फ़्लाइट में बैठा शिव अपने गाँव और बचपन की यादों में खोया हुआ था |
सालों बाद वो अपने गाँव वापिस जा रहा था।
*
ये कहानी सुनाने से पहले चलिए आपको ले चलता हु हमारे दो दोस्तों के बचपन में जहाँ से इस कहानी की शुरुआत हुई।
*गुजरात के पोरबंदर जिले में चरणपुरा करके एक गाँव था,
जब मोबाइल फ़ोन का ज़माना शुरू भी नहीं हुआ था,
उन दिनो में २ दोस्तों ने अपने स्कूल की शुरुआत की...
शिव और विवेक...
स्कूल के पहले दिन बच्चे को स्कूल भेजना मतलब तोबा-तोबा, जो छोड़ ने आया है उसको अपनी नानी याद आ जाती हैं,
शिव भी कुछ ऐसा ही कर रहा था, साथ आए अपने बापूजी की धोती रोते रोते कस के पकड़ के रखी थी,
छोड़ने को तैयार ही नहीं था,
ऊपर से ये सब देखकर बच्चों कीं हंसीं नहीं रूक रही थीं और कुछ बच्चे तो इसको देख के रोने लग गए, शायद उनको अपने माँ-बापूजी याद आ गए होंगे,
मास्टर जी भी परेशान हो गए,
इतने में सरपंचजी अपने बेटे को लेके आए तब शिव ने पहली बार विवेक को देखा, बिना रोना धोना विवेक अपनी मस्ती में दो हाथो में लड्डू लेके आया था, ये सब देखके सरपचजी समजगए की क्या हों रहा हैं, उन्हो ने विवेक को कुछ बोला और विवेक फट से शिव के पास जाके खड़ा हो गया और अपने दूसरे हाथ का लड्डू उसको देने के लिए हाथ बढ़ाया और बोला…”दोस्त...ये लो...”
शिव ने ऐक बार अपने बापूजी को देखा और दूसरी और अपने सामने खड़े इस नए चेहरे को, फिर मना करते हुए शिव बोला नहीं चाहिए और फिर घर जाने कीं ज़िद करने लगा...
इतने में सरपंचजी वह उसके सामने आए,
एक बार सरपंचजी को देखके शिव शांत हो गया,
“आपका नया दोस्त आपको लड्डू दे रहा हैं ले लो माना
नहीं करते।
वरना आपको पाप लगेगा, फिर आप क्या करोगे?”
बड़े ही विनम्र आवाज़ में सरपंचजी बोले...
शिव ने विवेक और सरपंचजी को थोड़ी देर तक देखा और फिर विवेक के हाथ से लड्डू ले लिया,
फिर विवेक ने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया और बोला
“मेरा नाम विवेक हैं। तुम्हारा नाम क्या हैं?”
शिव ने बापूजी की धोती छोड़दीं और हाथ मिलाकर बोला “मेरा नाम शिव हैं।”
और इस तरह इनकी दोस्ती लड्डू से शुरू हुईं।
शिव के पापा किसान थे,
और
विवेक के पापा गाँव के सरपंच...
शिव और विवेक दोनो एक ही कक्षा में पढ़ाईं करते थे
और पढ़ाईं में बड़े होशियार थे लेकिन,
शिव सिर्फ़ अपने काम से काम रखने वाला बच्चा था, और अपने teachers का चहिता...
और विवेक का तो क्या बताए पढ़ाईं में तो साहब अव्वल थे ही पर जब भी अगर कोई भी शरारत होती तो पहला नाम इन महाशय का होता था,
इन सब शरारतो में शिव विवेक का साथ तो देता था पर डरते-डरते...
इन दोनो को आम के खेतों में आम गिराने जाना,
जहाँ कही इमली का पेड़ नज़र आए मतलब समझो इमली तो लेकर ही जाना,
चुपके से पापा की साइकल लेके रातों में घूमने जाना,
बड़े सुहाने दिन होते थे वो...
