Naagin: A Mysterious Love Story in Hindi Short Stories by Sunita books and stories PDF | नागिन: एक रहस्यमयी प्रेम कथा

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नागिन: एक रहस्यमयी प्रेम कथा

नागिन: एक रहस्यमयी प्रेम कथा

धीरगढ़ की हवेली उस दिन किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। रंग-बिरंगी रोशनियाँ, दीवारों पर लगे फूलों की महक, और नौकर-चाकरों की हलचल से पूरा माहौल उल्लास से भरा हुआ था। ठाकुर विजय सिंह का इकलौता बेटा, वीर सिंह, विदेश में पढ़ाई पूरी करके आज पहली बार अपने पुश्तैनी घर लौट रहा था। पूरे परिवार को उस क्षण का बेसब्री से इंतजार था।

धीरगढ़ में आगमन

जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आकर रुकी, एक लंबा-चौड़ा, खूबसूरत नौजवान प्लेटफॉर्म पर उतरा। उसकी नीली आँखें गहरी और रहस्यमयी थीं। ऊँची कद-काठी और शाही पहनावा उसे बाकी लोगों से अलग बना रहा था। वीर की नजरें किसी को खोज रही थीं, तभी एक सफारी सूट पहने आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ।

"छोटे ठाकुर, मैं आपका सेवक किशोर हूँ। हवेली चलिए।"

दोनों तांगे में बैठकर हवेली की ओर रवाना हुए। वीर ने हैरानी से पूछा, "यहाँ कारें नहीं चलतीं?"

किशोर मुस्कुराया, "छोटे ठाकुर, यह इलाका पिछड़ा हुआ है, यहाँ तांगे ही चलते हैं।"

वीर को यह जगह अजीब सी लग रही थी। लेकिन तभी घोड़ा अचानक रुक गया, और चारों ओर सफेद धुआँ फैल गया। धुएँ के बीच वीर को एक खूबसूरत लड़की दिखी। बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, घने काले बाल और गुलाबी होंठ। वह अप्सरा जैसी लग रही थी। वीर उसे देखता ही रह गया, लेकिन जैसे ही धुआँ छंटा, वह लड़की गायब हो चुकी थी।

हवेली में हलचल

हवेली में सभी लोग वीर की राह देख रहे थे। लेकिन जब किशोर अकेले पहुँचा, तो ठाकुर विजय सिंह चिंतित हो उठे।

"वीर कहाँ है?" ठाकुर ने सख्त लहजे में पूछा।

किशोर ने बताया, "रास्ते में अचानक धुंआ उठा और मैं बेहोश हो गया। जब होश आया तो छोटे ठाकुर गायब थे।"

ठाकुर ने तुरंत लोगों को वीर की तलाश में भेजा। पूरा दिन बीत गया, लेकिन वीर का कोई पता नहीं चला।

वीर की वापसी और रहस्यपूर्ण शादी

रात के नौ बजे, हवेली में हलचल मच गई जब एक नौकर भागते हुए आया, "छोटे ठाकुर आ गए!"

पूरा परिवार हाल में इकट्ठा हुआ, लेकिन जब वीर ने प्रवेश किया, तो सब स्तब्ध रह गए। उसके साथ एक घूँघट में ढकी दुल्हन थी। दोनों के गले में वरमाला थी, जिससे स्पष्ट था कि वे विवाह करके आए थे।

"यह कौन है, वीर?" उसकी माँ ने पूछा।

वीर ने गर्व से कहा, "यह मेरी पत्नी है, आपकी बहू।"

हवेली में कानाफूसी शुरू हो गई। ठाकुर परिवार की परंपराओं को तोड़कर वीर एक अनजान लड़की से शादी कर लाया था!

रहस्यमयी सुहागरात: प्रेम और बदले की जंग

हवेली के भव्य कक्ष में वीर और लवन्या अकेले थे। हल्की रोशनी में घूँघट से झलकता उसका चेहरा किसी चाँदनी रात से कम नहीं लग रहा था। वीर ने धीरे से घूँघट हटाया, और जैसे ही उसने लवन्या का चेहरा देखा,

लवन्या ने बस हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका लिया।

वीर ने धीरे से उसका हाथ अपने हाथों में लिया। "इतनी खूबसूरत हो, फिर भी तुम्हारी आँखों में एक अजीब सा दर्द है। क्या मैं इसे जान सकता हूँ?"

