भारत की रचना / धारावाहिक
पन्द्रहवां भाग
इंस्पेक्टर की इस बात पर रचना कोई उत्तर नहीं दे सकी. वह चुप हो गई तो इंस्पेक्टर ने आगे उससे कहा कि,
'देखिए, मिस- मैं जानता हूँ कि आप बिलकुल ही निर्दोष हैं और इस सारे मामले से आपका केवल इतना ही सम्बन्ध है कि, आपने इस ब्रीफकेस को अपने हाथ में ले लिया. लेकिन, क्या आपने सोचा है कि, आपकी नादानी, नासमझी और आवश्यकता से अधिक अपनी कक्षा के छात्र पर विश्वास करने की भूल आपको जेल के सींखचों के पीछे कर सकती है? आप, घबराइये नहीं., मैं आपकी जितनी भी हो सकेगी, उससे भी अधिक मदद करने की कोशिश करूंगा, लेकिन आपको भी कानून का साथ देना होगा.'
'?'- रचना इंस्पेक्टर का मुंह ही ताकती रह गई- बिलकुल अवाक- बे-सुध-सी.
'आई एम वैरी सॉरी मैडम जॉर्ज. आपके हॉस्टल की ये नादाँ और ना-समझ छात्रा खुद ही इस केस में उलझ चुकी है. इसलिए, इनको मेरे साथ पुलिस स्टेशन सारी कार्यवाही के लिए चलना होगा.'
'?'- क्या आप सारी बात विस्तार में बताने का कष्ट करेंगे?'
लिल्लिम्मा ने आश्चर्य से पूछा तो इंस्पेक्टर ने कहा.
'क्यों नहीं?' यह कहकर वह उबसे बोला कि,
'दरअसल, ये ब्रीफकेस रामकुमार वर्मा का है. कॉलेज में प्रवेश लेकर, पढ़ाई करना तो उसका एक बहाना है. मगर वास्तव में वह एक माना हुआ स्मगलर है. मैं, उसके पीछे कई दिनों से हूँ. और आज भी मैं उसका पीछा नानपाड़ा से कर रहा था. परन्तु उसने खुद को बचाने के लिए, अपना ये ब्रीफकेस आपकी इस छात्रा को दे दिया और खुद बच गया. आपकी ये छात्रा इस ब्रीफकेस को अपने साथ, अपने कमरे तक ले आई. आप जानती हैं कि, इस ब्रीफकेस में क्या है?'
'?'- इस पर वार्डन और रचना, दोनों ही ने उसको आश्चर्य से निहारा. तब इंस्पेक्टर बोला,
'इस ब्रीफकेस में, कोकीन, चरस और अफीम जैसी मादक वस्तुएं हैं. ऐसी ही हानिकारक मादक द्रव्य की स्मगलिंग रामकुमार वर्मा करता है, परन्तु अफ़सोस की बात है कि, वह हर बार मेरे चंगुल में आकर भी बच निकलता है.'
'?'- इंस्पेक्टर की सच्चाई से भरी इस कड़वी बात को सुनकर हॉस्टल की वार्डन लिल्लिम्मा जॉर्ज, किसी पंख कटे हुए पक्षी के समान केवल फड़फड़ाकर ही रह गई. फिर उसने रचना की ओर देखा- घूरकर- अपनी आँखें निकालती हुई, एक ज़ोरदार झापड़, अपने पूरे बल के साथ उसके गाल पर मार दिया- 'तड़ाक.'
और चीखती हुई उससे बोली,
'बेशर्म ! अपने साथ-साथ, सारे हॉस्टल का भी मुंह काला कर बैठी? क्या आवश्यकता थी तुझे ये ब्रीफकेस हॉस्टल के अंदर लाने की?'
रचना ! बेचारी लहराकर दीवार से जा टकराई और दोनों हाथों में अपना मुंह छिपाकर फूट-फूटकर रो पड़ी. रो पड़ी अपनी भूल पर- अपने किये पर- अपने दुर्भाग्य की काली रेखाओं को देख-देखकर- अपनी निर्दोषिता, अपनी बेबसी और लाचारी पर- ऐसी निर्दोषिता कि जिसको साबित करने के लिए, उसके पास अपनी आँखों में भरे हुए आंसुओं के सिवा कोई अन्य आधार भी नहीं था.