शरारत में एक दिन आम के पेड़ से आम तोड़ते हुए शिव और विवेक को खेत के मालिक ने पकड़ लिया था और तब जब दोनो के बापूजी ने ग़ुस्से से पूछा की “किसकी शरारत थी ये ?”
शिव को उसके बापूजी से मार पड़ने ही वाली थी तब उसने उसके बापूजी को रोका
और रोते हुए बोला चाचा “मैं उसको लेके गया था आप उसको मत मारो।”
विवेक को मार पड़ी और शिव बच गया।
यही तो वो छोटी-छोटी बातें हैं जों दोस्तों को और क़रीब लाती हैं शरारते जों आपको आपको पूरी ज़िन्दगी याद रहती हैं।
कुछ भी कहिए लेकिन यें बचपन ना बड़ी कमाल की चीज़ हैं,
खेल कूद और शरारतो के बीच कहा ख़त्म हो जाता हैं यें कोई नहीं जानता,
बस साथ में रहती हैं, वो पुरानी दोस्ती कीं यादें...
दिन ब दिन
शिव और विवेक की दोस्ती गहरी होतीं गयीं...
देखते देखते शिव और विवेक की १० वी और १२ वी कीं इग्ज़ाम भी ख़त्म हो गयीं...
शिव अपनी आगे कीं पढ़ाईं करने के लिए शहर चलगाया,
और विवेक गाँव में रह कर आगे कीं अपनी पढ़ाईं करने लगा।
अब दो दोस्त एक दूसरे से अलग होगाए थे
लेकिन
एक दूसरे का साथ नहीं भुले थे...
शिव शहर में रहकर भी अपने दोस्त को भुला नहीं था।
उनकी बात होती रहती थीं अब तो STD वाले चाचा को भी पता चल गया था कीं रोज़ रात को शिव का कॉल आएगा ही आएगा...
गाँव में सबसे पहला टेलिफ़ोन विवेक ने अपने यहाँ लगवाया ताकि वो शिव से शांति से बात कर सके,
हालाँकि
बीच-बीच में शिव गाउ आया करता था लेकिन ज़्यादा दिन रूक नहीं पाता था अपनी पढ़ाई कीं वजह से।
दिन बीत ते गए,
एक दिन शिव का फ़ोन आया कीं उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी हैं और वो पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप आया हैं।
यूनिवर्सिटी कीं तरफ़से उसको स्कॉलर्शिप मिली हैं कीं वो विदेश जाए और अपनी आगें कीं पढ़ाईं पूरी करे।
विवेक इतना ख़ुश हो गया की उसके दोस्त को विदेश जाने का न्योता आया हैं ये पूरे गाँव को मिठाई बाट के बता दिया,
पूरे गाँव के लोगों में ख़ुशियों कीं लहर दोड गयी,
जब शिव आया तो उसका स्वागत बड़ी धूम धाम से हुआ,
माँ और बापूजि भी बड़े ख़ुश थे... उनका बेटा अब विदेश जाने वाला था।
थोड़े ही महीनो में शिव अपनी नयीं ज़िन्दगी के सपने लिए विदेश चला गया...।
बीच बीच में शिव का फ़ोन आता रहता था। सबको वो वहा कीं नयीं ज़िन्दगी वहा के लोगों के बारे में बताता।
“ज़िन्दगी का बस यही तो एक उसूल हैं वो बस चलती ही जाती हैं चाहे कोई साथ हो या ना हों।”
दिन, महीने, और साल तो जेसे हवा कीं तरह गुज़रने लगे।
शिव कीं पढ़ाईं पूरी हो गयी और उसको वहीं अच्छी नोकरी मिल गयी।
यहाँ विवेक अपने बापूजी के जेसे राजनीति में जाना नहीं चाहता था, तो उसने अपना टूर और ट्रैवल का business शुरू किया था।
