो मैं हमेशा ही बहुत सुंदर लगती हूँ !
जब हो तो कहूँगी नहीं !
चलो ठीक है ! अब आप जाओ !
मम्मी के जाते ही उसने उस पेपर को पढ़ना शुरू कर दिया !
प्रिय सौम्या के सम्बोधन के साथ शुरू हुआ वो पत्र तुम्हारा आशीष के साथ ख़त्म हुआ ! उसके बीच में जो लिखा था वो उसे खुशी से झूमाने के लिए काफी था ! वो भी मुझे उतना ही प्यार करता था ! वो भी मेरे लिए इतना ही बेचैन था ! वो भी कुछ कहने को तरसता था ! वो भी मेरा साथ पाना चाहता था !
लेकिन मेरी ही तरह इस डर का शिकार था कि कहीं मैं मना न कर दूँ, उसके प्यार को अस्वीकृत न कर दूँ !
वाकई वो मुझे सच्चा और पवित्र प्यार करता है, तभी तो कभी उसने मेरे हाथ को तक एक बार भी टच नहीं किया वरना कितने मौके आये थे और कोई होता तो सबसे पहले हाथ पकड़ता ! सौम्या बस यही सब सोचे जा रही थी !
वो ख़ुशी से झूम उठी ! एक बार खुद को आईने मे निहारा और अब मैं खुद पर ही मोहित हो गयी और मेरे मुंह से निकल पड़ा ! आई लव यू आशीष !
उसकी आँखों के सामने आशीष का मुस्कुराता चेहरा था और अब वो शरमा के अपनी नजरें नीचे की तरफ करके जमीन को देखने लगी थी ! आखिर उसके सच्चे मन की दुआ सफल जो हो गयी थी !