प्रस्तावना:
पुरानी हवेली के रहस्य से अनजान, वीरेंद्र अपने दोस्तों के साथ वहाँ रहने आता है। गाँव के लोग हवेली के पास जाने से भी डरते हैं। कहते हैं, वहाँ रात के अंधेरे में कोई चलता है, फुसफुसाता है, और कभी-कभी चीखें भी सुनाई देती हैं। वीरेंद्र इस अंधविश्वास को चुनौती देने की ठानता है, लेकिन धीरे-धीरे एक-एक करके अजीब घटनाएँ होने लगती हैं।
चरित्र:
1.वीरेंद्र (मुख्य पात्र, पुरानी हवेली का मालिक)
2.समीर (वीरेंद्र का मित्र)
3.नीलिमा (वीरेंद्र की बहन)
4.पंडित नारायण (गाँव के तांत्रिक)
5.रमा (गाँव की रहस्यमयी औरत)
6.अजय (समीर का दोस्त)
7.कावेरी (नीलिमा की सहेली)
8.इंस्पेक्टर राठौड़ (स्थानीय पुलिस अधिकारी)
9.देवकी (पुरानी नौकरानी)
10.रघु (पुराना सेवक)
दृश्य 1: हवेली का पहला कदम
(रात का समय। वीरेंद्र, समीर, नीलिमा, अजय और कावेरी जीप से उतरते हैं। हवेली के दरवाजे पर पंडित नारायण खड़े हैं। हवेली खंडहर जैसी दिखती है। हवा में एक अजीब-सी ठंडक है।)
पंडित नारायण (चेतावनी भरे स्वर में): "बेटा, इस हवेली में मत जाओ। यहाँ सिर्फ़ अंधेरा नहीं, कोई और भी है।"
वीरेंद्र (हँसते हुए): "पंडित जी, ये 21वीं सदी है। हम भूत-प्रेत जैसी चीज़ों में यकीन नहीं करते।"
नीलिमा (थोड़ा घबराते हुए): "लेकिन भाई, अगर कुछ अजीब हुआ तो?"
समीर (मज़ाक में): "तो फिर भाग चलेंगे!"
(सब हँसते हैं, लेकिन पंडित नारायण गंभीर रहते हैं।)
पंडित नारायण: "यह मज़ाक नहीं है। इस हवेली की दीवारों में कुछ ऐसा छुपा है, जो तुम्हारी सोच से परे है।"
(तभी अचानक हवेली का दरवाज़ा अपने आप खुल जाता है। ज़ोर की हवा चलती है। सभी एक-दूसरे की ओर देखते हैं, फिर अंदर जाने का फैसला करते हैं।)
दृश्य 2: हवेली के अंदर पहला डर
(अंदर घना अंधेरा है। वीरेंद्र टॉर्च जलाता है। हर कोने में धूल जमी हुई है। दीवारों पर अजीब चित्र बने हैं। अचानक कहीं से हल्की फुसफुसाहट सुनाई देती है।)
कावेरी (धीमी आवाज़ में): "तुमने सुना? कोई बोल रहा था..."
अजय (डर छुपाते हुए): "अरे, हवा होगी। तुम लोग तो बस..."
(तभी एक दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो जाता है। सब चौंक जाते हैं। नीलिमा चीख पड़ती है।)
नीलिमा: "कोई है यहाँ! हमें बाहर जाना चाहिए।"
वीरेंद्र: "शांत रहो। डराने की कोशिश मत करो।"
(तभी एक पुराने झूले की चेन हिलने लगती है और हल्की-सी हंसी सुनाई देती है।)
समीर (घबराकर): "वीरेंद्र, कुछ तो गड़बड़ है! यह मज़ाक नहीं लग रहा।"
(तभी पीछे से एक साया गुज़रता है, सबका खून जम जाता है।)
दृश्य 3: अंधेरे की छाया
(रात गहराने लगी है। सभी अब तक अपने-अपने कमरे तय कर चुके हैं। वीरेंद्र और समीर एक ही कमरे में हैं। नीलिमा और कावेरी दूसरे कमरे में। अजय अकेले है। हवेली के गलियारों में सन्नाटा पसरा हुआ है।)
(नीलिमा का कमरा)
नीलिमा (धीमी आवाज़ में): "कावेरी, मुझे लग रहा है कि हमें यहाँ नहीं रहना चाहिए।"
कावेरी: "हम इतने दूर आ गए हैं, अब वापस नहीं जा सकते। और हमें वीरेंद्र पर भरोसा रखना चाहिए।"
(अचानक खिड़की अपने आप खुल जाती है। ठंडी हवा अंदर आती है। दोनों घबरा जाती हैं। कावेरी खिड़की बंद करने जाती है, तभी उसे खिड़की के शीशे में एक परछाईं दिखती है। परछाईं धीरे-धीरे पास आती है। कावेरी चीख पड़ती है।)
(वीरेंद्र का कमरा)
(वीरेंद्र और समीर सोने की कोशिश कर रहे हैं। तभी दरवाज़े पर धीमी-धीमी दस्तक होती है।)
वीरेंद्र: "कौन है?"
