Book Review -Dholi Dagru Dome (Novel) in Hindi Book Reviews by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | पुस्तक समीक्षा- ढोली दगड़ू डोम (उपन्यास)

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पुस्तक समीक्षा- ढोली दगड़ू डोम (उपन्यास)

पुस्तक-"ढोली  दगड़ू डोम" (उपन्यास) के लेखक जनाब-गयास -उर-रहमान-सैयद हैं और हिंदी में अनुवाद किया है अनवर मिर्जा ने। इसके प्रकाशक हैं -मॉय बुक सेलेक्ट और इसका मूल्य है दो सौ पचहत्तर रुपए।

इससे पहले कि मैं इस उपन्यास की चर्चा करूं कुछ अपनी बातें। अपने रिटायरमेंट के बाद मैंने अपनी दिनचर्या में लिखने पढ़ने को शामिल कर लिया है |मैं इन दिनों लिख रहा हूँ , खूब लिख रहा हूँ और लोगों को पढ़ भी रहा हूँ |लखनऊ में रहते हुए अपनी कालोनी की हाउसिंग सोसायटी के सचिव के दायित्व निर्वहन में कुछ काम करते हुए सोशल सर्विस भी हो जाती है लेकिन वह लगभग थैंकलेस है क्योंकि आजकल आपकी सेवा भावना की कदर नहीं होती   है|कालोनी में जो लोग आर्थिक योगदान नहीं देते हैं और सोसायटी जो काम अपने सीमित संसाधनों से करती  जा रही  है वहीं लोग उसकी आलोचना करने में पीछे नहीं रहते हैं |इससे मन उदास हो जाता है |इसी पठन पाठन में मैंने इधर ढेर सारी पुस्तकें पढ़ीं हैं |उन्हीं में से एक है अपने मित्र , आकाशवाणी गोरखपुर और रामपुर में वरिष्ठ  सहयोगी रह चुके जनाब गयास-उर-रहमान-सैयद का मूलत:उर्दू में लिखा उपन्यास" ढोली दगड़ू डोम |" इसका अनुवाद किया है जनाब अनवर मिर्जा ने |

उपन्यास क्या है - एक जीवंत चलचित्र है जिसमें एक निम्न  जाति  के युवक का उच्च जाति  की युवती से बचपन से उगा निश्छल प्रेम है ,उस प्रेम से उपजे  विवाद हैं ,उच्च और निम्न वर्ग परिवार की सोच है और समाज की इसी ओछी सोच की दुखद परिणति है |बहुत स्नेह से इस पुस्तक  को सैयद भाई ने मेरे गोरखपुर के पते पर भेजा था | महीनों बाद यह मुझे मिल सकी  और जब मिली तो इसका नाम मुझे अजीब सा लगा|लेकिन जब मैंने इसे 27 जनवरी 2025 को पढ़ना शुरू किया तो सैयद भाई के कलम के जादू ने मुझे हतप्रभ कर दिया |उपन्यास की नायिका है सरला और नायक है दगड़ू डोम जिसकी ढोल की थाप के सभी दीवाने हैं |सरला भी |सरला की सहेली है रंजना |अन्य पात्र हैं पुजारी जी जो सरला के पिता हैं और ऊंच नीच, जाति पाति के पोषक |दगड़ू डोम का पिता है भीकू  डोम  |कुछ अन्य पात्र आते हैं राजा डोम,ग्राम पंचायत वाले बाबू,सेठ गोपाल राव पाटिल आदि |उपन्यास को आगे बढ़ाने में इन छोटे छोटे किरदारों का भी अमूल्य योगदान है |नायिका अपनी उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी  चली जाती है और सामाजिक जाति पाति के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठ कर सामाजिक सद्भाव का संकल्प लेकर गाँव आती है |लेकिन परिवार और समाज उसके बचपन के प्यार पर पहरा लगा देता है|उपन्यासकार की कलम का कमाल देखिए जब उसने नायक और नायिका को एक जिगरी दोस्त बनाकर साथ रहने का खाका भी तैयार किया है| नायिका और नायक का संवाद देखिए  - 

"मैं बस यहाँ से कहीं दूर जाकर तेरे साथ रहना चाहती हूँ |

""बिना  लगन के ?

"'हौ .. बिना लगन के .. जैसे एक ही क्यारी में गेंदा और गुलाब खिलतेहैं|जैसे एक ही फूल पर तितली और भौंरा मंडराते हैं |जैसे एक पिंजरे मेंतोता और मैना रहते  हैं|जैसे एक ही डाल पर कौवा और कबूतर बैठते हैं याजैसे एक ही घर में कुत्ता और बकरी पलटे हैं |क्या उनमें लगन होता है ?बस उसी तरह अच्छे दोस्त बनकर  हम दोनों साथ          रहेंगे |"

इतने साफ सुथरे प्रेम को भी यह समाज स्वीकार नहीं कर पाता है और इस प्रेम काअंत दुखद होता है |कथानक के मध्य में भयानक बीमारी करोना का  भी जिक्र है ,डोम जाति  और पुजारी जी की संकीर्ण मानसिकता का मनोवैज्ञानिक चित्रण  है ,महाराष्ट्र की भाषाबोली की छाप है और प्रकृति की सुंदरता का चित्रण है |पुस्तक के कुल बीस अध्याय  और 99 पृष्ठ हैं |आवरण बहुत सुंदर है |

अपने आत्मकथ्य में उपन्यासकार ने ठीक ही लिखा है      कि" मैं किरदार रचता जरूर हूँ ,उनके मनोविज्ञान,प्रवृत्ति और उनकी आदतों का भी खयाल रखता हूँ लेकिन उन्हें गिरफ्तार कभी नहीं करता बल्कि आजाद छोड़ कर उनके पीछे निगरानी करता चलता हूँ कि अगर वे कहीं भटकने लगें तो हल्के से इशारे से ठीक मार्ग पर चलते रहने के  निर्देश देता  रहूँ |" पुस्तक में इसकी झलक भी जगह जगह देखने को मिलती है |इस उपन्यास का अध्याय 20 बहुत ही सस्पेंस और कौतूहल भरा है जब उच्च कुल की नायिका सरला के शव के साथ नीच जाति  से मुक्ति पाने के लिए तीन साधुओं के साथ उसका बाप कुकृत्य करना चाहता है और उसी समय घटना स्थल पर नायक दगड़ू डोम पहुँच कर सरला के शव की  ससम्मान शील रक्षा तो करता ही है उसे लेकर पूर्णा नदी की उफनती तेज धारा में छलांग भी लगा देता है |

कुल मिलाकर उपन्यास दिल को छू  गया है और इसके लिए उपन्यासकार को हार्दिक बधाई देता हूँ |