cruel times in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | ज़ालिम ज़माना

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ज़ालिम ज़माना

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानीशबनम का कोचिंग आईएएस के लिए जाना जाता था। राशिद सर इस कोचिंग की पहचान बन चुके थे। उनका आईएएस में सिलेक्शन हुआ तो शबनम ने मुझे उनकी यह कहानी सुनाई।राशिद सर के पापा का नाम जावेद हबीब था। एक रात उसकी पत्नी प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी। कोठरी से बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। तभी दाई ने उसे पुकारा और यह मनहूस ख़बर सुनाई, 'तुम्हारी बीवी ने ज़नख़ा बच्चा जना था। यह जानकर उसका दिल बैठ गया और वह दुनिया छोड़कर चली गई। फिर कहा, 'ज़नख़े बच्चे को किन्नर पालते हैं। मैं एक किन्नर को जानती हूं। उसका नाम अफसरी है और वह सराए में रहती है।' इस बच्चे को उसे दे आओ।  जावेद हबीब पर ग़म का पहाड़ टूट पड़ा था। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने रोते हुए बच्चे को चादर में लपेटा और अफसरी को देने ले गया। उसने अफसरी से कहा, 'यह बच्चा ज़नख़ा है, मैं इसे तुम्हें देने के लिए लाया हूं।' अफसरी ने कहा, 'अगर यह बच्चा अंधा, लूला या लंगड़ा होता,‌ तुम पालते ना, फिर इसे क्यों नहीं पालते? जावेद हबीब ने तर्क दिया, 'यही ज़माने की रीति है।' अफसरी ने कहा, 'पढ़ने-लिखने के बाद दुनिया बदल गई पर ऐसे बच्चों को लेकर ज़ालिम ज़माने की सोच ज्यों की त्यों है। मेरा बाप भी तुम जैसा था। उसने मुझे नर्क में धकेल दिया। तुम भी वही कर रहे हो, तुम्हें इसकी हाय लगेगी।' जावेद हबीब आंखों में आंसू भरे घर वापस जा रहा था।वीरान सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था जिसे बच्चे की रुलाई चीर रही थी। अफसरी के कहे शब्द 'ज़लिम ज़माने की सोच ज्यों की त्यों है' उसके कानों में घंटियों की तरह बज रहे थे।  उसने दाई से इस राज़ को सीने में दफन करने को कहा और पत्नी को दफनाने की तैयारी में जुट गया। वह जिधर भी जाता, रोता हुआ बच्चा उसका पीछा हर जगह कर रहा है। एक दिन वह उसे रेड लाइट पर मिल गया। वह उसके पास आया, 'ला दे दे साहिब, कुछ दे दे, अल्लाह तुझे खुश रखेगा, साहिब।' वह मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए था। चेहरे पर पाउडर थुपा हुआ था और होठों पर लाली लगी थी। जावेद हबीब ने चौक कर उससे पूछा, 'तू इतना बड़ा हो गया ...?' उसने ताली पीटकर कहा।,  'आय- हाय, मैं तो इतना बड़ा ही पैदा हुआ था। छोटा पैदा होता तो बाप छोड़कर क्यों जाता?' बच्चे ने उसका पीछा कभी नहीं छोड़ा।