अब शिव अपनी नोकरी और अपने कामों में व्यस्त रहने लगा।
और विवेक अपने business में,
अब शिव की विवेक से बात होनी कम होने लगी,
शिव विवेक के बारे में पूछता तो घर के लोग बोलते की वो अब अपने काम में व्यस्त रहता हैं इस लिए वो कभि कभार ही घर आता हैं,
एक बार शिव बैठा था, अपने दफ़्तर में तब उसको अपने गाँव की याद आने लगी अपने दोस्त की याद आने लगी और इतने में उसको याद आया की चार दिन बाद तो उसके दोस्त का जन्मदिन हैं।
उसने ठान लिया कीं इस साल विवेक को उसके जन्मदिन पर सर्प्राइज़ दूँगा और इस बार का जन्मदिन वो दो साथ मनाए गे।
उसने दफ़्तर से छुट्टी ले लीं और गाँव जाने की सारी तैयारियाँ उसने ख़त्म कर ली और अब वो घर पर कॉल करने ही वाला था कीं उसको लगा घर पर भी लोगों को जाके सीधा मिलता हु उनको भी सर्प्राइज़ देता हुँ।
किसी को भी बोले बिना वो गाँव के लिए निकल गया।
*
फ़्लाइट पोरबंदर ऐरपोर्ट पर लैंड होने कीं अनाउन्समेंट हुई और शिव अपनी पुरानी यादों से बाहर आया...
वो वापिस आया तब बारिश जोरोसे होरही थीं, उसने एरर्पोर्ट से टैक्सी कीं और गाँव के लिए निकला,
रास्ते में ज़ोरों से बारिश हो रही थीं रात भी बहोत हो चुकी थीं, गाँव के रास्ते में कच्ची सड़क थीं गाँव के अंदर जाने के रास्ते में ड्राइवर ने कार रोक दीं और बोला...
“साहब मैं अंदर नहीं आ पाऊँगा।” टैक्सी ड्राइवर ने बड़ेही विनम्र आवाज़ में कहा “ मेने अख़बार में पढ़ा था कीं इस गाँव के अंदर बहोत सारे बिजली के तार टूटे हुए हैं और गड्ढे भी बहोत सारे हैं। कार फँस जाएगी अंदर”
टैक्सी ड्राइवर अच्छा था उसने सुजाव दिया “साहब आप एर्पॉर्ट वापिस चलिए कल सुबह आ जाइएगा अभी गाँव में जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं हैं, ऊपर से इतनी बारिश भी हो रही हैं।”
लेकिन इतने सालों बाद गाँव को देखकर शिव अपने आपको रोक नहीं पाया और उसने बोला “भाई आप मुजे यहा छोड दीजिये, मैं चला जाऊँगा।”
कुछ भी और बोले बिना ड्राइवर के हाथ में भाड़ा पकड़ाया और वो अपनी हैंड बेग से छाता निकाल के गाँवके रास्ते पर चलने लगा,
बादल और बिजली बड़े ज़ोर से गरज रही थीं, हवा और बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी...
शिव को अपने बचपन के दिन याद आ गए केसे वो और विवेक यहाँ कीं गलियों में खेला करते थे!
रात के वक़्त वहा बारिश की वजह से स्ट्रीट लाइट्स भी बंध थीं।
बहोत सालों के बाद आने की वजह से रात को अंधेरे में रास्ता पहचान में नहीं आ रहा था।
रात के २:४५ हुए थे। बारिश अब थोड़ी कम हो चुकी थीं।
शिव बस अपनी ही धुन में आगे बढ़ा जा रहा था, कीं अचानक, ठंडी हवा उसको छुकर चली गयी, वो वही पर खड़ा हो गया उसको लगा जेसे कोई उसके पीछे पीछे चलता आ रहा हैं,
उसने सोचा “इतने अंधेरे में कॉन होगा?”
