पहली ग्रामोफोन रिकॉर्ड वाली गायिका गौहर जान
बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली गायिका जिसकी रिकॉर्डिंग सबसे पहले हुई थी वह कौन थी . पुरानी गायिकाओं के कुछ नाम नूर जहाँ ,शमशाद बेग़म , मुबारक बेगम , अमीरबाई कर्नाटकी के बारे में कुछ लोगों को पता हो सकता है . लता मंगेशकर और उनकी बहनें या अन्य गायिकाओं का उदय तो काफी बाद में हुआ . लता का पहला गाना “ नाचु या गाडे …. “ मराठी फिल्म “ किती हसाल ( कितना हंसाओगे ) “ के लिए 1942 में रिकॉर्ड हुआ था जिसे फिल्म में रिलीज नहीं किया गया जबकि लता का पहला हिंदी गाना 1943 की मराठी फिल्म “ गजाभाऊ “ में था ( गाने के बोल - माता एक सपूत की दुनिया .. “ .पहला हिंदी प्ले बैक गाना 1935 में फिल्म “ धूप छाँव “ के लिए था ( गाने के बोल - मैं खुश होना चाहूँ ) .
पर इन लोगों से तीन दशकों से भी पहले एक भारतीय गायिका की रिकॉर्डिंग हुई और उनके गाने अभूतपूर्व लोकप्रिय हुए . उनका नाम गौहर जान है जिनका पहला गाना 11 नवंबर 1902 को रिकॉर्ड किया गया था .
एक परिचय गौहर जान का
गौहर का जन्म 26 जून 1873 को आज़मगढ़ में हुआ था . जन्म के समय उनका नाम एलीन एंजेलिना योवर्ड था . उनकी माता का नाम एडेलीन विक्टोरिया हम्मिंग था. 1879 में उनके माता पिता अलग हो गए जिसके दो साल बाद उनकी माँ एलीन एंजेलिना को ले कर खुर्शीद के साथ बनारस आयीं . उनकी माँ विक्टोरिया की गायिकी खुर्शीद को पसंद थी . उन्होंने इस्लाम कबूल किया जिसके बाद एलीन एंजेलिना गौहर जान बनी . 1883 में गौहर अपनी माँ के साथ कलकत्ता ( अब कोलकाता ) आयीं .
गौहर ने भी तत्कालीन प्रसिद्ध पेशेवर गुरुओं से शास्त्रीय संगीत और नृत्य की शिक्षा ली और अपनी कला में निपुण हुईं . पहली बार उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 1887 में तत्कालीन दरभंगा महाराज के दरबार में किया . महाराज गौहर की कला से प्रभावित हो कर उन्हें अपने दरबार में रख लिया .
कोलकाता के एक होटल के दो कमरों में रिकॉर्डिंग स्टूडियो बना कर गौहर को रिकॉर्डिंग के लिए GTL ग्रामोफोन कंपनी ने बुलाया . 11 नवंबर 1902 को उनके गाने की रिकॉर्डिंग 78 rpm डिस्क पर हुई . यह किसी भी भारतीय के लिए पहला अवसर था . फिर इसका रिकॉर्ड बनाने के लिए जर्मनी भेजा गया और वह रिकॉर्ड अप्रैल 1903 में भारत आया . रिकॉर्ड आशातीत लोकप्रिय हुआ और उनके गानों और रिकॉर्ड की मांग बढ़ती गयी . जबकि सोने का मूल्य उस समय 20 रुपये प्रति तोला था वे एक गाने के लिए 3000 रुपये लेतीं . उन दिनों यह बहुत बड़ी रकम थी . कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने इस पर आपत्ति उठाई थी पर गौहर पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था . उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार जो गहना वह पहन लेतीं दोबारा उसे नहीं पहनती थीं .
वैसे वे अपना प्रदर्शन सिर्फ नवाबों और राजा महाराजा के दरबार में किया करती थीं . वे दस से ज्यादा भाषाओं में गाती थीं - हिंदुस्तानी , मराठी , उर्दू , अरबी , पर्शियन , बंगाली , गुजराती , तमिल, पश्तो , अंग्रेजी और फ्रेंच . इसलिए उनके गाने भारत से बाहर भी बहुत पसंद किये गए . हर गाने की रिकॉर्डिंग के अंत में वे कहतीं - माय नेम इज गौहर जान .
उन्होंने कलकत्ता के अलावा मद्रास ( अब चेन्नई) आदि शहरों भी में अपनी कला का प्रदर्शन किया और देश भर में इतनी मशहूर हुईं कि उनके गाने की पुस्तक हिंदी और उर्दू में छपने लगी . गौहर जान इतनी प्रसिद्ध हुईं कि दिसंबर 1911 में किंग जॉर्ज पंचम की दिल्ली दरबार में ताजपोशी के समय उन्हें गाने के लिए आमंत्रित किया गया .
1928 में गौहर मैसूर गयीं वहाँ मैसूर महाराज के दरबार में उन्हें “ पैलेस म्यूजिशियन “ की उपाधि मिली .
17 जनवरी 1930 को मैसूर में उनका निधन हुआ . उनका नाम आज भी “ Vintage Music from India “ एल्बम के कवर पर बोल्ड अक्षरों में लिखा है .
इतना धन दौलत अर्जित करने के बावजूद कहा जाता है कि मृत्यु के समय वे कंगाल हो चुकी थीं .