फिल्म समीक्षा:
छावा और औरंगजेब की क्रूरता
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सच में इस देश में दोगले और झूठे लोगों की कमी नहीं। जिन्होंने देश के गौरवशाली इतिहास को हर जगह दबाया, छुपाया ही नहीं अपितु गलत लिखा भी और आधी सदी पढ़ा भी दिया। पता नहीं उन्होंने ऐसा राष्ट्रद्रोह क्यों किया? क्या उन्हें जरा भी शर्म, बेइज्जती, देश की इज्जत को धूमिल करते महसूस नहीं हुई?
ऐसा इसलिए कि कल छावा, संभाजी राव, छत्रपति शिवाजी के पुत्र, के आत्मगौरव और राष्ट्र रक्षा पर बनी फिल्म देखी। पर्याप्त शोध और तर्कों के आधार पर दो वर्षों में फिल्म की पटकथा लिखी गई यह फिल्म आंखे खोल देने वाली है।
मात्र बीस हजार मराठे सैनिकों का शासक बहादुर योद्धा संभाजी औरंगजेब को वर्षों नुकसान पहुंचाता रहा और दक्कन विजय के उसके स्वप्न को रोक देता है। वह उसकी दस लाख की फौज पर भारी पड़ता है।क्योंकि गुरिल्ला पद्धति से आक्रमण करना मराठों की विशेषता रही है। औरंगजेब के ओहदेदार तलाशते हैं कोई गद्दार और दो मिल जाते हैं। उनकी वजह से धोखे से संभाजी को औरंगजेब कैद कर लेता है। फिर इतने बहादुर,वीर योद्धा को कैसे अपनी रायगढ़ के किले में ले जाए? तो वह मराठों योद्धाओं पर अपनी सेना के दो लाख सैनिकों का घेरा डालता है। उधर दूसरे रास्ते से संभाजी को कैद कर ले जाता है छावनी में।
मराठों को आखिर में पता लगता है परंतु बीस हजार सैनिक आठ लाख क्रूर सैनिकों और तोपों का मुकाबला कैसे करते?
फिल्म की विशेषता और गहराई
__________________________यथार्थ का चित्रण है।अब किले में कैद संभाजी अकेले और औरंगजेब के लाखों सैनिक और ओहदेदार हैं। किस तरह क्रूर औरंगजेब,जिसने सत्ता की हवस में अपने अब्बाजान शाहजहां को मरते दम तक कैद रखा।अपने भाई दारा शिकोह का सर कलम किया वह छावा,अर्थात शेर शिवाजी महाराज का पुत्र संभाजी राव को बेहद अमानवीय यातनाएं देता है। उंगलियां काटना,चमड़ी उधेड़ना, घावों में नमक भर देना। फिर भी संभाजी नहीं झुकते। वह प्रस्ताव देता है,इस्लाम कुबूल कर लो तो जान बच सकती है। वीर योद्धा इससे भी इनकार करता है।तो हिंदुस्तान का बादशाह औरंगजेब इस अपमान को सह नहीं पाता और टुकड़े टुकड़े करके इस हिंदुत्व के वीर योद्धा को मार देता है। भय इतना था मुगलों में की लाखों की फौज के बाद भी वह इनके कटे सिर और धड़ को पूरे महाराष्ट्र में घुमाता है आतंक फैलाने के लिए।जैसे कोई सड़क छाप,घटिया गुंडा करता है।आज भी ईरान,इराक,अरब देशों में ऐसे ही होता है। आतंक तो नहीं फैला महाराष्ट्र और भारत में बल्कि लोग और गुस्से में आए।फिर अगले कुछ वर्षों बाद औरंगजेब के हाथ से दख़हन निकला। लेकिन औरंगजेब अपनी आई मौत ही मरा कई दशकों तक भारत को गुलाम बनाकर,अनेकों मंदिरों,हमारे स्थलों को तोड़कर।
यह विडंबना है कि आज भी मध्यकाल की इतिहास की किताबों में और दो हजार पंद्रह तक के सभी पाठ्यक्रम यूपीएससी, NCERT, स्टेट बोर्ड सभी जगह मुगलों का इतिहास,स्थापत्य,शासन नीति और उनकी महिमा शामिल रही। कुछ झूठे और फरेबी भारतीय इतिहासकारों ने औरंगजेब को मंदिरों को बनाने वाला भी बता दिया। यह शर्मनाक ही है कि छावा फिल्म से पहले इतिहास की इस लोमहर्षक घटना के बारे में कुछ भी विस्तार से देश विदेश को नहीं बताया गया।
