Hostel vala manhoos mansoon in Hindi Women Focused by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | हॉस्टल वाला मनहूस मानसून

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हॉस्टल वाला मनहूस मानसून





" ये है मेरी सहेली  वंदना, जो देवभोग से आयी है "
प्राची ने वन्दना का परिचय हॉस्टल की सभी लड़कियों से कराया।

" चलो लड़कियों, कैंटीन से बुलावा आ गया है रात्रि के भोजन के लिये "
वार्डन सीमा मैम ने सभी लड़कियों को आवाज लगाते हुए कहा।


गरियाबंद का आई टी एस कॉलेज जहाँ 21 साल की वंदना ने एम. ए ( अर्थशास्त्र ) मे अपना दाखिला कराया, कॉलेज की ऊपरी मंजिल को ही गर्ल्स हॉस्टल बना दिया गया था।
हॉस्टल मे आज वन्दना का पहला दिन था और प्राची से उसकी बहुत बनने लगी। वंदना स्वभाव से संकोची किस्म की थी ठीक इसके विपरीत प्राची चंचल।


जुलाई का महीना था बीच- बीच मे बारिश हो ही जाती थी 
कैंटीन मे प्राची के साथ बैठी वंदना बाहर ही निहारे जा रही थी। कैसे वो और उसका भाई पप्पू खाने के समय उधम मचाया करते थे, कैसे पापा के साथ मिलकर वो माँ के खाने का नुस्क निकाला करते थे। माँ  अक्सर  मजाक मे कहा करती थी -
" देख लेना महारानी इसी खाने को सबसे ज्यादा याद करोगी "

सही तो कहती थी माँ यहाँ कैंटीन के खाने और माँ के हाथ के खाने मे जमीन आसमान का अंतर है।  एक तरफ प्राची अपने ग्रेजुएशन के समय से ही हॉस्टल मे रहती थी इसलिए यहाँ का रहन -  सहन उसने बखूबी सीख लिया था।

लगभग 1 हफ्ते बीत गये शनै -शनै वंदना का मन अब पढ़ाई मे लगने लगा। इसी बीच प्राची किसी कारणवश अपने गाँव चली गयी। 


रात्रि के भोजन के बाद सभी लड़कियाँ गप्पें लड़ाने मे मस्त थी।  आज तो सुबह से ही बारिश के आसार नजर आ रहे थे और शाम होते ही बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक सिहरन पैदा करने लग गये। झमाझम बारिश वन्दना को घर परिवार की स्मृतियों मे ले गये । जैसे ही जमकर मेघ बरसते पापा की फरमाइशों की कतार लग जाती गर्मागर्म भजिये, टमाटर की चटनी और वो अदरक वाली चाय। सच है घर जैसा माहौल कहाँ मिल सकता था। उसकी आँखों से भी अब बूंद टपकने लगे सहसा एक कागज का टुकड़ा उसके समीप आ गिरा।

" मै खिड़की के पास हूँ जल्दी आओ "
उसे पढ़ते ही वह आसपास नजरे दौड़ाने लगी, सभी लड़कियाँ बत्ती बुझाकर खर्राटे लेने लगी थी। अब रात्रि के 11 बजने वाले थे वन्दना भी चुपचाप चादर ओढ़कर छुप गयी। कौन हो सकता है? इतनी रात को, कहीं कोई मुसीबत मे तो नही ? ये सोचकर ही वह सहसा उठी और खिड़की से झाँकने लगी बाहर कोई नजर न आया। एक और कागज का टुकड़ा जो बारिश मे भीग चुका था इस बार उसके चेहरे से टकराकर नीचे गिरा
" मै मुसीबत मे हुँ, तुम्हारा...."

