छलावा : ईन हिंदी... writer: जयेश झोमटे.. आसमान में रात का अँधेरा चारो तरफ फैला हूआ था, उस काळे आसमान में कही भी चांद नजर नही आ रहा था - शायद आज अमावस की अशुभ रात थी , जीस दिन कई रुह - काळी परछाइयाँ इंसानी खून और उनके मांस की भुकसे अंधेरे में भटक रही थीं, जिन्हें आम इंसान अपनी आँखों से नहीं देख सकता था। सर्दी का महीना चल रहा था, चौराहा घना कोहराम फैलता जा रहा था । जंगल में लोमड़ी अपनी अजीब सी भयानक आवाज में रो रही थी, जिससे माहौल और डरावना हो रहा था. पेड़ पर बैठा वह उल्लू अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से रात के इस डरावने माहौल का आनंद ले रहा था। बडे बडे पेडोसे ढका हूंआ जंगल दिख रहा था , उसी जंगल के बिचो बिच से एक हाईवे जा रहा था , हाईवे की सडक के पास जरा दूर एक माईलस्टोन दिख रहा था , उस माईलस्टोन पर लिखा था युपी 70 km ! उसी माइलस्टोन के पीछे एक और पाच फुट बडा बोर्ड लगा हूआ दिख रहा था , जिस पे लिखा था - युपी पुलिस बोर्ड : कृपया रात में ईस सडक का उपयोग न करे - रात को यहा छलावा फ़ीरता है, रात में ईस सडक का उपयोग जानलेवा हो सकता है. - अचानक न जाणे कैसे , वह बोर्ड तुटके जामिन पर गिर गया.. और तभी जंगल में सुनसान हाईवे पर घने कोहरे को चीरता हुआ एक बड़ा कंटेनर ट्रक आगे आ गया । ट्रक की हेडलाइट से इसका अंदाजा लगाया जा सकता था। ट्रक में दो लोग बैठे थे। एक का नाम रघू सिंह था , जो ड्राईव्ह कर रहा था , रघू एकदम सीधा साधा नेक किस्म का इंसान था , वह बजरंगबली का बडा भक्त था - दुसरा इंसान था शामलाल जो रघू का का साथी था.. शामलाल एक नंबर का निठल्ला , और ठरकी किस्म का इंसान था..! रघू और शाम दोनो किसी बडे कंपनी का माल ट्रकसे लेके मुंबई से युपी की और जा रहे थे.. "अरे यार आज बहुत ठंड है नही?" ट्रक ड्राइवर रघू के बगल में बैठे मध्यम कद के शामलाल उर्फ शाम ने कहा। "हा भाई ठंड तो है , और रास्ता भी कोहराम से बहुत धुँधला हो गया है..!" उस ट्रक ड्राइवर रघुने शाम से कहा.. " हा यार वैसे ठंड बहूत है , और ईस थंड में कोई लडकी मिल जाये तो मजा आ जायेगा , हिहिहिही!" शाम ऐसे बोलके बेशर्म की तरह हंसने लगा.. पर रघू को उस्की है बात अच्छी नही लगी.. इसी लिये वह गुस्सा हो गया और बोला.. "अबे हरामी चुप साले ,ज्यादा निठल्ला ना बन - वरना एक दिन ईसी लडकी की वजह से जिंदगी से हात धो बैठेगा..!" रघू की बात हमेशा की तरह शामने एक कान से सूनी और दूसरे कान सी छोड दी.. "अरे रघू आगे देख...!" शाम ने आगे रस्ते की ओर देखते हुए कहा। थोड़ी दूर सड़क पर एक लाल साड़ी वाली औरत खड़ी थी. "ए बजरंग बली.! इतनी ठंड में ये कौन है..? और वोह भी इस वक्त ईस सुनसान हाईवे पर ..? कही कोई भूत बित तो नही.!" रघु ने एक बार शाम को तो कभी सामने सड़क पर खड़ी उस औरत को देखकर ये शब्द कहे। "अबे रघु ...! पागल हो गया क्या..? सामने लडकी खडी है और तू भूत बोल रहा है ? चल गाडी