लवन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आँखें छलकने लगीं, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। वीर उसके चेहरे को निहारता रहा—वो नजाकत, वो संकोच, वो अजनबीपन, सबकुछ उसे मंत्रमुग्ध कर रहा था।

उसने धीरे से लवन्या की ठुड्डी को उठाया और कहा, "आज की रात सिर्फ हमारी है। मैं तुम्हें तुम्हारे अतीत से नहीं, तुम्हारे भविष्य से जोड़ना चाहता हूँ।"

लवन्या की आँखों में कुछ पल के लिए हल्का सा कंपन हुआ |

सपनों से हकीकत तक

वीर ने धीरे से लवन्या के चेहरे पर हाथ फेरा। उसकी उंगलियाँ जब लवन्या के गालों को छू रही थीं, तब लवन्या का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसके अंदर एक तूफान उठ रहा था  यह अद्भुत एहसास, जिसे उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था।

वीर ने उसके लंबे, रेशमी बालों में उंगलियाँ फिराईं और फुसफुसाया, "तुम्हें पता है, जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था, तब ही समझ गया था कि तुम मेरे लिए बनी हो।"

लवन्या की साँसें तेज़ हो गईं। वीर ने धीरे से उसकी हथेलियों को अपने होठों से छुआ, जिससे लवन्या का पूरा शरीर काँप उठा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।

"क्या हुआ?" वीर ने पूछा।

लवन्या ने धीरे से कहा, "कुछ नहीं… बस कुछ नया महसूस कर रही हूँ।"

वीर मुस्कुराया। "तो इसे महसूस करो, मेरी रानी। आज की रात हमारी है।"

अलविदा नफरत, स्वागत प्रेम

रात बीतती गई,  वीर की नज़दीकियों ने उसे वो एहसास दिलाया, जो शायद उसने कभी सोचा ही नहीं था।

जब वीर ने उसे अपनी बाहों में भरा, तो उसने पहली बार किसी के स्पर्श में सुकून पाया।  कि यह रात कभी खत्म न हो।

लेकिन जैसे ही वीर गहरी नींद में गया,  वह धीरे से बिस्तर से उठी और चुपचाप हवेली से बाहर निकल पड़ी।

लेकिन जैसे ही वह मंदिर पहुँची और बदले की बात दोहराई, उसके दिल में एक हलचल मच गई। क्या वह सच में वीर को मार सकती थी? फिर वो नागिन बन गई,

अलविदा नफरत, स्वागत प्रेम

अगला दिन,सर्द हवा के झोंकों के साथ रात अपनी अंतिम पहर में थी। चाँद की दूधिया रोशनी हवेली की दीवारों पर एक नरम आभा बिखेर रही थी। लवन्या बिस्तर पर लेटी हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में नींद नहीं थी। वीर की बाँहों में उसने एक अजीब-सा सुकून महसूस किया था—एक ऐसा एहसास, जो उसके बदले की आग को बुझाने की कोशिश कर रहा था।

उसने कभी नहीं सोचा था कि नफरत से शुरू हुआ यह सफर उसे प्रेम के इतने करीब ले आएगा। वीर, जिसे वह अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती थी, आज उसकी आत्मा के सबसे करीब था। वीर का स्पर्श, उसकी बातें, उसकी आँखों में छलकता अपनापन… यह सब लवन्या के कठोर दिल में एक कोमल हलचल मचा रहे थे।

लेकिन जैसे ही वीर ने गहरी नींद में एक शांत साँस ली, लवन्या को अपने असली उद्देश्य की याद आई। वह यहाँ प्रेम पाने नहीं, बल्कि बदला लेने आई थी।

बदले की आग

धीरे से उसने वीर की बाहों से खुद को छुड़ाया। उसने अपने कदमों को बेहद हल्का रखा ताकि उसकी आहट से वीर की नींद न टूटे। कमरे की हर चीज़ उसे रोकने की कोशिश कर रही थी—खिड़की से गिरती चाँदनी, वीर के पास रखी तलवार, और सबसे बढ़कर, उसके अपने दिल की धड़कनें।

लेकिन वह रुकी नहीं। हवेली के गलियारों से निकलते हुए उसका मन बार-बार डगमगा रहा था। जब वह पहली बार इस हवेली में आई थी, तब उसके दिल में सिर्फ नफरत थी। उसने वीर को मौत के घाट उतारने की कसम खाई थी। लेकिन आज… आज कुछ बदल गया था।

लवन्या घोड़े पर सवार होकर मंदिर की ओर बढ़ी। यह वही मंदिर था जहाँ उसने अपने परिवार की कसम खाई थी कि वह वीर से अपने पति की मौत का बदला लेगी। वहाँ पहुँचकर उसने अपने भीतर की आवाज़ को सुना।

“क्या मैं सच में वीर को मार सकती हूँ?”

उसने खुद से सवाल किया, लेकिन जवाब में केवल वीर की हँसी, उसका अपनापन, और उसकी आँखों में झलकता प्यार था। उसने वीर के बारे में जितना सुना था, उससे कहीं ज्यादा अच्छा इंसान वह वास्तव में था। वीर ने उसकी हमेशा रक्षा की, उसे सम्मान दिया, और उसकी हर ख़ुशी का ख्याल रखा।

प्रेम की जीत

अगली सुबह जब सूरज की किरणें हवेली के गलियारों में फैलने लगीं, वीर की आँखें खुलीं। उसने देखा कि लवन्या उसके पास नहीं थी। एक अजीब-सा डर उसके दिल में दौड़ गया।

वह घबराते हुए बाहर निकला और नौकरों से पूछा, लेकिन किसी को कुछ नहीं पता था। तभी दरवाज़े पर घुड़सवारों के खड़े होने की आवाज़ आई। वीर लपककर बाहर गया, और वहाँ उसे लवन्या दिखी।

लेकिन यह लवन्या अलग थी—न उसकी आँखों में नफरत थी, न उसका चेहरा कठोर था। वह अब बदले की आग से मुक्त हो चुकी थी।

“तुम कहाँ चली गई थी?” वीर ने हल्की लेकिन चिंतित आवाज़ में पूछा।

लवन्या ने धीरे से सिर झुका लिया। “मैं तुम्हें मारने आई थी, वीर… लेकिन तुम्हारे प्रेम ने मेरी नफरत को मिटा दिया।”

वीर ने चौंककर उसकी ओर देखा।

“तुम सच कह रही हो?”

