IKEA
जैसा कि मैंने कहा यह एक कहानी नहीं बल्कि एक किस्सा है और किस्सों से ही तो कहानियाँ बनती है.... है ना...!
विदेशों में IKEA थोक की दुकान जैसी एक मॉल नुमा दुकान है जहाँ घर की जरूरत से जुड़ा जरूरी अथवा गैर जरूरी सभी तरह का सामान भी मिलता है. फिर चाहे बात रसोई से जुड़ी हो या शयनकक्ष से, स्नानघर का मामला हो या बैठक का, अर्थात घर के कौने कौने से जुड़ा सभी तरह का सामान यहाँ उपलब्ध है. अब आपको कैसा कितना और कहाँ के लिए लेना है यह आपके बजट पर निर्भर करता है.
लेकिन आपको लुभाने के लिए हर एक खंड से जुड़ी चीज़ों को कुछ इस तरह से दर्शाया गया है कि आप मोहित हुए बिना नहीं रह सकते. उनकी साज सजावट को देखते ही ऐसा लगता है कि बस बिल्कुल इसी तरह आपको भी अपना घर सजाना है. इतना ही नहीं वहां आपके लिए कोई रोक टोक भी नहीं है. आप जाइये हर एक सामान को छूकर देखिये. पूरी संतुष्टि कीजिए और फिर ही निर्णय लीजिये. कोई जोर जबरदस्ती नहीं होती. कभी कभी ऐसा लगता है जैसे आप किसी सपनों के महल में दाखिल हो गए हो. सब कुछ सलीके से सजा हुआ है. हर एक चीज अपनी जगह एकदम सुनिश्चित तरीके से रखी हुई है. जैसे वह कौना केवल उसी चीज के रखने के लिए ही बनाया गया है. इतना परफेक्शन अर्थात इतनी पूर्णता से लगाया जाता है मानो जैसे इंटीरियर डिजाइनर ने सजाया हो....!
भई वाह....! कुल मिलाकर पच्चिसियों तरीके से सजे हुए शयन कक्ष, बैठक, रसोई घर बाथरूम आँगन आदि का घर के हर एक कौने के पच्चिसियों नमूने लगे हुए है. जो आपको पसंद आये, जैसा आपको पसंद आये, वैसा आप अपने घर के लिए पूरा सेटअप खरीद सकें. रसोई घर में जहाँ दिखाने के लिए प्लास्टिक के फल, फूल, ब्रेड आदि भी रखे हुए है. लेकिन एक कौना ऐसा भी है. जहाँ खाने कि कुछ चीजें असली भी रखी है जैसे कार्नफ्लॉक्स पास्ता कुछ बेसिक बर्तन भी दिए गए है ताकि जब आप वहां खड़े हो तब आपको वहां अपने सपनों कि रसोई में काम करने जैसा अनुभव हो. वहां केवल बर्तन ही नहीं बल्कि झटपट बनने वाला सामान भी रखा है. जैसे कार्नफ्लॉक्स पास्ता मैगी इंस्टेंट नूडल्स एवं पानी कि भी व्यवस्था है.
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ऐसे ही सपनों की इस बड़ी सी दुनिया में एक 19-20 साल
की एक लड़की दाखिल होती है. जिसका नाम जैनी है. जो अभी अभी अपना कॉलेज पास कर के निकली है और एक मॉल में बिलिंग का काम करती है. जैनी अपने दोस्तों के कहने पर यहाँ आयी थी. हॉस्टल के कमरे में रहने वाली जैनी जहाँ एक ही कमरे में सारा घर समाया हुआ होता है के लिए इस दुकान में आना जैसे एक अलग ही दुनिया में प्रवेश करने जैसा था. कुछ ऐसा जैसे हम मरने के बाद स्वर्ग की कल्पना करते हैं ना...! ठीक वैसा ही. वहां की चकाचोंध को देख जैनी की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयी...!!!
ऐसे जैसे किसी गरीब को महल में प्रवेश मिल गया हो. वहां लगी साधारण से साधारण चीजों से लेकर बेहद कीमती चीजों तक, जैनी हर एक चीज को देख देखकर अचंभित होती रही. वहां बने शयनकक्षों में लगे सामान पर जब जैनी ने हाथ फेरा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डरते डरते वह वहाँ लगे पलंग पर बैठी तो इतने नरम गद्दे की उसने कल्पना भी नहीं करी थी. उसकी सहेलियों ने कहा,
"बैठे बैठे ही उचक के देख बहुत मजा आता है".