रोक और बेचारी को लिफ्ट देते है" शाम ने रघु पर जरासा चिल्लाते हुए कहा। "अरे पर..!" रघु ने इतना कहा होगा कि शाम ने वही वाक्य तोड़ दिया और बोला। "तुम्हें मेरी कसम है रघु गाडी रोक दे ..." शाम के कसम खातीर रघुने ट्रक उस महिला के बगल में रोक दिया। "अरे मैडम जी, ईतनी रात आप कहा जा रही है ? हम छोड़ दें क्या आपको?" शाम ने उस महिला को निचे से उपर तक देखते हुए कहा। उस महिला ने लाल साडी पहनी थी, उसकी गर्दन नीचे की और थी ..! शाम के कहने पर उसने धीरे अपना सिर उपर किया और मुस्कान के साथ शाम की ओर देखा- और कहा "क्या आप छोड़ दोगे मुझे ..?" उसकी आवाज थोड़ी अलग थी, जैसे वह खिसखिसाते हूये बोल रही हो...! शाम उस महिला को पागलो की तरह देख रह था - उस महिला का चेहरा बहुत सफ़ेद था, एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में बहुत अधिक सफ़ेद- जैसे एक रशियन लडकी ही हो! "क्या आप छोड़ दोगे मुझे..?" उस महिला की फिर से आवाज आई। आवाज के साथ शाम का उसके शरीर से ध्यान हट गया. "अरे क्यू नही आईये ना ...!" शाम से जरासा हडबडाते हुये कहा. उस औरत ने अपना हाथ बढ़ाया, शाम उसका हाथ देखकर बिल्कुल पागल सा हो गया, शाम कुछ देर तक उस सफेद मुलायम हाथ को यू देखता ही रह गया। "जी... मैं अंदर आऊ !" उस महिला ने फिरसे कहा. शाम फिर से अपनी होश मे आ ब आया। और उसने उस महिला का हाथ अपने हाथ में ले लिया. उस महिला का हात शाम को बहुत ठंडा लगा था - मानो कोई मरी हुई लाश, मुर्दे का हात हात में पकडा हूआ हो . लेकिन शामने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा। लाल साड़ी पहने महिला शाम के पास बैठ गई। तभी रघुने महिला की तरफ देखा और अपना ट्रक स्टार्ट किया और फिर से सड़क पर चलाने लगा। शाम उस महिला की तरफ ही देख रहा था , लेकिन उस महिला का ध्यान पूरी तरह सामने था। "बहनजी ! आप ईतनी रात को यहाँ..क्या कर रही थी..?" रघु ने उस महिला से सवाल पूछा, महिला ने सामने की ओर देखते हूये ही जवाब दिया.. "मेरी मौसी की बहन की शादी थी.. ! मै वहा से लौट रही थी की रास्ते में मेरा स्कूटर ख़राब हो गया.!" उस महिला ने अपनी अजीब सी आवाज में कहा. "बहन जी मैंने आपकी स्कूटी नहीं देखी...वाह...?" रघु ने आगे देखते हुए गाड़ी चलाते हुए कहा। लेकिन उस महिला ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। तो रघु ने फिर कहा. " बहन जी आपकी स्कूटी...?” "अरे रघु चुप हो जा यार...! उनकी स्कूटी होगी वही कई.! क्या स्कूटी-स्कूटी लगा रखा है , हम छोड़ देंगे ना उन्हे.!" शाम ने रघू की और गुस्से में देखते हूये कहा.वैसे रघू जरासा चुप बैठ गया.. "जी आपका नाम क्या है..?" शाम ने महिला की ओर देखते हुए कहा। " मेरा नाम अनामिका...! है...!" तो दोस्तो उस औरत का नाम अनामिका था..! "वाह क्या बढ़िया नाम है...! शामने अनामिक की ओर देखते हुए कहा. "साला नौटुंकी, चला मस्का लगाने !" शामके वाक्य पर रघु ने मन ही मन कहा। " वैसे आप इस साड़ी में बहुत अच्छी लग रही हो... क्या आपकी शादी हो गई है" शाम ने अनामिका की ओर देखते हुए कहा।