Iconic villains of movies in Hindi Magazine by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | फिल्मों के आईकॉनिक खलनायक

Featured Books
Categories
Share

फिल्मों के आईकॉनिक खलनायक

____________________________

कल्पना करें सारी दुनिया, हमारे भारतवर्ष में सब तरफ, " जी आप पहले लें, "। "कोई बात नहीं आप ले लीजिए।" "अरे, (हंसते हुए) मेरी गाड़ी ठोक दी आपने तो, चलिए कोई दिक्कत नहीं। ठीक हो जाएगी जी।" " बहु, तुम आराम करो नौकरी करके आई हो, अभी एक घंटा मैं काम संभाल लूंगी।" " तुमसे तलाक ले रही हूं पर बच्चे से तुम जब चाहो मिल सकते हो। तुम्हारा भी रहेगा। और एलुमनी किस बात की मांगू? क्या जो समय तुम्हारे साथ बिताया, जो काम, जिम्मेदारी निभाई, सेक्स किया, बच्चा पैदा किया, उसका मेहनताना मांगू? इतनी गिरी हुई नहीं मैं।"

सभी एक ही भाषा, प्यार और समझाइश की भाषा बोलते तो कहीं कोई विवाद ही नहीं होता। और समझिए के चौबीस घंटे उजाला ही उजाला रहता, कभी अंधेरा होता ही नहीं, कैसा रहता? सभी लोग नियम, कायदे से चलते। जरा सी भी चूक होने पर तुरंत उसको सही करते, क्षमा मांगते। परंतु, ऐसा तो राम राज्य में भी नहीं था l। जब राम राज्य आया तो उससे पहले सैकड़ो वर्षों तक राक्षस राज भी था। पाताल लोक तक में एक पूरी दुनिया थी और वहां बाकायदा राजा था। पर वह भी ऐसा ही राज्य था जहां सभी बुरे हैं, सभी खल पात्र, राक्षस हैं। तो फिर कौन किसे मनुष्य कहकर के गाली या अपशब्द कहता होगा? इस वजह से ईश्वर ने जब यह सृष्टि रची तो उसने सबसे पहले खल, दुष्ट पात्र बनाएं। यही हैं वह जो मेरी सृष्टि को आगे बढ़ाएंगे और इसे कभी खत्म नहीं होने देंगे l अगर अच्छाई ही अच्छाई हो, सत्कर्म की भरमार हो तो बहुत जल्दी यह सृष्टि खत्म हो जाती l क्योंकि सभी मोक्ष प्राप्त कर लेते।यह कर्मफल ही है जो अपनी बुराइयों से दूसरों से हमें प्रतिक्रिया करने, हिंसा करने, अपशब्द कहने, चोरी करने पर मजबूर करते हैं। जिससे सृष्टि संतुलन गड़बड़ा जाता है और फिर आगे की तरफ जिंदगी और उसके साथ-साथ दुनिया एक्सटेंड हो जाती है l यह है महिमा खल पात्रों की। उस लेख में हम ऐसे ही कुछ यादगार खलनायकों की चर्चा करेंगे।

 

खलनायक की सोच और रसायन

___________________________यह दिलचस्प है कि हमारे जीवन के खलनायक पर्दे के खलनायकों जैसे दूर से पहचान में आ जाएं जैसे नहीं होते। पर्दे पर तो महाजन, ठाकुर, भाई, डाकू, मोगेंबो से लेकर राजनेता, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, महिलाएं सभी खल पात्र दिख जाते हैं। हकीकत में खल पात्र उतने साफ या कहें नजर नहीं आते वह धीरे धीरे हमारे जीवन में कुचक्र, दुष्टता और कांटे बोते रहते हैं। जब उनका असर हम पर पड़ता है तब हम चौंकते है कि यह तो बुरा हो गया? फिल्मों, जिसमें ओटीटी भी शामिल है, में तो बुरे पात्रों से लड़ने के लिए नायक या दो लोग मिल जाते हैं और उसे खत्म कर देते हैं। परंतु वास्तविक जीवन में ऐसा कोई नायक या दो तीन अच्छे, बहादुर लोगों का समूह अक्सर l नहीं बनता। परिणामत अच्छे या कहें सीधे सादे लोग कष्ट भोगते भोगते जीवन से पलायन कर जाते हैं।