पहले तो जैनी को ऐसा कुछ करना अनुचित सा लगा और थोड़ी झेंप और शर्म भी महसूस हुई. लेकिन फिर अपनी सहेलियों के उकसाने पर उसने भी जब ऐसा किया तो वो जैसे उस वक्त एक बच्चा बन गयी. बहुत देर तलक वो इसका मजा लेती रही. फिर सामने रखी ड्रेसिंग टेबल पर जाकर बैठ गयी, खुद को निहार ने और संवारने लगी. फिर वहां लगी लाइटिंग को जो की एक डोरी को खींचने से बंद चालू होती थी से खेलने लगी. फिर उसने अलमारी खोली और अपने पसंदीदा कपड़ों की कल्पना करने लगी.
फिर सभी सहेलियों ने वहां बिस्तर पर बैठकर सेल्फी ली और भागकर दूसरे खंड में चली गयी. लेकिन जैनी उनके साथ ना जाकर रसोई वाले खंड में चली गयी. वहां लगे सभी घर से संबन्धित उपकरणों ने उसका मन मोह लिया. उसने वहां जाकर कुछ ऐसा अभिनय किया मानो वो किसी “कुकिंग प्रोग्राम” की कोई बहुत बड़ी महाराज है अर्थात आम भाषा में हम जिसे “शेफ” कहते है वह वो है और जनता के सामने कुछ बहुत ही ख़ास बनाने जा रही है. उसका अभिनय देखकर पास खड़ा एक चाइनीज बच्चा हँसने लगा. तो जैनी एकदम से सकपका गयी और जल्दी से वहां का सामान वहीं रखकर वहां से दूसरे खंड की ओर बढ़ गयी.
यूँ तो जैनी एक बहुत ही प्यारी सी सीधी सादी लड़की है. लेकिन वो एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त है, जिसके चलते वह ज्यादा देर भूखी नहीं रह सकती. इसलिए वह अपने पर्स में हमेशा दो चार चीजे खाने पीने की रखा करती है. जैसे चिप्स, बिस्कुट और इंस्टेंट कॉफी के पाउच आदि. उस दिन सुबह से शाम हो गयी उन सब को वहां भटकते. भीड़ अधिक थी क्यूंकि आने वाले दिनों में बाजार बंद रहने वाला था. वहीं नीचे पार्किंग से ठीक उपर एक कैफ़ेटेरिया था जहाँ चाय कॉफी के साथ -साथ कुछ खाने पीने की व्यवस्था भी थी. लेकिन चुकि वहां उस शहर की IKEA की इमारत इतनी बड़ी और इतनी ऊँची थी मानो दुकान नहीं कोई फैक्ट्री हो. तो यहाँ नेटवर्क की भी समस्या बहुत अधिक थी.
अचानक ही उस दिन ना जाने किस की लापरवाही के चलते वहां का स्मोक अलार्म बज उठा और इतनी जोर जोर से बजा की वहां भगदड़ मच गयी. स्टाफ के लोगों ने बहुत कोशिश की भीड़ को काबू में लाने की और लोगों को समझाने की, "कि डरने या घबराने वाली कोई बात नहीं है....! आप लोग आराम से सीढ़ियों के रास्ते से नीचे उतर जाइये" मगर घबराहट भरी भीड़ में से किसी ने उनकी एक ना सुनी और सभी लोग बस यहाँ वहां भागने लगे. इस आपाधापी में किसी से शटर डाउन होने का बटन दब गया. फिर क्या था शटर धीरे धीरे नीचे आने लगे. जिसे देखकर वहां के लोग बाहर निकल जाने के लिए और अधिक उत्तेजित हो उठे और इस सबके चलते हंगामा खड़ा हो गया. इस सब नाटक बाजी में जैनी अपने मित्रों से बिछड़ गयी और धक्का मुक्की में अंदर ही छूट गयी और शटर बंद हो गया.