जावेद हबीब ने दूसरा निकाह किया तो वह बराती बनकर बरात में गया। सुहागरात को जावेद हबीब रिज़वाना का घूंघट उठा रहा था। वह आ गया और मां का मुंह देखने की ज़िद करने लगा।  जावेद हबीब ने गुस्से में लाल लाल होकर कहा, 'तुझे शर्म नहीं आती? आख़िर तू क्या चाहता है?''मुझे मां-बाप चाहिए।' बच्चे ने रोते हुए कहा।'ठीक है।' जावेद हबीब ने पत्नी से कहा, 'तुम ठहरो मैं अभी आता हूं।'वह अफसरी के पास गया। उससे बच्चे को लेकर आया और रिज़वाना की गोदी में डाल दिया। फिर कहा, 'यह बच्चा मेरी पहली बीवी से पैदा हुआ था।'रिज़वाना ने गुस्से में कहा, 'झूठ बोलकर शादी की है ना तुमने मुझसे। ख़ुदा की क़सम अगर मुझे पता होता तुमने अपनी पहली बीवी से यह ज़नख़ा पैदा किया है तो कभी तुमसे शादी नहीं करती ...।' जावेद हबीब ने बच्चे को सौतेली मां की गोदी से उठा लिया और उसे राशिद कह कर अपने सीने से लगा लिया।पच्चीस साल का यात्ना भरा सफर तय करने के बाद राशिद ने एम.ए. पास कर लिया था। वह मेरे कोचिंग में पढ़ाने लगा था।एक दिन वह कोचिंग में पढ़ा रहा था तभी उसे आईएएस में सिलेक्शन की ख़बर मिली। उसने पापा को ख़ुशख़बरी देने के लिए फोन लगाया तो पता चला उन्हें हार्ट अटैक आया है, अस्पताल में भर्ती है। उसने रोते हुए मुझसे अस्पताल ले चलने को कहा।मैं बिना समय गंवाए उसे लेकर चल पड़ी। रास्ते में उसने मुझसे कहा, 'पापा को कुछ हो गया ना तो मैं जीते जी मर जाऊंगा। इतनी बड़ी कामयाबी हासिल करने के बावजूद भी मैं जिंदगी खत्म करने में एक मिनट नहीं लगाऊंगा। मैं ख़ुदकुशी कर लूंगा।मैंने उसे दिलासा दी, 'ऐसा सोचना भी मत। हिम्मत रखिए आपके पापा ठीक हो जाएंगे।'शबनम, आप ऐसी बातें मुझसे तो मत करिए प्लीज़। जिस दिन से मैं पैदा हुआ हूं, टॉर्चर ही सह रहा हूं। ज़िंदगी में पहली खुशी मिली तो ग़म साथ लाई ...।आप परेशान न हो, दुआ करें उनके लिए।'मेरे पापा के अलावा और कोई नहीं है। मेरे पापा ना बेस्ट पापा है, हमेशा मेरी बात सुनते हैं, मुझे समझते हैं। अगर उन्हें कुछ हो गया उनके बिना मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा।' 'कुछ नहीं होगा उन्हें। हम हॉस्पिटल पहुंच गए हैं।' आईसीयू के वेटिंग हॉल में उसे मां दिखाई दी। उसने मां से पूछा, 'पापा को क्या हुआ है?' मां खामोश रही।'शकील तुम ही बताओ भाई, पापा को क्या हुआ है।' 'हार्ट अटैक हुआ है, बचना मुश्किल है।' 'पापा कहां हैं? मैं उनके पास जाना चाहता हूं।'शकील ने ठहाका लगाया, 'पढ़ी-लिखी मैडम, तुम्हें इतना भी नहीं पता  तुम लोगों का वहां जाना अलाउड नहीं है।' तभी राशीद की मां ने तल्ख़ लहजे में मुझसे पूछा, 'कौन हो तुम, यहां कैसे?' 'राशिद सर, मेरे कोचिंग में पढ़ाते हैं।' मैंने कहा।शकील ने मुझसे कहा, 'इतनी इज़्ज़त देने की ज़रूरत नहीं है उसे। यह लोग ज़्यादा इज़्ज़त के लिए डिज़र्व नहीं करते हैं।'