फिल्म रिव्यू द मेहता बॉयज
फ़रवरी महीने में एक हिंदी फिल्म रिलीज हुई है ‘ द मेहता बॉयज ‘ . शायद इसके बारे में बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा . बिना शोर शराबे के ‘ द मेहता बॉयज ‘ OTT अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई है . फिल्म हल्के फुल्के मनोरंजन के लिए नहीं बनायी गयी है पर यह दिल की गहराई तक पहुँचने वाली एक बेहतरीन फिल्म है .
‘ द मेहता बॉयज ‘ के निर्माता मशहूर कलाकार बोमन ईरानी और अन्य सह निर्माता दिनेश ईरानी ,शुजात सौदागर और विपिन अग्निहोत्री हैं . इस फिल्म के डेब्यू निर्देशक स्वयं बोमन ईरानी हैं . इसकी कहानी बोमन ईरानी और ऑस्कर विजेता अलेक्जेंडर डिनेलारिस ( बर्डमैन से मशहूर ) ने लिखी है .
कहानी - फिल्म का मूल उद्देश्य पुराने विचार के पिता और मेट्रो में कार्यरत बेटे के बीच रिश्ते को पर्दे पर दिखाना है जिसमें कथा लेखक , निर्देशक और कलाकारों ने बखूबी अपना अपना योगदान दिया है . अमय मेहता ( अविनाश तिवारी ) मुंबई में एक संघर्षरत आर्किटेक्ट है . वह एक साधारण फ्लैट में रहता है . वह अपने डिज़ाइन को बॉस को प्रेजेंट नहीं करना चाहता है क्योंकि स्वयं उसमें आत्मविश्वास की कमी है न कि डिज़ाइन में . अमय की कुलीग ज़ारा ( श्रेया चौधरी ) उसका उत्साह बढ़ाती है और उसे कम्पनी के बेस्ट आर्किटेक्ट में एक कहती है .
अमय जब बोर्ड मीटिंग में था उसी बीच उसे अपनी माँ की मौत की सूचना मिलती है और वह तुरंत अपने घर जाता है जहाँ उसके रिटायर्ड पिता शिव मेहता ( बोमन ईरानी ) रहता है . अमय की बहन अनु ( पूजा सरूप ) भी अमेरिका से आयी है . यहीं से बाप बेटे के पेचीदे रिश्ते की शुरुआत पर्दे पर नज़र आती है . हालांकि अनु बाप बेटे के बीच रिश्ते की खटास को पहले से ही जानती थी और उन्हें शांत रहने को कहती है . अनु पिता को अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहती है . बाहर टैक्सी खड़ी होती है और शिव अपने पुराने टाइपराइटर पर वसीयत टाइप करता है . अनु उसे समझती है “ इसे छोड़िये , घर चलना है “ , शिव कहता है “ दिस इज होम “ .
मुंबई में शिव का टिकट दो दिन बाद का मिलता है पर अनु को उसी दिन जाना है . वह पिता और भाई दोनों को हाथ जोड़ कर दो दिन मुंबई में साथ रहने के लिए कहती है . दोनों अमय के घर जाते हैं ,वहां अमय अपने पिता का सामान खुद उठाना चाहता है पर शिव भी जिद्दी है वह लिफ्ट और सीढ़ियों से खुद अपने सामान ले जाता है . यहाँ बाप बेटे दोनों के चेहरे और आँखों के भाव को बड़ी बारीकी से दिखाया गया है . एक ही बेड होता है , रात में दोनों एक दूसरे की सुविधा देखते हुए एक दूसरे को बेड ऑफर करते हैं . शिव बेटे को कहता है ‘ इसी लाइफ के लिए परिवार छोड़ कर मुंबई आये हो ? “ शिव को अमय का घर , उसका लाइफ स्टाइल और यहाँ तक की पेशा भी पसंद नहीं है . घर की छत से पानी टपकता है उसे लाल प्लास्टिक से ढका जाता है . तेज हवा में लाल कपड़ा उड़ कर दोनों के सिर पर आता है . शिव को पत्नी की लाल साड़ी की याद आती है और दोनों को लगता है कि मृत आत्मा दोनों को शांत रखना चाहती है .
अमेरिका से अनु अमय को पिता का बर्थडे याद दिलाती है . अमय पिता को डिनर होस्ट करता है . शिव बेटे को गर्लफ्रेंड ज़ारा को डिनर पर बुलाने के लिए कहता है हालांकि अमय कहता है कि ज़ारा मात्र एक कुलीग है . होटल का बिल देते समय दोनों बाप बेटे में काफी नोकझोंक होती है . एयरपोर्ट जाते समय शिव को याद आता है कि उसका एक बैग जिसमें पासपोर्ट और पत्नी की साड़ी थी रेस्त्रां में छूट गया है . वे लौट कर जाते हैं पर बैग नहीं मिलता है . इसके चलते पासपोर्ट मिलने तक शिव को मुंबई में बेटे के साथ रहना पड़ता है .
