उस चार्टड विमान में सिर्फ पांच यात्री थे। एक पायलट, दूसरा को-पायलट और तीन यात्रियों के अलावा स्टाफ के सिर्फ दो ही आदमी थे। एक नर्स और एक एयर होस्टेस। विमान बहुत जल्दी में चार्टड किया गया था।
एक यात्री स्ट्रेचर पर लेटा था, जिसकी नाक पर ऑक्सीजन की थैली लगी हुई थी। सिर के ऊपर इतनी पट्टियां बंधी थीं कि उसका सिर एक बड़ी-सी कपड़े की गठरी दिखाई देने लगा था। एक टांग पर जांघ तक प्लास्टर चढ़ा हुआ था। एक हाथ भी कंधे तक प्लास्टर से ढका हुआ दिखाई दे रहा था।
एक अधेड़ उम्र का डॉक्टर बार-बार उसकी नाड़ी की जांच करता, धड़कनें देखता। कभी-कभी उसकी आंखों में गहरी चिंता दिखाई देने लगती थी।
तीसरा यात्री युवा था। उसने कीमती सूट पहन रखा था, मगर दाढ़ी बढ़ी हुई थी, बाल बिखरे हुए, नेक-टाई अस्त-व्यस्त, होंठ सूखे हुए, चेहरे पर परेशानी छाई हुई थी और आंखें धुआं-धुआं थीं।
एक बार जब डॉक्टर ने घायल की नाड़ी परखी, धड़कनें जांची तो युवा यात्री ने रूखे गले से थूक निगलकर पूछा- 'डॉक्टर अंकल, अब कैसे हैं पापा?'
डॉक्टर ने सीधा होते हुए सांत्वना भरे स्वर में कहा- 'डोंट वरी, मिस्टर शेखर ! ही विल सरवाइव।'
'हम होस्टन कब तक पहुंच जाएंगे?'
'आप बहुत नर्वस हैं, बैठ जाइए।'
'मगर पापा...।'
'ही इज ऑल राइट और फिर मैं तो साथ हूं।'
फिर डॉक्टर शेखर के साथ समीप ही की दो सीटों पर बैठ गया। नर्स, जो अभी तक स्ट्रेचर के पास खड़ी थी, ऑक्सीजन की थैली ठीक करके सिलेंडर ठीक करके बिलकुल करीब ही की सीट पर बैठ गई।
डॉक्टर ने मुड़कर उससे पूछा- 'सिस्टर, एक्स्ट्रा ऑक्सीजन सिलेंडर कहां हैं?'
नर्स ने सीधी बैठकर कहा- 'सर, स्मोकिंग रूम में रख दिए हैं-यहां कोई स्मोकर नहीं है ना।'
'देट्स ओ.के.।'
इतने में एयर होस्टेस ने आकर आदर से पूछा- 'ऐनी थिंग यू वांट सर?'
डॉक्टर ने कहा- 'एक छोटा पैग स्कॉच का बनाकर लाओ।'
'बाद में बताएंगे।'
'ओ.के. सर।'
एयर होस्टेस चली गई। युवा ने होंठों पर जीभफेरकर कहा- 'आपने मेरे लिए योंही ऑर्डर दिया डॉक्टर अंकल।'
डॉक्टर ने मुस्कराकर कहा- 'आप बहुत टेंस हैं-एक-दो पैग में नार्मल हो जाएंगे-उसके बाद आपको डिनर भी लेना है।'
'नहीं अंकल, मुझे भूख बिलकुल नहीं है।'
'शेखर ! प्लीज, क्या आप होस्टन पहुंचने से पहले बीमार पड़ना चाहते हैं? आपने शायद पिछले छह घंटे में एक गिलास पानी भी नहीं पिया-इस तरह भूखे-प्यासे रहकर क्या अपने पैरों पर खड़े रह सकेंगे?'
'मगर अंकल...।'
'मिस्टर शेखर ! आई श्योर यू-होस्टन के अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी है-तब तक आपके श्वसुर को कुछ नहीं होगा।
शेखर कुछ न बोला।
डॉक्टर ने कहा- 'लगता है आपको अपने श्वसुर से बहुत प्यार है?'
शेखर ने भारी कंठ से कहा- 'अंकल ! वे मेरे श्वसुर कम, पिता अधिक हैं-एक तरह से उन्होंने मुझ अनाथ को गोद लिया है-इन्होंने अपने ऑफिस के स्टाफ के तीन सौ आदमियों में से मुझे ही दामाद चुना। क्या यह मेरे लिए विधाता का एक बड़ा उपहार नहीं?'
'अवश्य है।'
'बस, यही समझ लीजिए कि विधाता के उस उपहार का साधन पापा हैं। जिस तरह लोग पत्थर में भगवान को पा लेते हैं-मैंने पापा के रूप में भगवान को पाया है।'
कहते-कहते उसका गला रुध गया, आंखें छलक पड़ीं। उसी समय एयर होस्टेस ट्रे में दो पैग रखकर ले आई। डॉक्टर और शेखर ने एक-एक पैग उठाया। एयर होस्टेज ने गहराई से शेखर की भीगी हुई आंखें देखीं, फिर मुड़कर चली गई।
डॉक्टर ने मुड़कर नर्स से कहा- 'सिस्टर, तुम भी एक छोटा पैग ले लो, डिनर और कर लो-थोड़ा-थोड़ा रेस्ट मिलते रहना चाहिए, नहीं तो कोई भी घायल की देखभाल को सक्षम नहीं रहेगा।'
नर्स ने खड़े होते हुए कहा- 'यस डॉक्टर, मैं एयर होस्टेस के पास ही चली जाती हूं।'
'ठीक है।'
नर्स सीटों के बीच में से निकलकर सीढ़ियां उतरी और छोटे से कॉरिडोर से गुजरकर उस जगह पहुंच गई, जहां एयर होस्टेस खाने-पीने के पदार्थों के साथ थी। वह नर्स को देखकर मुस्कराई।
'मैं भी यही सोच रही थी-तुम आ जाओ तो हम दोनों की तन्हाई दूर हो जाए।'
नर्स ने ठंडी सांस ली और बोली- 'देखो, वह बेचारा जिंदा पहुंचता भी है या नहीं।'
'सेठ ओबराय...? उफ्फोह, मैंने ऐसा केस कभी नहीं देखा-जब इन्हें कुछ अजनबी राहगीर अस्पताल पहुंचाने आए थे तो किसी को भी यह मालूम नहीं था कि वे सेठ ओबराय हैं।'
उसने एक छोटा पैग नर्स को बनाकर दिया और बोली- 'इनका सिर पिचक गया था-एक टांग और हाथ में कितने फेक्चर हैं, इसका अनुमान नहीं-पूरे चार घंटे इन्हें सिर्फ बैंडेज करने में लगे हैं और प्लास्टर चढ़ाया है-वह तो डॉक्टर मधुकर इनके फेमिली डॉक्टर निकले-उन्होंने पहचानकर सेठजी के घर सूचित किया और फिर दो-तीन घंटे औपचारिकताओं में लग गए।'