फिर भी उसने सोचा शायद उसका भ्रम होगा, वो बस आगे चलने ही वाला था, लेकिन फिर उसको महसूस हुआ की कोई तो हैं पीछे, वो थोड़ा डर गया और उसकी साँसें तेज़ हो गयी, और जेसे हीं वो पीछे मुंडा...
अंधेरे में कोई नहीं था, लेकिन अचानक से एक आवाज़ आयी...
“दोस्त?”...।
गाव मे बिजली अभी तक नहीं आयी थी और इस्स वजह से रास्ते का अंधेरा काफी घना था।
शिव हकलाते हुए बोला “कॉ…कॉन हैं?”
अँधेरा होने कीं वजहसे वो कुछ देख नहीं पा रहा था बस उसको दिखी तो एक काली परछाईं...
शिव कीं धड़कने तेज़ हो रही थी वो डर से काँपते हुए बोला “ को-को... कॉन है वहाँ ?”...
इतने में उस अंधेरे में से परछाईं कीं आवाज़ आयीं...
“मुझे नहीं पहचाना ? अबे दोस्त कहता हैं और भूल जाता हैं , वेसे तो हर रोज़ आँखें बंध करके मुझे पहचान लेताथा कीं मैं कोन हुँ ? आज नहीं पहचाना ? ओहो अबत्तो भाई NRI हों गये हैं हम गाँव वालों को कैसे पहचानेगे ?”
ये बोल कर वो परछाईं हसने लगी...
“भाई मेरे विवेक ?” इतना बोलके शिव बस गले मिलने जा ही रहा था की परछाईं बोली...
“यार अभी नहीं, ये भरत मिलाप बाद में करे? पूरा भीगा हुआ हूँ... आप NRI के कपड़े ख़राब हों यें हमको अच्छा नहीं लगेगा”
ये बोलकर वो परछाईं फिर हसने लगीं...
शिव ने सोचा “वेसे गले लगने से कभी मना नहीं करता था, पहले मुझे बोलना पड़ता था की साले चिपक मत्त लोग कुछ और समजते हैं... और आज ये ख़ुद ही मना कर रहा हैं?”
शिव ने आवाज़ तो सुनी लेकिन फिर भी उसको अंधेरे में कुछ दिखा नहीं...
लेकिन फिर भी ये सब सोचने के बजाय उसको अपने दोस्त से मिलने की बहोत ख़ुशी थीं...।
शिव ख़ुशी से बोल पड़ा “भाई तूजे सर्प्राइज़ देने आया था, लेकिन यार तूने तो मुझे डराके सर्प्राइज़ दे दिया।”
“ओहो सर्प्राइज़ और वो भी मुझे? वो भी इतने सालों बाद? साले मज़ाक़ मत कर?”
शिव बड़े ही शांत आवाज़ में बोला “भाई बस तेरी याद आ रही थीं तो तूजसे मिलने चला आया!”
फिर सामने से जवाब आया “साले फ़ैमिली बोल, मूँजसे तो तू कॉल पर भी नहीं मिलता हैं, मैं करता हु तो काट देता हैं, बड़े लोग काम करते हैं, हम तो यहाँ ऐसे ही ख़ाली फोकट बेठे हैं ? हुह....बड़ा आया”
शिव अपने दोस्त को मनाने के लिए अपने ब्रहमास्त्र का उपयोग करता हैं...
शिव मनाने की आवाज़ में बोला “अच्छा ठीक हैं चल चाई पिते हैं...“
सामने अंधेरे मेंसे आवाज़ आयीं “ नहीं यार अभी नहीं!...,”
शिव ने सोचा कीं “ ये वेसे तो कभी मना नहीं करता चाई के लिए और रात को तो कभी नहीं...”
शिव को कुछ अलग लगा...
शिव ने पूछा “क्या बात हैं भाई कभी “ना” नहीं बोलने वाला आदमी आज मना कर रहाँ है ?! वरना मुझे पता हैं चाई और तूँ...?”
बीच में से बात काटते हुए...
सामने अंधेरे से आवाज आयीं “अगर काका का ठेला खुला नहीं होगा तो ख़ाली फोकट धक्का होगा आज रहने दे…”
शिव ने भी हा में हा भरली और बोला “हाँ यार वो भी बात सही हैं।.... भाई में क्या बोलता हूँ....”
बात काट कर सामने परछाईं बोली...
“भाई अभी बहोत रात हो गयी हैं... और आगे रास्तों में गड्ढे और बिजली के तार पड़े हैं तु इस रास्ते मत जा, चल मेरे पीछे-पीछे तुजे तेरे घर तक छोड़ देता हूँ,”
शिव को लगा “ये पीछे पीछे आने को क्यू बोल रहा है? और मै जितना पास जा रहा हु उतना दूर खड़ा दिख रहा है?”
शिव सोच ही रहा था की फिर आवाज़ आई “वेसे तू इतने टाइम बाद आया हैं तूजे तो तेरे घर का रास्ता भी नहीं पता होगा... NRI ठहरे ना भाई आप तो…!”
शिव मुँह बनाते हुए...बोला “बोल लिया? हो गया? अभी चले…?
और दोनो एक साथ हंस पड़े...
घर के रास्तों पर बचपन कीं बातें करते-करते वो दोनो कब शिव के घर के पास पहोच गए पता ही नहीं चला...
अँधेरा बहोत घना था घर के पास आ कर शिव दरवाज़ा खटखटाने जाने ही वाला था कीं...
आवाज़ आयी “भाई... सुन अब मैं चलता हूँ”
शिव दरवाज़ा खटखटाते हुए बोला..”भाई आज की रात यही मेरे घर रूक जा बारिश और अँधेरा बहोत हैं, कल चले जाना।”
लेकिन वहाँ अंधेरे से आवाज़ आयी और लगा जेसे आवाज़ दूर जा रही हों...”अरे भाई... कोई ना......बारिश में अब भीगने से.... मुझे कोई नहीं रोक सकता।..... bye........”
और हँसते हँसते “बाई” बोलने तक आवाज जेसे शिव से दूर जा चुकी थीं।
इतने में शिव के घर का दरवाज़ा खुला... दरवाज़े पर बापूजी खड़े थे… उसके बपुजी को अपनी आखो पर यकीन नहीं हो रहा था, इतने सालो बाद बिना कुछ कहे उनका लाड़ला बेटा घर आया था, बापूजी के चरण स्पर्श करके उनके गले लगके…शिव घर के अंदर जाता है, बापुजी सब को उठाते है, की “देखो-देखो कौन आया है?”
फॅमिली मे सब लोग उसको देख के खुश होते है, बड़ा ही आनंद का महोल है।
फ़्रेश होके घर में सबसे मिलने के बाद शिव अपने सर्प्राइज़ देने का पूरा प्लान समजाता है, और इस वजह से उसने कॉल नहीं किया ये बात भी बताता हैं,
फिर फ़ैमिली के साथ वो बातें करने बेठ जाता हैं...
थोड़ी देर बाद दादी पुछती हैं कीं…”बेटा तूजे यहाँ तक आने में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुईं ना…?”
शिव पूरी विवेक की कहानी सुनाता है...की केसे विवेक ने शिव को डरा दिया,
केसे वो मस्ती भरी बाते करते करते आए वो सब...
कुछ देर तक सब चुप हो गए और एक दूसरे के मुँह देख ने लगे...
शिव कुछ समजता और उसके पापा कुछ बोलने ही जाने वाले थे कीं अचानक दादी ने सब को हँसते हँसते बताया “आया होगा, वेसे भी रात को चाई पीने निकलता हैं और शायद आज किसी को लेके कही जाना होगा उसको उसका बिज़्नेस हैं ना ? टूर का...”