एक दिन बारिश में घर लौटते समय शिव गुस्से में कार का हैंडब्रेक खींच देता है लेकिन गाड़ी और दोनों की जान किसी तरह बच जाती है . इस बार अमय अपना आपा खो बैठता है और पिता पर बहुत ज्यादा गुस्सा होकर जोर से चिल्लाता है . शिव बरसात में अकेले चल पड़ता है और एक महिला को अपनी पत्नी समझ कर उसके पीछे दौड़ता है . शिव का एक्सीडेंट होता है . अमय उस से मिलने अस्पताल जाता है जहाँ ज़ारा पहले से ही मौजूद होती है . वह अमय को इस घटना का जिम्मेदार ठहराती है और कहती है “ वे तुम्हारे पिता हैं , तुम्हारी जिम्मेदारी हैं . “ इस बीच शिव का पासपोर्ट मिल जाता है पर वह अमय के साथ न जाकर अपने घर लौट जाता है .
अमय अपने फ्लैट में आता है तब उसे पिता की एक बात याद आती है - मुंबई में सभी घर ग्लास और स्टील के हैं , “India does not look like India anymore” . अमय को अचानक अपने डिज़ाइन के लिए नया आईडिया मिलता है और वह भारतीय आर्किटेक्ट पर आधारित डिज़ाइन बनाता है जो बॉस को पसंद आता है . अमय लौट के पिता के पास आता है और अपने डिज़ाइन की बात कहता है . शिव बहुत खुश होता है . बाप बेटे दोनों की आँखों में एक दूसरे के लिए नि शब्द प्रशंसा की भरपूर झलक होती है . पिता की आँखों में आसूं हैं . ऐसा लगता है दोनों एक दूसरे को नए चश्मे से देख रहे हों .
बोमन ईरानी ने स्वयं के निर्देशन में अपने सशक्त अभिनय का परिचय दिया है जिसे आजतक कोई अन्य निर्देशक नहीं दिखा सका था . फिल्म में अक्सर बिना एक शब्द बोले ही ईरानी अपनी आँखों , होठों और चेहरे के एक्सप्रेशन से बहुत कुछ कह जाते हैं जो दर्शक के दिल और दिमाग तक पहुंचता है . बेटे की भूमिका में अविनाश तिवारी का अभिनय भी उतना ही शानदार है . दोनों के चेहरे पर मूक पीड़ा अच्छी तरह फिल्म में दिखाया गया है . पिता और पुत्र के बीच भले वैचारिक मतभेद रहे हों पर उनके बीच नफरत नहीं है . अनेक ऐसे दृश्य हैं जहाँ छोटी छोटी बातों को ले कर दोनों के बीच के मतभेद को अच्छे अभिनय और निर्देशन द्वारा बारीकी से फिल्माया गया है . इन्हें देख कर दिल से महसूस किया जा सकता है , शब्दों में कहना बहुत कठिन होगा . मानो फिल्म का एक एक फ्रेम कुछ कहना चाहता है , जैसे रूम का लाइट स्विच , छत का लीकेज , लीकिंग छत के कवर का उड़ना , लिफ्ट में बाप बेटे का फंसना , हैंड ब्रेक लगाने पर अमय का पिता पर गुस्सा , पासपोर्ट ऑफिस में पिता का अपने घर का पता लिखवाने की जिद , ज़ारा को शिव द्वारा अपनी पत्नी की यादें बताना , एयरपोर्ट पर विदाई का दृश्य आदि अनेक ऐसे दृश्य हैं .
अनु मेहता के छोटे से रोल में पूजा सरूप ने भी पिता और भाई के रिश्ते को परखने , संतुलन बनाने और दोनों के बीच की खाई को पाटने का काम किया है . ज़ारा के रोल में श्रेया चौधरी का अभिनय भी सराहनीय रहा है . उसने अमय की कुलीग और गर्ल फ्रेंड का रोल तो किया ही है साथ में बाप बेटे के बीच रिश्ते सुधारने का प्रयास और कदम कदम पर अमय को प्रोत्साहित किया है .
कुल मिलाकर अभिनय , कथा और निर्देशन बहुत प्रशंसनीय है अगर कमी है तो फिल्म का स्लो पेस .
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