love day has come in Hindi Comedy stories by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | प्रेम दिवस आया

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प्रेम दिवस आया

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प्रेम दिवस की बयार बसंत की आहट से प्रारंभ हो जाती है। मन में उमंगे होती है तो कुछ के मन में आशंका भी होती है। आशंका इस बात की जिसे चाहते हैं वह भी जानता है या नहीं ? फिर यह भी की कौनसे और किस किस संकेत से समझें कि प्यार है? लाल, पीला और नीला गुलाब तक के अलग अलग अर्थ होते हैं। ऊपर से सिर्फ संकेतों से ही बात होती है। यह स्मार्ट फोन के जमाने में संकेतों की व्हाट्सएप स्कूल तो होनी चाहिए।

    मित्रों, बसंत के आते ही अलग अलग तैयारी प्रारंभ हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में दस वर्ष से अधिक बिता चुके जोड़े ठंडी आहों और सूनी आंखों से अपनी बंजर जमीन और खाली दिल को देख ऊपर वाले से अरदास करते रहते हैं। तो उधर इसी अंजाम को प्राप्त होने के उत्सुकता में कुछ मूर्ख लाइन लगाए खड़े होते हैं। कुछ की बात ही अलग होती है। वह पीले वस्त्रों से अपने को ओढ़कर बसंत का स्वागत करती हैं, अकेले ही। फिर अपनी ही जैसी अन्य भी उन्हें मिल जाती है। कुछ एकदम अनूठे ढंग से बसंत और प्यार के वैश्विक महीने हेतु लाठियों और डंडों को तैयार करते हैं।यह वह प्राणी हैं जिन्हें कभी किसी जन्म में प्यार नहीं मिला। जो खाते में दिया उसने भी उन्हें दुत्कार दिया, लात मारी।यह वो हैं जिनका नया मोबाइल लेने के दो घंटे बाद ही गिर कर टूट गया। इनमें वह सबसे आगे हैं जिनके प्रेम निवेदन को बारम्बार झाड़ पड़ी, अपमानित हुए। तो आखिर में डंडा उठा लिया कि न प्यार मिला और न दूसरों को हम पाने देंगे। उधर इन्हें ही जैसे खास जलाने के लिए, कुछ नई उम्र और कुछ परिपक्व भी, इस पूरे हफ्ते में अलग अलग जगह पार्क, झील किनारे, रेस्टोरेंट, सब जगह बैठे चिढ़ाते मिल जाते हैं। और यह तकदीर के मारे डंडा फटकारते हुए पहुंच जाते हैं अपनी और देश की हंसी उड़वाने की यह प्रेम, बसंत और प्यार के पर्व को डंडे, लात, घूंसे से मनाते हैं। यह शायद बिना प्रेम के ही पैदा हो गए।

  और सबसे बड़ी बात यह की कानून, संविधान और प्रेम में लीन जोड़ों के माता पिता तक ने इन्हें नहीं कहा कि जाओ और प्रेम को भगाओ। पर यह लगे हुए हैं और लगे रहेंगे। जब घर पहुंचते होंगे तो क्या बोलते होंगे अपने मां पिता से कि मैं आज चार अनजान लोगों को डंडा मारा कि क्यों तुम लोग प्यार और शांति से बैठे हो? कट्टरपंथी देश ईरान तक में मुस्लिम युवतियों, बालाओं ने अपने बुर्के जला दिए और बालों को काटकर विद्रोह का ऐलान किया था। राजतंत्र को उनके खिलाफ टैंक और सेना उतारनी पड़ी। और फिर भी वह नहीं हटीं और टैंकों के सामने निहत्थी खड़ी रहीं बहादुर युवतियां।तो प्रेम करो तो ऐसी युवती से। पर जो ऐसी होगी वह गधों को घास क्यों फेंकेगी?

        प्रेम में पुरुष हो या देवता, किसी भी जन्म और युग में, पीछे ही रहा है। श्री कृष्ण गोपियों का मक्खन बचपन में चुरा चुरा कर खूब खाए। पर जब बड़े हुए और गोपियां प्रेम में पड़ी तो उन्हें भागने में ही भलाई दिखी। उद्धो, उस जमाने का ई मेल, व्हाट्सएप था, से बार बार संदेश भेजे पर श्री कृष्ण, मुरारी, गिरिधर वापस जाने को तैयार नहीं हुए। गोपियां, राधा सहित और पीछे पड़ी तो कुरुक्षेत्र में युद्ध करवा उसमें व्यस्त हो गए। सभी कार्य कर लिए पर प्रेम मग्न गोपियों की विरह, पीड़ा दूर नहीं की अंतर्यामी ने। फिर कलियुग में सारी गोपियों की सामूहिक चेतना ऐसी मीरां बाई में आई की वह तो श्री कृष्ण को पूजे और अपना पति ही स्वीकार किए रही आजीवन। रणछोड़ इसीलिए श्री कृष्ण को कहा जाता है।

