माफिया, नेता, पुलिस गठजोड़ मेँ युवा आईपीएस का नया चेहरा
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नीरज पाण्डेय ने अपनी पहली ही फ़िल्म ए वेनेसडे से चौकाया था. उसमें अनुपम खेर, नसीर के माध्यम से एक कॉमन मेन के आक्रोश को अभिव्यक्ति दी गई थी. फ़िल्म आज भी कल्ट है. आपको पसंद आएगी. इसके बाद बेबी, आतंकवाद को गहरे नजरिये से देखने की ख्वाहिश. फिर नाम शबाना, स्पेशल छबीस फिर वेब सीरीज के के मेनन, डेनी को लेकर. जो नए प्रयोग कर रहे निर्देशक, निर्माता हैँ उनमें नीरज पाण्डेय काफ़ी आगे आते हैँ. यथार्थ के धरातल पर कहानी कहने का असरदार हुनर और साथ में बेहतरीन अभिनय से दर्शकों पर काफ़ी असर डालते हैँ.
पुलिस फाॅर्स की बेहद ख़राब इमेज सभी देखते हैँ. पर सभी ख़राब होते तो समाज और आम व्यक्ति कब का खत्म हो चुका होता. और गुंडे बदमाश राज करते. पर ऐसा तो नहीं है.
वज़ह है पुलिस में ख़ामोशी से निरंतर ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभा रहे जवान और अधिकारी. आईपीएस की इतनी बड़ी परीक्षा के चार राउंड क्लियर करने वाला बुद्धिमान मस्तिष्क कैसे और क्योँ बेईमान होगा? क्योँ वह जमीर बेचेगा? क्योँ गुलामी करेगा? कुछ हो सकते हैँ पर सभी तो नहीं.पर उनमें भी कुछ रटकर परीक्षा पास करने वाले गुड गुड़ी टाइप के होते है तो कुछ समय अनुकूल फैसले लेने वाले.
उन्ही बहुत सारे ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ लोगों की सच्ची कहानियों को थोड़ा गल्प हुए कल्पना के मिश्रण के साथ सलीके से नीरज पाण्डेय पहले खाकी बिहार चैप्टर से सामने लाए जो बहुत पसंद किया गया.उसके दो वर्षों बाद इसी माह खाकी, बंगाल चैप्टर, सात एपिसोड की वेब सीरीज नेटफ्लिक्स पर लेकर आए हैँ.
कलाकार जरूर हिंदी भाषी राज्यों के लिए नए हैँ पर उनका अभिनय और किरदार बहुत बेहतर है.
कथानक और ट्रीटमेन्ट
-------------------------- अब तक घिसी पिटी लीक पर चलती कहानी हम देखते आए गईं माफिया, राजनेता और पुलिस अफसर की. पुलिस भृष्ट है और सब मिले हुए हैँ. यह तो सम्भव नहीं. कुछ ईमानदार हैँ तो वह राजनेताओं की चालाकी से मारे जाते हैँ.या फिर क़ानून हाथ में लेते हैँ.पर कब तक?कुछ ऐसे भी बुद्धिमान और व्यावहारिक अफसर हैँ जो सिस्टम के बताए रास्तों पर चलते हुए अपनी नई सोच से सिस्टम के करप्ट आचरण को हिला देते हैँ, बिना शोरगुल के. वह तंत्र (systm) को ही इस्तेमाल करके उसे साफ करते हैँ.
हालांकि ऐसे अफसर गिनती के ही हैँ. क्रिएटर नीरज पांडेय उन्ही अफसरों की सच्ची कहानियों को सामने ला रहे हैँ, राज्य दर राज्य. उसमें उस राज्य की संस्कृति, बोली, बानी और लोक भी शामिल है.
खाकी, बंगाल चैप्टर में कोलकत्ता शहर के बैकड्राप को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया गया है. चुंकि मैंने खुद फ़िल्म मेँ स्क्रिप्ट राइटिंग की है तो समझ सकता हूं की एक एक डिटेल और सेट, वेशभूषा, बोली, किरदारों का चरित्र चित्रण के अनुरूप होने मेँ कितना लम्बा समय लगता है. यह इस वेब सीरीज मेँ दिखता है.
तुषार क्रांति राय के निर्देशन और नीरज पाण्डेय की निगरानी में बनी खाकी बंगाल चैप्टर में समय काल नब्बे के दशक के बाद से वर्ष दो हजार दो तक का रखा है.
कहानी है बाघा डॉन, उसके दो सहयोगी सागुर, रंजीत, गृहमंत्री बरुआ के दशकों से चल रहे नेक्सस की. किस तरह हर अपराध के साथ साथ मानव अंगों की तस्करी और फिर मृत शरीर को एसिड पानी मेँ डुबोकर बाद मेँ कंकाल तक को पोलिश कर बेचा जाता है.