सारी फ़ैमिली वालों ने हाँ बोल दिया...
अब कोई और कुछ बोले इस से पहले
दादी बोली “बेटा... तु बहोत थक गया होगा सोजा कल बात करते है।”
सब लोग सोने चले गए।
दूसरे दिन सुबह शिव दादी के साथ मंदिर जाता हैं...
पिछली रात को वो जिस रास्ते आ रहा था, वो रास्ता जो उसके घर का शोर्ट्कट था, वहा से जाने के बजाए उसकी दादी पूरा गाव गोल घूमा कर मंदिर ले कर जाती है।
शिव मज़ाक़ में बोला “ दादी आप ने भी गोल गोल घूमा कर मंदिर ले के आए, वो अपने घर की शॉर्टकट गली है वहा से आ जाते कितना टाइम बचता, कल वो विवेक ने भी ऐसा किया मुझे यही पर मिला था, पूरा गाँव गोल-गोल घुमा कर घर लेके आया,
दादी ने और कोई रीऐक्शन नहीं दिए बस बोली “हम्म”।
दादी और शिव मंदिर दर्शन करने के बाद घर की तरफ जाते है तब दादी बोली एक चीज़ दिखती हु आओ, दादी उस रास्ते पर लेके जाती है जहा से पिछली रात को शिव आ रहा था, जहा पर एक बोर्ड हवा की वजह से नीचे पानी के अंदर गिरा हुआ था जिसमे लिखा था “DANGER इस्स रास्ते से न जाए”। रास्ते मे पानी भरा हुआ था, दादी कुछ बोले उसके पहले शिव बोला “अच्छा हुआ विवेक कल सही टाइम पर आ गया वरना मै यही से आने वाला था।
शिव ख़ुश था वो बोला “दादी मैं विवेक को मिलने जा रहा हु कल रात को उसका चेहरा भी नहीं देखा... आज मिलके उसको घर पर लेकर आऊँगा सब साथ में खाना खाएगे और कल उसका जन्मदिन है तो मै सोच रहा हु हम उसको सर्प्राइज़ पार्टी देगे।”
दादी ने उसका हाथ पकड़ा और गले लगा लिया शिव कुछ समझ नहीं पा रहा था, दादी की आखों से आसु गिरने लगे और बोलीं “ बेटा तूजे पता हैं तेरा दोस्त तूजे उस रास्ते से क्यू लेकर नहीं आया? क्यूँकि उस रास्ते पर बारिश की वजह से बड़ा गड्ढा बन गया है, जिसमें बिजली की तारें पड़ी थीं, तू आया उसके पिछले दिन वहा पर बहोत बड़ा हादसा हुआ था, इस्स वजह से गाव वालो ने ये बोर्ड लगाया है।
और अब तेरा दोस्त तुझे कभी नहीं मिलेगा, वह बहुत दूर जा चुका है।"
शिव हड़बड़ा गया उसको दादी को क्या पूछे क्या बताए वो कुछ समाज नहीं पा रहा था....
शिव बोला “ दादी ये क्या बोल रहे हो आप !? आपका मतलब क्या हैं ?”
दादी ने फिर बताया “ बेटा तु जिस दोस्त की बात कर रहा हैं वो दो दिन पहले यहा बिजली का जटका लगने की वजह से मर चुका हैं।”
शिव को कुछ समजमें नहीं आ रहा था कि क्या हों रहा हैं
वो थोड़ी देर के लिए जेसे सर पकड़ के बैठ गया... उसकी आँखों में आँसू आ गए और वो रोने लगा... थोड़ी देर बाद उसने आँसू पोंछें... और एक छोटी सीं मुस्कान के साथ ऊपर आसमान में देखा और बोला “मेरे दोस्त आज भी मेरी फ़िक्र करना नहीं भुला तूँ...।”