थोड़ी देर रुकने के बाद मैंने कहा, 'राशिद, कोचिंग में कोई सीनियर नहीं है। आई थिंक मुझे चलना चाहिए।'उसने कहा, 'मुझे लगता है, कुछ बहुत बुरा होने वाला है। और जो होने वाला है, उसे फेस करने की मुझमें हिम्मत नहीं है। तो आप प्लीज़ मेरे साथ थोड़ी देर के लिए यहां रूक जाएं। मैंने  पूछा, आपका भाई के साथ कोई मसला है क्या, बेहूदा कमेंट कर रहा है आप पर?'उसने कहा, 'इग्नोर करें आप इसे। वह हमेशा से बदतमीज़ी करता है।' एक नर्स ने पूछा, 'जावेद हबीब के साथ कौन है?'  'जी, जी मैं हूं।' राशिद ने उतावला होकर कहा।नर्स : डॉक्टर आपको रूम में बुला रहे हैं। राशिद ने मुझसे कहा, 'आप प्लीज़ मेरे साथ चल सकती हैं, मुझे बहुत डर लग रहा है।'मैं उसके साथ डॉक्टर के रूम में चली गई। डॉक्टर ने कहा, 'आई एम सॉरी टू से। उनके पास ज़्यादा वक्त नहीं है। अब तक उनका ज़िंदा रहना किसी मिरेकल से कम नहीं है।' फिर उसने नर्स से कहा, इन्हें पेशेंट से मिलवा दीजिए। राशिद पापा के पास चला गया और मैं बाहर बैठ गई। कुछ देर बाद, हाई पीप अलार्म बजने लगा जिसे सुनकर नर्स ने उसे बाहर भेज दिया।उसने रोते हुए कहा, 'पापा कहते थे, तुम मेरे बहुत बहादुर बेटे हो। तुम्हें दुनिया में एक मिसाल क़ायम करनी है। तुम्हें ख़ुद को मनवाना है, बेटा। तुम्हें अपना और मेरा नाम सितारों से भी ज़्यादा रौशन करना है। मुझे पता है एक दिन तुम ज़रूर करोगे।' इन्होंने बहुत ग़म सहा है। मेरे आईएएस. के रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे थे। इन्हें तो यह भी पता नहीं कि पास हुआ हूं या फेल। वह हिचकियों से रोने लगा, पापा, मैं पास हो गया मुझे शाबाशी तो दे दीजिए...।मैंने पूछा, 'और आपका सच क्या है ...?'उसने मुझे यह दास्तां सुनाई -स्कूल से फेल होकर आया तो पापा ने मुझे गले लगा लिया। मम्मी बोली, 'क्या दीवाने हो गए हो, जावेद हबीब? फेल होकर आया है, तुम्हारा यह लाडला। पता नहीं लाडला है कि लाडली और तुम इसे दो थप्पड़ लगाने के बजाय गले लगा रहे हो।'पापा ने कहा, 'तुम्हें क्या तकलीफ़? यह बाप- बेटे के बीच का मामला है। तुम जाओ यहां से जाओ, प्लीज़ जाओ।'मम्मी बोली, 'तुम एक काम क्यों नहीं करते, अपने इस बेटे को वहीं छोड़ आओ, जहां से मेरी सुहागरात के दिन उठाकर लाए थे। बाद में भी इसे वहीं जाना है और वही करना है जो वह करते हैं।' पापा ने चिल्लाकर कहा  'फरज़ाना। बहुत कह चुकी।' मम्मी ने उसी लहजे में कहा, 'क्या फरज़ाना। ठीक कह रही हूं, अगर इसे कल को रंगीन रेशमी कपड़े पहनने हैं, तालियां ही पीटनी है तो क्यों इस पर पैसा झोंक रहे हो?' पापा ने गुस्से में कहा, 'हज़ार बार मैंने तुम्हें बोला, हज़ार बार। मेरे बच्चे के सामने इस तरह की बातें मत किया करो।' मम्मी ने कड़क आवाज में कहा, ' तुम्हारा नाम चलाने वाला, तुम्हारी नस्ल चलाने वाला बच्चा तुम्हें मैंने दिया है और तुम मां- बेटे को छोड़कर इस ज़नख़े को गले लगा रहे हो, यह नाइंसाफी है, नाइंसाफी।' पापा ने कहा, 'तुम्हें पता है बेटा तुम बहुत स्पेशल हो।' 