    कुछ लोगों को प्रेम दिवस के पहले रोज डे, प्रॉमिस डे आदि भी याद रखने पड़ते हैं। स्त्री डीटेल और टू द प्वाइंट स्वभाव से है। यह नहीं कि बसंत पंचमी को प्रेम दिवस पर फूल या कुछ खिला पिला दिया और उससे पहले और बाद फिर वहीं ढर्रा? वह चाहती है प्रेम करो तो डूबकर, पूरे मन और जोश से करो। पुरुष क्या चाहता है यह बताने की जरूरत नहीं। वह तो भारत में थोड़ी बहुत पुरुषों की चल जाती है वरना यह जालिम स्त्रियां मोहल्ले सोसाइटी, दफ्तर हर जगह पुरुषों को ठोकती, पीटती नजर आतीं कि सुधर और डिटेलिंग कर, ढंग से और पूर्णता से काम को उसके अंजाम तक पहुंचा। जबकि पुरुष काम कर रहा, आमदनी बढ़ाने की तरकीबें सोचता, कुछ समय अपने माता पिता को भी देता फिर कुछ दोस्तों को उसके बाद का सारा बीवी या प्यार करने वाली या अपनी साथी को। तो वह तो पिट ही रहा होता। कुछ तो आत्महत्या तक कर लेते हैं और बाकायदा वीडियो भी अपलोड करके जाते की कुछ तो पुरुषों का भला हो।

     तो वह भूल जाता की प्रॉमिस डे है और उसे उसकी कीमत एक महंगे गिफ्ट के रूप में चुकानी पड़ती।

          बसंत उत्सव और प्रेम दिवस पर आधी आबादी सदियों से फायदे में रहती है। मानो उसे जन्मसिद्ध अधिकार मिला है कि आपको विशेष उपहार, व्यवहार और कुछ नए तौर तरीके सीखकर उन्हें एक (या अधिक) नमूनों पर आजमाने का हक है। वह आजमाती भी है और अक्सर जीतती है।

  तो यह हुई आधी होशियार आबादी की बात।अब जो बाकी आधे रह गए वह या तो प्रेम शब्द से मुक्त कर दिए जाते हैं, या फिर लुट पिटकर अपने हाल में लौट आते हैं।

 प्रेम दिवस अपने प्रिय पात्र को चेक करने का सुनहरा मौका होता है। और यह परीक्षा लड़कों(पुरुषों )को ही देने का सुअवसर बार बार प्राप्त होता है। लड़कियां बिना परीक्षा में बैठे हमेशा पास क्यों मान ली जाती हैं? यह कोई नहीं समझ पाया।वह कुछ नहीं करती बस मुस्कान और आंखों से उल्टे सीधे इशारे करके काम चला लेती हैं। वह इशारे जिनके अर्थ वह खुद भी नहीं जानती और बेचारे लड़के उनकी मनमर्जी व्याख्या करके खुद ही खुश होते रहते हैं। लड़कियां दरअसल प्रारंभ से ही जानती हैं कि यह बेवकूफ है।उनमें इस बात पर भ्रम होता है कि कितनी श्रेणी या किस कदर उच्च कोटि का है, बस।

  तो प्रेम परीक्षा में अक्सर शातिर लोग पास हो जाते हैं और सीधे सादे लल्लू लोग फेल। जो पास हो जाते हैं वह आगे दुखी, निराश और आत्महत्या तक कर लेते हैं। जो फेल हो जाते हैं वह एक दो तरीके, ग्रेस मार्क्स के, लड़की को सहेली की सिफारिश, दो गिफ्ट देकर या मेहनत करके, बढ़िया नौकरी लेके फिर लाइन में सबसे आगे आ जाते हैं। यह दिलचस्प है कि पुरुष खुद अपनी दुर्गति करने हेतु गर्दन आगे करता है। आओ, और मुझे हलाल करो। कई दफा तो लड़कियां तरस खा जाती हैं कि बहुत मूंड लिए भेड़ के बाल, अब जा भी। पर भेड़ जाने को तैयार नहीं। लड़की तरस खाती हैं, दिल की कोमल जो हैं, कहती है जाओ भाई अपने राह जाओ। आगे किसी मोड़ पर और कोई मिलेगी उससे गर्दन कटवाओ। पर बकरी भेड़ नहीं जाती कि नहीं मुझे और काटो, मारो। छुरी नहीं है तो यह लो, वह छुरी भी ले आता है। अब बताओ, छुरी खुद लाकर, गर्दन झुकाए खड़ा है और दोष लड़की को देते हैं?