इस भयानक अपराध का राज तब खुलता है ज़ब युवा आईपीएस सप्तऋषि यह जाँच करता है की पिछले कई वर्षों मेँ सेंकड़ो लोग अपहत हुए, रिपोर्ट हुई पर कोई वापस नहीं आया, न ही किसी की डेड बॉडी मिली? कहाँ गए यह लोग?
तभी नेक्सस के लोगो के हाथों वह मारे जाते हैँ..
दूसरा ए टी एस चीफ मंत्री बरुआ अपनी पसंद के बुकीश कार्य करने वाले, जैसे रटने वाले विद्यार्थी पढ़कर शानदार डिवीजन तो बनाते हैँ पर यथार्थ के धरातल पर समस्या हल नहीं करते. वह राजनेताओं के काम के होते हैँ. आपने हमने ऐसे कितने ही आई ए एस, आई पी एस अपने आसपास देखे होंगे. इन पर तीखा व्यंग्य करते गईं पाण्डेय कुछ दृष्यों मेँ. किस तरह ऐसे अफसर महत्वपूर्ण नियुक्ति के लिए खुद राज नेताओं से सिफारिश करवाते हैँ, उन्हें आश्वासत करते हैँ की आपके अनुकूल रहेंगे.
लेकिन विपक्ष की ईमानदार महिला नेत्री के दबाब मेँ ईमानदार आई पी एस अर्जुन मोइत्रा आता है. जो बेहद कुशल और सिस्टम के काम करने के सिस्टम को जानता है. जल्द ही बाघा डॉन का एनकाउंटर करता इससे पहले ही उसी के दाएं बाएं सागुर और रंजीत उसकी हत्या बरुआ के इशारे पर करते हैँ. जिससे लगे की आई पी एस की मौत का बदला लिया.
आगे सागुर राजनीति मेँ कदम रखने की तैयारी मेँ एम एल ए का टिकिट ले आता है. उधर मोइत्रा मानव तस्करी के रैकेट को पकड़ता है. देश विदेश मेँ हड़कम्प मचता है. वह और उसके सफेदपोश मित्र बच जाते हैँ क्योंकि कम्पनी दूसरे आम लोगो के नाम थीं.
यहाँ से असली कहानी उभरती है ज़ब अर्जुन मोइत्रा को हटाकर मुख्यमंत्री की सुरक्षा मेँ डीजीपी लगा देता है, बरुआ के इशारे पर. अर्जुन विरोध या फ़िल्मी हंगामा नहीं करता. उसे रुल बुक माननी ही है पर वह कुछ ऐसा करता है की सागुर और रंजीत मेँ दरार पड़ जाती है.लेकिन कोई है जो पुलिस की गतिविधि की रिपोर्ट लीक कर रहा है, जिससे हर बार अपराधी बच जाते.
अर्जुन साइड किये जाने के बाद भी पूरी निगाह रखता है इस नेक्सस पर. उधर कॉपी बुक, रटने वाला आई पी एस इसकी जगह लेता है और सारा मामला ठंडा. वह फील्ड मेँ ही नहीं जाता. जैसे अधिकांश युवा अधिकारी करते हैँ की आई पी एस, आई ए एस का काम अधीनस्थ से काम करवाना है, खुद केवल संयोजन करना, वैसा ही.रंजीत के हाथो बम से सागुर की पत्नी मारी जाती है. रंजीत के आदमियों को सागुर बेदर्दी से मारता है. नया चीफ बरुआ मंत्री के डांटने पर फील्ड मेँ जाता है. व्यंग्य देखें नीरज पांडेय का. चौबीस घंटे मेँ छ क़त्ल देखने के बाद झील से निकली सातवीं बॉडी देखते ही आई पी एस बेहोश होकर गिर पड़ता है.
रोमांचक और तेज रफ्तार सीरीज
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यहाँ "अपनी धरती अपने लोग " याद आती है, राम विलास शर्मा इसमें लिखते हैँ, किस तरह व्यक्ति घर और जमीन से जुड़कर फिर इससे अलग नहीं हो सकता.मैं आगे जोड़ता हूं की ऐसे ही जुर्म से जुडा व्यक्ति उसे नहीं छोड़ सकता. आई पी एस अर्जुन मोइत्रा को दुबारा लाया जाता है विपक्ष की नेता की आवाज पर. वह अपनी टीम के माध्यम से जानकारी लेता है और दोनों को आपस में लड़ा देता है. लेकिन राजनीतिज्ञ बरुआ कुशलता से बच निकलता है क्योंकि उसके खिलाफ कोई सुबूत नहीं. कौन है जो मंत्री बरुआ तक हर सीक्रेट पहुंचा रहा है? शक की सुई एक युवा अधिकारी पर शुरू से घूमती है. पर आखिर में फोन टेप से राज खुलता है.नीरज पाण्डेय की शैली है आखिर में भी कहानी में टर्न न ट्विस्ट.जिसे दर्शक लॉयल समझते हैँ वह गद्धार और जिस पर शक वह वफादार निकलता है, तो सब चौंक जाते हैँ. व्यावहारिक आई पी एस उससे जानकारी ले गद्धार को शूट करवा देता है.फिर आखिर में किस तरह माइंड गेम से वह बरुआ को रंजीत के हाथों मरवा देता है. उधर विपक्ष की ईमानदार नेता बरुआ क खिलाफ सीडीज हासिल कर सत्ता में आने के लिए अपने सारे उसूल, ईमानदारी एक दिन में छोड़ देती है और रंजीत से सौदा कर लेती है. पर वह आगे अर्जुन द्वारा मारा जाता है.