कन्हैयालाल : कोई आज कल्पना भी नहीं कर सकता कि गाँव के सूदखोर महाजन के रूप में मात्र धोती कुर्ता पहने कन्हैयालाल कितनी क्रूरता से खलनायकी करते थे कि उनके शिकंजे में आया स्त्री पुरुष पानी भी नहीं मांगता था। उसकी बेबसी से दर्शक भी कसमसाता था। मदर इंडिया में नर्गिस और के पुत्र बिरजू को उसी लाला के कारण डाकू बनना पड़ा। दुश्मन फिल्म में गरीब किसानों की जमीन हड़पकर उन्हें दर दर की ठोकरें खिलाना हो या हम पांच में गांव के जमींदार के मुनीम के रूप में जुल्म ढाना। जितनी सहजता से कन्हैया लाल अभिनय करते थे वह आजकल के अभिनेता अमेरिका से एक्टिंग कोर्स सीखने के बाद भी नहीं कर पाते।रोटी, कपड़ा और मकान का वह दृश्य नहीं भूलता जहां चक्की वाला महाजन नायिका के साथ आटे देने के बहाने जबरदस्ती करता है।

 

रहमान

________दूसरे खलनायक आते हैं इन्हीं की परम्परा के।यह दिखने में आम व्यक्ति, कोई कॉलेज प्रोफेसर और महज अपनी आंखों और चेहरे के हावभाव से बिना चिल्लाए संवाद अदायगी से खल पात्र बन जाते। वक्त के चिनॉय सेठ को आज भी लोग नहीं भूले, महबूब की मेंहदी, दिल ने फिर याद किया ऐसी भूमिकाएं हैंं जिन्हे इन्होंने अपनी सादगी से अमर कर दिया।

अजीत :_ कई फिल्मों में हीरो पर भारी पड़ने वाला यह विलेन अपनी बुलंद और ठहराव भरी आवाज और आंखों के संयमित संचालन से ऐसा डर का भाव उत्पन्न करता था कि अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते थे। लेखक संवाद लिख सकता है परंतु उसकी अदायगी और मैनरिज्म कलाकार का ही होता है।कई भारी भरकम नायक शत्रुघ्न सिन्हा, कालीचरण, अमिताभ बच्चन, जंजीर, राम बलराम में धर्मेंद्र और अमिताभ, प्रतिज्ञा का खूंखार डाकू सरदार या फिर जीवन मृत्यु का बैंकर अजीत साहब की खूबी थी कि वह हर रंग में बखूबी रंग जाते थे। खलनायिकी के उनके तेवर जरा भी लाउड नहीं होते थे।और संवाद बोलने का अंदाज उन्हें बहुत समर्थ एक्टर बनाता था।

जीवन

______ एक ऐसा व्यक्तित्व जो हमारे आसपास बेशुमार लोगों का होगा। कोई भी लार्जर देन लाइफ वाली बात नहीं ।केवल अपने हावभाव और संवाद अदायगी के नएपन से इतना खौफ पैदा कर देते की अच्छे अच्छों का मन इन्हें मारने का करता। यही खलनायक की तारीफ होती है कि दर्शकों का मन उसे मारने का करे। नारद मुनि के किरदार में ऐसा कार्य किया देवी देवताओं की चुगली करने का की अमर हो गए। कुछ समय पूर्व गुगल से नारद मुनि पूछा तो जीवन साहब का चित्र निकल कर सामने आ गया।