इंस्पेक्टर ने ये सब देखा तो वह लिल्लिम्मा जॉर्ज से बोला कि,
'जल्दबाजी और जोश से काम नहीं चलेगा. दिमाग और साहस से काम लीजिएगा. नादानी में, इस प्रकार की भूलें प्राय: लोगों से हो जाती हैं. जैसा कि, आपकी इस छात्रा ने बताया है कि, रामकुमार वर्मा अपना ये ब्रीफकेस इनके पास लेने अवश्य ही आयेगा, सो मैं अपने इन दोनों सिपाहियों को यहाँ हॉस्टल में छोड़ जाता हूँ. यदि वह आता है और अपने ब्रीफकेस के बारे में या फिर इनके बारे में पूछताछ करता है, तो वह गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस केस की नाजुकता को देखते हुए, मेरे पास केवल चौबीस घंटे का समय है. यदि वह आता है और अपना ब्रीफकेस माँगता है, तो फिर उसके गिरफ्तार होने के पश्चात, आपकी ये छात्रा बाकायदा छोड़ दी जायेगी, वरना तब तक ये महिला पुलिस संरक्षण में रहेगी और ब्रीफकेस का असली दावेदार न मिलने के कारण ये केस इन पर लगा दिया जाएगा. '
इंस्पेक्टर की ये सारी बातें सुनने के पश्चात लिल्लिम्मा तो अपना जैसे सिर ही पीटकर रह गई. फिर अंत में, इंस्पेक्टर ने हॉस्टल की वार्डन लिल्लिम्मा जॉर्ज से रचना को आवश्यक कार्यवाही करने के उपरान्त अपने साथ ले जाने की अनुमति माँगी. लिल्लिम्मा बेबस थी- रचना लाचार थी और क़ानून के हाथों में बंधा हुआ, स्वय: इंस्पेक्टर भी मजबूर था. स्मगलिंग का सारा सामान उसने रचना के पास से बरामद किया था. कानून के अंतर्गत वह रंगे हाथों पकड़ी गई थी. मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर केवल उसी को अभियुक्त दोषी करार दिया जाना था. फलस्वरूप रचना को इंस्पेक्टर के साथ विवश होकर जाना पड़ा. साथ में लिल्लिम्मा जॉर्ज भी चल पड़ी- पुलिस जीप में बैठकर, और इसके साथ-साथ भविष्य में आनेवाली मुसीबतों के सांचों से, अत्याचारों के साए भी निकलकर मानो रचना के हमसफर बनकर चल पड़े.
कानून, मानव जाति के इतिहास में एक ऐसा कड़वा सच है कि, जिसके साये में बेगुनाह फांसी के तख्ते पर झूल जाता है और असली अभियुक्त बाइज्ज़त बरी होकर, देश की राजगद्दी पर बैठकर बेधड़क शासन करता है. इंसानों की अदालत में हुए ऐसे फैसलों से, भारत देश का शायद कोई भी कोना रिक्त नहीं होगा.
रचना की गिरफ्तारी की खबर सारे हॉस्टल में, शहर में अचानक आये हुए किसी टिड्डी दल के समान चारों तरफ फैल गई. पुलिस के हाथों रचना पकड़ी गई थी, परन्तु उसका प्रभाव ऐसा पड़ा था कि हॉस्टल की सारी लड़कियां भी भय से जैसे सहम-सी गई थीं. लड़कियों में काना-फूसी होने लगी थी. कोई पुलिस को दोष देता था, तो कोई रामकुमार वर्मा को ही उलटा-सीधा बकने लगता था. जितने मुंह थे, उतने ही शब्द भी थे. रचना की यूँ अचानक से हुई गिरफ्तारी के कारण तो जैसे सारा हॉस्टल ही परेशान हो गया था. सब ही को दुःख था- बेहद सब परेशान भी थे. परन्तु सब विवश भी थे. कोई कर भी क्या सकता था. बेबसी के कारण अपने हाथ मल-मलकर सारी लड़कियां पत्थर की प्रतिमूर्ति बनकर ही रह जाती थीं. इसके साथ-साथ रचना की अन्तरंग सहेली ज्योति को तो काटो तो जैसे खून भी नहीं था. वह तो रचना के बारे में सब-सुनकर स्तब्ध तो क्या, पूरी तरह से किसी शव के समान बेजान हो चुकी थी. उसने रचना के बारे में तो कभी सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था. उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ पा रहा था कि ऐसे जटिल समय में वह क्या करे और क्या नहीं? किस प्रकार वह रचना को, पुलिस की गिरफ्त से मुक्त कराकर ला सके.
उस शाम सारे हॉस्टल में, मनहूसियत का साया किसी झपट्टा मारनेवाले बाज़ के समान मंडराता रहा. हॉस्टल के चप्पे-चप्पे में खामोशी एक नये आगन्तुक के समान अपने पैर पसारे पड़ी रही. अधिकतर लड़कियों ने शाम का खाना भी नहीं खाया था. फिर ऐसी दशा में खाने की फ़िक्र किसी को हो भी क्यों सकती थी? सब ही होठों पर भोली-भाली रचना की गिरफ्तारी ही की चर्चा थी. विषय एक ही था- बातें भी वही थीं- परन्तु उनके कहने-सुनने के तरीके सबके अपने अलग-अलग थे.
फिर संध्या को सभी लड़कियों ने रचना की गिरफ्तारी का दुःख मनाया. एक बड़ी आराधना और प्रार्थना सभा का आयोजन भी किया गया. उसकी सलामती की दुआएं भी माँगी गईं. लगभग सभी लड़कियों ने उसके लिए एक विशेष प्रार्थनाएं भी कीं. उस दिन का शाम के अध्ययन का कार्यक्रम इस दुखभरे हादसे के कारण स्थगित कर दिया गया था. कुछेक लड़कियों के समूह ने इस बारे में हड़ताल करने की योजना भी बनाई और पुलिस स्टेशन जाकर धरना भी देना चाहा, परन्तु लिल्लिम्मा जॉर्ज की मनाही और सख्ती के कारण ये भी नहीं हो सका.
क्रमश: