इक प्यार का नगमा है एक विडिओ देखा जो श्री संतोष आनन्द जी का था जिसमें उनके द्वारा लिखे गीत " इक प्यार का नगमा है,मौजों की रवानी है,जिन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है---" का जिक्र था। इससे पहले मुझे पता नहीं था कि यह सुन्दर गीत किसने लिखा है! श्री संतोष आनन्द जी के वर्तमान दुखों का भी विडिओ में जिक्र है। गीत मुझे अल्मोड़ा खींच ले गया। यह गीत सन १९७३ में एक कक्षा ६ में पढ़ने वाली लड़की ने हमारे आवास(डेरा) में गाया था। हम तीन विद्यार्थी उस आवास में रहते थे। मैं कक्षा १२ में था। बोर्ड की परीक्षा होने वाली थी, एक माह बाद। खजांची बाजार के पीछे की तरफ हमारा आवास था, लगभग चार माह से। उससे पहले थाना बाजार के बहुत पास( गंगोला मुहल्ला) हमारा डेरा था। परीक्षा के दिनों में खाना होटल में खाते थे। खजांची बाजार में वह छोटा सा होटल अब भी है। कभी-कभी उसके भात की ताक इतनी कठोर हो जाती थी कि पेट उसे देखकर ही भर जाता था। अपनी जीवन यात्रा में हम बहुत बातें भूल जाते हैं लेकिन कुछ अमिट छाप छोड़ जाते हैं ,जिन्हें बार-बार हम दोहराते हैं। किसी मोड़ पर मन को ये गुदगुदाते हैं।बिजली सी कौंध लिये। यह गाना जब भी मेरे कानों में पड़ता है, मुझे उस लड़की की याद अवश्य आ जाती है,शायद सबसे पहले उसके मुँह से इस गाने को सुनने के कारण।अपने दोस्त अरुण जोशी के प्यार में, मैं हमेशा एक निराशा और उदासी देखता था। वह मुझे जो कुछ बताता था,उनका मेरे पास कोई समाधान नहीं था। लेकिन तन्मय होकर सुनता था। पेरिस में २०१७ में, मंबई के एक लड़के ने मुझसे प्रश्न किया था," काका, संसार में प्रेम कहानियां अधिकांश दुखांत क्यों हैं? " उसका प्रेम विवाह था।चार साल पहले देखा था,अशोक होटल ( अल्मोड़ा) के सामने भीख मांगने वाले तीन भिखारी बैठे थे। मैंने जेब से पाँच रुपये का सिक्का निकाल कर उन्हें दिया। उसी समय एक व्यक्ति ने दस रुपये का नोट उनके कटोरे में डाल दिया। रघुनाथ मंदिर में डालने वाला व्यक्ति पुलिस ड्रेस में था तो मन में थोड़ी शंका हुई। क्योंकि पुलिस के बारे में हम सकारात्मक कम ही होते हैं। फिर मुझे विश्व के सबसे अमीर आदमी का किस्सा याद आ गया। जब वह पाँच डालर टिप में देता है और उसकी बेटी पाँच सौ डालर। और वह उसे उचित ठहराने के लिए दिलचस्प तर्क देता है। आगे बढ़ता हूँ तो अल्मोड़ा थाना देख कर मन खुश हो जाता है। बहुत ही साफ-सुथरा है। आमतौर पर ऐसे थाने देखने में नहीं आते हैं। बना पुराने डिजाइन का है। आगे गया तो पुराने पिक्चर हाँल " मुरली मनोहर" की बिल्डिंग पर कुन्दनलाल साह स्मारक प्रेक्षागृह,थाना बाजार लिखा है। वहाँ पर एक बुजुर्ग मिलते हैं। उनसे पूछा तो वे कहते हैं यही मुरली मनोहर पिक्चर हाँल था। उन्होंने राजकीय इण्टर कालेज से १९५९ में इण्टर किया था। अभी अपनी उम्र अस्सी साल बता रहे हैं।बच्चे बंगलुरू, जयपुर और अल्मोड़ा में हैं। सबसे गरीब जो है वह अल्मोड़ा में है, कहते हैं। जयपुर वाला प्रोफेसर है। बंगलुरू वाला इसरो में है। हालांकि उन्होंने कहा," जो बंगलुरू में है वह उस विभाग में है जो मंगलयान आदि बनाते हैं।" दोनों अपने अपने शहरों में बस गये हैं। काफी बातें करते करते हम पलटन बाजार पहुँच गये हैं।हाथ जोड़कर विदा लेते हैं तो वे कहते हैं हम दोनों के बीच इतनी बातें ऊपर वाले ने सुनिश्चित की होंगी।उनकी बात से लग रहा है, फिर हम कभी नहीं मिल पायेंगे। लेकिन यह वीतराग भाव से कही गयी बात है। लौटते समय कारखाना बाजार होते हुए आ रहा हूँ। ताँबे के गागर दुकानों में दिख रहे हैं। पुरानी संस्कृति पूरी मरी नहीं है अभी।कुमाँऊनी भाषा में कोई बोल रहा है," अरे कथां मरि रै छै तु।" मैं सोच रहा हूँ यदि मर गया तो बोलेगा कैसे? लेकिन दूर से आवाज आती है ," यहीं पर हूँ।"फिर विचारों से लौटता हूँ और श्री संतोष आनन्द जी द्वारा लिखा गाना गुनगुनाता हूँ,जो अल्मोड़ा में ही सबसे पहले मैंने सुना था और लगभग सैंतालीस साल बाद उसके गीतकार को, मानसिक आघातों के बीच कहते देख रहा हूँ-"इक प्यार का नगमा है,मौजों की रवानी है,जिन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है---"
*** महेश रौतेला