वीर ने चौंककर उसकी ओर देखा।

“तुम सच कह रही हो?”

लवन्या की आँखें भर आईं। वह धीरे से आगे बढ़ी और उसके हाथों को थाम लिया।

"हाँ, वीर। मैं बदले की आग में जल रही थी, लेकिन तुम्हारे प्रेम की ठंडी छाँव ने मुझे रोक लिया। मैंने जाना कि नफरत से कुछ नहीं मिलता… लेकिन प्रेम सबकुछ बदल सकता है।"

वीर ने गहरी साँस ली। उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन लवन्या की आँखों में झलकते पछतावे और प्रेम ने उसे शांत कर दिया। उसने धीरे से लवन्या का चेहरा अपने हाथों में लिया और मुस्कुराया।

"मैं नहीं जानता कि तुम्हारे दिल में क्या था, लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए केवल प्रेम है। अगर तुम सच में बदल चुकी हो, तो मैं तुम्हें पूरे दिल से स्वीकार करता हूँ।"

लवन्या ने आँखें बंद कर लीं, मानो वह इस क्षण को हमेशा के लिए महसूस करना चाहती हो। लेकिन तभी हवेली के दरवाजे पर किसी के कदमों की आहट गूँजी।

अतीत का साया

ठाकुर विजय सिंह और पूरा परिवार बाहर खड़ा था। सबकी आँखों में सवाल थे।

"वीर, यह सब क्या हो रहा है?" ठाकुर साहब ने कठोर स्वर में पूछा।

वीर ने गहरी साँस ली और आगे बढ़कर कहा, "पिता जी, यह लवन्या है… मेरी पत्नी, मेरी जीवन संगिनी। यह अब हमारे परिवार का हिस्सा है।"

ठाकुर साहब ने लवन्या को गहरी नजरों से देखा। "क्या यह वही लड़की नहीं है जिसका परिवार हमारे खानदान से बैर रखता था?"

हवेली में सन्नाटा छा गया।

लवन्या ने सिर झुका लिया। "हाँ, ठाकुर साहब। मैं बदला लेने आई थी, लेकिन अब मेरी नफरत खत्म हो चुकी है। वीर के प्रेम ने मुझे बदल दिया है। अब मैं बस उनकी पत्नी बनकर रहना चाहती हूँ।"

ठाकुर साहब की आँखों में संदेह था। "क्या हमें तुम पर भरोसा करना चाहिए?"

लवन्या ने बिना हिचकिचाए कहा, "हाँ, अगर आपने मुझे एक मौका दिया तो मैं अपने प्रेम और वफादारी को साबित कर दूँगी।"

वीर ने अपने पिता की ओर देखा। "पिता जी, मैं जानता हूँ कि यह सुनना आपके लिए आसान नहीं है, लेकिन मैं लवन्या पर विश्वास करता हूँ।"

ठाकुर साहब ने कुछ देर सोचा और फिर बोले, "अगर वीर तुम पर विश्वास करता है, तो मैं भी तुम्हें मौका देता हूँ। लेकिन याद रखना, इस परिवार की मान-मर्यादा तुम्हारे हाथ में होगी।"

लवन्या ने हाथ जोड़कर सिर झुका लिया। "मैं आपके विश्वास को कभी तोड़ने नहीं दूँगी।"

एक नई शुरुआत

धीरे-धीरे हवेली में सबने लवन्या को स्वीकार करना शुरू कर दिया। उसकी सादगी, विनम्रता और वीर के प्रति सच्चे प्रेम ने सबका मन जीत लिया।

कुछ महीनों बाद, वीर और लवन्या का रिश्ता और मजबूत हो गया। अब वे सिर्फ पति-पत्नी ही नहीं, बल्कि दो आत्माएँ थीं, जो एक-दूसरे के बिना अधूरी थीं।

एक दिन वीर ने लवन्या से पूछा, "अगर मैं तुम्हारे जीवन में न आता, तो क्या तुम सच में बदला लेती?"

लवन्या मुस्कुराई। "शायद हाँ, लेकिन अब मैं जान चुकी हूँ कि नफरत से केवल अंधकार मिलता है, और प्रेम से रोशनी। मैं शुक्रगुजार हूँ कि मेरी राह में तुम आए, वीर।"

वीर ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। "और मैं शुक्रगुजार हूँ कि तुमने मेरे प्रेम को अपनाया।"

धीरे-धीरे अतीत की परछाइयाँ मिटने लगीं, और उनके जीवन में केवल प्रेम, विश्वास और खुशियों की रोशनी रह गई।