जैनी बहुत बुरी तरह घबरा गयी, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे क्या ना करे. बहुत देर तक उसने हर एक दरवाजे पर जाकर दस्तक दी और मदद के लिए पुकारा मगर इतनी भीड़ और कोलाहल में उसकी आवाज़ किसी ने ना सुनी. सारा स्टाफ भी गुस्से में भीड़ को उनकी किस्मत के हवाले छोड़कर नीचे चला गया. जैनी ने कई बार अपने दोस्तों को फोन लगाया किन्तु नेटवर्क ना होने के कारण, उनको फोन नहीं लगा. जैनी के चेहरे पर घबराहट बेचैनी डर और चिंता के मिले जुले भावों के साथ साथ आँखों में आँसू भी उतर आये थे.
कुछ दो तीन घंटे बाद जब सब कुछ शांत हो गया और पूरे माहौल में सांय सांय होने लगी और वहां लगी बत्तियां भी मंद पड़ने लगी और वहां लगे हीटर भी बंद हो गए तब तो जैनी का डर और अधिक बढ़ गया. वह भाग के एक बिस्तर पर जाकर लेट गयी और सर तक रजाई से खुद को ढाक लिया. कुछ देर बाद जब उसे भूख लगी और उसका सर घूमने लगा तब उसने अपने पर्स से खाने के लिए एक चॉकलेट निकाली और जैसे ही उसने खाना शुरु किया.
वैसे ही सामने की दीवार पर उसे एक बहुत बड़ी विशालकाय परछाई दिखायी दी जिसे देखकर जैनी बहुत बुरी तरह से डर गयी जैनी ने देखा की परछाई धीरे धीरे बड़ी हो रही थी जैसे कोई उसके नजदीक आ रहा हो. जैनी ने झट से वापस रजाई अपने आस पास लपेट ली और एकदम शांत बैठ गयी. कुछ देर तक जब कुछ हलचल नहीं हुई तो जैनी ने अपनी रजाई हटा के देखा उसके मुंह के ठीक सामने वही चाइनीज बच्चा बैठा था. उसका मुख जैनी के मुख के इतना करीब था कि जैनी एकदम से उसे देखकर डर के मारे जोर से चीख पड़ी और जैनी की चीख सुनकर वह बच्चा रो दिया.
कुछ देर बाद जब जैनी को बात समझ में आयी तो उसने सामान्य होकर उससे पूछा
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो....? "
"वही जो आप कर रही है "
"क्या मतलब...? "
"मतलब यह कि मेरे माँ पापा बाहर निकल गए लेकिन मेरा हाथ छूट गया और मैं यहां रह गया. मुझे बहुत डर लग रहा है दीदी अब हम लोग यहाँ से कैसे निकल पायेंगे..?"
"अरे डरो मत मैं हूँ ना, कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा"
"मगर कैसे...? आप तो खुद ही इतना डरी हुई थी "
"अरे वो तो मैं तुम्हें देखकर एकदम डर गयी थी" जैनी ने अपने मनोभाव छिपाते हुए कहा
"तुम तो एक बहादुर बच्चे हो ना...! और फिर हम लोग कोई जंगल में थोड़ी ही है, कोई ना कोई तो आ ही जायेगा. सुबह तक, तुम चिंता मत करो आओ मेरे पास कहते हुए जैनी ने उसे अपनी रजाई में छिपा लिया"
बच्चा भी डरा हुआ और सहमा हुआ था तो वह भी झट से जैनी की रजाई में घुस गया. फिर जैनी ने उसके बालों में उँगली घुमाते हुए पूछा
"क्या तुम्हें भूख लगी है...?"
बच्चे ने हाँ में सिर हिला दिया. जैनी ने अपनी चॉकलेट में से थोड़ी सी उसे दे दी और थोड़ी खुद खाके दोनों सोने की कोशिश करने लगे.
बच्चे ने जैनी को धन्यवाद देते हुए कहा
"आप बहुत अच्छी हैं दी, मेरी मदद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया, पहले मुझे बहुत डर लग रहा था. लेकिन अब मैं एकदम ठीक हूँ "
"जैनी ने मुसकुराते हुए सो जाने को कहा"
अगली सुबह जब जैनी जागी तो वह भाग कर उस शटर के पास गयी जो भगदड़ में बंद हो गया था. दरवाजा जालीदार था इसलिए जैनी बाहर देख सकती थी. बहुत आस भरी निगाहों से जैनी ने बाहर देखा. लेकिन उसे दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया. फिर भी उसने जोर जोर से पुकार लगायी.