के.एन.सिंह

___________ इनके जिक्र के बिना यह महफिल अधूरी रहेगी। चाइना टाऊन, शम्मी कपूर, छलिया राजकपूर, सीआईडी, गुरुदत्त, आँखें, धर्मेंद्र आदि कई फिल्मों में अपनी आंखों के उतार चढ़ाव से अभिनय को ऊंचाइयां देते के.एन.सिंह को कौन भूल सकता है? अच्छी हिंदी में प्रभावशाली ढंग से संवाद चबा चबाकर बोलना और एक आंख ऊंची और एक नीची कर अपने अभिनय को ऊंचाइयां देने में सिद्धहस्त थे।

प्रेम चोपड़ा

_________ शहीद फिल्म में साठ के दशक में सुखदेव क्रांतिकारी का किरदार निभाने वाला यह शर्मिला युवक एक बेहद काबिल विलेन बनेगा यह किसी ने नहीं सोचा था।दो रास्ते का बीवी की गुलामी में विधवा मां और भाइयों को छोड़ने वाला बेटा। पूरब और पश्चिम में भटका हुआ भाई, झील के उस पार का रेपिस्ट जीजाजी, तीसरी मंजिल का छुपा हुआ खलनायक हो या बॉबी का राह चलता विलेन, दोस्ताना का कोयला खान का मालिक, त्रिशूल का बिल्डर, सौतन फिल्म का मामा आदि सभी किरदारों में प्रेम चोपड़ा लाउड हुए बिना, न ही कोई गेटअप किए बिना वह अदाकारी दिखा गए कि महिलाएं डरती थीं इनके स्क्रीन पर आते ही।

अमजद खान;_

____________यहां से थियेटर और ट्रेंड अभिनय का सिलसिला प्रारंभ हुआ।पहली फिल्म शोले नहीं थी बल्कि अमजद हिंदुस्तान की कसम, निर्देशक चेतन आनंद नायक राजकुमार के साथ एक पायलट की भूमिका कर चुके थे। शोले में गब्बर सिंह की खूब तरफ होती है परंतु वह अभिनय की दृष्टि से बेहद लाउड और मेलोड्रामा था। पहला पहला किरदार था l उससे पहले फिल्मों में कई मशहूर किरदार डाकू के इनसे बेहतर बिना लाउड हुए हो गए थे। जैसे प्रतिज्ञा में अजीत, मेरा गांव मेरा देश में विनोद खन्ना कही भी चीखे चिल्लाए नहीं। अमजद जल्द यह बात समझ गए फिर आगे लाउड ओवर एक्टिंग का शिकार नहीं हुए। मुकद्दर का सिकंदर, लूटमार, इनकार, सुहाग, परवरिश, नसीब, कुली, लावारिस, छत्तीस घंटे आदि में बिना चिल्लाए, ओवर हुए अभिनय किया।फिर आगे कुर्बानी, लव स्टोरी, चमेली की शादी में अच्छे रोल में उनके अभिनय की रेंज और बढ़ी।

 

हम बचपन से ही अभिनय करते हैं

____________________________यह सभी खलनायक कही किसी एक्टिंग स्कूल या रात दिन थियेटर करते या फुटपाथ पर सोते नहीं आए। ईश्वर ने हर मनुष्य को जन्मजात अभिनय प्रतिभा दी हुई है।उसका बखूबी इस्तेमाल आप और हम भी यदा कदा करते हैं l सभी बालपन से ही अभिनय करते हैं।याद करें स्कूल नहीं जाने पर पेटदर्द का अभिनय, सब्जी, दाल, दूध नहीं पीने से बचने का अभिनय, ऑफिस में लेट हो जाने पर ट्रैफिक अथवा छुट्टी हेतु बीमारी का अभिनय। फर्क इतना है कि इन लोगों ने अपने इसी हुनर को तराशा, परखा और इसी से रोजी रोटी कमाने का फैसला किया। क्या खूब किया की भारतीय फिल्मों के इतिहास में अमर हो गए।

