फिल्म रिव्यु छावा
कुछ ही दिन पूर्व हिंदी फिल्म ‘ छावा ‘ रिलीज हुई है . छावा एक मराठी शब्द है जिसका अर्थ शेर का बच्चा होता है . यह फिल्म मराठी लेखक शिवाजी सावंत के उपन्यास ‘ छावा ‘ का एक रूपांतरण कही जा सकती है हालांकि मूल उपन्यास और फिल्म की कहानी में कितनी समानता या भिन्नता है , यह कहना बहुत कठिन है . इसके निर्माता दिनेश विजन हैं . इसके निर्देशक और सह पटकथा लेखक लक्ष्मण उतेकर हैं . अन्य पटकथा लेखक ऋषि विरमानी , कौस्तुभ सावरकर , उनमान बैंकर और ओमकार महाजन हैं .
कहानी - ’ छावा ‘ की कहानी छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी है जिन्हें शंभूराजे नाम से भी जाना जाता है . संभाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे और वे 17 वीं सदी में 1680 - 1689 तक मराठा साम्राज्य के वीर और साहसी शासक रहे थे . इतिहास उनकी वीरगाथा का साक्ष्य है . अपने शासन के दौरान उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब के सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे .
फिल्म ‘ छावा ‘ का आरम्भ 1680 में मराठा साम्राज्य के शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु से होता है . उनकी मृत्यु की खबर सुनकर औरंगज़ेब प्रसन्न होता है और समझता है कि अब उसके लिए डेक्कन विजय करना आसान हो गया है . जबकि दूसरी तरफ शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी ( विक्की कौशल ) साम्राज्य की डोर संभाल लेते हैं . मुगलों की सोच के विपरीत संभाजी बुरहानपुर में मुग़लों के ठिकाने पर आक्रमण करते हैं . मुगलों पर आसानी से विजय प्राप्त कर उनके खजाने को लूट लेते हैं . बुरहानपुर मुगलों के लिए व्यापार का प्रमुख केंद्र है . यह घटना औरंगज़ेब को बहुत क्रोधित करती है और पुनः एक भयंकर युद्ध की शुरुआत होती है . आरम्भ के कुछ वर्षों में मुगलों को सफलता नहीं मिलती है और हार का सामना करना पड़ता है . बीच में संभाजी को गोवा में पुर्तगालियों के साथ हुई लड़ाई की झलक भी देखने को मिलती है . संभाजी पुर्तगालियों को मराठा राज्य में पैर जमाने से रोकते हैं .
कहा जाता है कि संभाजी ने शेर को अपने हाथों ही से मार दिया था , इसलिए उन्हें छावा कहा जाता है . जो भी हो संभाजी महाराज शेर दिल साहसी और वीर योद्धा जरूर थे . इस फिल्म में युद्ध के दौरान न सिर्फ वीरता देखने को मिलेगी परन्तु युद्ध का इतना वीभत्स रूप हिंदी सिनेमा में विरले ही मिलता है . युद्ध के दौरान संभाजी के चेहरे पर रक्त और आँखों में क्रोध की ज्वाला झलकती है . भीषण युद्ध के बीच संभाजी का एक बिलखते बच्चे को बचा कर उसकी माँ को देना , वीरता के साथ उनकी दयालु प्रकृति को भी दिखाता है . बुरहानपुर की हार पर औरंगज़ेब ( अक्षय खन्ना ) बहुत क्रोधित होता है . वह कहता है जब तक संभाजी का अंत नहीं होगा वह ताज नहीं पहनेगा . दूसरी तरफ संभाजी की स्वराज्य की इच्छा है . संभाजी और मुगलों के बीच युद्ध का सिलसिला शुरू होता है . इसके साथ ही शुरू होती है उनके ही परिवार के कुछ गद्दारों की दगाबाजी की कहानी .
संभाजी की सौतेली माँ सोयराबाई ( दिव्या दत्ता ) अपने बेटे को मराठा राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहती है और द्वेष के चलते वह भी गद्दारों में एक है . वह औरंगज़ेब के बेटे अकबर से मिलती है . अकबर का स्वभाव पिता के विपरीत था और वहां सोयराबाई की दाल नहीं गलती है . संभाजी का बहनोई गंगोजी शिर्के जो संभाजी का एक कमांडर था और संभाजी की पत्नी के दोनों भाई भी गद्दार निकलते हैं . गद्दारों ने औरंगज़ेब को संभाजी की सेना की गुप्त सूचनाएं पहुंचाई जिसके चलते संभाजी और उसके अन्य साथी पकड़े जाते हैं . उन्हें खुले आम अपमानित कर वीभत्स यातना दे कर बहुत क्रूरता से मार दिया जाता है . हालांकि उनकी मृत्यु के बाद से मुगलों के शासन के अंत की शुरुआत हो जाती है .
निर्देशक ने फिल्म में युद्ध के एक्शन को भली भांति दर्शाया है . हालांकि निर्देशक ने संभाजी की वीरता और युद्ध कौशल को भरपूर दिखाया है फिर भी उनके अन्य गुणों की झलक फिल्म में न के बराबर है . संभाजी एक अच्छे कवि , शासक ,विद्वान और कई भाषाओं के ज्ञाता थे . फिल्म में मराठा सैनिकों की वीरता के साथ मुगलों के अत्याचार और बर्बरता को भी दिखाया गया है . घोड़े पर सवार संभाजी का मुगलों की सेना के बीच कूद कर पहुंचने और गाजर मूली की तरह उनको काटने का फिल्मांकन अच्छा है . संभाजी के रोल में विक्की कौशल ने अपने कौशल का परिचय दिया है . उनके दो प्रमुख सहयोगी थे - वीर योद्धा और दरबारी कवि कलश ( विनीत कुमार सिंह ) और सेनापति और सलाहकार हंबीरराव मोहिते ( अशोक राणा ) जिन्होंने अंत तक उनका साथ दिया है . इन दोनों की अदाकारी अच्छी रही है . जब संभाजी के साथ कवि कलश औरंगज़ेब की क़ैद में होते हैं और अपनी मौत की प्रतीक्षा में है तब भी उनकी कविता पथ का फिल्मांकन बहुत अच्छा है .
बूढ़े क्रूर औरंगज़ेब की भूमिका में अक्षय खन्ना ने काफी अच्छा अभिनय किया है . संभाजी की पत्नी येसुबाई ( रश्मिका मंदना ) के रोल में रश्मिका मंदाना का अभिनय सामान्य स्तर से अच्छा है . संभाजी की सौतेली माँ के रोल में दिव्या दत्ता का अभिनय अच्छा है . औरंगज़ेब की बेटी ज़ीनत उन निसा के रोल में डायना पेंटी यदा कदा पर्दे पर संभाजी को यातना देते दिखती है . लक्ष्मण उतेकर का उत्तम निर्देशन और विक्की कौशल का सशक्त अभिनय फिल्म का आकर्षण है . इस फिल्म में ए आर रहमान का संगीत उनके स्तर का नहीं दिखता है . संभाजी महाराज के बारे में इतिहास में पढ़ने को बहुत कम ही मिलता है इसलिए आज की पीढ़ी को इस फिल्म को देखना चाहिए . कुल मिलाकर ‘ छावा ‘ फिल्म में इतिहास , भावनाओं , जुनून , वीरता , दया और देशभक्ति सभी देखने को मिलती है और यह ऐतिहासिक फिल्म देखने योग्य है .
मूल्यांकन - निजी तौर पर फिल्म 8 / 10 डिजर्व करती है .