"हैल्लो कोई है...? कोई है क्या यहाँ हमारी मदद कीजिए, हम लोग यहाँ फंसे हुए है प्लीज हमारी मदद कीजिये"
परन्तु वहां कोई होता तो उसकी सुनता, वहां कोई था ही नहीं ऐसा लग रहा था कि आने वाली दो दिन की छुट्टी के चलते आज दुकान खुलने वाली नहीं है. इसलिए कर्मचारी भी निश्चिन्त होकर अपने अपने परिवारों सहित छुट्टियां मना रहे हैं. उन्होंने शायद यह सोच लिया है कि अब जब दुकान खुलेगी, तब कि तब देखी जायेगी कि उस रोज क्या हुआ क्या नहीं. जैनी के दरवाजा खड़खड़ाने के शोर से वो बच्चा भी चौक कर उठ गया. जैनी के पास जाकर वह भी बाहर देखने की नाकाम कोशिश करते हुए उदास होकर वापस. अपने उसी पलंग पर जाकर बैठ गया और रोने लगा.
"जैनी भागकर उसके पास गयी और बोली "अरे रोते क्यों हो...? रो मत सब ठीक हो जाएगा, अभी देखना थोड़ी देर बाद कोई ना कोई आ ही जायेगा"
बच्चे को उसकी बातों से थोड़ी हिम्मत मिली और वह चुप हो गया. फिर कुछ देर बाद उसने कहा
"दीदी मुझे घर जाना है, मुझे मम्मी पापा की याद आ रही है....!"
"जैनी ने कहा घर तो मुझे भी जाना है यार पर क्या ही कर सकते है...! खैर छोड़ो तुम कुछ खाओगे...?"
"हाँ भूख तो लग रही है"
जैनी ने अपना पर्स खोला और एक चिप्स का पैकेट निकाल कर उसकी और बढ़ा दिया. और एक खुद खा लिया. बच्चे ने चिप्स खा लिए लेकिन फिर भी जैनी की और ऐसी निगाहों से देखा मानो कह रहा हो
"मुझे और भूख लग रही है"
जैनी ने उससे कहा "मेरे पास बस इतना ही खाना था अब और कुछ नहीं है "
बच्चे ने चुप चाप अपना. सिर नीचा कर लिया. और पलंग के कोने में रजाई ओढ़कर बैठ गया.
इस बीच जैनी कई बार दरवाजे के पास जाती आती रही कि यदि कोई दिखे तो उस से मदद ली जा सके. लेकिन अब वापस रात होने को आयी और उसे कोई ना दिखा. ज्यादा समय भूखा रहने के कारण अब जैनी को कमजोरी महसूस होने लगी थी. जैनी की बिगड़ती तबीयत को देखते हुए बच्चा भी अब और डरा डरा सा महसूस करने लगा था. पूरा दिन निकल जाने के बाद भी जब कोई ना आया तो जैनी को खुद के साथ बच्चे की भी चिंता होने लगी और उसे यह एहसास हुआ कि जब तक कोई आ नहीं जाता तब तक कुछ भी कर के उसे ज़िंदा तो रहना ही पड़ेगा.
तब ही उसे रसोई का वो हिस्सा याद आया जहाँ असली खाने का कुछ सामान पड़ा था किसी तरह गिरती पड़ती वह वहां तक पहुँची और वहां से कार्नफ्लेक्स का डिब्बा जो कि पारदर्शी काँच के डिब्बे में बंद था उठा लायी. दूध कि व्यवस्था तो थी नहीं लेकिन यह अच्छा था कि वह कोर्नफ्लक्स मकई के छोटे -छोटे पापड़ पहले से ही मीठे थे. तो कुछ उसने उस बच्चे को खिला दिए और कुछ उसने खुद खा लिए. तब कहीं जाकर उसकी थोड़ी जान में जान आयी, उसी को रात का भोज समझ कर दोनों फिर से सो गए. पेट भर जाने से बच्चे को तो अच्छी नींद आ गयी.
