Khato ke Paar in Hindi Love Stories by simran bhargav books and stories PDF | खतों के पार

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खतों के पार

भाग 1 : एक अनकही शुरुआत 

हिमाचल के छोटे से कस्बे " शिवपुरी " में सर्दी की सुबहें  हमेशा कोहरे में लिपटि  होती थी । घने देवदारों के बीच बसी यह जगह मानो समय से पड़ी थी । पहाड़ों की ऊंचाइयों पर बसे घर , उनकी खिड़कियों से झांकते सूरज की हल्की किरणें और घाटी में बहती बर्फीले हवाएं , सब कुछ एक खूबसूरत सपने जैसा था ।

इसी कस्बे की एक पुरानी हवेली में रहती थी सौम्या ---  एक शांत , लेकिन ख्वाबों से भड़ी लड़की  । किताबों से प्यार करने वाली , छोटी-छोटी खुशियों में दुनिया देखने वाली । उसने कभी अपने छोटे से दायरे से बाहर दुनिया नहीं देखी थी, लेकिन उसका दिल हमेशा किसी अनदेखी एहसास की तलाश में रहता था ।

फिर एक दिन उसकी जिंदगी में आया समीर ---एक पर्यटक, जो शहर की भीड़भार से बचकर यहां आया था । समीर एक मशहूर फोटोग्राफर था , जो दुनिया घूम कर तस्वीरों  मैं दुनिया ढूंढता था ।  उसकी आंखों में एक अलग चमक थी, जैसे वह हर चीज में खूबसूरती देख सकता हो ।

पहली बार उनकी मुलाकात तब हुई जब सौम्या लाइब्रेरी में बैठी एक पुरानी किताब पढ़ रही थी । समीर अपने कैमरे से लाइब्रेरी के अंदर की एंटीक अलमारी की तस्वीर खींच रहा था।  अचानक , उसकी नजर सौम्या पर पड़ी -- लंबे खुले बाल , गहरी आंखें,  और किताबों  मैं डूबे रहने  का अलग सा ञादू।

"क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?"समीर ने मुस्कुराते हुए पूछा ।

सौम्या ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया ।

"तुम हमेशा यहां आती हो ? " समीर ने बातचीत की पहल की ।

"हां  , किताबें मुझे किसी और दुनिया में ले जाती है ," सौम्या ने जवाब दिया  ।

समीर हंसा, " और मैं तस्वीरों  मैं उन कहानियों को खोजता हूं । लगता है, हम दोनों अलग-अलग तरीकों से कहानियों के दीवाने हैं।"

यही से एक नई कहानी की शुरुआत हुई -- सौम्या और समीर के बीच एक अनकही दोस्ती । वे घंटो तक लाइब्रेरी में साथ बैठते, किताबें और तस्वीरों के बारे में बातें करते । धीरे-धीरे, दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा । समीर के लिए सौम्या सिर्फ एक दोस्त नहीं रही, बल्कि एक ऐसी पहेली बन गई जिसे वह हल करना चाहता था। और सौम्या के लिए समीर पहली बार ऐसा कोई था जिसने उसकी दुनिया को नए नजर से देखने की हिम्मत दी ।

भाग 2 :  चिट्ठियों में बसा इश्क 

एक दिन समीर को वापस दिल्ली जाना पड़ा । जाते समय , उसने सौम्या को एक पुरानी डायरी दी और कहा अगर कभी मेरा इनाम याद आए तो इसमें कुछ लिख देना ।"

सौम्या ने वह डायरी संभाल कर रख ली।  समीर के जाने के बाद, उसकी कमी हर पल महसूस होने लगी। लाइब्रेरी की वही पुरानी किताबें थी, वही हवाई ,लेकिन अब कुछ अधूरा -- सा लगता था ।

फिर उसने डायरी खोली और पहली बार समीर के नाम एक चिट्ठी लिखी---

" समीर, तुमने कहा था कि मैं जब तुम्हें याद करूं, तो इसमें कुछ लिख दूं। पर  मैं   क्या लिखूँ ? क्या यह लिखूं की लाइब्रेरी की वह पुरानी खिड़की अब सुनी लगती है ? क्या यह लिखूं तुम्हारी हंसी अब भी मेरे कानों में गूंजती है  ? या यह  लिखूँ. तुम्हारी हंसी अब भी मेरे कानों में गूंजती है ? या यह लिखूं की पहली बार , किसी के जाने से मेरा दिल खाली सा महसूस हो रहा है? "

