औरतों की आजादी और मजबूरी के साथ एडवेंचरस यात्रा
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आज महिला दिवस पर जब यह लेख लिख रहा हूं तो बहुत दिलचस्प दृश्य और सशक्त महिलाएं सामने आ रही हैं। कुछ दृश्य देखें:_ सास, बा है जो अपनी बहु और बेटे, वीर के संतान नहीं होने से दुखी है। बा डिब्बा यानि टिफिन सिस्टम चलाती हैं। आगे बहु मुसीबत में फंसती है और कोई रास्ता नहीं मिलता तो सत्तर साल की सास आगे आती है और कुशलता से बहु की समस्याएं दूर करती है अपने संपर्क से ।
दूसरा दृश्य परिवार है वरुणा, शंकर, जो एक फार्मा कंपनी में सीईओ है और वर्षीय पुत्र विष्णु है। वरुणा अपने बुटीक को अच्छे से नहीं चला पा रही, लॉस हो रहा। वह परेशान है और कर्जदार उसे जगह खाली करने को कह रहे। वह सोचती है उसी फार्मा कंपनी ने उसे काश आगे प्रमोशन दिया होता तो वह भी कॉरपोरेट लाइफ में आगे होती।पर उसे मौका नहीं मिलता है। पर चार वर्षों बाद आज उसे एक कुलीग मिलता है जो कहता है तुमने प्रमोशन का ऑफर स्वीकार नहीं करके अच्छा नहीं किया। वरुणा चौंकती है।क्योंकि उसे पता ही नहीं। कुलीग कहता है उसके पति शंकर ने बोर्ड मीटिंग में उसकी तरफ से कहा था को तुम इंटरस्टेड नहीं हो आगे जॉब में। वह हैरान रह जाती है।पति से पूछती है तो वह कह देता है कि बच्चा होने वाला था और उसकी देखभाल जरूरी थी। यह कहती है उसके लिए मैं मैनेज कर लेती। दो दो नैनी लगा देती। पति गुस्सा करता है कि अब तुम स्ट्रेस फ्री हो, हर वीकेंड मॉल जाती हो अपना मनपसंद घूमती खाती पीती हो। यही तुम्हे चाहिए था।तुम्हारी असफलता के लिए तुम खुद जिम्मेदार।
एक और दृश्य है वरुणा की बाई का जो अपनी बेटी को अच्छी जिंदगी देना चाहती है पर उसके लिए पैसे और अच्छा काम चाहिए।जो उसकी योग्यता को देखते मिलता नहीं।
डिब्बा कार्टेल महज एक कहानी नहीं बल्कि एक सच्चाई है आज की महिलाओं की।
सवाल एक ही है, " क्या सेकंड चांस मिलेगा? जिंदगी एक और मौका देगी या ऐसी ही जिंदगी बीत जाएगी?वैसे जिंदगी मौका देती है पर वह भी अक्सर ज्यादातर का ऐसे ही निकल जाता है। क्योंकि दुख सहते हुए इतनी आदत हो जाती है कि कोई खुशी अथवा अवसर आता भी है तो हम तब तक टूट चुके होते हैं। हार मान लेते हैं। जबकि जिंदगी इतनी मजबूत और बेहतरीन है कि वह हमें हर समय हर वक्त अवसर देती है। बस हमें खुद को तत्पर और ऊर्जावान रखना होता है। कुछ न भी कर सके तो भी अपने रूटीन और आदतों में बदलाव करके अपने में परिवर्तन कर सकते हैं। अवसर अपने आप आते हैं और हम उन्हें पा भी सकते हैं।
कथा और संवाद
______________ कहानी, पटकथा ऐसे बुनी गई है कि देश की अधिकांश औरतों की कहानी यह वेब सीरीज कहती है। नेटफ्लिक्स पर यह उपलब्ध है।
काम वाली बाई, एक सास, उसकी पढ़ी लिखी बहु, कॉर्पोरेट एमबीए स्त्री, एक एस्टेट एजेंट महिला तो एक पुलिस वाली। कम पढ़े लिखे, उम्रदराज, उच्च शिक्षित, छोटे मोटे काम करती साधारण महिलाएं सभी को साथ लेकर कहानी चलती है। बहुत अच्छे ढंग से यह महसूस होता है कि साधारण स्त्रियां भी एक साथ हो जाएं, पूरी ईमानदारी और लगन से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ें तो हर बाधा और मुश्किल इनके आगे हार जाती है।
लेकिन अक्सर ही सामान्य लोग इक्कठे हो पाते है। जिंदगी फिल्म की तरह स्क्रिप्टेड होती तो बेहतर होती। पर कहानी सामान्य और साधनहीन, मुश्किलों का सामना करती महिलाओं की बात बेहतरीन ढंग से कहती है।
आगे डिब्बे में कोई जड़ी बूटी होती है जो सामान्य लोगों में जोश भरती है। वह बा और बहु, बाई के साथ बेचती है। यहां बा की भूमिका में शबाना आजमी कमाल का सधा हुआ अभिनय करती हैं। जहां बहु के प्रति जिम्मेदारी। बेटा उच्च शिक्षा के बाद अच्छी नौकरी के लिए तलाश रहा। फिर ऐसे में अचानक से एक डीलर, ब्लैकमेल कर डब्बों में ड्रग्स बेचने को कहता है। स्त्रियां करती हैं एक दो बार। पुणे में बैठी बा कहती है अपनी पुरानी साथी को मुंबई में " अब रोमांच आ रहा है।और अच्छा भी लग रहा है।"