इनके बाद कई लाउड अभिनेता आए जो बेतहाशा चिल्ला चिल्लाकर, विभिन्न गेटअप और नशे करके अभिनय करते थे।रणजीत, अमरीशपुरी, शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर, रूपेश कुमार आदि रहे। खल पात्रों की अपार लोकप्रियता ही थी कि कई हीरो भी विलेन बने पर वह लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाए। हां, दो ऐसे रहे जो देवानंद और धर्मेन्द्र जिन्होंने कभी खल पात्र नहीं निभाया।

अभिनय की परम्परा प्राचीन है।भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से भी प्राचीन। जब मानव के पास कोई वाद्य यंत्र आदि नहीं थे तब से प्राचीन मानव झुंड में बैठकर अपने मनोरंजन के लिए भाव भंगिमाओं का ही सहारा लेता था। ध्वनि पहले आई फिर स्वर और उसके कहीं बाद उनके अर्थ और फिर बोली आई। आज भी जब जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चे को हम उसी आदिम ध्वनि में बोलते सुन और देख सकते हैं। वह शब्द, भाषा नहीं जानता पर अपनी आंखों और मुस्कान से बात हम तक पहुंचा देता है। यह अभिनय की पहली पहली पाठशाला है।

 

खलनायकों की महागाथा सदैव रहेगी

_________________________

खलनायकों की बात चली है तो हमारे प्राचीन महाग्रंथों के कुछ खल पात्र हमारे विद्वान ऋषि मुनियों ने स्थापित किए हैं। जिन्हें आज और रहती दुनिया तक हम याद करते हैं।

इतने कुटिल, दुष्ट, अधम पात्र रचे कि उनके आगे कोई सामान्य मनुष्य, राजा, सम्राट का पात्र टिक ही नहीं सकता। तो फिर?

उनसे मुकाबला और मुक्ति हेतु साक्षात नारायण को ही वह मुनिवर रामायण, महाभारत में ले आए। अब इसे खलनायकों के प्रति ऋषियों का प्रेम कहें या उनके अतिशय अत्याचार जो किसी मानव को उनके मुकाबले वह खड़ा नहीं कर सके।

हालांकि कोशिश की श्री राम को निहत्था बिना सेना आदि के वन में भेजा। फिर किस तरह लोक और जीव जंतुओं से संपर्क और उनकी संवेदनाओं से सामूहिक कार्य, (team work) सिखाया। यही नहीं हर छोटे से छोटे पात्र की भी अहमियत और उसकी विशिष्टता रेखांकित की। चाहे वह मारीच, शबरी, केवट हो या बाली, सुग्रीव, अंगद, जटायु हो। लेकिन इतना सब करके इतिहास के सबसे अधम और पापी खलनायक दशानन, रावण को खत्म करके।श्री राम को देवता और नारायण बता दिया और सब नए ढंग से सोचने पर मजबूर कर दिया। यह की अत्याचार बढ़ेगा तो आम आदमी, लोक उस खुद मुकाबला नहीं कर सकता उसके लिए भगवान के अवतार की प्रतीक्षा करनी होगी। जो सैकड़ों वर्षों में एक होता।जबकि खलनायक जगह जगह और हर राज्य क्या शहर और अब तो गांव गांव हैं। पर श्री राम नहीं हैं।

शायद यह भी एक वजह रही कि हम लगभग हजार वर्ष गुलाम रहे। क्योंकि जनमानस के मन में यह बिठा दिया गया कि सहन करो हर अत्याचार, जुल्म कोई आएगा और तुम्हारी तरफ से तुम्हारी लड़ाई लड़ेगा।