दिन बीतते गए , और सौम्या हर दिन समीर के लिए एक नई चिट्ठी लिखती रही । लेकिन कभी भेज नहीं पाई।

दूसरी ओर ,समीर भी सौम्या को भूल नहीं पाया था।  उसकी तस्वीरें में अब रंग काम और एहसास ज्यादा थे।  वह हर जगह उसकी झलक ढूंढता , लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि उसे कोई चिट्ठी भेजें ।

भाग 3 : लौट आई मोहब्बत 

6 महीने बाद,  एक शाम सौम्या अपने घर की बालकनी में बैठी थी ,जब डाकिया आया और एक चिट्ठी पकड़ाई।

"दिल्ली से है , " तुम्हारे नाम ," डाकिए ने मुस्कुरा कर कहा ।

सौम्या ने धड़कते दिल से चिट्ठी खोली-----

*"सौम्या, जब तुमने कहा था की किताबें किसी और दुनिया में ले जाती है, तो शायद तुम सही थी पर क्या तुम्हें पता है कि कुछ चेहरे भी हमें किसी और दुनिया में ले जाते हैं ?  तुम्हारा चेहरा,  तुम्हारी बातें , तुम्हारी हंसी -  यह सब मुझे उस दुनिया में ले जाता है जहां मैं हर दिन लौटना चाहता हूं ।

अगर अब भी तुम्हारी डायरी में मेरे नाम की चिट्ठियां है,  तो क्या मैं खुद आकर उन्हें पढ़ सकता हूं?"*

सौम्या के आंखों में आंसू आ गए, लेकिन इस बार यह आंसू ख़ुशी के थे । उसने अपने सारे खत समेटे और अगले ही दिन लाइब्रेरी के उसी कोने में रख दिए, जहां पहली बार समीर से मिली थी ।

तीन दिन बाद , वहां समीर खड़ा था, वही मुस्कान , वही चमकती आंखें।  उसने धीरे से कहा ,

"तो,  मैं अपनी चीटियां पढ़ सकता हूं?

सौम्या ने सर झुकाया, मुस्कुराई , और धीरे से डायरी समीर की ओर बढ़ा दी।

भाग  4 : दूरी की परीक्षा  

सौम्या और समीर की आखिरी मुलाकात लाइब्रेरी में हुई थी, जहां सौम्या ने अपने हाथों से लिखी सारी चीटियां समीर को सौंप दी थी।  वह लम्हा किसी सपने जैसा था--  एक ऐसा सपना जो पूरा होते-होते भी अधूरा सा लग रहा था ।

समीर को वापस दिल्ली लौटना था , और सौम्या को पता था कि अब उसकी जिंदगी पहले जैसी नहीं रहेगी । लेकिन क्या प्यार सिर्फ साथ रहने का नाम होता है ? क्या दो दिलों के नजदीकियां ही मोहब्बत की सबसे बड़ी ताकत होती है ? 

6 महीने बाद ........

सौम्या की जिंदगी अब भी वैसी ही थी ---  पहाड़ों के बीच, किताबों  मैं डूबी हुई।   लेकिन अब उसकी सुबहें समीर के मैसेज से शुरू होती थी और रात  उसकी कॉल पर खत्म होती थी।  दोनों एक -- दूसरे से दूर होकर भी पास थे।

लेकिन दूरी हमेशा आसान नहीं होती ..........

धीरे-धीरे , समीर का काम बढ़ने लगा । पहले वह दिन में कई बार मैसेज करता था , अब बस एक-आध   बार। पहले रातों को लंबी बातें होती थी, अब कुछ मिनट के औपचारिक बातचीत ।सौम्या समझ रही थी कि समीर की जिंदगी व्यस्त हो रही है, लेकिन क्या वह अभी पहले जैसा महसूस करता है ?

एक शाम जब सौम्या ने  समीर को कॉल किया,  तो उसने जल्दी में जवाब दिया ,"सौम्या अभी मीटिंग में हूँ।  बाद में बात करता हूं।"

वो "बाद" कभी नहीं आया।

उसे रात पहली बार सौम्या सो नहीं पाई। क्या वह ज्यादा सोच रही थी ? क्या समीर अब भी उसी तरह उसे चाहता था?