लेकिन जैनी पूरी रात यही सोचती रही कि यदि कल का दिन भी निराशा देकर ही गया तो कल वह लोग क्या करेंगे कैसे जीयेंगे. ऐसा ही सोचते सोचते कब उसे नींद ने अपने आगोश में ले लिया उसे पता ही नहीं चला. अगले दिन फिर जब सुबह हुई. जैनी ने फिर कोशिश कि इस उम्मीद में कि शायद आज कोई आ जाये और वह दोनों अपने अपने घर जा सकें. लेकिन आज भी कोई नहीं आया. जैनी के मोबाइल की बैटरी भी अब नेटवर्क तलाशते तलाशते खत्म हो चुकि है. उसके दोस्तों ने उसे फोन लगाने की बहुत कोशिश कि ताकि वह यह पता कर सकें कि वह कहाँ है, लेकिन नेटवर्क ना होने के कारण वह कभी जैनी से बात ही नहीं कर सके.
उधर उस बच्चे के माँ बाप को भी यह नहीं मालूम कि उस दिन उनका बच्चा भगदड़ में उनके हाथों से छूटकर वहीं रह गया होगा. उन्हें लग रहा है कि उनका बच्चा कहीं खो गया है और वह उसके गुमशुदा होने की शिकायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन में पहुँच जाते हैं. पुलिस उन्हें सांत्वना देती है और उनसे उनके बच्चे की तस्वीर लेकर उनकी शिकायत दर्ज कर ली जाती है.
इधर सुबह सुबह फिर दोनों परेशान हैं मदद के लिए चिल्ला रहे हैं लेकिन दूर दूर तक सुनने वाला कोई नहीं है उपर से नीचे से आती हुई कॉफी की महक इन दोनों की भूख को और अधिक बढ़ा रही है. कॉफी और गरमा गरम सैंडविच की महक से बच्चे को जोरों की भूख सताने लगती है वो फिर जैनी से कहता है
"दीदी मुझे बहुत ज़ोर से भूख लग रही है"
उसकी करुणामय आवाज सुनकर जैनी एक बार फिर अपना पर्स टटोलती है तो उसे एक स्नीकर चॉकलेट मिल जाती है जिसे देखकर उसका चेहरा खिल जाता है वह उस बच्चे को दिखाकर पूछती
है "यह खाओगे...?
बच्चा झपट्टा मार के उसके हाथों से वो चॉकलेट लेकर खाने लगता है जैनी उसका मुंह ताकती रह जाती है. उसे अब बहुत अधिक कमजोरी महसूस होने लगती है चककर आने लगते है और वह बेहोश हो जाती है. बच्चा यह देखकर बुरी तरह डर जाता है और उसी शटर के पास जाकर जोर जोर से रोते हुए मदद के लिए पुकारने लगता है. लेकिन कोई होगा तो सुनेगा ना वहाँ तब भी कोई नहीं आता. इसी तरह सुबह से दोपहर हो जाती है बच्चा उसी रसोई से जहाँ से वह कार्नफ्लॉक्स लाये थे जाकर पानी लेकर आता है और जैनी के मुंह पर डालता है.
किसी तरह जैनी होश में आती है और जन्मो की प्यासी आत्मा की तरह पानी पीने लगती है जब उसका पेट भर जाता है तब रुकती है. बच्चा उसके ऐसे व्यवहार को ऐसे देखकर और अधिक डर जाता है. तभी जैनी को याद आता है उसी रसोई में कहीं किसी काँच के बर्तन में ही स्पेगिटी वाला पास्ता भी रखा है उसने अपनी आँखों से देखा था जब वह शेफ की तरह बर्ताव कर रही थी. लेकिन पास्ता बनेगा कैसे सामान तो कोई है नहीं फिर भी वो वहां जाकर देखती है कि शायद कोई जुगाड़ मिल जाये तो आज रात का इंतज़ाम हो जायेगा.
वह किसी तरह उठकर उस बच्चे के साथ उस रसोई तक जाती है. बहुत ढूंढने पर उसे पास्ता मिल भी जाता है. किसी तरह वह दोनों कोशिश कर के उस रसोई के डिस्प्ले में लगे बर्तनों में से एक बर्तन निकाल कर पास्ता उबाल लेते हैं मगर अब खाएं तो कैसे खाये उनके पास पास्ते में मिलाने के लिए कुछ भी नहीं है. तभी उस बच्चे को याद आता है जैनी द्वारा दिया गया वह चिप्स का पैकेट वह भागकर जाता है और उस पैकेट को ढूंढने लगता है...