वैसे अनामिका ने इतना ही कहा " जी हाँ...!" अनामिकाने ईतनाही कहा होगा कि रघु जोर-जोर से हंसने लगा। " हा हा हा हा हा हा!" " हंस क्यू रहा बे क्या मज़ाक हूआ है क्या.?" शाम ने रघु पर भौंकते हुए कहा। "हाँ तो बड़ा मज़ाक हूआ है..!हाहा, अहा!" रघु फिर हँसते हुए बोला। "यह पागल है..! ऐसे ही हंसता रहता है !" शाम ने अनामिका की ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा। पर अनामिका का पुरा ध्यान सामने था , उसने शामके वाक्य पर कुछ भी प्रतिक्रीया नही दी. लेकिन शाम के इस वाक्य पर रघु को बहुत गुस्सा आया था और वोह शाम को गुस्से से देख रहा था. ऐसे ही कुछ समय बीत गया होगा रघू ने फिर से कहा.." अरे बहनजी ! एक बात तो आपसे पूछी ही नी मैंने..? आपका ड्रॉप कहां करना है जी.?" "यहां से 30-40 मिनट पर मेरा घर आ जायेगा...!" अनामिका सामने की ओर देखते हूये बोली। जंगल की सड़क पर ट्रक के अलावा और कुछ भी नहीं था, चारो तरफ सुनसान इलाका था. अंधेरेने उस जंगल को अपने आगोश में ले लिया था ट्रक हाईवे की सडक से तेजी से आगे बढ़ रही थी- अचानक ट्रक का एक पह्य्या गड्डे के अंदर से गया, और ट्रक को एक झटका लगा उसी समय अनामिका का हाथ शाम पर पड़ा। वैसे शाम ने अनामिका की ओर देखा, दोनों ने एक-दूसरे को देखा और अनामिका एक पल के लिए शरमा गई। 5 - 10 मिनट के बाद,अचानक ट्रक में कुछ गडबड हो गई। रघुवेंद्र ने ट्रक हाईवे के सडक के पास रोक दिया। "क्या हुआ , ट्रक क्यू रोकी ?" शाम ने रघु की ओर सवालभरी नजर से देखते हुए कहा। " लगता है कुछ प्रोब्लेम हो गया है, रुक मै देखता हू .." इतना कहकर रघु ट्रक से नीचे उतर गया , शाम ने हल्के से अनामिका की तरफ देखा। तो वह चौंकन्ना रह गया क्योंकि पास की सीट खाली थी। "अरे यह अनामिक कहाँ गई?" शाम ने खुद से कहा। और इधर-उधर देखने लगा , तभी उसे दिखा कि अनामिका थोड़ी दूर जंगल में एक पेड के पास खड़ी थी, और शाम को प्यार से मुस्कुरा कर देख रही थी, और वह उसे अपने पास आने का इशारा कर रही थी। अनामिका के चारों ओर एक सफेद रंग का कोहरा फिर रहा था । जो कुछ अशुभ घटना की आभास करवा दे रहा थी। यह कुछ अपरिचित, अमानवीय, अप्रिय है। उससे दूर रहने में ही तुम्हारी भलाई है. अगर तुम उसके पास जाओगे तो वो तुम्हारु जान ले सकती है. लेकिन वासना के नय्ये डूबे हूये शाम को तो जैसे इन सबसे कोई लेना-देना ही नहीं था. हवस का नशा इतना गहरा था कि शाम को खुद पर काबू नहीं रहा। वह ट्रक से नीचे उतर आया, बाहर आते ही शरीर को ठंड लगी। लेकिन हवस के सामने ठंड कुछ नही थी। शाम आसपास की झाड़ियों से होते हुए जंगल में घुस गया, लाल साड़ी पहनी हूई अनामिका शाम से बीस मीटर दूर, पीठ पीछे चलती हुई आगे जा रही थी और शाम उसके पीछे पीछे जा रहा था..। शाम अपने आगे के और चलती हुई अनामिका को हवस भरी नजर से देख रहा था, लेकिन उसे एक बात ध्यान मै नही आई कि वह अनामिका के पीछे-पीछे चलते-चलते जंगल के बीच में आ गया है । एक तरह से वह एक भयानक जाल में फंस गया था, जिससे निकलने का केवल एक ही रास्ता था। मौत... □□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□□ "एय शाम जरा स्क्रूड्राइवर..