She used to go to the washroom at night out of fear of the neighbors, in Gujarati Crime Stories by pooja books and stories PDF | पड़ोसियों के डर से रात में वॉशरूम जाती थी,

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पड़ोसियों के डर से रात में वॉशरूम जाती थी,

संडे जज्बात में अब तक सारी बातें एक व्यक्ति ही कहता आया है, लेकिन इस बार हम आपको देश की पहली ट्रांसपर्सन पुलिस इंस्पेक्टर मधु मानवी कश्यप के परिवार के जज्बात से रुबरू करा रहे हैं।


मधु माधवी कश्यप बांका जिले के पंजवारा गांव की रहने वाली हैं। तंगहाली से भरे परिवार का खर्च चलाने के लिए मधु ने मजदूरी की, नाटक मंडली में डांसर बनीं, पटना में थर्ड जेंडर समुदाय के ठिकानों पर रहीं।


मेरे बच्चों से कहता था, मैं तुम्हारा मामा नहीं मौसी हूं...


मैं उसकी बड़ी बहन हूं। उसका पूरा नाम मानवी मधु कश्यप है। हम पांच भाई बहन हैं। बड़े भाई ने हमसे दूरी बना ली, सबसे बड़ी बहन ससुराल तक सिमट कर रह गई हैं। मधु मुझसे छोटी है इसके बाद सबसे छोटा भाई मुनमुन है।


बचपन में पापा दिवाली से पहले बाजार ले जाते। एक ही थान से सबके लिए एक जैसा कपड़ा ले आते। उसी से भाइयों की शर्ट-पाजामा और बहनों के लिए फ्रॉक बन जाती।




मधु का मन करता था कि फ्रॉक पहने, लड़कियों के साथ खेले। वो अपने से कम उम्र के बच्चों के साथ खेलता था। शाम को मंदिर के बाहर लड़कियां खेलती थीं तो दूर खड़ा होकर देखता। हमारे पास जब खेलने वाले कम होते थे तो उसको बुला लेते।


" वो 20-22 साल का हो गया था। मेरे बच्चों के साथ खेलते-खेलते कहता था कि तुम लोगों की मामा नहीं हूं, मौसी हूं। मेरा ऑपरेशन हो जाएगा तो तुम लोग मौसी बुलाना।


हम सब गांव में बड़े हुए हैं। समझ नहीं पाते थे कि उसके मन में क्या चल रहा है। वो जब बड़ा हुआ तो गुमसुम रहता, लेकिन घर की जिम्मेदारी समझता था। 15 साल का होते-होते उसे एहसास हो गया कि पिताजी सारा पैसा शराब में उड़ा रहे हैं।


उसने अखबार बेचना शुरू किया। पूरे बाराहात में अखबार बेचता और घर आकर पढ़ाई करता। कई बार बहुत देर से लौटता। पूछने पर कहता था किसी के घर में आधा घंटा बैठा रहा। उस घर में भाभी के बाल संवार रहा था।


2013 में उसने मैट्रिक पास की। इधर, मेरी शादी आसनसोल में हो गई। शादी के एक साल के भीतर वो भी मेरे यहां आ गया।


उसने मेरे पति को सारी बात बताई। कहा, सर्जरी होती है जिसके बाद वो अपने ओरिजिनल शरीर में आ जाएगा। शुरू-शुरू में तो हम लोग इग्नोर करते थे।


अपने जीजा से कहता, ट्रांसपर्सन हूं और अब तक लड़का बन कर रह रहा हूं। लड़की की तरह रहने में ज्यादा कम्फर्टेबल हूं। ये बात न तो मेरे समझ में आई और न ही मेरे पति के, लेकिन हमारे लिए तो वो अभी भी मेहनती बच्चा था जो पूरे घर की जिम्मेदारी तब से उठा रहा था जब बालिग भी नहीं था।