(कोई जवाब नहीं आता। दस्तक फिर होती है। वीरेंद्र उठकर दरवाज़ा खोलता है, लेकिन बाहर कोई नहीं होता। तभी अचानक एक ठंडी सांस उसके चेहरे पर महसूस होती है। पीछे मुड़कर देखता है तो समीर बेसुध पड़ा होता है।)
वीरेंद्र (हिलाते हुए): "समीर! उठो! क्या हुआ?"
(समीर अचानक अपनी आँखें खोलता है, लेकिन उसकी आँखें पूरी तरह सफेद हो चुकी हैं। वह अजीब-सी भाषा में कुछ बोलने लगता है। वीरेंद्र घबरा जाता है और पीछे हटता है।)
(तभी कमरे की बत्तियाँ अपने आप जल-बुझने लगती हैं। वीरेंद्र घबराकर एक दीवार से सट जाता है। समीर धीरे-धीरे हवा में उठने लगता है।)
(अचानक दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुलता है और पंडित नारायण खड़े दिखाई देते हैं।)
पंडित नारायण (गंभीर स्वर में): "मैंने कहा था, इस हवेली में मत आओ... अब इसका श्राप जाग चुका है!"
दृश्य 4: मौत की आहट
(हवेली की रात और गहरी हो चुकी है। वीरेंद्र, समीर, नीलिमा, कावेरी और अजय अब इस जगह से बाहर निकलने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन हवेली के दरवाजे खुद-ब-खुद बंद हो चुके हैं। बाहर भयंकर आंधी चल रही है।)
(अजय अकेले गलियारे से गुज़र रहा है। उसकी साँसें तेज़ हैं। उसके हाथ में एक पुरानी लालटेन है, जो हल्की रोशनी दे रही है। अचानक उसे अपने पीछे किसी के चलने की आहट सुनाई देती है।)
अजय (डरते हुए, धीरे से): "कौन है? वीरेंद्र, तुम हो?"
(कोई जवाब नहीं। आहट और तेज़ हो जाती है। अजय का गला सूखने लगता है। वह जैसे ही मुड़ता है, सामने एक धुंधला साया खड़ा होता है। आँखें चमक रही हैं। अजय चीखना चाहता है, लेकिन उसकी आवाज़ नहीं निकलती। तभी वह साया ज़ोर से उसकी गर्दन पकड़ लेता है और दीवार पर ज़ोर से फेंक देता है।)
(वीरेंद्र, नीलिमा और समीर चीख सुनकर दौड़ते हैं। वे अजय को ज़मीन पर बेहोश पड़ा देखते हैं। उसके चेहरे पर गहरी खरोंच के निशान हैं। उसकी आँखें खुली हुई हैं, लेकिन उनमें कोई जान नहीं। उसकी गर्दन अजीब तरीके से मुड़ी हुई है। नीलिमा ज़ोर से चीख पड़ती है।)
नीलिमा (रोते हुए): "अजय!! नहीं!!!"
समीर (आँखें फटी की फटी): "ये कैसे हुआ? हम यहाँ से निकल क्यों नहीं पा रहे?"
(पंडित नारायण अचानक दरवाजे पर प्रकट होते हैं। वे मंत्र बुदबुदा रहे हैं। हवेली में हवा का बहाव तेज़ हो जाता है।)
पंडित नारायण: "मैंने कहा था, यह हवेली श्रापित है! अब इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी!"
वीरेंद्र (गुस्से से): "हमें बताइए, इस श्राप से बचने का कोई उपाय है या नहीं? हम अजय को खो चुके हैं, अब और किसी को नहीं खोना चाहते!"