एक नहीं उलझन

अगले कुछ हफ्तों में  समीर का रवैया और बदल गया। अब मैसेज का जवाब घंटे बाद आता , कॉल्स में पहले जैसी कम जोशी नहीं रही। सौम्या खुद से सवाल करने लगे --- क्या वाकई दूरी उनकी मोहब्बत पर भारी पड़ रही है?

फिर एक दिन , उसने हिम्मत जुटाई  और समीर को एक लंबा मैसेज लिखा-----

"समीर ,क्या हम अभी वही है ?क्या तुम्हें अब भी मेरी याद आती है? मैं जानती हूं कि तुम व्यस्त हो,  लेकिन क्या तुम्हारी जिंदगी में अब भी मेरी जगह उतनी ही है ?"

घंटे बीत गए ,लेकिन समीर का कोई जवाब नहीं आया।

रात को जब उसका मैसेज आया, तो सिर्फ तीन शब्द थे --" हम बात करेंगे ।"

लेकिन इस बार सौम्या इंतजार नहीं करना चाहती थी।

दिल्ली का सफर

अगली सुबह , पहली बार,  सौम्या ने अकेले सफर करने का फैसला किया।वह बिना किसी को बताएं दिल्ली जाने लगी ट्रेन में बैठ गई। वह जानना चाहती थी कि समीर की जिंदगी अब कैसी है।

जब वह दिल्ली पहुंची, तो समीर के बताए पते पर गई। लेकिन वहां जो देखा, उसने उसके दिल को झकझोङ दिया ।

समीर एक कैफे में बैठा था ,और उसके सामने एक लड़की थी । वे दोनों हंस रहे थे, गहरी बातचीत में डूबे थे। समीर की आंखों में वही चमकते थी , जो सौम्या ने पहली बार देखी थी ।

उसके हाथ में एक किताब थी---- बिल्कुल वैसे ही जैसी सौम्या को पसंद थी।  लेकिन वह किताब अब किसी और के लिए की थी......

क्या यह अंत है ?

सौम्या बिना कुछ कहे वापस लौट आई। उसने समीर को कोई मैसेज नहीं किया, कोई शिकायत नहीं की। क्योंकि मोहब्बत शिकायतों से नहीं, समझने से चलती है ।

घर लौट कर उसने अपनी डायरी खोली और आखरी बार लिखा----

"समीर, मैंने सुना था कि कुछ चिट्ठी हमेशा अनपढ़ ही रह जाती है ।शायद मेरी भी।"

फिर उसने वह डायरी बंद कर दी , और पहली बार , बिना समीर के नाम के , एक नई चिट्ठी लिखनी शुरू की--- अपने नाम की ।

भाग 5 : एक नया मोड़

दिल्ली से लौट के बाद, सौम्या का दिल भरी था ,लेकिन उसने कोई शिकायत नहीं की। उसने समीर को कोई मैसेज नहीं किया, कोई सफाई नहीं मांगी। क्योंकि उसने एक बात समझ ली थी ----- जो प्यार खुद को साबित करने की जरूरत महसूस करें, वह शायद प्यार ही नहीं होता ।

लेकिन क्या यह सच में अंत था ?

एक नया सफर

सौम्या ने तय किया कि अब वह सिर्फ इंतजार में नहीं रहेगी ।उसने अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला लिया उसने job के लिए अप्लाई किया और पहली बार अपने छोटे से कस्बे से बाहर निकाल कर नई दुनिया में कदम रखा ।

कुछ hapto बाद उसे एक लाइब्रेरी में बताओ अस्सिटेंट जॉब मिल गई --- दिल्ली में । वही शहर , जहां समीर रहता था।

क्या यह इत्तेफाक था, या तकदीर का कोई और खेल ?

 फिर से हुई मुलाकात

एक शाम, जब सौम्या लाइब्रेरी में किताब में व्यवस्थित कर रही थी, तभी किसी ने पीछे से आवाज दी  ----

"किताबों से मोहब्बत अभी बाकी है ?"

 सौम्या ने पलट कर देखा । सामने समीर खड़ा था ----- वही आंखें, वही मुस्कान , लेकिन इस बार उनमें कुछ और भी था..... शायद पछतावा ।

 सौम्या ने  हल्की मुस्कान दी , लेकिन कुछ नहीं कहा ।

समीर आगे बढ़ा , "मैं तुम्हें उसे दिन देख चुका था , जब तुम कैफे आई थी।  लेकिन तुम बिना कुछ कह चली गई ।क्यों?"