ऐसा ही महाभारत में है।खलनायकों का समूह है दुर्योधन सहित सौ कौरव, कर्ण, शकुनि जरासंध आदि आदि।लेकिन भले, नेक, धर्मराज सहित पांचों पांडव वीर योद्धा होते हुए भी अकेले, श्री कृष्ण के बिना कुरुक्षेत्र का युद्ध नहीं कर सकते।यह वेदव्यास ने दर्शाया। श्री कृष्ण वासुदेव को आम पात्र दिखाया फिर उन्हें दिव्य शक्तियां दे दी। अब सब उद्धार वहीं करेंगे। कल्पना करें बिना श्री कृष्ण के महाभारत ? पांडव और अन्य उनके पक्ष के लोगों को कमजोर दिखाकर वेदव्यास आम जनता और भारत के लोगों के मन पटल पर यह लिख गए कि " ए, साधारण लोगों, तुम खुद कुछ नहीं कर सकते। तुम्हे हर किस्म का अत्याचार सहन करना है, जान भी चली जाए पर विरोध नहीं करना ।एक दिन, तुम्हारी कई पीढ़ियों के बाद, कोई अवतार आएगा और वह तुम्हारी तरफ से लड़ेगा। यह नेरेटिव आज तक चल रहा है।और कई शताब्दियों तक चला।इसी वजह से हम बेमन से लड़ते, देखते कोई आ जाए, कोई अवतार जन्म ले और हमारी लड़ाई लड़े। अब समझ आता है कि जो राष्ट्र अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ता उसे गुलामी की बेड़ियां पहना दी जाती हैं। आजादी की लड़ाई में भी यही हुआ। गांधी के बिना और गाँधी संग का ईरा देख लें। कोई आ जाए और लड़े। गाँधी खुद गीता, रामायण से प्रभावित इसी पावन भूमि के थे तो वह भी इंतजार में रहे। कोई आएगा और लड़ाई ऊंची होगी। यहां के लोगों ने 1905 के बाद भी जरा भी आग, वीरता नहीं दिखाई। गाँधी इन्हीं अंग्रेजों को अठारह सौ छियानवे से दक्षिण अफ्रीका, दूसरे देश में झुकाकर आए। फिर उन्हें यहां उनके ही देश में झुकाने और हटाने के लिए उन्नीस सौ पंद्रह से बत्तीस साल क्यों लगे? क्या वजह रही कि भारत (1901)आने के चौदह वर्ष, एक युग तक वह सामने नहीं आते।सक्रियता उनकी उन्नीस सौ पंद्रह के बाद ही दिखती है। वजह ऊपर बताई की हम भारतीय अवतारों के इंतजार में अपने कई जन्म बर्बाद कर देते हैं। फिर नई सदी में समझ आया कि हम टूटे हुए, बंटे हुए और मानसिक रूप से तैयार नहीं है आजादी के लिए।हम जन्मजात शोषित और किसी राजा की प्रजा बनने की ही क्षमता रखते हैं। यह समझ आने के बाद गाँधी को समय लगा पूरे देश में अलख, आजादी की लौ जगाने में।

यह अवधारणा, यह सोच कितना हमें कमजोर कर गई उसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। आज देश नई ऊंचाइयां को छू रहा है।दुनिया में नई नई तकनीक आ गई है और इसी के साथ आ गए हैं नए खलनायक।

इस बार यह कहीं बाहर या दूर नहीं बल्कि हमारे ही घर के अंदर हमारे पास हैं।

यह यूट्यूब, फेसबुक भी हैं तो साथ ही हमारी महिला विरोधी, मानवता विरोधी और आतंकियों के साथ खड़े होने की मानसिकता।

इन्हें हम ही बुलाते हैं और जब यह खतरनाक ढंग से नुकसान पहुंचाते हैं तो हम ....हम कुछ नहीं करते बल्कि इंतजार करते रह जाते हैं फिर किसी अवतार का।

जो इस बार नहीं आया।उम्मीद है हमारी सोच बदलेगी और हम खुद के अंदर की इस खलनायक सोच को बदलेंगे और खुद ही हिम्मती बनेंगे और आगे बढ़ेंगे।

_____________

 

__डॉ.संदीप अवस्थी, आलोचक और कथाकार, 

राजस्थान मो 7737407061

 

इन खलनायकों की फोटो सहित लगाएं तो अधिक असरदार रहेगा।