लाना...!" रघु ने जोर से बोला, लेकिन उसके सवाल पे सामने से कोई जवाब नहीं आया "एय शाम...?एय शाम ..???" रघु ने फिर शाम को आवाज़ लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। "साला क्या घटिया किस्म का इसान है, लडकी मिल गई तो दोस्त को भुल गया , हरामी साला .. !" रघु अपने आपसे बोला और वह खूद ही स्कृ ड्राईव्हर लेने ड्राईव्ह सीट के पास आया। जैसे ही वह ट्रक के दरवाजे पर पहुंचा उसने दूसरी आवाज दी और अंदर झांक के देखा लेकिन अंदर कोई नहीं था। दोनों सीटें खाली थीं। "यार, ये दोनों कहाँ गए?" रघूने खुद से ही कहा, उसने स्क्रूड्राईव्हर उठाया और अपना काम करने चला गया। xxxxxxxxxx "ओह अनामिका जान! रुको ना , कहां तक ले जाओगी, वैसे भी यहां कोई देखने वाला नहीं है..!" शाम ने अनामिका की ओर अजीब सी मुस्कान के साथ देखते हुए कहा. अनामिका उसकी बात सुनकर रुक गई, शाम के चेहरे पर हे देखकर एक मुस्कान फैल गई और वह उसकी ओर चलने लगा। "अनामिका जान..! इधर देखो..तो..!" शाम ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसकी पीठ से लिपट गया। जैसे ही शामने उसे गले लगाया , उसके नाक में एक सड़ी हुई गंध घुस गई। जैसे कोई चूहा मरा हूआ हो , वैसे ही वोह बदबू भरी गंध थी , शाम उस बदबू को सहन नहीं कर पाया और उसने अनामिका को आगे धकेल दिया.. " छी ..कितनी बदबू आ रही है...!" शाम ने अनामिका की ओर देखते हुए कहा। इस वाक्य पर अनामिका ने मुड़कर उसकी ओर देखा। जैसे ही शाम ने अनामिका का चेहरा देखा, शाम के शरीर पर एक तेज़ काँटा खड़ा हो गया। कुछ देर पहले अनामिका के सुंदर रूपने अब भयानक रूप ले लिया था। उसका पूरा चेहरा जला हुआ था, और उसका शरीर एक बूढ़ी औरत की तरह कमजोर था, उसकी आँखें पीली थीं, अंधेरे में चमक रही थीं, जिसमें एक काळा टीपका था , हाथ- और पैर के नाखून डायन की तरह बढ़ गए थे , बाल सफेद हो गए थे और उसके सुंदर सफेद दांत भी अब काले दिखने लगे थे । मुंह से लार की तरह एक खास काला तरल पदार्थ निकल रहा था । शाम को दूर लाकर उस छलावा ने उसे अपना असली रूप दिखाया था , जो देख शाम को ठंड में भी पसीना आने लगा, यह रूप उसकी समझने की क्षमता से बाहर था। शरीर में रक्त वाहिकाएँ धड़क रही थीं और सूज गई थीं। "कौन...कौन...कौन...हो...