'कैसे पापा?' 'तमाम इंसान बेटा, दुनिया में सिर्फ एक इम्तिहान देने आए हैं और मेरा बेटा डबल इम्तिहान देने।''वह क्यों।' पापा ने कहा, 'बेटा जो लोग स्पेशल होते हैं ना, अल्लाह उन्हें बड़ा ताक़तवर और मज़बूत बनाता है। क्योंकि उनका इम्तिहान मुश्किल और कठिन होता है।' मैंने पूछा, 'तो बाबा मैं स्पेशल क्यों हूं? मैं शकील जैसा क्यों नही।'पापा ने कहा, 'बेटा जब तुम बड़े हो जाओगे ना, पढ़- लिख जाओगे, तब तुम्हें तुम्हारे तमाम सवालों का जवाब मिल जाएगा, बेटा।' 'लेकिन पापा मैं तो फेल हो गया। मैं कैसे पढ़ूंगा?' पापा ने कहा, 'अगले साल तुम बहुत मेहनत करोगे और देखना तुम फर्स्ट आओगे।' 'अल्लाह ने अगर आपके अंदर एक कमी रखी है तो इसके बदले में आपको एक बहुत ख़ास ख़ूबी भी दी है।' 'मेरी मेमोरी ना।''हां। मेरा बेटा एक बार जो पढ़ लेता है, उसको फौरन याद हो जाता है। दुनिया में कुछ भी हो जाए बेटा, आपको अपनी स्टडीज़ को कभी नहीं छोड़ना। किताबों को अपना बेस्ट फ्रेंड बनाके रखना। खूब दिल लगाके पढ़ना है, बहुत नाम कमाना है मेरे बेटे।' 'चलो मेरा बेटा अब जाओ अपने कमरे में जाकर सो जाओ।'आई लव यू पापा।''आई लव यू टू। आई लव यू टू। जा।' मैं सवेरे सोकर उठा तब तक पापा काम पर जा चुके थे। मम्मी ने मुझसे कहा, 'देखो! कितनी प्यारी लगेंगीं न चूड़ियां तुम्हारी कलाई में। मैं तुम्हें लिपस्टिक लगाती हूं। आ जाओ मैं तुम्हें दुपट्टा उढ़ा दूं। देखना कितने प्यारे लगोगे तुम दुपट्टा पहन के।  मम्मी बोली, 'चलो मेरी प्यारी सी बेटी मैं तुम्हें आइसक्रीम खिलाऊंगी। मैं खुशी-खुशी उनके साथ चल दिया। मम्मी मुझे एक औरत के पास ले गई मम्मी ने उससे कहा, 'अफसरी, तुम्हें याद होगा एक रात एक आदमी अपने नवजात बच्चे को तुम्हारे पास छोड़ गया था। उसके बाद उस आदमी ने मुझसे शादी कर ली। सुहागरात के दिन वह अपने बच्चों को तुमसे वापस ले गया था और मुझसे पालने को कहता है। भला मैं उसके ज़नख़े बच्चे को क्यों पा लूं। इसलिए तुम्हें यह बच्चा लौटाने लाई हूं। फिर मम्मी ने मुझसे कहा, 'यह तुम्हारी मां है, देखो तुम जैसी है ना। मैंने कहा और पापा। मम्मी आइसक्रीम लाने का बहाना करके चली गई।मेरी नई मां मुझे पाकर बहुत खुश हुई। वह मुझे आइसक्रीम खिलाने ले गई। उसने मुझे ढेर सारे खिलौने और कपड़े ख़रीद कर दिए। मैं जब भी पापा को याद करता वह मुझे घुमाने- फिराने ले जाती और मुझे बहला दिया करती थी। मां ने मेरा दाख़िला पास के सरकारी स्कूल में करा दिया था। स्कूल से लौट कर आया तो मां ने पूछा, 'कैसा लगा स्कूल में, पढ़ाई की थी दिल लगाके।'