अंत में दिखाया है की व्यावहारिक आई पी एस अर्जुन सरकार क खिलाफ एक सीडी विपक्ष की नेत्री को देता है की इससे आप भ्रष्ट सरकार को गिरा सकती हैँ.
वह पूछती है, "मैंने रंजीत के साथ सौदा किया जिसे आपने पकड़ा फील्ड भी आप मुझे यह दे रहे? क्योँ?
आई पी एस के माध्यम से निर्देशक हम सबकी मजबूरी, बेबसी और सच्ची तस्वीर रखता है, "राजनीति में आज कोई ईमानदार नहीं है. मैं बस कम बुरे को चुन रहा हूं. उम्मीद है आपसे." बंगाल की भावी महिला मुख्यमंत्री से जो उम्मीद जगी थी नई सदी के प्रारम्भ में वह आज के बंगाल की हालत देखते हुए बहुत ही ख़राब निकली. अपराधियों को खुली छूट, महिला अत्याचार, भाई भतीजावाद और अवैध बंगलादेशियों को बसाकार देश को जितना नुकसान कोई अन्य नहीं कर सका वह महिला मुख्यमंत्री ने कर दिखाया.कई बार फ़िल्म यथार्थ बन जाती है और कल्पना सत्य.
अभिनय की बात करें तो बाघा के रोल में बॉब विश्वास, कहानी फ़िल्म के, बहुत सधा हुआ अभिनय किये हैँ.अर्जुन के रोल में जीत मदनानी बेहद संतुलित और एक्सप्रेशन के साथ जमे हैँ रितविक भोमिक संगीतकार और गायक में देखने के बाद एक गेंगस्टर की भूमिका निभाना उनकी अभिनय रेंज को दर्शाता है.बरुन दा में प्रसोंजीत चटर्जी ऐसे खलनायक लगे जैसे हम रोज टीवी पर बंगाल में देखते हैँ. खासकर जॉगिंग करने का दृश्य तो बिलकुल बंगाल की राजनीति के कई चेहरों को सामने लाता है. विपक्ष की नेता का परिपक्व रोल चित्रांगदा सिंह बखूबी निभाती हैँ. करीब पचास मिनट के सात एपिसोड की सीरीज ब्रिंज वाचिंग है. नीरज पाण्डेय सफलता के बाद कुछ भटके थे अब वह वापस अपने मूल ट्रेक पर हैँ.देबात्मा मंडल और तुषार कांति राय का निर्देशन तारीफ के काबिल है.
सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी की बिलकुल नेगेटिव छवि खाकी की से हटकर एक व्यावहारिक अप्रोच और यथार्थ को सामने ला ते गईं नीरज पाण्डेय, अतुल कुमार गर्ग(चोला, लिजेंड ऑफ़ पिकॉक ), गायत्री एन पुष्कर, (सुडोल, द वर्टक्स), राज एन डीके ( फॅमिलीमेन ) जैसे अच्छे और बेहतरीन निर्देशक.
साथ ही अनेक बेहतरीन नए कलाकार सामने आ रहे हैँ. यह सुनहरा दौर है अभिनय, निर्देशन, कथा पटकथा में रूचि रखने वालों का. आप अपनी योग्यता और गुणों को विकसित करें. बेकार की बातों, बहस को छोडे और अपने सपनों को अभिनय, कला, लेखन में मूर्त रूप देने निकले. पर कम से कम पांच स्टेज प्ले का अनुभव हो और एक वर्ष मुंबई में रहने खाने का इंतज़ाम हो. आप यक़ीनन अपनी एक अच्छी जगह बना लेंगे. यह हर आयु वर्ग के लिए अवसर है क्योंकि ओ टीटी ने पूरा माहौल बदल दिया है.कलाकार कम पड़ रहे हैँ. बस अपने अभिनय और लेखन की प्रतिभा को तराश कर, बड़ों के आशीर्वाद से आगे बढ़े. सफलता मिलेगी.
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( डॉ. संदीप अवस्थी, जाने माने फ़िल्म लेखक और कथाकर हैँ.
सम्पर्क 7737407061)