दूसरी संतान बेटी हुई थी।मैने पहले ही बोल दिया था।चाहे लड़का हो या लडक़ी नसबंदी करा दूंगा।और ऐसा ही किया था।मैं तो डिलीवरी के समय मौजूद नही था।मेरी सास थी।उन्होंने कागज पर अपने हस्ताक्षर किए थे।
उसी समय दो नम्बर के साले की पत्नी ने उसी अस्पताल में लड़के को जन्म दिया था।लेकिन उसकी मृत्यु हो गयी थी।
अस्पताल से छुट्टी मिलने पर मेरी सास अपनी बेटी यानी मेरी पत्नी को लेकर नरेना आ गयी थी।उन दिनों मेरे श्वसुर नरेना स्टेशन पर स्टेशन मास्टर के पद पर कार्यरत थे।उन्हें स्टेशन के पीछे ही क्वाटर मिला हुआ था।नरेना ,अजमेर और फुलेरा के रास्ते मे पड़ता है।यह एक बड़ा कस्बा है।और कई मेल ट्रेनों का भी स्टॉपेज है।यहाँ से सांभर पास में ही पड़ता है।
और फिर वह आगरा आ गयी थी।उन दिनों मैं बहन को आगरा ले आया था।उसकी शादी की जिम्मेदारी मेरी थी।तीन नम्बर के ताऊजी गणेश प्रशाद लड़के की तलाश कर रहे थे।और कुछ प्रयासों के बाद उन्होंने खोज कर ली और सन 77 में बहन की शादी कर दी।
मेरी शादी के बाद पहला बड़ा कार्यक्रम था।एक तो परिवार बड़ा और शादी में आने वाले काफी।सब का खाना पीना चाय नाश्ता और बच्चे छोटे फिर भी सारा काम खुद सम्हालती थी। मुझे इस पर हमेशा गर्व रहेगा कि मुझे ऐसी समझदार पत्नी मिली थी।कुछ विरोधभस भी रहे जिनका जिक्र में नही कर सकता।पत्नी का व्यहार ही था कि हम रावली से भोगी पूरा किराये के मकान में आये थे।मकान मालिक उमा शंकर कुलश्रेष्ठ निहायत ही सज्जन।उन्होंने मेरी पत्नी यानी गगन को बहु के नाम से सम्बोधन किया औऱ वह अंत तक बहु ही कहते रहे।और बहुत विश्वास करते थे।इसका एक उदाहरण
उस मकान में किराए दार तो कई थे।उस मकान में मुझे दो टुकड़ों में रहने का अवसर मिला।पहले नीचे रहा।उस हिस्से में मैं औऱ एक और जो एस एन में काम करते वह रहते थे।दूसरे हिस्से में मकान मालिक के अलावा ऊपर दो किराएदार थे।एक पटवारी थे।दूसरे मेरे साथ ही रेलवे में काम करते थे।
और फिर 1980 में मकान मालिक उमा शंकर ने हमारे वाले हिस्से को बेच दिया।हमे दूसरे किराये के। मकान
लेना था।जे सी शर्मा औऱ इसके भाई श्याम का भोजीपुरा चौराहे पर मकान था।
जे सी शर्मा मेरे साथ ही बुकिंग में काम करता था।उससे मेरी मुलाकात उदयपुर में हो चुकी थी।वह रिफ्रेशर में गया था और मैं इनिशियल में था।बाद में आगरा आने पर छोटी लू
लाइन की बुकिंग में हमने साथ काम किया।वह मेरी शादी में भी गया था।और शादी के बाद रावली से भोजीपुरा भी वो ही लेकर आया था।
जे सी ने अपनी पत्नी छोड़ रखी थी।शादी के बाद उसने मुझे और पत्नी को घर खाने पर बुलाया था।और तब पहली बार श्याम से और मेरी पत्नी कि श्याम की पत्नी से मुलाकात हुई और दोनों दोस्त बन गयी थी।
और हम श्याम के मकान में आ गए। उस मकान में श्याम का परिवार रहता था।उसके अलावा मैं और दो अन्य किरायेदार जो पुलिस में थे रहते और ऊपर के हिस्से में शर्माजी जो ए जी ऑफिस मे ऑडिटर थे। बाद में मेरे बगल में कमरा खाली हुआ तो उसको मैने पी सी शर्मा को दिला दिया था