होली की तरंग में व्यंग्य के रंग
यशवंत कोठारी
१-मंत्री की टूटी कुर्सी –मंत्री महोदय को प्लेन में टूटी कुर्सी दी गयी ,हंगामा मच गया ,सरकार में रायता फ़ैल गया ,आनन- फानन में सब को शो काज दिए गए . वैसे जानने वाले जानते हैं की टाटा एयर लाइन सरकार को बेचता है और कुछ समय के बाद सरकार से वापस खरीदता है यह खेल कई बार खेला गया है आगे भी खेला जाता रहेगा .लाखों करोड़ों लोग इस दुःख से दुखी है ,मामाजी का दुःख सब का दुःख है ,सरकार का भी और जनता का भी लेकिन बेचारी जनता की आवाज़ कौन सुने, नक्कार खाने में तूती की आवाज़ याने जनता की आवाज़. दिल्ली ऊँचा सुनती है.शहंशाह ने हैप्पीनेस मंत्रालय के स्थान पर मिनिस्ट्री ऑफ़ सोरो याने दुःख का मंत्रालय बनाना तय किया .
२-अमेरिका रिटर्न विथ हथकड़ी बेड़ी- पहले बुद्धिजीवी अमेरिका जाकर आता था तो उसे यूएस रिटर्न का ख़िताब अता फ़रमाया जाता था लेकिन अब अमेरिका से वापस आने वाले को हथकड़ी और बेडी में भेजा जाता है ,हाकिम आराम से गले मिलते हैं ,ये कैसा मंज़र है यारों की गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं . ट्रम्प ने नया नारा दिया -पचास लाख डालर दो नागरिकता लो .
३-कवि को कब्ज़ – बादशाह के चहेते शायर को ग़ज़ल की कब्ज हो गयी .खूब कोशिशों के बाद भी हाज़त नहीं हुई .बादशाह सलामत को पता चला तो तुरंत स्वास्थ्य महकमे से हकीमों की टीम को भेजा गया ,लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ .आखिर एक सयाने ओझा ने सलाह दी कवि को किसी ऊँची कुर्सी पर बैठाया जाय तो कुछ बात बने ,बादशाह ने हकीमों को रवाना किया और कवि को संस्कृति विभाग में अफसर बना दिया ,काम केवल ये की बादशाह सलामत की शान में कसीदे पढ़े .कवि भी खुश बादशाह भी खुश .कवि ने बादशाह के आम खाने ,पेड़ गिनने की तारीफ की ,कवि ने बादशाह के पंछी को दाना चुगाने की भी तारीफ की .
बादशाह कवि को केबिनेट में लेने की सोच रहे हैं, .साहित्य में सन्नाटा पसर गया है . गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया है कि साहित्य के मठाधीशों के लिए भारतीय न्याय संहिता में अलग से धाराएँ लगाने के लिए प्रस्ताव बनाया जायगा .तब से कई मठाधीश भूमिगत हो गए हैं .
४-परसाई जन्म शताब्दी –हरिशंकर परसाई की जन्म शताब्दी जोर शोर से मन गयी .खूब विशेषांक छपे ,खूब गोष्टियाँ हुई कई किताबें भी छपी .शोध आलेखों की भी खूब नकलें छपी इन शोधों से कई शोधार्थियों को नौकरी मिली कई के प्रमोशन हो गए,कई कविता को मंच से दुहने लगे . प्रकाशक मालामाल हो गया ,रॉयल्टी की बात भूल गया .
एक ही बात को आचार्यों ने कई तरह से कहा. अध्यक्ष बने, मुख्य अतिथि ,बने, मुख्य वक्ता बने खूब खाना पीना हुआ , झूठें सच्चे बिल बने.मैंने एक से पूछा आप ने परसाई की कौन सी किताब पढ़ी आपका फोटो परसाई की किताबों के साथ छपा है -
यार तुम चुप रहो- वो फोटो तो एक छात्रा ने कोपी पेस्ट कर दिया . सच ही कहा है –जहाँ अज्ञानता आनंद है वहां बुद्धिमान होना मूर्खता है. एक राज की बात ये भी रही कि शंकर पुणताम्बेकर की सोवीं जयंती आकर चुपचाप चली गयी .
५-महा कुम्भ –दिल्ली में सरकार तीसरी बार काबिज़ हुई ,आस्था का महा कुम्भ आ गया ,सब दिल खोल कर कड़कडाती सर्दी में नहाये .हजारों फोटो सेशन हुए ,आनंद, आस्था ,श्रद्धा, निष्ठा की गंगा में सब नहाये ,यमुना में भी दिल्ली की नयी बनी सरकार ने आरती उतारी, फिल्म वालों को नयी आँखों वाली हिरोइन मिली ,कवि को कविता मिली सब को कुछ न कुछ मिला .
हे जनमेजय !इस प्रकार एक सो चोवालिस साल में एक बार आने वाले कुम्भ में स्नान हुआ .नए महा मंडलेश्वर बने एक ने इस्तीफा दिया दो नए बने यह खेल चलता रहा ,महामंडलेश्वर नहीं किसी खाला का घर हो गया जब चाहो ले लों .पैसा दो दीक्षा लो .
६-दिल्ली में किताबों का मेला –दिल्ली में नया कुछ नहीं हर साल वाला किताबों का कुम्भ लगा .नए नए सेल्फ पब्लिशर्स मैदान में आये ,तीस तीस प्रतियों के किताबी संस्करण हुए ,लोकार्पण हुए , विमोचन हुए. बस लेखक ने जितना गुड़ डाला उतना मीठा हुआ .छोटे प्रकाशक सुबह नाश्ता लाते खुद भी खाते दर्शकों को भी खिलाते .छोले भठूरे के स्टाल पर भीड़ देख कर कई छोटे प्रकाशक अपने स्टाल को अगली बार किताबों के बजाय छोलो भटूरों और पानी पूरी से भरने की सोच रहे हैं ,आखिर व्यापार भी तो करना है .किताबों के भरोसे तो कुछ होना जाना नहीं है .इस मौसम में हर शहर में लिटफेस्ट लीला चलती है क्योकि बजट आता है इसे मार्च से पहले फूंकना जरूरी है नहीं तो अफसर अयोग्य साबित हो जाता है .वैसे कामेडी वालों के लिए जेल में एक अलग सेल बन जाना चाहिए ,ऐसा एक भूतपूर्व कामेडीयन ने मेरे कान में कहा .
७-लुगदी साहित्य लिखो प्यारे-कविता छोड़ो लुगदी साहित्य लिखो प्रकाशकों ने यह नया फतवा लेखकों के हित में जारी किया है ,प्रकाशकों ने यह भी कहा है की घोस्ट राइटिंग में बहुत पैसा है केवल विदेशी जासूसी उपन्यासों का घटिया अनुवाद करना है बस ,किसी के भी नाम से छपे तुम को तुम्हारा पैसा मिल जायेगा . कई तो गुमनामी में ही मर गए .कई कवि इस धंधे में कूदने की तैयारी में मेरठ से दिल्ली तक दंड बैठक लगा रहे हैं. (होली पर कल्पना की उडान)
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यशवन्त कोठारी ,701, SB-5 ,भवानी सिंह रोड ,बापू नगर ,जयपुर -302015 मो.-94144612 07