(पंडित नारायण गंभीर होते हैं। वे हवेली के कोने में रखे एक पुराने संदूक की ओर इशारा करते हैं।)
पंडित नारायण: "इस हवेली की आत्मा को मुक्त करने का केवल एक ही तरीका है। हवेली के तहखाने में एक प्राचीन मंदिर है, जहाँ इसकी शुरुआत हुई थी। वहाँ जाकर हमें हवन करना होगा और इस श्राप को समाप्त करना होगा। लेकिन... यह आसान नहीं होगा। जो शक्ति इसे चला रही है, वह हमें वहाँ तक नहीं पहुँचने देगी।"
(सभी एक-दूसरे की ओर देखते हैं। डर उनके चेहरे पर साफ झलक रहा है, लेकिन उनके पास और कोई रास्ता नहीं है। वे पंडित नारायण के साथ तहखाने की ओर बढ़ने लगते हैं। लेकिन जैसे ही वे नीचे जाने लगते हैं, हवेली के अंदर एक भयंकर चीख गूंजती है... जैसे कोई अपनी पकड़ खोने नहीं देना चाहता!)
दृश्य 5: तहखाने का रहस्य
(हवेली के तहखाने का दरवाजा जंग लगा हुआ है। पंडित नारायण मंत्र पढ़ते हुए धीरे-धीरे दरवाजा खोलते हैं। जैसे ही दरवाजा खुलता है, एक सड़ी-गली बदबू अंदर से निकलती है। तहखाने की दीवारों पर पुराने समय के खून के धब्बे दिख रहे हैं। अचानक एक छाया तेजी से भागती है, और एक डरावनी हँसी गूँजती है।)
रमा (काँपती हुई आवाज़ में): "यह जगह शैतान का बसेरा है। हमें यहाँ नहीं आना चाहिए था।"
(नीलिमा के कंधे पर अचानक किसी की ठंडी उँगलियाँ महसूस होती हैं। वह डर से चीख पड़ती है। सभी पीछे मुड़कर देखते हैं, लेकिन वहाँ कोई नहीं होता। अचानक, हवेली की दीवारों पर खून टपकने लगता है।)
समीर (घबराकर): "हमें जल्दी से हवन करना होगा, वरना हम सब मारे जाएँगे!"
(पंडित नारायण ने पूजा की सामग्री निकालनी शुरू की, लेकिन जैसे ही वे दीपक जलाने लगते हैं, अचानक एक अदृश्य शक्ति उन्हें दूर फेंक देती है। उनकी आँखों में खून उतर आता है। उनकी आवाज़ भारी हो जाती है, जैसे कोई और उन पर हावी हो गया हो।)
पंडित नारायण (भयावह आवाज़ में): "अब कोई भी यहाँ से ज़िंदा नहीं जाएगा...!" (और तभी... चारों ओर घना अंधेरा छा जाता है!)
(पंडित नारायण अचानक ज़मीन पर गिर पड़ते हैं। उनकी आँखें सफेद हो जाती हैं, और उनका शरीर अचानक हवा में उठने लगता है। उनकी दर्दनाक चीख हवेली में गूंजने लगती है।)
(सभी भय से पीछे हटते हैं, लेकिन पंडित का शरीर अचानक दीवार से टकराता है और उनके प्राण निकल जाते हैं। उनकी देह धीरे-धीरे स्याह धुएं में बदलने लगती है, और एक अजीब सी दरवाजे के पीछे से हंसी गूंजती है।)
समीर (काँपती आवाज़ में): "ह..हम अब क्या करें? पंडित जी भी नहीं रहे!"
(वीरेंद्र एक पुरानी लकड़ी की अलमारी की ओर देखता है, जहाँ एक धूलभरी पुस्तक रखी होती है। उस पर लाल रंग से कुछ लिखा होता है। वह धीरे-धीरे उसे उठाता है और पढ़ने लगता है।)
वीरेंद्र (धीरे-धीरे पढ़ते हुए): "हवेली का श्राप केवल एक बलिदान से टूट सकता है... और यह बलिदान कोई और नहीं, बल्कि उसी के हाथों होगा जिसे वह सबसे अधिक चाहता है..."
(सभी एक-दूसरे को देखते हैं। घबराहट और सन्नाटा हवेली में फैल जाता है।)
नीलिमा (डरते हुए): "क..क्या मतलब? हमें में से किसी को... किसी अपने को मारना होगा?"
(तभी दीवारों पर भयानक परछाइयाँ उभरने लगती हैं, और हवेली की नींव काँपने लगती है। साये ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगते हैं, जैसे वे इस विनाशकारी खेल का मजा ले रहे हों।)
दृश्य 6: बलिदान का समय
(हवेली की दीवारों पर डरावनी परछाइयाँ नाच रही हैं। वीरेंद्र के हाथों में रखी वह पुरानी किताब धीरे-धीरे अपने आप पलटने लगती है। उसमें लिखी रक्तरंजित पंक्तियाँ और भी स्पष्ट हो जाती हैं।)
"यह श्राप तब तक नहीं टूटेगा, जब तक कोई एक अपने प्रियजन की बलि न दे। अगर बलिदान नहीं दिया गया, तो अंधेरा सभी को लील जाएगा।"
(वीरेंद्र काँपते हाथों से किताब को बंद करता है। उसके माथे पर पसीना छलक रहा है। नीलिमा, समीर और कावेरी सहमे हुए खड़े हैं। तभी एक ठंडी हवा का झोंका आता है, और सभी को ऐसा महसूस होता है जैसे कोई उनके बेहद करीब खड़ा हो।)
समीर (घबराते हुए): "न.. नहीं! हम में से कोई भी किसी को मार नहीं सकता! कोई और रास्ता होगा!"
(तभी हवा में एक गूंजती हुई हँसी सुनाई देती है, जैसे कोई भयानक आत्मा खिलखिला रही हो। हवेली की छत से काले साए नीचे उतरने लगते हैं, और कमरे का तापमान एकदम गिर जाता है। सभी काँपने लगते हैं।)
रमा (धीमे स्वर में, जैसे किसी दूसरी दुनिया से बोल रही हो): "अब भागने का समय खत्म हो चुका है... हवेली ने अपना फैसला कर लिया है... कोई तो मरेगा... कोई तो मरेगा...!"
(अचानक, कावेरी ज़मीन पर गिर जाती है, उसके शरीर पर गहरे नील के निशान उभरने लगते हैं, जैसे अदृश्य हाथ उसे जकड़ रहे हों। उसकी आँखें सफेद हो जाती हैं, और वह दर्द से चीख उठती है।)
नीलिमा (रोते हुए): "कावेरी!! उसे छोड़ दो!! प्लीज़ उसे छोड़ दो!!"
(लेकिन हवेली की दीवारों से खून टपकने लगता है। छत पर उलटे लटके हुए साए ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगते हैं। वीरेंद्र को ऐसा महसूस होता है कि उसका शरीर सुन्न हो गया है। तभी किताब फिर से अपने आप खुलती है और उसमें नया रक्त से लिखा वाक्य प्रकट होता है—)
"अगर बलिदान नहीं दिया गया, तो हवेली तुम्हारे खून से अपनी प्यास बुझाएगी।"
(तभी अचानक, हवेली के मुख्य द्वार पर एक ज़ोरदार धमाका होता है। दरवाज़ा अपने आप खुल जाता है और ठंडी हवा के झोंकों के साथ कोई अंदर आता है। वह कोई और नहीं, बल्कि देवकी थी—वही पुरानी नौकरानी, जो वर्षों पहले हवेली छोड़कर चली गई थी।)
(देवकी की आँखें लाल थीं, चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ, और उसके कपड़े गीले थे, जैसे वह बरसों से बारिश में भीग रही हो। वह धीरे-धीरे कमरे के बीच में आकर खड़ी हो जाती है और बिना पलक झपकाए वीरेंद्र को घूरने लगती है।)
देवकी (गहरी और भयानक आवाज़ में): "तुम सबने बहुत देर कर दी... अब कोई नहीं बचेगा... श्राप जाग चुका है... हवेली ने तुम्हें चुन लिया है!"
