Live-in-Relationship in Hindi Moral Stories by Archana Anupriya books and stories PDF | लिव इन रिलेशनशिप

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लिव इन रिलेशनशिप

"लिव इन रिलेशनशिप"

जिस दिन से पता चला कि आरती गर्भवती है,उसकी माँ का तो रो-रोकर बुरा हाल था।बत्तीस वर्ष की आरती की अभी तक शादी नहीं हुई थी और न ही वह विवाह के लिए राजी हो रही थी।माता-पिता ने जब दवाब डाला तो, वह अपने दोस्त और दफ्तर के कुलीग,दिवाकर के साथ उसके फ्लैट में रहने चली गयी।जिस दिन वह घर छोड़कर गयी थी,उस दिन भी आरती की माँ बहुत रोई थीं।लेकिन,आरती थी कि वापस नहीं लौटी। उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि ठीक है, तू दिवाकर से ही शादी कर ले,पर न तो आरती और न ही दिवाकर शादी करने में रूचि दिखा रहे थे।पिछले छः-सात महीने से दोनों एक साथ बिना विवाह के पति-पत्नी की तरह लिव-इन में रह रहे थे।हारकर आरती के माता-पिता ने दिवाकर के माता-पिता से भी बात करने की कोशिश की परन्तु, वहाँ भी यही हाल था।दिवाकर के माता-पिता भी बेटे को समझा-समझाकर थक चुके थे।अब जब आरती के गर्भवती होने की बात पता चली तो, उसकी माँ पछाड़ें खाने लगीं।आश्चर्य की बात तो यह थी कि आरती और दिवाकर को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि लोग या समाज क्या कहेंगे।जब आरती को माँ के रोने-धोने का पता चला तो उसने कहा–"चिल मॉम,इतना भी हाइपर होने की जरूरत नहीं, प्रेग्नेंसी इज नॉट ए प्रॉब्लम, डॉक्टर हैं,अस्पताल हैं, एबॉर्शन करा लूँगी,मुझे ये बच्चे-वच्चे के चक्कर में नहीं पड़ना है,पूरा करियर ही बिगड़ जायेगा.."

" हे भगवान!ये हो क्या गया है, आजकल के बच्चों को..किसी तरह की जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहते,हर तरह के बंधन से आजादी चाहिए उन्हें..बस,शारीरिक जरूरत की पूर्ति करने के लिए साथ आते हैं और जरूरत पूरी करने के बाद जी चाहा तो साथ रहे,वरना ब्रेकअप… आखिर परिवार बनाने से तकलीफ क्या है..?क्या ऐसा नहीं लगता कि इन्सान एक बार फिर से पशुत्व की ओर चल पड़ा है..?माता-पिता आपस में ही बात करते रहते।

आरती और दिवाकर क्या, समाज की अधिकांश नयी पीढ़ी की यही सोच बन गयी है।विवाह का पवित्र बंधन,सात जन्मों का साथ,अग्नि के फेरे के साथ सप्तपदी की रीति–सब धीरे-धीरे इतिहास बनने की दिशा में बढ़ने लगे हैं।समाज एक नयी ही व्यवस्था को अपनाने पर विवश है,जिसका नाम है,लिव-ईन"।लड़का-लड़की बगैर विवाह के एक साथ रहने लगते हैं और अपनी दैहिक आवश्यकता पूरी कर लेते हैं।न तो कोई किसी की जिम्मेदारी लेता है,न दोनों के बीच कोई बंधन होता है…निभ गयी तो ठीक वरना ब्रेकअप।ये सब आजकल इतना सहज सा हो गया है उनके लिए कि समाज की सदियों से बनी-बनायी विवाह की  व्यवस्था चरमराकर धाराशायी होने की कगार पर है।

