लेखक का उद्देश्य
लेखक का मानना है कि प्राचीन काल के लोगों की पहचान धर्म या जाति से नहीं, बल्कि स्थान से की जाती थी। "खस" नाम भी कोई जाति या धर्म नहीं, बल्कि एक भौगोलिक स्थान की वजह से मिला नाम है। महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथ में खसों का जिक्र है। इतने प्राचीन लोगों का इतिहास मध्य काल से पहले के धूमिल है। शायद वह इतिहास भी नालंदा विश्वविद्यालय की आग में जल गया हो। क्योंकि मध्य काल से आज तक का खसों का इतिहास के साक्ष्य तो है इसलिए लेखक ने इतिहासकारों की किताबों, पुरातात्विक साक्ष्यों और जेनेटिक अध्ययनों से इन लोगों के वैदिक काल के समय के इतिहास को खोजने की कोशिश की है। इस किताब में इन तीनों का मिश्रण करके लेखक ने सत्य की खोज करने की कोशिश की है। लेखक की यह सोच एक कल्पना भी हो सकती है पर फिर भी तथ्य के आधार पर सोच का विषय है। इस पुस्तक के अन्त लेखक ने अपना संक्षिप्त विचार रखा है।
विषयसूची (Table of Contents)
1. प्रस्तावना: खस जनजाति का ऐतिहासिक महत्व और आधुनिक प्रासंगिकता।
2. अध्याय 1: वैदिक काल (1500-1000 ईसा पूर्व)।
3. अध्याय 2 : राजनीतिक विखंडन और तिब्बती दबाव (1000-600 ईस्वी)।
4. अध्याय 3: खस मल्ला साम्राज्य का उदय और पतन ।
5. अध्याय 4: गोरखा राज्य और नेपाल का एकीकरण ।
6. अध्याय 5: ब्रिटिश शासन और गोरखा सेना की विरासत (1816–1947 ईस्वी)।
7. अध्याय 6: आधुनिक नेपाल में खस-आर्य पहचान का संघर्ष (1947–वर्तमान)।
8. अध्याय 7 : खस संस्कृति का पुनर्जागरण – ग्रामीण युवाओं की पहल
9. उपसंहार: इंडो आर्य पहचान और लेखक का निष्कर्ष।
प्रस्तावना: खस जनजाति का ऐतिहासिक महत्व और आधुनिक प्रासंगिकता।
खस – एक जनजाति/समुदाय.
- अर्थ:
"खस" संस्कृत मे हिमालयी क्षेत्र (विशेषकर नेपाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) में रहने वाली एक प्राचीन इंडो-आर्यन जनजाति को कहते हैं। इन्हें वैदिक लोग म्लेच्छ भी कहते हैं। "म्लेच्छ" शब्द का अर्थ है "बर्बर" या "विदेशी" जिनकी भाषा समझ से बाहर थी और जो वैदिक संस्कृति का हिस्सा नहीं थे। प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न समूहों को म्लेच्छ कहा गया है, जो समय और संदर्भ के आधार पर बदलते रहे। “खस” जो वैदिक धर्म और वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते थे। हालाँकि, इन्हें क्षत्रिय वर्ण में शामिल किया गया।
प्राचीन “खस” बोन परंपरा से थे जिस कारण वे शायद तिब्बत से आये, क्योंकि बोन धर्म की शुरुआती जड़ें संभवतः तिब्बत से जुड़ी हैं, जो प्रकृति पूजा और आत्माओं पर आधारित था। खस मल्ला साम्राज्य से पहले खसों का इतिहास धूमिल है। तिब्बत में ही बोन धर्म का प्रारंभिक रूप विकसित हुआ, जिसमें जादू-टोना, शमानी परंपराएँ (shamanism), और आत्माओं की पूजा शामिल थी। बोन से प्रभावित होने के कारण इन्हें कभी-कभी म्लेच्छ माना गया, लेकिन बाद में ये वैदिक संस्कृति में शामिल हो गए।
ये गोरखा संस्कृति और पहाडी भाषा के मूल निर्माता माने जाते हैं।
वैज्ञानिक शोध के आधार:
डार्विन:
डार्विन का दर्शन विज्ञान पर आधारित था, न कि धार्मिक या अलौकिक विश्वासों पर। उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि जीवन की जटिलता और विविधता प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकती है, बिना किसी पूर्व-निर्धारित योजना के।
प्रमुख पुस्तकें और संदर्भ
“ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़”- चार्ल्स डार्विन
- प्रकाशन वर्ष: 1859.
- विषयवस्तु: इसमें विकासवाद के मुख्य तंत्र "प्राकृतिक चयन" को पेश किया गया। पहले संस्करण में डार्विन ने "योग्यतम की उत्तरजीविता"(survival of the fittest) वाक्यांश का उपयोग नहीं किया, लेकिन बाद में स्पेंसर के शब्द को शामिल किया।
डार्विन ने बाद में ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़ के 5वें संस्करण (1869) में इस वाक्यांश को अपनाया और लिखा: "अनुकूल परिवर्तनों का संरक्षण और प्रतिकूल परिवर्तनों का निष्कासन, मैं इसे प्राकृतिक चयन या योग्यतम की उत्तरजीविता कहता हूं।"
“प्रिंसिपल्स ऑफ बायोलॉजी”- हर्बर्ट स्पेंसर
- प्रकाशन वर्ष: 1864 (भाग 1), 1867 (भाग 2).
-स्पेंसर ने विकासवादी विचारों को समाजशास्त्र और नैतिकता पर लागू किया और मानव समाजों में प्रतिस्पर्धा को समझाने ,चार्ल्स डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को समझाने के लिए किया। के लिए यह वाक्यांश (survival of the fittest) गढ़ा।
डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत पर डीएनए को पहली बार 1869 में फ्रेडरिक मिशर (Friedrich Miescher) ने अलग किया था, लेकिन उसकी संरचना और महत्व को उस समय समझा नहीं गया था।
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि आधुनिक मानव अफ्रीका में उत्पन्न हुए, प्रवास के माध्यम से विविधता प्राप्त की, और प्राचीन प्रजातियों के साथ संकरण किया। आज की आनुवंशिक विविधता प्राचीन विभाजनों, संकुचन (बॉटलनेक), और अनुकूलन को प्रतिबिंबित करती है। संचयी उत्परिवर्तन और जनसांख्यिकीय बदलावों ने हमारी प्रजाति को आकार दिया।
प्रमुख प्राचीन डीएनए:
उस्त-इशिम मानव (साइबेरिया, ~45,000 साल पहले): आधुनिक यूरेसियाई लोगों से निकटता से संबंधित।
तियानयुआन मानव (चीन, ~40,000 साल पहले): पूर्वी एशियाई और मूल अमेरिकियों के साथ वंश साझा करता है।
प्राचीन मानवों के साथ संकरण
निएंडरथल:
सभी गैर-अफ्रीकियों में 1–4% निएंडरथल डीएनए होता है (संकरण ~50,000–60,000 साल पहले हुआ)।
पूर्वी एशियाई लोगों में सबसे अधिक (यूरोपियों से थोड़ा ज्यादा)।
डेनिसोवन:
पापुआंस, ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासियों, और कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई लोगों में 3–5% डेनिसोवन डीएनए।
तिब्बतियों में एक डेनिसोवन जीन (EPAS1) है जो उच्च ऊंचाई अनुकूलन में सहायता करता है।
क्षेत्रीय वंश
यूरोपीय: लगभग 30% पश्चिमी स्टेपी चरवाहों (यम्नाया), 50% प्रारंभिक यूरोपीय किसानों (अनातोलियन), और 20% पश्चिमी शिकारी-संग्रहकर्ताओं का मिश्रण।
दक्षिण एशियाई: प्राचीन दक्षिण भारतीय मूलनिवासियों (AASI) और इंडो-यूरोपीय भाषी प्रवासियों का मिश्रण (उच्च जातियों में लगभग 40-60% स्टेपी वंश)।
पूर्वी एशियाई: कुछ समूहों में उच्च डेनिसोवन मिश्रण, जो यूरोपीय/निएंडरथल मिश्रण से अलग है।
खस लोगों के जीन्स
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि खस लोगों के जीन्स (आनुवंशिकी) में कुछ विशेषताएं हैं जो उन्हें उच्च ऊंचाई, युद्ध क्षमता और कृषि के लिए अनुकूलित बनाती हैं।
