directer in Hindi Book Reviews by Yashvant Kothari books and stories PDF | पाठकीय प्रतिक्रिया

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पाठकीय प्रतिक्रिया

पाठकीय प्रतिक्रिया

पुस्तक –डायरेक्टर(उपन्यास )लेखक-प्रफुल्ल प्रभाकर ,प्रकाशक-दीपक प्रकाशन जयपुर ,प्रथम संस्करण पेज 248  मूल्य-725 रु.

यशवंत कोठारी
फ़िल्मी दुनिया ग्लेमर की दुनिया है ,इस में चमक,दमक भी है और अँधेरे स्याह पन्ने भी है .कई साहित्यकार इस फ़िल्मी  दुनिया में गए और असफल हो कर वापस आये कई सफल हो कर वही जम गए. नाम व नामा  कमाने में व्यस्त हो गए .लेकिन सफलता के चक्कर में साहित्य पीछे रह गया ,वे आगे निकल गए .इसी दुनिया के अपने खट्टे मीठे अनुभवों को आधार बना कर प्रफ्फुल प्रभाकर ने इस उपन्यास का ताना बाना बुना है , फिल्म को बनाने में प्रोडूसर ,निर्देशक,लेखक ,हीरो हीरोइनों के अलावा सेकड़ों लोगों का श्रम व दिमाग लगता है .कई गुमनामी की जिन्दगी जीते हुए मर जाते हैं और कई सफलता के लिए समझोते कर के अपना जीवन निकाल देते हैं .कास्टिंग काउच के किस्से खूब लिखे गए हैं .अपने समय के  प्रसिद्ध  हीरो हीरोइनें बुढापे में मारे मारे फिरते हैं  पहले ये लोग प्रोडक्शन हाउस में नौकरी करते थे ,अब आर्थिक स्थिति बहुत शानदार है ,ये लोग अपना पैसा व्यापार ,होटलों ,व अन्य जगहों पर लगा कर मस्त जीवन जीते हैं एक एक फिल्म के करोड़ों लेते हैं फिर भी मानसिक दरिद्रता नहीं जाती .फिल्मों में लेखक के अलावा सभी लेखक है लेखक तो बेचारा मुंशी है .उसे कोई नहीं पूछता .डायलॉग राइटर फिर भी ठीक स्थिति में रहता है .

उपन्यास का नायक बिस्वास है .जो फिल्मों में  कहानियां लिखने के लिए आया है ,एक नायिका उस से प्यार करने लग जाती है ,अन्तरंग प्रसंगों का ढेर है . शराब,शबाब,और कबाब का घालमेल है .सायरा सफलता के लिए कोई सीमा नहीं मानती .भारती एक प्रसिद्ध लेखक है है जो अपनी शर्तों पर फिल्म  लिखता है .उपन्यास में एक फिल्म के निर्माण की कथा  है जो वैश्या  जीवन पर आधातित है इसे  बाज़ार नाम दिया गया है ,इस फिल्म के फिल्मांकन के लिए ही बिस्वास और सायरा व सलमान दोड़ धूप करते हैं . आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त सलमान को उधारी मिल जाती है बाद में उसकी फिल्म जैसे तेसे पूरी होती है और बिक जाती है ,लाखों की आमदनी होती है .उधारी चुका दी जाती है .होटलों की रंगीन  दुनिया के भी नज़ारे है .उपन्यास में  दिलीप कुमार का भी एक प्रसंग है . दीप्ती नवल का भी जिक्र है .सुनील दत्त का भी जिक्र है जिससे बचा जा सकता था.रचना पठनीय है तथा फ़िल्मी दुनिया के बारे में जानकारी देती है कुल मिलकर यह उपन्यास एक फ़िल्मी कहानी की तरह ही सामने आया है .एक दौर में इस तरह के रूमानी उपन्यास पल्प फिक्शन के रूप में खूब लिखे गए थे .बहुत सारी  फ़िल्में भी बनी थी . जो पाठक फ़िल्मी दुनिया के सच को जानना चाहते हैं उन्हें यह पुस्तक पढनी चाहिए .गुलशन नंदा ने  भी खूब लिखा था .पढ़ते समय कई बार लगा की यह लेखक की आत्म कथा का ही अंश है.फिल्म बनाने की तकनीक की जानकारी भी इस रचना में  हैं लेकिन इसे विस्तार दिया जा  सकता था .पूरा खेल ग्लेमर ,शोबाज़ी,और देह चित्रण का हो कर रह गया .

पुस्तक में कथा है शिल्प है लेकिन भाषागत सौन्दर्य नहीं है .कई हिस्से तो केवल विवरणात्मक हो गए  है .अंगरेज़ी शब्दों के प्रयोग से बचा जा सकता था .लेखक ने बताया की इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद भी जल्दी ही आने वाला है .लेखक राजस्थान साहित्य अकादमी से सम्मानित  भी है .

लेखक ने इस उपन्यास को अशोक आत्रेय को समर्पित किया है, पुस्तक का प्रोडक्शन गेट अप ठीक है कवर पर ज्यादा मेहनत की जरूरत थी आज कल तो ऐआइ की मदद से बहुत अच्छे कवर बनते हैं  .मूल्य भी अधिक है लेकिन शायद  बाज़ार की ताकत से मुकाबले के लिए ऊँची कीमत जरूरी है .रिबन का बुक मार्क बहुत समय के बाद देखा .अच्छा लगा .

 इस विषय पर हिंदी में कम ही लिखा गया है लेखक ने एक अछूते विषय पर कलम चलाई उनको बधाई .लेखक को अपना नया फोटो भी लगाना चाहिए ,ताकि वरिष्टता झांके .

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यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह  रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015  मो.-94144612 07