Psychology Behind the Sleep in Hindi Philosophy by Saumy books and stories PDF | Psychology Behind the Sleep

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Psychology Behind the Sleep

सोने से मतलब नींद ही क्यों न हो उस नींद यानी उस सोने की परख के लिए भी आपको एक अच्छा जौहरी चाहिए।सब कहते हैं सबके कायदे में रहोगे तो सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगे, जिसे देखों वह जाने-अंजाने बस यहीं समझाने में लगा हैं, अपने कामों के माध्यम से ..।और पता हैं सब का कायदा क्या हैं ..? सभी के कायदे का गणित बस इतना सा हैं कि जो भी हमारे संबंधी हैं, अधिक संबंधी से दूर के संबंधी की ज्यादा से कम के क्रम में, सबको दूर के संबंधियों से जितने ज्यादा हो सके और जो जितने पास का संबंधी मालूम पड़े उससे उतने कम के क्रम में ऐसे ज्यादा से कम के क्रम में सबकी मजबूरी का फायदा उठाओ और वो इसलिए कि यदि तुमने ऐसे सबसे उनकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाया तो सब फिर भी तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठा लेंगे और तुम्हारे पास बस रह जायेगा नुक्सान; बहुत बड़ा घाटा।और पता हैं मेरा बस एक ही कायदा हैं कि कोई मेरी मजबूरी का फायदा उठाए न उठाए पर मैं किसी की मजबूरी का उसे चेष्ठा पूर्वक या अंजाने भी जितना हो सके उतना न किसी को खुद पर निर्भर करके उनकी मजबूरी का फायदा उठाऊं और न ही किसी पर भी निर्भर रह करके उसे मेरी मजबूरी का फायदा उठाने दू।सबका कायदा उन नींद में रहने जैसा है जो नींद योग नहीं देती यानी तोड़ देती हैं वो एक अच्छा निवेश कैसे हो सकती हैं आखिरकार योग यानी जोड़ का मतलब ही तो धन होता हैं, जो सबका कायदा हैं वो उस कनक यानी ज़हर की मादकता के वशीभूत होने से सोना यानी ऐसा ज़हर है जो ज़हर सबकी मजबूरी का फायदा उठाते उठाते थकने नहीं देता हैं और सबको इतना तोड़ देता हैं कि आखिर में अपना ही अपना नहीं रहता हैं।जब सब सबसे ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहेंगे और कोई किसी को फायदा नहीं देना चाहेंगा तो अपना अपनो का कैसे रह पायेंगा।मेरी निंद का यथार्थ योग यानी जोड़ देता हैं, जानें अंजाने ही सही मगर उस नींद लेने को सोना कहने वाला सही ही कहता हैं यूँ ही नहीं संसारों के संचालक स्वयं नारायण का निवेश भी उसमें यानी योग निद्रा में रहता हैं, ज़हर हों या सही निवेश लिखने के लिए कनक एक शब्द ही हैं, जो सोने में वक्त निवेश करें वो आलस के मोहताज ही नहीं नारायण जैसा जौहरी भी हों सकता हैं, नहीं करना किसी को अधीन अपने, पराधीनता भी नहीं चाहिए इसलिए बौद्धिक संपदा कितनी ही हों पर खुद की दुनियाओं में ही रखनी चाहिए, बाहर की दुनिया को उसकी पर्याप्त ज्वलंतता वाली जरूरत ही नहीं वो उसके लायक होती यानी सही में उसको चाहिए वो तो जिससे तुमको मिला हैं वह वैसे ही उसको भी मिलने दो, सबको अपने अधीन करने की दौड़ में भला क्यों लगें हों, हमारा खुद के अधीन होना और खुद को अधीन करना क्या पर्याप्त नहीं हैं आखिर में उनको और हमको रहना तो खुद के साथ ही हैं तो क्यों सबको ऐसा कुछ देना हैं हो उनके पास तब तक ही हैं जब तक तुम पास हो उनके, देने के लिए कम से कम ऐसा या इतना कुछ तो रहे जो सब अपने साथ ले जा सके, जो तुम्हारा उधार हैं वो भी सब तुम्हारे पास ही छूट जायेगा और यदि पहले तुम्हारी बारी आई तो उसको तुम लें जाओगे न .. 

- सौम्य (रुद्र)