तूम...?" अनामिका का भयानक वीभत्स रूप देखकर शाम की वासना क्षण भर में ही समाप्त हो गई, वासना की जगह अब डर ने जगह ले ली , डर से उसकी पुंगी बज गयी थी ! "क्या तुमने मुझे नहीं पहचाना..?! " अनमिका के गले से एक भयानक अशुद्ध ध्व्नी की आवाज निकली , वोह आवाज सूनके शाम के कान के पर्दे फट गये। अनामिका ने अपने काले दांत दिखाते हूए वह शाम को देख हंस पडी , और उसने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए और अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए कहा... "मैं वही अनामिका हूं...! तुम्हारी...जान आओ मुझे गले लगाओ ना ." ऐसे कहते ही वोह छलावा धीरे-धीरे शामकी ओर बढ़ने लगा। "अरे नहीं, अरे नहीं..! मेरे पास मत आओ...!" यह कहकर शाम झाड़ियों में से दौड़ने लगा। पीछे मुड़कर देखने की उसकी हिम्मत नहीं हुई उस बीभत्स, कुरूप रूप को देखकर सचमुच शाम भय से भर गया था। उसकी हृदय से धड़कने, धड़कने की आवाज तेजी से आ रही थी और शरीर पसीने से भीग गया था। 10-15 मिनट तक दौड़ने के बाद उसे थोड़ी दूरी पर रघु दिखा, जो उसे ढूंढ रहा था. "ए रघू .....ए रघ्या....... !. शाम ने जोर से रघु को आवाज दि , आवाज सुनते ही रघुवेंद्र उसकी ओर मुड़ा। "अरे , शाम तुम कहाँ थे...?" रघु ने कहा. "अरे यार जल्दी...यहाँ से... चलो, मैं तुम्हें रास्ते मे सब बताता हूं ...!"शाम और रघु ट्रक की ओर चलने लगे, लगभग 10-12 मिनट बाद शाम को हाईवे पर आगे एक बड़ा कंटेनर ट्रक दिखाई दिया, और जो आगे का दृष्य उसने देखा जिसे देख शाम की रुंह पैर से लेकर माथे तक कांप उंठी उसने देखा की रघु ट्रक में ड्राइविंग सीट पर बैठा था। "यह रघु यहाँ है, फिर यह कौन है...?" शाम ने ऐसे कहते हूये पीछे मूड के देखा। तो उसे दिखा सामने रघु अपना सिर झुकाए जमीन की ओर देख रहा था । पर सच तो यह था कि वह रघु नहीं बल्कि एक छलावा था। शाम की मौत थी। जैसे ही आंखों के सामने किसीको अपनी मौत दिखती है, हर कोई लटलट कांफने लगता है , उसी तरह शाम का डर से अंग कांपने लगा, डर के मारे उसकी आवाज खामोश हो गई। शाम ऐसी अवस्था में था कि उसके गले से साँस भी नहीं निकल रही थी। और उसी अवस्था में वह एक-एक कदम पीछे हटकर पीछे जाने लगा। और इधर उस रघू का रुप लिये अया हूआ छलावा अपना अपनी गर्दन ऊपर उठाने लगा, उसकी पीली -दो काली नोकों वाली पीली आँखें अँधेरे में बाज़ की तरह चमक रही थीं। जिस तरह रात के अंधेरे में घूम रहे कुत्ते और बिल्ली की आंखें रोशनी के संपर्क में आने पर एक खास तरह से चमकने लगती है, उसी तरह उस पिशाच छलावा की आंखें पीली रंग चमकने लगी थी । छलावाने फिरसे अपना भयानक रुप लेना शुरु किया , उसके शरीर से हड्डीया तुटने की आवाज आने लगी । मानो वह छलावा अपना आकार और शारीरिक संरचना बढाने लग गया था छलावा ने पागलों की तरह अपने अंगों को मोड़ते हुए अपना रूप और शरीर 8_9 फीट तक बढ़ा लिया, जो सामान्य मानव के तर्क से परे था। शाम उस अमानवीय रूप को अपनी स्थिर आँखों से देख रहा था। आखिरी प्रयास के रूप में, शाम ने ट्रक की ओर देखा और ज़ोर से चिल्लाकर रघू को आवाज देने ही वाला था कि तभी किसी ने एक हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया। "भाग जायेगा...? भागेगा , छलावा