लिव-इन सम्बन्ध या लिव-इन रिलेशनशिप एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो लोग जिनका विवाह नहीं हुआ है, साथ रहते हैं और एक पति-पत्नी की तरह आपस में शारिरिक सम्बन्ध बनाते हैं। यह  सम्बंध स्नेहात्मक हो सकता है और रिश्ता गहरा हो सकता है। सम्बन्ध कई बार लम्बे समय तक चल सकते हैं या फिर स्थाई भी हो सकते हैं।यहाँ तक कि विवाहित भी किसी अन्य के साथ लिव-इन में रहना चाहें तो रह लेते हैं।एक उच्च न्यायालय ने अभी हाल ही के एक मामले में यह स्पष्ट किया है कि विवाह के होते हुए लिव इन में रहना किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं है। दो बालिग पक्षकार आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं और इस पर कोई प्रकरण नहीं बनेगा क्योंकि वर्तमान में भारत में जारक्रम को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है।लिव इन के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं, जिसमें यह बताया गया है कि लिव इन चोरी छुपे नहीं होना चाहिए बल्कि वह स्पष्ट होना चाहिए और जनता में इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि यह दो लोग आपस में बगैर विवाह के लिव-इन में रह रहे हैं।

लिव इन रिलेशन में रहने के दौरान, दोनों साथी पूरी तरह से निजी रूप से आजाद होते हैं। उन पर सामाजिक या कानूनी तौर पर कोई बंधन नहीं रहता है। दोनों घर खर्च की जिम्मेदारियों को अपने हिसाब से  बेहतर तरीके से बांट सकते हैं। किसे कितना अपने आगे के भविष्य में खर्च करना चाहिए और कितना पैसा बचाना चाहिए इस बात का निर्णय वे स्वयं अपनी आय के हिसाब से कर सकते हैं।जहाँ तक इस प्रकार की व्यवस्था से उत्पन्न हुए बच्चों का मामला है,सन् 2009 में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में बच्चे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से मना कर दिया था परन्तु,इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुनः यह हक वापस दिया गया और कहा गया कि लिव-इन-रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को भी पैतृक संपत्ति पर हक देने से रोका नहीं जा सकता है।

भारतीय युवा आज तेजी से अपने जीवन जीने के अंदाज में बदलाव ला रहें हैं। ऐसे में आधुनिक संस्कृति के किसी भी रूप को अपनाना उनके लिए बड़ी बात नहीं है। लिव-इन रिलेशन इस आधुनिक संस्कृति का ही एक हिस्सा है।न्यायालयें भी इस बात से वाकिफ हैं और इस व्यवस्था के परिणामों के प्रति न्याय करने में सजग हैं।

महानगरों में लिव इन रिलेशनशिप की शुरुआत शिक्षित और आर्थिक तौर पर स्वतंत्र, ऐसे लोगों ने की जो कि विवाह की ज़कड़न से छुटकारा चाहते थे। इस रिश्ते को दूसरे पक्ष की सहमति के बिना कभी भी समाप्त किया जा सकता है…जबकि दूसरी ओर शादी न सिर्फ दो व्यक्तियों का बल्कि दो परिवारों का भी मिलन है। शादी में लड़का-लड़की को सामाजिक तौर पर एक सूत्र में बँधने की मान्यता प्राप्त होती है। विवाह में स्त्री व पुरुष दोनों के सम्मान और प्रतिष्ठा निहित हैं। विवाह की परंपरा भारतीय समाज के आरंभ से ही चली आ रही है…आमतौर पर शादी अविवाहित पुरुष और अविवाहित महिला के बीच होती है।लेकिन, लिव-इन में ऐसा कोई बंधन नहीं है और दो बालिग आपसी सहमति से बिना किसी बंधन के विवाहित लोगों की तरह साथ रह सकते हैं। आर्थिक और मानसिक स्वतंत्रता,सामाजिक दायित्वों से मुक्ति,कानूनों के चक्कर से बचाव और अपने-अपने फैसलों में पूरी आजादी कुछ ऐसी बातें हैं, जिनकी वजह से नयी पीढ़ी तेजी से इस व्यवस्था को अपना रही है।