लेकिन मां क्लास में मुझे कोई पढ़ने ही नहीं देता। सब लोग मेरा मज़ाक उड़ाते रहते हैं, मुझे तंग करते रहते हैं। मां ने कहा, 'जब कोई नया बच्चा स्कूल में आता है तो उसे पुराने बच्चे तंग करते हैं कुछ दिनों बाद तुम्हारी उनसे दोस्ती हो जाएगी तो तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा।'कुछ दिनों बाद मैंने मां से कहा, 'मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।'मां ने कहा, 'अब क्या हो गया?' स्कूल में बच्चे कहते हैं, नाच  के दिखाओ। मां, क्या नाचना बुरी बात होती है? बेटा, नाचना बुरी बात तो नहीं लेकिन तुम तो स्कूल पढ़ने के लिए जाते हो।''मैंने  पूछा, 'स्कूल में सब मुझे ज़नख़ा कहते हैं, मां यह ज़नख़ा क्या होता है?' मां रोने लगी। 'मां अगर मैं ज़नख़ा हूं तो आप क्यों रो रही हैं? आप तो नहीं है ना।' मत रोएं मां।'मां ने कहा, कल मैं तुम्हारे स्कूल आऊंगी। उसके बाद कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा। दूसरे दिन मां स्कूल पहुंची। उस समय बच्चे मुझे नचा रहे थे। मास्टर जी कुर्सी पर बैठे हुए नाच का मज़ा ले रहे थे।मां ने मास्टर जी से कहा, 'बच्चे इसे नचा रहे हैं और आप कुछ नहीं कहते हैं?' मास्टर जी ने कहा, 'क़ुदरत ने इसे ज़नख़ा बनाया है ज़नख़ा। चौबीस घंटे इसके कानों में घुंघरू बोलते होंगे, तालियां पीटने को दिल करता होगा, नाचने-गाने का दिल करता होगा। अगर यक़ीन नहीं आए तो पूछ लो इससे। मेरे मना करने ना करने से क्या फर्क पड़ता है?'मां ने ग़ुस्से से कहा, 'मास्टर जी कान खोलकर सुन ले, 'इसे तो क़ुदरत ने ज़नख़ा बनाया है, तुझे अफसारी बनाएगी।' मास्टर ने हाथ पैर जोड़कर अपनी जान बचाई। स्कूल में मातम छा गया। उन्होंने मुझे अपने पास बिठा लिया और पढ़ाने लगे। स्कूल में अब कोई भी मुझसे कुछ नहीं कहता था। मेरे फर्स्ट डिवीजन पास होने का रिज़ल्ट देखकर मां बहुत खुश हुई थीं। वह घर-घर जाती थी और किताबें इकट्ठी करके मेरे लिए लाती थी। पढ़ाई का शौक मुझे शुरू से था। मां की लाई किताबों को पढ़ने से मेरी फाउंडेशन मज़बूत हो गई थी जिसने मुझे इस सिलेक्शन में मदद की।कई साल यूं ही चलता रहा फिर एक दिन मां पापा को कहीं से ढूंढ लाई थी। मां ने मुझसे गमगीन लहजे में कहा, 'बेटा मुझे कैंसर है। मैं तुम्हें तुम्हारे बाप के सुपुर्द करके दुनिया से जा रही हूं।''ऐसा ना कहो मां।'और मैं उनसे लिपटकर रोने लगा। मरते समय मां के चेहरे पर ख़ुशी साफ झलक रही थी। उस दिन मां ने अपने चेहरे पर कोई लाली पाउडर नहीं थोपा था पर उनके चेहरे की आभा देखने लायक थी। बिछड़े हुए पापा मुझे फिर मिल गए थे। उन्होंने कहा, 'बेटा, मुझे अफसोस है, मैं तुझे फिरसे डायन रिज़वाना के पास ले जा रहा हूं।'मुझे देखकर मम्मी बोली, 'यह मनहूस अफसरी को खो गया अब यहां क्या करने आया है?'पापा ने मम्मी को घसीटकर कहा 'चली जाओ यहां से।'मम्मी बोली, 'छोड़ो मुझे, आऐ रे...पापा ने इमोशनल होकर कहा, मैं एक बात बताऊं आपको कि जैसे-जैसे आप बड़े होंगे आपके लिए परेशानियां बढ़ेगी। कभी तो आपका दिल चाहेगा, आप पापा की तरह कपड़े पहनो, मर्द बन के रहो ‌आप भी ऑफिस जाओ, बहुत‌ ज़्यादा पैसे कमाओ और शायद कभी आपका दिल चाहेगा, कि आप मम्मी की तरह कलरफुल कपड़े पहनो, बहुत सा मेकअप लगाओ। यह दोनों बातें बिल्कुल भी बुरी नहीं है बेटा आप जैसे भी रहना चाहोगे, मेरे बेटे रहोगो और पापा आपसे हमेशा प्यार करते रहेंगे बेटा। यह फैसला आपने बड़े होने के बाद करना है कि आपको कैसे रहना है। अभी तो सिर्फ  पढ़ाई करना है और बहुत सारी एजुकेशन हासिल करनी है, मेरे बेटे।' मैंने कहा, 'जी पापा, पढ़ने का तो मुझे भी बहुत शौक है।' 'गुड बेटे, वेरी गुड।'मैंने कहा, 'और मुझे आपकी तरह बाइक भी चलाने का बहुत शौक है और मुझे जाब भी करना है और बहुत सारे पैसे भी कमाना है।'  'शाबाश मेरा बेटा, शाबाश।'  ' फिर गमगीन होकर कहा, 'अपने साथ अपनी पहचान का इम्तिहान देना सबसे मुश्किल इम्तिहान है, मेरे बच्चे और तुझे इस इम्तिहान के लिए चुना गया है। मुझे नहीं पता, यह मुश्किल बात तुझे कैसे समझाऊं लेकिन मेरे रब मुझे हिम्मत देना। मैं इसकी रहनुमाई कर सकूं। तेरे इस ज़ालिम ज़माने में इस मासूम की हिफ़ाज़त कर सकूं।' 'पापा, आप रो रहे हैं क्या?' 'नहीं, बिल्कुल नहीं बिल्कुल नहीं।' 'मैंने यूनिवर्सिटी में टॉप किया। मुझे हायर स्टडीज़ के लिए स्कॉलरशिप मिला। मैं को- एजुकेशन से कतरा रहा था। पापा ने मेरा हौसला बढ़ाया, 'तुम अपने होने पर कभी कंफ्यूज नहीं रहना बेटा, कभी कशमकश में नहीं पड़ना। कशमकश ज़्यादा हो तो गलतियां भी ज्यादा होती हैं। गलतियां करते रहना लेकिन सीखने के लिए बेटा। यह स्कॉलरशिप तुम्हारी ज़िंदगी बदल देगी। तुम्हें इतना आगे जाना है बाकी सब धुल बनकर पीछे रह जाए।'यह सुनकर शकील ने पापा से कहा, 'यह घर से दूर रखने की चीज़ थी। सारी दुनिया सारी सोसाइटी ऐसे लोगों का सोशल बायकाट करती है। इन्हें इनके ठिकाने और औकात में रखती है। लेकिन आपने बिल्कुल उलट किया, आप इसे सिर पर चढ़ा रहे हैं। पापा क्यों किया आपने यह सब? पापा आप मुझे यह बताएं सारी जिंदगी आपने जितना टाइम इसे दिया, मुझे क्यों नहीं दिया?''तुम शायद भूल गए हो बेटा, मैंने तुम्हारे लिए भी बहुत कुछ किया, हमेशा तुम्हें टाइम देना चाहा लेकिन तुम अपनी मां के पास भाग जाते थे।'