पहला खिलौना
जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है और उसके घरवाले जब उसे पहला खिलौना दिलाते हैं तो उसकी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाती है।
निश्चित रूप से उसका ये पहला खिलौना नहीं होता क्योंकि उसे उसके घरवाले पहले भी खिलौना दे चुके होते है, लेकिन मैं उस समय की बात कर रहा हूं जब बच्चे में खिलौने से खेलने की समझ आ जाती हैं।
जब बच्चे को पहला खिलौना मिलता है उस समय बच्चे की भावनाएं देखने योग्य होती है और उन बच्चो को ऐसी खुशी मिलती है जिसे देखकर कोई भी दुखी आदमी खुश हो जाए ।
उस समय बच्चो की खुशी अलग ही होती है। बच्चो को देखकर उनके माता पिता भी बहुत खुश हो जाते हैं।
जैसे मैं एक कहानी बताता हूं इस चीज को समझने के लिए।एल
कहानी इस तरह हैं :
एक गांव था । उस गांव में अनवर नाम का लडका रहता था। उसकी शादी एक लडकी से हो जाती है जिसका नाम सानिया था। एक साल बाद उनका एक लडका होता है जिसका नाम अनवर और सानिया के घर वाले अनीश रखते है। अनवर जो उसका पापा था उसे बहुत खिलौने लाकर दिए।
लेकिन जैसे ही अनीश दो महीने का हुआ उसके पापा जिस कंपनी में काम करते थे वह कम्पनी में काम कम होने की वजह से उसे निकाल दिया ।
अब काम ना होने की वजह वे मजदूरी करने लगे । अब वे इतना नही कमा पाते थे । अनीश एक साल का हो गया लेकिन उसके पापा अभी भी मजदूरी ही करते थे जिससे वे घर का खर्च ही निकल पाता था क्योंकि उसके घर में पांच सदस्य थे ।
अनवर अपने बेटे अनीश को जब भी किसी मेले में ले जाते तो वो खिलौने लेने की जिद करता तो अनवर किसी तरह उसे टाल देते।
अनवर के पड़ोस में ही एक बच्चा रहता था । वो पांच साल का था । उसका नाम सोहन था। वो कभी हंसता ही नही था। एक बार अनीश के पापा अनवर उस लेकर वहां चले गए। अनीश के वहां जाने से ही वो लडका जो कभी हंसता ही नही था वो अनीश के साथ खेलने लगा और हंसने लगा । इसलिए
कहते हैं ना बच्चे एक साथ खेलते हैं और एक ही बार में एक दूसरे से लड़ाई कर बैठते हैं ।
ये देखकर सोहन के पापा ओर उसकी मम्मी बहुत खुस हुए । क्योंकि उनका बेटे को उन्होंने कभी भी इतना खुस नही देखा था। सोहन के पापा ने अनीश को एक महंगा खिलौना दिलाने को गिफ्ट देने का मन बनाया।
अगले ही दिन सोहन के पापा अनीश के लिए एक महंगा खिलौना लेके उनके घर गए।
उन्होंने अनीश को बुलाकर उसे वो खिलौना दिया। अनीश उसे देखकर बहुत खुश हुआ। वो बार बार उसको देख रहा था। अनीश को खुश देखकर उसके माता पिता भी बहुत खुश हुए।
अनीश दिन भर उस खिलोने से खेलता रहा । बाद में। वो सोने लगा तो उसको पास रखके सोया । अनीश को जब से खिलोने से खेलने की समझ आई थी उसका ये पहला खिलौना था।
अनीश हर रोज अब उस खिलोने से खेलता । कुछ दिनों बाद अनीश के पापा अनवर की एक कम्पनी में नौकरी लग गई। कुछ समय बाद अनीश के पापा उसके लिए बहुत खिलोने लाने लगे। लेकिन उन्हें देखकर अनीश इतना खुश नही होता जितना वो अपने पहले वाले खिलोने को देखकर खुश होता ।
वास्तव में ही आदमी के लिए पहली चीज ही खास होती है। अनीश के लिए भी उसका पहला खिलौना खास था । अनीश उसे देखके बहुत खुश होता था।