तो अब ठीक कर ले।सही इतिहास। तथ्यों के साथ।
फिल्म अभिनय, सामयिक चर्चा और कार्य
____________________ आज जब भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनी हुई सरकार जब देश का गौरवशाली सच्चा इतिहास लिखवाने की तरफ अग्रसर है तो अभी भी कई देश विरोधी लोग उसका विरोध करते हैं। परंतु आमजन अब समझता और जानता है कि कितना बड़ा धोखा उसे अब तक गलत इतिहास पढ़ाकर दिया गया। हमेशा मामूली, गरीब, हताश, हारे हुए गुलाम लोग ही बताया गया। बेहद दुखदाई यह कि जो अत्याचारी, क्रूर,विदेशी आक्रमणकारी थे उन्हें न्यायप्रिय,महान और हमारा स्वामी सिद्ध किया गया।इस झूठ को लिखने वालों पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
उतरेकर द्वारा निर्देशित फिल्म में विकी कौशल ने संभाजी के किरदार में जान डालदी है।हालांकि खुद संभाजी का वास्तविक किरदार राष्ट्रप्रेम, होंसले और शौर्य की अगाध गाथा है।बेहद जीवंत दृश्य और सच दिखाया है।एक सार्थक सिनेमा किस प्रकार राष्ट्र और हमारे दिलों में जगह बनाता है यह इसका प्रमाण है। औरंगजेब का रोल अक्षय खन्ना ने अपनी ढीली,सामान्य और सुस्त रफ्तार से निभाया है।इसीलिए वह सूट कर गया क्योंकि औरंगेजेब उस वक्त सत्तर वर्ष की आयु के करीब,ऐसा ही व्यवहार करता था।
फिल्म में दिखाए गद्दारों को औरंगजेब ने जागीरें दी थी और उन्हें ओहदा दिया था। उनकी नवीं पीढ़ी फिल्म आने के बाद इस बात को नकार रही है। जबकि गलती माननी चाहिए। और अभी कुछ वर्ष पूर्व महा अगाड़ी सरकार शिवसेना उद्धव शामिल थी,बाकायदा औरंगाबाद में औरंगजेब की समाधि पर फूल चढ़ाकर आई थी। हर युग में लालची और मौकापरस्त लोग होते हैं। यहां संभाजी एकनाथ शिंदे निकले जिसने बिना अपने भविष्य की परवाह किए राष्ट्रवाद को चुना।
फिल्म सुपर हिट हो चुकी है।आपने नहीं देखी तो जरूर देखे।इसलिए भी की इतिहास बनते नहीं देख सके तो उसे दोहराते जरूर देखें। सच्चाई को देखने और अपने राष्ट्र पर गर्व करने का भाव जागृत करने लिए देखें।इसलिए भी देखें कि अश्लीलता फैला रहे, दहाई भी नहीं, युवाओं को छोड़कर यह सच्ची फिल्म देखें। बताएं कि भारत का हर व्यक्ति राष्ट्र पर गर्व ही नहीं करता बल्कि जोश के साथ हर संभव त्याग करने के लिए तैयार है। इसलिए भी जरूर देखें जो चंद लोग आज भी हमारे गौरवशाली इतिहास को सामने लाने का विरोध कर रहे हैं उन्हें आप हर जगह सोशल साइट्स प्रत्यक्ष और हर जगह जवाब दे सकें।
मेरी तरफ से फिल्म को चार स्टार ।
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( डॉ.संदीप अवस्थी,जाने माने लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर हैं। देश विदेश से अनेक पुरस्कार आपकी किताबों पर मिले हैं।
संपर्क 7737407061)