परन्तु, इस व्यवस्था की  दूरगामी परेशानियाँ भी हैं। इस रिश्ते में आत्मिक प्रेम कम और शारीरिक सुख का लक्ष्य अधिक हावी होता है। नतीजन,आपसी अविश्वास का डर रहता है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों में अविश्वास का भय हमेशा ही सताता रहता है। इस रिश्ते में दोनों ही पार्टनर रिश्ते से बाहर आने के लिए आजाद होते हैं इसलिए,दोनों में ही यह डर सताता रहता है और इस कारण वे दोनों अपनी जिंदगी को खुलकर खुशी से व्यतीत नहीं कर पाते हैं।इसके अतिरिक्त, किसी तरह का बंधन नहीं होने से इस रिश्ते से निकलना या रिश्ता तोड़ना आसान होता है।ऐसे में एक पार्टनर दूसरे को आहत करके आगे बढ़ना चाहे तो उसके लिए रास्ता आसान है,जो व्यक्ति को पूरी तरह से तोड़ सकता है।इस वजह से दोनों एक दूसरे को पूरी तरह से न तो अपनाते हैं, न पूरा महत्त्व ही देते हैं।इस व्यवस्था से जन्मे बच्चों की सही और स्वस्थ परवरिश में भी बाधा आती है।उन्हें सामाजिक निंदा का सामना करना पड़ता है।स्त्रियों के लिए तो यह व्यवस्था कई बार बहुत ही घातक सिद्ध होती है।आसानी से व्यवस्था से निकलने की छूट अक्सर उनके लिए प्रताड़ना का कारण बन जाती है।उन्हें सामाजिक परेशानियों का सामना करता पड़ता है और पुनः विवाह होना भी  मुश्किल हो जाता है।

कुल मिलाकर देखें, तो पश्चिमी सभ्यता की देन यह व्यवस्था समाज की बनी बनायी लीक से नयी पीढ़ी को दूरकर एक नयी ही व्यवस्था स्थापित कर रही है,जिसके आगे चलकर बड़े दूरगामी नतीजे दिखने वाले हैं…

"लिव इन रिलेशनशिप"

प्यार का बंधनप्रैक्टिकल हो गया

नये जमाने केअनुरूप ढल गया

संवेदनाएँ निराकार हुई

अबजरूरतें ही आधार हुईं अब

बस दो शरीर हैं रहते साथ

नहीं कोई आत्मा वाली बात

ना कोई कानून का बंधन

ना प्रेम से बँधा अंतर्मन

अहसास तो है, विश्वास नहीं है

मशीनी हुआ मानवअब श्वास नहीं है

न चाहत अंदर, न जिम्मेदारी

सहमी,दबी सी है रूह बेचारी

रिश्ता तो बस खेल वहाँ है

दिलों का सच्चा मेल कहाँ है?

ना आपसी अधिकारना कोई रोक-टोक

खत्म हो गई पति-पत्नी कीप्यारी नोंक-झोंक

ना है कोई मायका,ना कोई ससुराल

बच्चे हों तो कहाँ जायें?-सबसे बड़ा सवाल

अजीब सा रिश्ता है-ये'लिव इन'

जब तक मतलब,तभी तक इसके दिन

हमारी संस्कृति में प्यार का मान है

'मतलब का रिश्ता' तो पश्चिमी योगदान है

औरों की भला हम नकल करें क्यों?

ताक पर अपनीअक्ल धरें क्यों?

माना कि बंधन मूर्खता है

पर ये कैसी सभ्यता है?

जरूरी है खुला विचार रखना

पर चाहिए कुछ तो सदाचार रखना

अधिकार के साथ जब कर्तव्य होगा

तभी तो सुख भी गंतव्य होगा..

हम इन्सान हैं, जानवर नहीं हैं

मनु और पशु में तो अंतर यही है..

आजादी अच्छीजब आपसी बंधन हो

प्यार सच्चा जब आत्मिक मिलन हो..

मन के बंधन की नीति अपनाएं

हम सुदृढ़ अपनीसंस्कृति बनाएं..।         

                     अर्चना अनुप्रिया।