वन्दना को भान हो गया ये किसी लड़के का ही काम होगा उसने दरवाजा खोला और सीमा मैम के कमरे की ओर अपना कदम बढ़ाना चाहा।
एकाकक उसे किसी ने खींचते हुए अपनी बाहों मे जकड़ लिया, वह चिल्लाने के प्रयत्न के साथ हाँथ - पाँव मारने लगी।

" अरे! मै हूँ राकेश... क्यों नाटक कर रही हो ? "
एक हट्टा- कट्टा नौजवान बारिश से तर -बतर सामने खड़ा था और उसने वन्दना को गुर्राते हुए ऐसा कहा।

" कौन हो तुम? मै किसी राकेश को नही जानती "
काँपते हुए वन्दना ने अपने आप को उससे अलग किया और जमकर तमाचा लगाया।

" अरे! तुम कौन हो और प्राची कहाँ है ? तुम उसके बिस्तर पर क्यों सोयी थी ? "
वह लड़का भी वंदना को देखकर चौंका।

" लेकिन प्राची तो..."
वंदना आगे कुछ बोल पाती सीमा मैम, चौकीदार और सभी लड़कियाँ वहाँ आ धमकी।

" क्या हुआ वंदना और ये लड़का कौन है? "
सीमा मैम की आवाज मे कर्कशता झलक रही थी।

" मैम.. मै खुद अचम्भित हूँ ये कहाँ से आया? पर ये प्राची.."

" क्षमा चाहता हूँ , मैडम जी! 
मेरा नाम राकेश है और  वंदना मेरी प्रेमिका है इसी ने ही आज रात मुझे यहाँ बुलाया था "
राकेश को गिरगिट की तरह बदलते देख वंदना अपना आपा खो बैठी और झल्लाते हुए बोली - " क्यों मुझे अपने चंगुल मे फँसा रहे हो? अभी थोड़ी देर पहले तुम मेरी सूरत से अंजान थे और अब..."

" ये क्या तमाशा है वंदना ?  महीने भर न बीते  तुम इतनी गिरी हुई हरकतें करने लगी छी...
चौकीदार तुम कहाँ थे जब ये लड़की अपने यार से मिल रही थी "

" जी मैडम! क्षमा चाहता हूँ बारिश की वजह से हमारी आँख लग गयी थी "

" मैम, आप मेरा विश्वास कीजिये ये लड़का पहले प्राची का नाम ले रहा था शायद उसी ने इसे बुलाया हो "

" देखो वंदना, क्यों किसी दूसरी लड़की को बीच मे ला रही हो? बता दो न कितना प्रेम करती हो तुम मुझसे ? "

वंदना रो- रो कर विनती करती रही पर सभी ने मुँह फेर लिया, और उस पर कीचड़ उछालते रहे। अगले दिन ही वंदना और प्राची के माता -पिता को बुलाया गया। वंदना ने प्राची के पैरों मे गिरकर कहा कि वह सच का साथ दे और उसे इस लाँछन से मुक्त कर दे परन्तु प्राची ने भी अपना स्वार्थ सिद्ध करते हुए राकेश को पहचानने से पीछे हट गयी। जिस सहेली पर बहन की भाँति उसने अपनत्व दिखाया था उसी ने ही दलदल मे धकेल दिया और फिर हॉस्टल की सारी लड़कियाँ  ने भी सीमा मैम के सामने चूँ तक नही की। मैम ने पहले ही चेता दिया था जो भी वंदना के साथ खड़ा होगा उस पर भी गाज गिरेगी शायद यही एक वजह रही हो।
आई टी एस कॉलेज गरियाबंद नियम और कानून के लिए प्रसिद्ध था अंततः वंदना को कॉलेज से निकाल दिया गया।

*****

भले ही वंदना पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा परंतु उसका परिवार सदा उसके साथ खड़ा रहा। उन्होंने कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला परन्तु निर्णय उनके पक्ष मे न आया। ततपश्चात वंदना ने ओपन यूनिवर्सिटी से अपना अध्ययन जारी रखा और कड़ी मेहनत करते हुए उसने अपना मुकाम हासिल किया और वह आज एक शिक्षिका है। जीवन मे हर साल बारिश का महीना एक नयी उमंगो और तरंगों के साथ आता है पर वंदना आज भी उस कॉलेज हॉस्टल वाले मॉनसून को याद कर काँप उठती है।


समाप्त।।

✍️
लेखक
पुष्पेंद्र कुमार पटेल