हर लड़की प्रेमिका, पत्नी, मित्र, सखी आराम से पहले हालत समझती है, माहौल भांपते हुए पहले बेबी स्टेप उठाती है।क्योंकि बाबू, शोना तो उसकी उंगलियों पर नाच रहा है। तो पहले वह सास, ननद, बड़ी भाभी की सत्ता को धीरे से चुनौती देती है कि आज तबियत खराब है तो आराम करूंगी। दिन भर वह बेडरूम में मोबाइल पर यूट्यूब और फेसबुक पर चैटिंग करती रहेगी। पर काम के नाम पर महीने में तीन चार बार बुखार या तबियत खराब। मां पूछे किससे? बाबू से ही पूछती है जो कब का पाला बदल चुका। जन्म दिया, पोतढ़े बदले, पढ़ाया, हर खुशी पूरी की और खुद की हर इच्छा को दबाया और वहीं बाबू एक महीने शादी को हुए और पूरी तरह से पत्नीभक्त हो गया? वह भी ऐसा की मम्मी जी की ही कमजोरियां दूसरी स्त्री को बताता है। और आखिर में अपनी सास की भर भर सेवा करने वाली मम्मी जी इसी बात पर संतोष कर लेती है कि, "चलो बेटा बहु सूखी रहें।" इसमें ऐसी कुड़कुडी पड़ोसियों का बहुत बड़ा हाथ होता है जो पहले ही अपनी सत्ता गवांकर यूक्रेन और फिलिस्तीनी से बने रो रहे हैं। चलो, यह बड़ी बनती थी नेता अब यह भी आई लाइन पर। उधर बहु ठाठ से जीन, जैकेट पहन स्कूटी पर खट से रवाना। सास कमरे से निकलती ही नहीं। देखूंगी न खून जलेगा। इसी वजह से हमारे देश में पचास के ऊपर की स्त्रियों में बल्ड प्रेशर के मामले बढ़ रहे हैं।

तो प्रेम जो न कराए वह थोड़ा। ऐसे लोगों से तो और चिढ़ मचती है जो कहते हैं प्रेम कोई एक दिवस का नहीं होता यह तो हर दिन, हर महीने, पूरे वर्ष रहता है। हट, यहां से, एक दिन में ही जान निकल जाती है। पूरे साल छोड़ महीने भर भी रहा तो काम कब करूंगा? कौन करेगा काम? चैन की सांस तभी आती है जब यह प्रेम सप्ताह निकल जाता है। सच में, कितने समझदार है विदेशी जिन्होंने एक दिन तय कर दिया प्रेम के नाम। बाकी तीन सौ चौंसठ दिन बाकी काम और खुद का ध्यान।

     प्रेम दिवस जब भी आने की आहट होती है हम दबे पांव निकल जाना चाहते हैं पर निकल नहीं पाते। बाजार का नगाड़ा इतने जोर से और इतनी देर तक बजता है कि बड़ों से लेकर जानवर तक सब चौकन्ने हो जाते हैं। क्योंकि इन्हें भी कुछ दिलचस्प नजारे देखने को मिलते हैं। जो लड़का जिंदगी भर जिद कर करके नाक में दम किए था वह अब साड़ी, सूट, जींस संभाल रहा। उसकी गूंजती आवाज अब पिल्ले सी हो गई। जो किसी काम को हाथ नहीं लगाता था, सारा काम बूढ़े पिता को करना पड़ता था।अब वह नियम से ऑफिस से आता है और चाय खुद बना, अपनी प्रेम की ट्रॉफी को गाड़ी पर बिठाकर शॉपिंग पर ले जाता है। मां बीमारी में घर पर ही क्रोसिन, जायफल, कपूर के तेल की मालिश से कराहती काँखटी ठीक होकर काम करती रही। पर प्यार की ऊंचाइयों पर पहुंच गया बेटा, बीवी को जरा सी जुकाम में डॉक्टर के पास लेकर भागता है और लौटता है देर रात बाहर डिनर करके।

वह तो भला हो इस प्रेम की असलियत अनुभवी लोगों ने समझ ली और समय रहते कह दिया कि अपनी किचन, घर अलग कर लो। आराम से रहो। जो नहीं कह पाए वह अब प्रेम के प्रतीक बच्चों को पाल रहे उनकी आया, नैनी बने हुए हैं। बहु बेटा दिन भर बाहर रहते हैं। खुद ही बुड्ढे बुढ़िया अपना कुछ बनाकर खा लेते हैं। जब भी इन प्रेम पंछियों के आने का समय होता है वह कमरे में आस्था चैनल या टहलने निकल जाते हैं।

प्यार की धारा अविरल बह रही है।बस कुछ ही समझदार लोग हैं जो इससे बचकर निकल रहे।वरना ज्यादातर तो इस धारा से बनी कीचड़ पर रपट रहें और फिर कराहकर, कपड़े झाड़कर उसी कीचड़ में पांव धरते चल रहे हैं।

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( डॉ.संदीप अवस्थी, कथाकार और मोटिवेशनल स्पीकर, राजस्थान 

मो 7737407061)