खस जीनोम की प्रमुख विशेषताएं
उच्च ऊंचाई के अनुकूलन वाले जीन्स
1. EPAS1 (हाइपोक्सिया जीन)
- क्या करता है?: शरीर को कम ऑक्सीजन में भी कुशलता से काम करने में मदद करता है।
सबूत:
- 2020 के नेचर जेनेटिक्स अध्ययन में पाया गया कि खस/नेपाली आबादी में EPAS1 जीन का डेनिसोवन वेरिएंट मौजूद है, जो तिब्बतियों से मिलता-जुलता है।
- यह जीन हीमोग्लोबिन के स्तर को नियंत्रित करता है, जिससे खस लोग हिमालय की ऊंचाइयों पर आसानी से रह सकते हैं।
2. EGLN1
- क्या करता है?: ऑक्सीजन के स्तर को संवेदनशीलता से समायोजित करता है।
सबूत:
- नेपाली और गढ़वाली खस समुदायों में इस जीन की उच्च उपस्थिति पाई गई है (2017, American Journal of Human Genetics)।
3. PPARA (ऊर्जा चयापचय जीन)
- क्या करता है?: ठंडे मौसम में वसा को ऊर्जा में बदलने की क्षमता बढ़ाता है।
- सबूत:
- खस किसानों में बेहतर कोल्ड एडाप्टेशन देखा गया है।
—
शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति से जुड़े जीन्स
1. ACTN3 (स्पीड एंड पावर जीन)
- क्या करता है?:मांसपेशियों को तेज और मजबूत बनाता है।
- सबूत:
- गोरखा रेजिमेंट में भर्ती खस योद्धाओं में ACTN3 का RR वेरिएंट अधिक पाया गया (2016, Journal of Strength & Conditioning Research)।
2. ACE (हृदय और धीरज जीन)
- क्या करता है?:रक्त प्रवाह और सहनशक्ति को बेहतर बनाता है।
- सबूत:
- खस सैनिकों में ACE I/D जीन का विशेष संयोजन पाया गया, जो उन्हें लंबी लड़ाइयों के लिए सक्षम बनाता है।
---
3. खस vs तिब्बती vs यूरोपीय: आनुवंशिक तुलना
जीन/लक्षण | खस | तिब्बती | यूरोपीय
EPAS1 डेनिसोवन) | 30% | 90% | 0%
EGLN1 (P12T) | 65% | 85% | 1%
R1a हैपलोग्रुप | 48% | <5% | 50%
ACTN3 (RR) | 72% | 55% | 70%
नोट:
- खस लोगों में यूरोपीय (R1a) और तिब्बती (EPAS1) जीन्स का मिश्रण है।
नेपाल में 120+ जातियाँ हैं, लेकिन खस (छेत्री/बाहुन) प्रभावशाली समुदाय हैं। आनुवंशिक रूप से खस और राजपूत में समानताएँ हैं, क्योंकि दोनों में R1a जीन पाया जाता है, लेकिन खस में तिब्बती जीन्स (EPAS1) भी हैं। कंपनियाँ जैसे 23andMe और AncestryDNA खस/नेपाली विशिष्ट जीन्स की पहचान कर सकती हैं।
- यही कारण है कि कुछ खस (विशेषकर छेत्री/बाहुन) गोरे रंग और यूरोपीय जैसी विशेषताएं रखते हैं।
5. वैज्ञानिक शोध के प्रमुख निष्कर्ष
1. 2020 – नेचर जेनेटिक्स:
- खस/गोरखा आबादी में EPAS1 जीन पाया गया, जो तिब्बती और डेनिसोवन से मिलता है।
2. 2017 – AJHG:
- गोरखा के खस समुदायों में EGLN1 जीन की उच्च उपस्थिति दर्ज की गई।
3. 2016 – ब्रिटिश आर्मी स्टडी:
- गोरखा सैनिकों में ACTN3 और ACE जीन्स की प्रबलता पाई गई।
निष्कर्ष
खस लोगों के जीन्स में हिमालय के कठोर वातावरण के लिए अनुकूलन (EPAS1, EGLN1),योद्धा जैसी शारीरिक क्षमता (ACTN3, ACE)।
यही कारण है कि खस समुदाय ने नेपाल और उत्तराखंड की संस्कृति/इतिहास को आकार दिया।
अगला भाग दुसरे संस्करण में
धन्यवाद।