तीन-चार साल आसनसोल में रहा और कई जगह नौकरी की। कभी किसी मॉल में सेल्सपर्सन रहा तो कहीं बच्चों को पढ़ाया। दिन में यहां-वहां काम करता, रात में पढ़ाई करता। रात में जब भी मेरी नींद खुलती, वो पढ़ते हुए ही नजर आता।


आज ईश्वर ने उसकी मेहनत का फल दिया है। वो मेरा भाई-मेरी बहन दोनों है।


छोटे भाई मुनमुन के जज्बात मेरा गला दबाकर पड़ोसियों ने कहा- हिजड़ा के भाई हो


2021 में जिस दिन मधु ने अपनी एसआरएस यानी सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाई, मुझे कॉल किया। कहा- सर्जरी हो गई है अब मैं ठीक हूं।


हम लोग समझ नहीं पाए कि क्या कहें, कैसे बोलें। मैंने कहा- घर आ जाओ तो उसने पहले मना कर दिया, फिर एक-दो दिन के लिए आने के लिए तैयार हो गया।


दो महीने बाद वो पहली बार घर आई। रेलवे स्टेशन लेने गया। जब उसे देखा तो समझ ही नहीं पाया मेरे भाई को क्या हो गया। कल तक लड़का था और आज लड़की बन गया।



क्लीनशेव, बड़े-बड़े बाल और चाल भी काफी हद तक बदल गई थी। उसने मुझे गले लगाया और बोला- कैसे हो। उसकी आवाज भी बदल गई थी। मुझे अजीब सा लगा, लेकिन जैसे ही वो मेरी बाइक पर बैठा तो सब कुछ पहले जैसा हो गया। हम दोनों बचपन में ऐसे ही साइकिल से आते-जाते थे।


मुझे पुराने दिन याद आने लगे। थोड़ी देर बाद लगने लगा कि सब कुछ पहले जैसा ही है। मेरा भाई भले ही लड़की बन गया है, लेकिन व्यवहार और विचार नहीं बदले थे। रास्ते भर हम लोग बात करते रहे, खुश होते रहे।


वो 10 साल बाद अपने गांव आ रहा था। घर पर अम्मा भी काफी खुश थीं। तीन दिन गांव में रहा, लेकिन एक बार भी घर से बाहर नहीं निकला।


हमारे यहां टॉयलेट घर के बाहर है। हमारे अपने ही लोगों के कारण वो दिन में एक बार भी वॉशरूम तक

नहीं जा पाता था। हम समझ सकते हैं कितनी परेशानी थी उसे।


नहाने और वॉशरूम जाने के लिए उसे रात होने का इंतजार करना पड़ता। रात में जब भी उसे वॉशरूम जाना होता, मैं उसके साथ जाता। तीसरे दिन बाद उसने तंग आकर कहा कि उसे पटना वापस जाना है।


जब वो जाने लगा तो मन में बहुत से सवाल उठने लगे, लेकिन उससे पूछने की हिम्मत नहीं हुई। फिर उसके बाद दारोगा बनने की खबर आई।


हमारे घर के बगल में देवी मंदिर है। वहां मैंने और मधु ने समोसा, ब्रेड-पकौड़ा की दुकान भी लगाई है। इलाके के सभी लोग हमें जानते हैं, सभी ने मधु के इंस्पेक्टर बनने पर खुशी जताई। वो जिनके घर अखबार देने जाता, उनमें से कुछ ने कहा कि जब वो ट्रेनिंग पूरी करके आएगा तो उसका सम्मान करेंगे।


पूरे देश में लोग तारीफ कर रहे हैं। कई लोगो ने मधु का इंटरव्यू किया, लेकिन इतना सब होने से हमारे गोतिया यानी पटीदार लोगों का कहना है कि उनकी इज्जत खराब हो गई है।


गांव में जनरल स्टोर के लिए दुकान बनवा रहा हूं। 26 सितंबर की दोपहर पड़ोस के लोग आए और कहने लगे दुकान की सीढ़ी सड़क की तरफ बनी है, उसे पीछे करो। गाली देने लगे, मैंने मना किया तो मारपीट की। मधु को गाली दी।