के चंगुल से भागेगा , आज तक छलावा के चंगूल से कोई नहीं बचा है...! हीही, हीहीहिहिही," शाम के कानों में एक तेज़ गहरी कर्कश ध्वनि गूंजी और इसके साथ ही एक अजीब सी हंसी भी। और इस वाक्य के साथ, छलावा ने अपना तेज पंजा उसके पेट में खोद दिया। साथ ही शाम की नाक और गले से भी गाढ़ा लाल खून निकलने लगा. झटका इतना जोरदार था कि बिना खून-खराबे के कई छर्रे गिरे। खून से लथपता हूआ शाम कुछ ही देर में मर गया.. "तुम्हारी जुबान बहुत चलती है...!"छलावा ने शाम की लाश को देखते हुए ज़ोर से कहा और उसने शाम की जीभ को बाहर निकाल ते हूये अपने मुँह से काटते हूये बाहर निकाल लिया और चबा के खाने लगा और बेसब्री से दूसरी जीभ का इंतज़ार करने लगा □□□□□□□□□□□□□□ अगले दिन.....! युपी हाईवे पुलिस स्टेशन रघु अपने दोस्त की गुमशुदगी का मामला लेकर थाने आया था. थाने में एक हवालदार टेबल पर बैठा, फाईल में कुछ लिख रहा था.. रघू उस हवालदार के पास गया और बोला. "नमस्ते हवालदार साहब...! मेरा दोस्त कल हाईवेपर गायब हो गया है...!" इतना कहकर रघु ने सामने बैठे हवालदार को सारी बात बताई, हवालदार ने सब कुछ सूनने के बाद रघू से कहा .. " चलो मेरे साथ !" हवालदार टेबल से उठा, और पुलिस थाने में ही एक रुम के अंदर चला गया..रघू भी उसके साथ गया.. " कमाल है , रिपोर्ट भी नही लिखवाई ओर कहा ले जा रहा है !" रघू मन ही मन बोला. हवालदार ओर रघू एक रुम मे आये , उस रुम में दिवार पे एक बडा सा बोर्ड लगा था, जिस पे लगभग पचास से ज्याद गुमशूदा लापता लोंगो के पास्पोर्ट साईज फोटो लगाये हूये थे..उसी फोटो में कल रात दिखी उस अनामिका का फोटो भी था.. "क्या आप ईस लडकी से मिले?" हवालदार की बात पर रघु ने बडी आंखे करते हूये कहा.. " जी हां सर, यही थी वह ... ईसी के साथ गया था मेरा दोस्त , प्लीज उसे ढुंढीये..!" रघु ने हवालदार से कहा, " अब कुछ नही हो सकता , तुम्हारा दोस्त मर गया" हवालदार बोला , उसकी बात सूनके रघू सून्न रह गया.. ओर बोला .. " क्या , क्या बोलना क्या चाहते है आप!" ".अरे , यह जो दिवार पे फोटो लगे हे ना यह सब भी तुम्हारे दोस्त की तरह ही लाप्ता हुये है ! और इन तस्वीरों को दीवार पर लगे तीस साल हो गए है , लेकिन हम अभी तक ईनमें से किसिको भी नहीं ढुंढ पाये है, क्युकी कल तुम जीस हाईवे से ट्रक लेके जा रहे थे वहा अमावस की रात को छलावा घुमता है , और हां वोह जो छलावा होता है ना वोह ईन लापता लोगों का रुप लेके मासूम लोंगो को अपने जाल में फसाके शिकार करता है , ओर तेरे दोस्त को भी कल , छलावा ही लेके चला गया है !" हवालदार की बात सून रघू की बोलती बंद हो गई थी.. रघूने पुलिस स्टेशन की दीवार पर नज़र डाली तो उसने 50 से अधिक गायब तस्वीरें देखीं। उस दिनसे रघूने ट्रक ड्राईव्हर का काम छोड दिया था , और वॉचमन की नौकरी करने लग गया था ..- पर आज भी युपी के उस हाईवे वर वह छलावा घुमता है जो किसी की राह देख रहा है.. समाप्त :