मम्मी ने गुस्से में कहा, 'क्यों न आता मेरे पास। जब तुम अपनी इस आधी-अधूरी औलाद के बाप बन के रह सकते हो तो मैं अपने बेटे की मां बनके नहीं रह सकती?' यह सुनकर पापा की तबीयत बिगड़ गई, बंद करो यह लड़ाई, (पानी का गिलास)। फिर कहा, 'जावेद बेटा मुझे सांस नहीं आ रही है, मुझे बाहर ले चलो।' अच्छा यह बताओ तुम्हारी आईएएस की तैयारी शुरू हो गई।''जी, मैंने शुरू कर दी।'पापा ने कहा, 'बेटा अपनी मां और भाई को इसकी भनक भी नहीं लगने देना।' फिर मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, 'शाबाश, मैं तुम्हें किसी शानदार जगह पर देखना चाहता हूं। वह भी अपने जीते जी।' और मेरी एक बात और सुन लो, 'मुझे तुम्हारी नीली बत्ती वाली गाड़ी की पिछली सीट पर बैठकर सैर करना है क्योंकि ...।'मैंने चौंककर पूछा, 'क्योंकि क्या? अपनी बात मुकम्मल करें पापा।''क्योंकि मैं बूढ़ा हो रहा हूं। पता नहीं मैं कब तक हूं, मैं चाहता हूं तुम मेरे जीते- जी अपनी मंज़िल तक पहुंच जाओ।'मैं ग़मगीन हो गया, 'आप भी ना बिल्कुल अजीब है। पापा क्या हो जाता है आपको इस तरह की उल्टी-सीधी बातें करते हैं...।'वेंटिलेटर की पीप शांत हो गई। डॉक्टर ने कहा आई एम सॉरी।वह फूट फूट कर रोने लगा और मैं उसे दिलासा देने लगी, 'तुम लकी हो राशिद, बहुत लकी हो। तुम्हें ऐसे पापा मिले और अफसरी जैसी मां मिली।'उसने कहा,  'बिल्कुल ठीक कह रही है आप, अगर मेरे पापा बाकी बापों की तरह होते और मेरी अफसरी मां धाकड़ नहीं होती तो मैं भी आज किसी ट्रैफिक सिग्नल पर भीख ही मांग रहा होता या शायद इससे भी बुरा। मुझ जैसे ज़्यादातर लोग यही तो करते हैं।'मैंने कहा, 'शायद तुम्हें अंदाज़ा नहीं है, तुमने जिस तरह की ज़िंदगी जी है ना उसका इम्तिहान तुमसे ज़्यादा तुम्हारी अफसरी मां और पापा ने दिया है। इसलिए हॉस्पिटल आते वक्त जो तुम मेरी गाड़ी में मुझसे कह रहे थे, सोचना भी नहीं। पापा और मां साथ है या नहीं है। कुछ भी हो जाए राशिद, तुम्हें इस ज़िंदगी को जीना है। तुम समझ रहे हो।' 'मुझे कोचिंग जाना होगा अपना ख़्याल रखना।''जी ...।' मैंने कहा, तुम प्लीज़ बैठो ...।राशिद का पोस्टिंग हो गया था। उसने स्पेशल बच्चों के वेलफेयर के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना कर दी थी। उस ट्रस्ट का नाम उसने अपने पापा जावेद और मां अफसरी के नाम पर रखा था। वह अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा ट्रस्ट को दान दे दिया करता था। उसके इस प्रयास से स्पेशल बच्चों को एक नया प्लेटफार्म मिल गया था।  348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बायपास, बरेली (उ प्र) 243006, मो : 9027982074 ई मेल wajidhusain963@gmail.com