(तभी अचानक, देवकी का शरीर झटके से हवा में उठ जाता है, और उसके मुँह से काला धुआँ निकलने लगता है। उसकी आँखें पूरी तरह सफेद हो जाती हैं, और वह ज़ोर से चीखती है। कमरे की सारी खिड़कियाँ खुद-ब-खुद बंद हो जाती हैं, और मोमबत्तियाँ एक-एक करके बुझने लगती हैं।)
(वीरेंद्र, नीलिमा और समीर पूरी तरह डर से जकड़ जाते हैं। हवेली के अंदर अंधेरा गहरा हो जाता है, और चारों ओर किसी के फुसफुसाने की आवाज़ें आने लगती हैं—मगर यह आवाज़ें इंसानों की नहीं थीं।)
दृश्य 7: आत्मा का प्रकोप
(देवकी का शरीर हवा में कांपता हुआ लहराने लगता है, उसकी आँखें सफेद हो जाती हैं और एक भयानक चीख हवेली की दीवारों से टकराकर गूँज उठती है। अचानक, उसके शरीर से एक काला धुआँ निकलता है और हवेली के कोनों में फैल जाता है। उसके साथ ही देवकी ज़मीन पर गिर पड़ती है, जैसे किसी ने उसकी आत्मा को बाहर खींच लिया हो।)
नीलिमा (काँपते हुए): "ये... ये क्या हो रहा है?!"
(तभी हवेली में तेज़ हवाएँ चलने लगती हैं। किताब, जो वीरेंद्र के हाथों में थी, अचानक ज़मीन पर गिरकर अपने आप पलटने लगती है। सभी की निगाहें उस पर टिक जाती हैं। उसमें एक नया रक्तरंजित वाक्य चमकने लगता है।)
"श्राप को तोड़ने के लिए एक बलिदान अनिवार्य है। प्रेम की पीड़ा ही श्राप को समाप्त कर सकती है। लेकिन यह बलिदान प्रेम करने वाले हाथों से ही होना चाहिए।"
(वीरेंद्र के हाथ से पसीना टपकने लगता है। समीर और नीलिमा की साँसे थम जाती हैं। इसका मतलब था कि किसी को अपने प्रियजन की जान लेनी होगी! लेकिन कौन? और कैसे?)
(हवेली में अंधेरा और घना हो गया था। हर कोने से सिसकियों और फुसफुसाहटों की आवाज़ें आ रही थीं। वीरेंद्र, समीर, नीलिमा, अजय और रमा एक गोल दायरे में खड़े थे। उनकी आँखों में भय था, लेकिन निर्णय लेना अब ज़रूरी था।)
वीरेंद्र (गंभीर स्वर में): "हमें कुछ करना होगा... अगर हमने इस श्राप को नहीं तोड़ा, तो यह हमें एक-एक करके खत्म कर देगा।"
(तभी हवेली के दरवाजे ज़ोर से बंद हो जाते हैं। सभी उधर देखते ही रह जाते हैं। एक ठंडी हवा का झोंका आता है और रमा ज़ोर से चीख उठती है। उसकी आँखें सफेद पड़ने लगती हैं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे अपनी गिरफ्त में ले रही हो।)
रमा (काँपती आवाज़ में): "कोई... कोई यहाँ है! वह हमें देख रहा है... वह हमें खत्म कर देगा!"
(तभी एक भयानक चीख गूंजती है और अजय हवा में उठ जाता है। उसकी गर्दन पर नीले निशान उभर आते हैं, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे पकड़ रखा हो। सभी डर के मारे पीछे हट जाते हैं।)
नीलिमा (रोते हुए): "अजय! नहीं! उसे बचाओ!"
(लेकिन इससे पहले कि कोई कुछ कर पाता, अजय की गर्दन अचानक मुड़ जाती है और वह ज़मीन पर गिर जाता है—मृत। कमरे में सन्नाटा छा जाता है, सिर्फ़ हवाओं की गूँज बची थी।)
दृश्य 8: अंतिम बलिदान
(हवेली की दीवारों से लगातार खून रिस रहा था, हवा भारी और अंधकारमयी हो चुकी थी। अजय की मृत देह ठंडी पड़ चुकी थी, और बाकी सभी के चेहरों पर मौत का खौफ साफ झलक रहा था। वीरेंद्र अब तक किताब को घूर रहा था, उसके पन्ने अपने आप हिल रहे थे, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे पलट रही हो।)
रमा (घबराकर):
"हमारे पास अब बहुत कम समय बचा है! अगर हम बलिदान नहीं देंगे, तो ये श्राप हमें खत्म कर देगा!"
नीलिमा (गुस्से में):
"हम अपने ही किसी प्रियजन को नहीं मार सकते! क्या यही एकमात्र रास्ता है?"