साफ-साफ कहा- देखते हैं 'हिजड़ा दरोगा' क्या कर लेगा। जिस परिवार-गोतिया के लिए ये खुशी की बात होनी थी, वो ऐसा कह रहे हैं। आप खुद सोच लीजिए कि मधु सालों-साल घर क्यों नहीं आई।


मेरे समाज के लोगों का मानना है कि घर में एक व्यक्ति ट्रांसपर्सन हो तो उनके बच्चों के शादी-ब्याह में दिक्कत होगी।


अब हमें जाति से बाहर करने की धमकी दे रहे हैं। उनकी बातों पर हंसी आती है। जाति से बाहर तो हम लोग तभी कर दिए गए थे जब इन्हीं के घर में दो रोटी के लिए बंधुआ मजदूरी करते थे।


गुस्सा इस बात पर आता है कि जब ये लोग खराब समय में हमारे साथ खड़े नहीं हुए तो आज कुछ अच्छा होते वक्त गाली कैसे दे सकते हैं?


मां, माला सिंह के जज्बात घर में आलू आ जाए तो जश्न होता था...


मधु मानवी की मां माला सिंह कहती हैं- खंडहर में रहते-रहते कभी सोचा भी नहीं था कि कभी इस 300 साल पुराने मकान से बाहर निकल पाऊंगी।


जब इस गांव में ब्याह के आई तो पता चला कि धोखा हो गया। ससुर की हजार बीघा की जमींदारी थी। कुछ पटीदारों ने कब्जा ली और कुछ चकबंदी में चली गई। पति शराबी थे तो परिवार और पड़ोस के लोगों ने बचा- खुचा लूट लिया, सब खत्म हो गया।


शादी के बाद बीस साल तक एक ही किस्सा सुनती रही कि कभी इस घर में हाथी बंधते थे। सास कहतीं थी कि 'सोना-चांदी से लदी रहती थी, हर आदमी पर एक नौकर था।


मन करता था कह दूं कि इसलिए जब नौकर चले गए तो बहू ले आईं। यहां न पैसा था और न ही शऊर वाला पति। अपना दुख नहीं कह पाती थी। दो-दो साल के अंतर से एक के बाद एक पांच बच्चे हो गए।


इस खंडहर से मकान में पांच बच्चे और एक शराबी पति के साथ जीना मुश्किल हो रहा था। कहीं दूसरी जगह काम भी नहीं कर सकती थी। बड़ी इज्जत थी हमारी।


बड़े घर की औरत घर से बाहर नहीं निकल सकती थी। समय चौका-बासन में निकल जाता। जिस दिन घर में आलू बन जाते थे, उस दिन नींद आती थी कि बच्चों को अच्छा लगा होगा।


हालत ऐसे थे कि बच्चे पड़ोसियों के यहां काम करते थे। इसके बदले में दो रोटी मिल जाती थी।


इन सब में मधु ने सबसे पहले ये जिम्मेदारी समझी और कम उम्र से ही अखबार बेच कर पैसे कमाने लगा। किसी भी मां या परिवार के लिए ये कोई अच्छी बात

नहीं थी, लेकिन सच्चाई तो यही है।


दरोगा बनने के बाद उसने फोन किया। मैं समझ नहीं पाई ये क्या होता है। छोटे बेटे ने मोबाइल पर दरोगा का वीडियो दिखाया, तब समझ आया।


सचमुच बेटा दरोगा बन.... अरे नहीं मधु दारोगा बन गई।


उसने 2014 में अपने मन की बात मुझे बताई थी। उसकी बात सुन हैरान रह गई। उसे डांट दिया और कहा कि जैसे रह रहा है वैसे ही रह, लेकिन उसने घर छोड़ दिया। बहन के यहां आसनसोल जाने का कहकर निकला था। कुछ साल बाद वहां से भी चला गया।