सौम्या ने एक पल के लिए उसे देखा और कहा , "क्योंकि मैंने  तुम्हें खुश देखा था। और जब हम किसी को सच में चाहते हैं ,तो उनकी खुशी में अपनी तकलीफ भूल जाते हैं ।"

समीर चुप हो गया । फिर धीरे से बोला, " सौम्या , मैंने गलती की । उस  दिन जो तुमने देखा वह सिर्फ एक दोस्त थी । लेकिन मैं इतना उलझ गया था कि तुम्हें भूलता जा रहा था । मुझे एहसास हुआ , लेकिन तब तक तुम दूर जा चुके थी ।"

सौम्या मुस्कुराई, " प्यार अगर सच्चा हो ,तो वह खोता  नहीं , समीर।  बस , इंतजार करता है कि कब दोनों उसे फिर से अपनाने के लिए तैयार होते हैं ।"

समीर ने उसकी तरफ देखा, " क्या हम फिर से  दोस्त बन सकते हैं? "

सौम्या ने एक किताब उठाई , और अर्जुन की तरफ बढ़ते हुए कहा, " पहले इस किताब को पढ़ो,  फिर जवाब दूंगी । "

समीर ने किताब खोली । पहले पन्ने पर लिखा था ---;

"कुछ कहानी कभी खत्म नहीं होती , बस एक नए सफर के लिए इंतजार करती है । "

भाग 6 :  एक नई पहचान

समीर ने किताब का पहला पन्ना पढा  और हल्की मुस्कान के साथ सौम्या की ओर देखा।

"तो , इसका मतलब है कि हमारी कहानी खत्म नहीं हुई है ? "

सौम्या ने सीर  हिलाया , "कुछ कहानी खत्म नहीं होती, बस उनका अर्थ बदल जाता है ।"

नए रिश्ते की शुरुआत

उस दिन के बाद , समीर और सौम्या के बीच एक नई तरह की दोस्ती शुरू हुई-----  एक ऐसी दोस्ती,  जिसमें कोई अधूरी मोहब्बत नहीं थी, ना कोई शिकायत । सिर्फ आपसे समझ थी और एक दूसरे के लिए स्नेह।

समीर  को अब एहसास हो गया था कि प्यार सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं है, बल्कि यह इस स्थान इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किसी की जिंदगी में क्या स्थान रखते हैं ।  वह जानता था कि सौम्या अब पहले जैसी नहीं रही -----  अब वह आत्मनिर्भर थी , खुद के लिए जीना सीख चुकी थी ।

  सौम्या भी समझ चुकी थी कि जिंदगी सिर्फ एक इंसान के इर्द-गिर्द घूमने के लिए नहीं बनी। उसने पहली बार अपने लिए सोचना शुरू किया था ।

अब वह कभी-कभी मिलते,  किताबों पर चर्चा करते , लाइब्रेरी में घंटे बैठकर पढ़न ,और कभी-कभी पुरानी बातों को याद करके हंस देते।  लेकिन उनके बीच अब कोई अधूरापन नहीं था ।

अंत  या  एक नई  शुरुआत?

एक दिन समीर ने सौम्या से पूछा , "अगर मैं तुमसे यह कहूं कि मैं अब भी तुम्हारे लिए वह सारी चीटियां संभाल कर रखी है , तो ?"

सौम्या हसी , "  अब तुम  उन्हें पढ़ सकते हो ...., लेकिन सिर्फ यह समझने के लिए कि मैं कितनी आगे बढ़ चुकी हूं  । "

समीर ने मुस्कुराया, " और मैं भी । "

उस दिन के बाद , उसकी दोस्ती एक नए मोड़ पर आ गई ---- अब ना कोई मोहब्बत थी,  ना कोई इंतजार,  सिर्फ दो पुराने दोस्त थे,  जो एक- दूसरे की जिंदगी का हिस्सा थे.... लेकिन इस बार,  किसी और एहसास के साथ ।

कभी-कभी,  प्यार अपने मूल रूप में नहीं टिकता, लेकिन वह किसी और खूबसूरत रूप में बदल जाता है ---- एक सच्ची दोस्ती में,  एक नई पहचान में ।

और यही हुआ अर्जुन और सौम्या के साथ।



(समाप्त )


यह कहानी अब पूरी हो चुकी है , लेकिन यह बताती है कि हर प्यार को  " हैप्पी एंडिंग" की जरूरत नहीं होती ---  कभी-कभी , एक 'सार्थक अंत' ही सबसे अच्छा होता है।



Simran Bhargav