(तभी हवेली के एक कोने से किसी के पैरों की आहट आती है। सभी उधर देखते हैं। अंधेरे में एक परछाई उभरती है—वह देवकी थी, लेकिन अब पहले जैसी नहीं। उसकी आँखें पूरी तरह काली हो चुकी थीं, उसकी त्वचा मुरझाई हुई थी, और उसकी हरकतें असामान्य लग रही थीं। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, उसके हाथों से धुआं निकल रहा था।)
(अचानक, एक अजीब शक्ति समीर को पकड़ लेती है और वह दीवार से टकराकर नीचे गिर जाता है। वह छटपटाने लगता है, जैसे किसी ने उसकी आत्मा को खींचना शुरू कर दिया हो। उसकी आँखें ऊपर की तरफ घूमने लगती हैं, और उसकी सांसें तेज हो जाती हैं।)
(वीरेंद्र के हाथ काँपने लगते हैं। उसकी नज़र नीलिमा पर पड़ती है—उसकी अपनी बहन। एक झटके में उसे अहसास हो जाता है कि बलिदान किसका करना होगा। वह कांपता हुआ पीछे हटने लगता है, लेकिन अंधेरा उसे घेरने लगता है।)
नीलिमा (आँखों में आँसू लिए, धीमे स्वर में):
"मुझे पता था... मुझे पहले से ही पता था कि यही होगा।"
(नीलिमा धीरे-धीरे आगे बढ़ती है, उसके चेहरे पर मौत का साया मंडरा रहा था। समीर, रमा और बाकी सब हैरानी और डर से देखते हैं। नीलिमा वीरेंद्र का हाथ पकड़ती है और उसमें एक खंजर रख देती है।)
नीलिमा:
"तू ही कर सकता है, भैया... यह श्राप मुझे ही निगलने वाला था। अगर मैंने अपने प्राण नहीं दिए, तो हम सब मर जाएँगे।"
वीरेंद्र (रोते हुए):
"नहीं... नहीं... मैं तुम्हें नहीं मार सकता!"
(नीलिमा वीरेंद्र का हाथ पकड़ती है और उसकी आँखों में आँसू छलक आते हैं। वह धीरे-धीरे अपना सिर झुकाती है और अपने भाई के सामने घुटनों के बल बैठ जाती है।)
नीलिमा (शांत स्वर में):
"अगर तुम्हें सच में मुझसे प्यार है, तो यह करो... और इस श्राप को खत्म करो।"
(वीरेंद्र के हाथ कांपते हैं, उसकी आँखों में आंसू उमड़ पड़ते हैं। हवेली की छत टूटने लगती है, और अचानक ज़ोर की गूँज होती है—समय समाप्त हो रहा था। वीरेंद्र चीखते हुए खंजर उठाता है और नीलिमा के सीने में उतार देता है।)
(एक तेज़ चीख गूंज उठती है। हवेली में चारों ओर सफेद रोशनी फैल जाती है। देवकी और बाकी आत्माएँ चिल्लाते हुए हवा में घुलने लगती हैं, अंधकार पीछे हटता है, और हवेली की दीवारें हिलने के बाद स्थिर हो जाती हैं। नीलिमा की आँखें धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं, और उसके चेहरे पर एक शांति आ जाती है।)
(वीरेंद्र फूट-फूटकर रोने लगता है। समीर, रमा और बाकी सब भी रोते हैं, लेकिन उन्हें पता था—यह बलिदान ज़रूरी था। हवेली अब पूरी तरह शांत हो चुकी थी, जैसे वहाँ कभी कोई आत्मा थी ही नहीं। श्राप टूट चुका था।)
(एक आखिरी सन्नाटा छा जाता है। हवेली के बाहर सूरज की पहली किरणें दिखाई देने लगती हैं। वीरेंद्र अपनी बहन की lifeless body को देखकर घुटनों के बल गिर जाता है। हवा में एक हल्की-सी फुसफुसाहट गूंजती है—)
(अंधेरा समाप्त हो चुका था, लेकिन वीरेंद्र के जीवन में अब हमेशा के लिए एक खालीपन रह गया था। हवेली अब बस एक वीरान इमारत थी, लेकिन जो हुआ था, उसकी दास्तान हमेशा गूँजती रहेगी...)
(समाप्त।)