जैनी उसके पीछे पीछे आकर कहती है
"क्या हुआ तुम इस तरह वहां से भागकर क्यों चले आये...? देखो मेरे पास इस सादे पास्ते के अलावा और कोई विकल्प नहीं है तुम्हें खिलाने के लिए "
बच्चा तब भी कोई जवाब नहीं देता और चिप्स का पैकेट ढूंढ़ता रहता है.
क्या ढूंढ़ रहे हो बताओगे भी...?
तभी बच्चे को पैकेट मिल जाता है और वह उसमें से नमक का एक छोटा सी पुड़िया निकाल कर जैनी को दिखाते हुए बहुत खुश हो जाता है उसकी छोटी छोटी आँखों में एक बड़ी सफलता के जैसी खुशी चमक उठती है. वह तुरंत वह पैकेट फाड़कर पास्ते पर डाल देता है और पहले जैनी को खाने के लिए कहता.
जैनी थोड़ा सा खाकर उसको भी साथ में खाने के लिए कहती है. इतने में जब रात होने वाली होती है किसी कि नज़र उस इमारत पर पड़ती है जहाँ से उसे हल्का धुआँ सा दिखाई देता है वह इंसान सबसे पहले. पुलिस स्टेशन भागता है और उन्हें खबर करता है कि उसने क्या देखा. पुलिस तुरंत हरकत में आती है सबसे पहले उस दुकान के मालिक और सुरक्षाकर्मियों को साथ लेकर वहां पहुँचती है. पुलिस का सायरन सुनकर पहले तो दोनों डर जाते है. फिर दोनों ही के मन में आशा की एक किरण जाग उठती है. इमारत को चारों और से घेर लिया जाता है उधर से फायर ब्रिगेड को भी खबर कर के बुला लिया जाता है. कुछ अधिकारी दुकान के मालिक और एक दो कर्मचारियों के साथ सीढ़ियों के रास्ते से अंदर आते ही यहाँ वहां टोर्च की रौशनी से मुआयना करने लगते है.
पुलिस के कदमों की चाप सुनाई देते ही यह दोनों लोग वापस उस शटर पर जाकर जोर जोर से हेल्प-हेल्प चिल्लाने लगते है. पुलिस के सभी अधिकारी वहां पहुँच कर किसी तरह रात के अँधेरे में पहले तो बिजली के बटन ढूंढ़ते है और फिर रौशनी करते है फिर कहीं जाकर उन्हें एक कौने में शटर खोलने वाला बटन दिखायी देता है जिसे दबाते ही शटर धीरे -धीरे खुलने लगता है और यह दोनों बच्चे बाहर आकर रोने लगते हैं.
बच्चे को देखते ही पुलिस कर्मी पहचान जाता है और कहता इसके माता पिता तो आज सुबह ही आये थे इसके गुम हो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने. लड़की से भी पूछताछ की जाती है लड़की अपने रूम मेट्स दोस्तों का नाम बताती है और अपना फोन चार्ज कर उन्हें बुलाती है बच्चे को उसके माता पिता के पास छोड़ने के लिए पुलिस ले जा रही होती है कि तभी एक आख़री बार दोनों एक दूसरे को देखते हैं और बच्चा जाकर जैनी से चिपक जाता है और उसे दिल से धन्यवाद देता है.
जैनी भी नीचे झुककर उसे प्यार करती है उसके गाल खिंचती है उसके बालों में हाथ फेरकर उसे अपने छोटे भाई की तरह जोर से गले लगा लेती है और फिर दोनों अपने अपने गंतव्य की और बढ़ जाते है....
इधर अगली सुबह अपनी नाक बचाने के लिए IKEA वाले अपने रसोई के डिस्प्ले में पूरा पूरा सामान रखने लगे हैं ताकि आइंदा यदि कभी फिर ऐसा कुछ हो और कोई अंदर फंस जाए तो ज़िंदा रह सके इसके अलावा सिक्योरिटी अलार्म आदि भी ऐसे कर दिए गए हैं कि उनका एक सम्पर्क सीधा पुलिस स्टेशन से है और तो और शटर खोलने और बंद करने का बटन अब अंदर और बाहर दोनो ओर से दिया जाने लगा है.