chhava film review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | फिल्मोत्सव - छावा फिल्म समीक्षा

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फिल्मोत्सव - छावा फिल्म समीक्षा

यह फिल्म भारतीय इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है जो हमें स्कूलों में पढ़ाया नहीं गया या फिर बहुत ही संक्षिप्त में पढ़ाया गया है। स्वराज शब्द का प्रयोग मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने दिया, जिनसे प्रेरित होकर उनकी अगली पीढियों ने मराठा स्वराज को सुरक्षित और स्थापित किया। श्री बाल गंगाधर तिलक जी ने स्वराज को भारत देश की स्वतंत्रता से जोड़कर नए आंदोलन की शुरुआत की। भगत सिंह ने पूर्ण स्वराज के नारे को क्रांतिकारी आंदोलन बनाया।

अब बात करते हैं शूरवीर संभाजी महाराज और फिल्म छावा की।

फिल्म छावा बनी है छत्रपति महाराज शिवाजी के बड़े बेटे छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन, उनके संघर्ष और उनके बलिदान पर। संभाजी महाराज पर इतिहास में बहुत कम लिखा गया है और भारत देश में महाराष्ट्र को छोड़ कर अन्य राज्यों में उनकी कहानी को पाठयपुस्तकों में अंकित नहीं किया गया। आप और हम मुगलों की ७ पीढियों को जानते होंगे क्योंकि हमें इतिहास में उन्हें पढ़ाया और रटाया गया पर छत्रपति महाराजाओं के बारे में जानकारी के लिए हमें गुगल ही करना पड़ता है।

फिल्म में छावा, मतलब शेर का बच्चा, मतलब शेर शिवाजी का बेटा संभाजी बना है विक्की कौशल। विक्की कौशल ने इस किरदार को बहुत ईमानदारी से निभाया और संवारा है। इस बात की खुशी है कि यह रोल विकी कौशल ने किया और अक्षय कुमार ने नहीं। नहीं तो पृथ्वीराज की तरह
 यह भी किरदार ठंडा पड़ जाता। संभाजी ३१ साल की उम्र में शहीद हुए और विकी की उम्र उनकी उम्र के करीब है तो निर्देशक ने सही निर्णय लिया है। विकी का चेहरा और आँखें इस किरदार को निभाने में पूरी तरह समर्पित हो गईं। साथ हैं रश्मिका मंदाना जिन्होंने संभाजी की पत्नी येसु बाई का किरदार शानदार तरीके से निभाया है। 

मराठा साम्राज्य के महान सेनापति हमभीर राव का किरदार निभाया है आशुतोष राणा ने। हमभीर राव रिश्ते में संभाजी महाराज के मामा भी थे। इस किरदार ने फिल्म को अत्यंत दिलचस्प और जोशीला बनाया है। अब बात करते हैं फिल्म के एक और दमदार किरदार औरंगजेब की। इस किरदार में जान डालने वाले शख्स हैं अक्षय खन्ना। अक्षय को काफी समय तक उनकी शख्सियत के काबिल किरदार नहीं मिले पर पिछले कुछ वर्षों से उन्हें बहुत ही तराशे हुए रोल मिल रहे हैं। औरंगज़ेब एक नफरत करने जैसा शख्स है और अक्षय को इस किरदार में देखकर आप औरंगज़ेब से और ज्यादा नफरत करने लगेंगे।

फिल्म में क्या अच्छा नहीं था?
फिल्म की कहानी को और भी दिलचस्प बनाया जा सकता था जिसमें एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी फिल्म से जुड़ सके। संगीत और गीतों को अच्छा लिखा जा सकता था। डायलॉग और अच्छे बनाए जा सकते थे। बैकग्राउंड साउंड जो बहुत ही अधिक क्राउड वाला था उसे कर्णप्रिय बनाया जा सकता था। स्पेशियल इफेक्ट और अच्छे किए जा सकते थे।

आज सिनेमा का प्रेक्षक बाहुबली, आर आर आर, पुष्पा और के जी एफ जैसी फिल्में देखकर बैठा है। अब प्रेक्षकों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं। अब उन्हें सामान्य स्पेशल इफेक्ट ज़्यादा आकर्षित और रोमांचित नहीं करते। एक बड़े किरदार को और बड़ा दिखाया जा सकता था, सेट्स थोड़े छोटे लगे, जिसमें मराठा सम्राट की भव्यता दिखाने में थोड़ी बहुत कमी रह गई। अगर संजय लीला भंसाली निर्देशक होते तो भव्यता दिखने में चूकते नहीं। इस संदर्भ में बाजीराव मस्तानी के सेट्स और कहानी की संपूर्णता अधिक आकर्षित और मनोरंजित करने वाली थी।

इंटरवल के बाद करीब ३० मिनट तक युद्ध ही दिखाया गया है और लगातार संभाजी महाराज को आक्रोश में दहाड़ मारते हुए दिखाया गया है। उस समय में प्रेक्षकों को कहानी से जोड़े रखना कठिन होता है। देशभक्ति और अपने समर्पण को अच्छे विजुअल और डायलॉग से अच्छा प्रस्तुत किया जा सकता था। शायद फिल्म के लिए बजेट को बढ़ाना और समय लेकर फिल्म बनाने से और भी अच्छी फिल्म बन सकती थी।

निर्देशक लक्ष्मण उत्तेकर के लिए ऐतिहासिक किरदारों पर फिल्म बनाने का यह पहला अनुभव था। पहले उन्होंने लुका छुपी और मिमी जैसी हास्य और सामाजिक संदेश देने वालीं अच्छी फिल्में बनाई हैं। निर्माता निर्देशक दिनेश विजन ने हिंदी मीडियम , स्त्री २, बदलापुर जैसी बहुत ही सफल फिल्में बनाई है और अन्य फिल्में कुछ खास चलीं नहीं। पर दिनेश विजन कम खर्च करके अच्छा परिणाम लाने में अब माहिर हो चुके हैं।

फिल्म में इतिहास की एक बहुत ही कड़वी सच्चाई दिखाई गई है। सच्चाई यह है कि देश के महान योद्धा अगर शहीद हुए हैं तो वह उनके साथी परिवार के गद्दारों की वजह से ही शहीद हुए। अगर उन गद्दारों में थोड़ा भी देशप्रेम होता तो आज हमारे सामने इतिहास अलग होता। इतिहास में हर एक महान योद्धा की पराजय के पीछे दोखेबाज रिश्तेदार या दोस्त रहे हैं। 

तो आप छावा फिल्म देखने अवश्य जाएं। अपने बच्चों के साथ जाएं ताकि पूरे परिवार को इतिहास पता चले और हमारें शूरवीरों के प्रति सम्मान बढ़े।


– महेंद्र शर्मा