उधर कई किलो ड्रग बेचने के बाद कमीशन के लाखों रुपए रखने की लिए इनके पास जगह भी नहीं होती घरों में। तो यह वरुणा के शोरूम में छुपाती हैं। और वह अगले ही दिन सारे रुपए पचास लाख अपना कर्जा चुकाने को दे देती है। उधर मुख्य बॉस का एक पैकेट एक करोड़ रुपए की ड्रग का बहु पानी में बहा देती है तो वह अपने पैसे मांगता है। वह वरुणा कहीं और दे चुकी। इस तरह यह पांचों औरतें बा, बहु, वरुणा, एस्टेट् ब्रोकर और बाई अपना ड्रग रैकेट मजबूरी में शुरु करती हैं। फिर किस तरह वह नई नई मुसीबतों से दो चार होती हैं यह इसे देखने के बाद ही आप जानेंगे।
अभिनय और कास्ट
______________ किस तरह मुख्य डीलर से शबाना आजमी बिना चीखे चिल्लाए डील तय करती है वह देखने योग्य है।
बाकी एक ड्रग इंस्पेक्टर है जो इधर उधर पूछताछ करता फिर रहा।इसमें गजानन राव निराश करते हैं। वह अब अभिनय में टाइप्ड हो गए हैं।गर्दन हिलाना और बुजुर्ग टाइप अभिनय कब से करते आ रहे। सब इंस्पेक्टर के रोल में मराठी सिनेमा की अच्छी अभिनेत्री साईं तम्हाने है। वह असर छोड़ती है। अन्य में बाई की भूमिका मेंअंजलि आनंद अपनी संवाद अदायगी और तुरंत जवाब देने के अंदाज से रोल को जीवंत कर देती हैं।
बहु की भूमिका में बहुत खूबसूरत और संयमित अभिनय किया निमिषा ने। सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिका, पत्नी, बहु, ड्रग नहीं बेचनी हमें की रट लगाती फिर सास के दबाव में झुकती l शालिनी पांडे ने एस्टेट ब्रोकर और एक लेस्बियन महिला का किरदार इस तरह निभाया कि आप मुंबई पहुंच जाते हैं। ड्रग बॉस की भूमिका में संदेश कुलकर्णी, मराठी स्टेज के अभिनेता हैं।इनको चुनौती रही की अधिकांश दृश्य शबाना आजमी जैसी दिग्गज अभिनेत्री के साथ थे। यह अभिनेता हर दृश्य में अपने आत्मविश्वास और बेहतरीन अभिनय से कहीं भी उन्नीस नहीं पड़ा।
मराठी भाषा, साहित्य और फिल्मों नाटकों में बराबर बेहतरीन और अच्छा काम हो रहा है। वहां तो साहित्य उत्सव होते हैं और बाकायदा लेखकों को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण कराते हैं। एक एक उत्सव में पांच सौ प्रतियां अच्छी किताबों की हाथों हाथ बिकती हैं। लोग जागरूक और साहित्य अनुरागी हैं। चाहे नामदेव ढसाल, मल्लिका अमर शेख, विश्वास पाटिल, दामोदर खडसे, लक्ष्मण गायकवाड़, शरण कुमार, लिंबाले हो सभी बेहतरीन और अपने समय का साहित्य बेहद रोचक भाषा में रचते हैं। लोक की उपस्थिति मराठी सहित में बराबर रही है। ऐसे ही नाटकों और रंगमंडल का ऐसा प्रभाव है कि हर शहर कस्बे में हर उत्सव और शुभ कार्यों में नाट्य कला जरूर होती है।अभी अभी मालेगांव के सुपर स्टार करके फिल्म बनी है।जिसमें बताया है कि मालेगांव के युवाओं ने अपने ही सीमित साधनों और अक्ल से लोकल स्तर पर ही एक बेहतरीन फिल्म कैसे बनाई।
शबाना आजमी का अतीत और उसकी पुरानी मित्र के रूप में मुंबई की मौशमी का किरदार लिलेट दुबे ने निभाया है।जो अमेरिका से खास इस भूमिका के लिए भारत आई।इन्हें हम मानसून वेडिंग, कल हो न हो में प्रीति जिंटा की पड़ोसन के रूप में देख चुके हैं।
जीशू सेनगुप्ता बंगला फिल्मों के बेहतरीन अभिनेता हैं। शंकर का किरदार जटिल, खल पात्र था। पर उसे इस सहजता से निभाया है कि वह अपनी हालात और मजबूर इंसान के रूप में सराहना पाते हैं। बहुत कम अभिनेता हैं जो इस संतुलन को निभाते हैं कि किरदार जरा भी इधर से उधर न हो। और सकारात्मक अभिनय हो।
निर्देशक हितेश भाटिया की तारीफ करनी होगी कि अपने इस पहले प्रयास में वह सफल हुए। बेहतरीन अभिनय सभी से करवा गए।इतने अच्छे कलाकारों के अभिनय से सजी यह वेब सीरीज जरूर देखनी चाहिए। इसलिए भी की यह संदेश देती है कि हर वर्ग, शिक्षित, कम शिक्षित, बड़ा छोटा सभी की जिंदगी में मुश्किलें और दुख आते हैं।परंतु किस तरह यह स्त्रियां अपने को संभालते हुए, हिम्मत और बुद्धि के साथ हालत को पलट देती हैं।
इसे मेरी तरफ से फाइव स्टार।
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(डॉ.संदीप अवस्थी, कथाकार, आलोचक, मोटिवेशनल स्पीकर हैं।आप इनसे संपर्क 7737407061 पर कर सकते हैं।)