Nagendra - 10 in Hindi Fiction Stories by anita bashal books and stories PDF | नागेंद्र - भाग 10

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नागेंद्र - भाग 10

अवनी जब होटल महफिल इन  से निकल गई थी तब दिलावर ने उसे रोक लिया। इससे पहले की वह मम्मी के साथ कुछ कर पाता नागेंद्र वहां आ गया। दिलावर के साथ आए हुए तीन लोगों ने नागेंद्र को पीटना शुरू कर दिया लेकिन नगेंद्र ने उन तीनों को सिर्फ एक धक्के में ही बेहोश कर दिया। उसने नागेंद्र को चेतावनी थी कि आज के बाद वह अपनी के आसपास भी नहीं दिखेगा वरना उसके साथ कुछ भी हो सकता है।

नागेंद्र अवनी को साथ में लेकर निकल गया। सावित्री जी ने एक सेकंड हैंड स्कूटी नागेंद्र को दिलवाई थी जिससे कि वह घर का सामान वगैरा लाकर दे सके। नागेंद्र वही स्कूटी लेकर आया था और उसी में वह अपनी को घर लेकर आ गया। अवनी हमेशा फोटो सही करती थी उसने कभी भी अपनी मदद के लिए नागेंद्र को नहीं बुलाया था।

बात यह नहीं थी कि उसे शर्म आती थी बस बात यह थी कि वह किसी की मदद लेना नहीं चाहती थी। बचपन से ही उसे एक आदत थी कि वह कभी किसी की मदद सामने से नहीं लेती थी। लेकिन आज नगेंद्र ने उसकी मदद की थी जिसे उसे बहुत खुशी हुई थी लेकिन उसकी आदत के मुताबिक वह उसको थैंक यू भी नहीं कह पा रही थी।

स्कूटी सेकंड हैंड की और जगह-जगह से उसका कलर निकला हुआ था। उसकी सीट कई कई जगह से फट चुकी थी और ब्रेक भी सही से काम नहीं करती थी।

अवनी उसमें सिमट कर बैठी हुई थी क्योंकि वहां पर पकड़ने के लिए कोई जगह दिख नहीं रही थी। नागेंद्र स्कूटी चला के निकल गया था लेकिन अवनी को अभी भी कुछ भी चीज पकडने के लिए नहीं दिख रही थी। 

दोनों ही रास्ते पर खामोश है कोई कुछ नहीं कह रहा था। ‌ नागेंद्र अभी भी गुस्से में था क्योंकि उसे बार-बार वही दृश्य दिख रहा था जहां पर दिलावर ने अवनी को कमर से पड़ा हुआ था और वह उसे जबरदस्ती किस करने की कोशिश कर रहा था।

तभी एक स्पीड ब्रेकर आया और नागेंद्र का ध्यान न होने की वजह से तेज झटका लगा। अवनी अचानक से झटका लगने की वजह से नागेंद्र की पीठ से सट गई। 

" अवनी आर यू ओके? आई एम सॉरी मेरा ध्यान नहीं था।"

अवनी थोड़ी डर गई थी क्योंकि वह अगर थोड़ी सी लापरवाही दिखाई होती तो वह चलती स्कूटर से नीचे गिरने वाली थी। उसने फटी हुई सीट को ही अपनी मुट्ठी में लेते हुए कहा।

" यहां पर पकड़ने के लिए कुछ नहीं था बस इसलिए।"

नागेंद्र ने ड्राइविंग पर ध्यान देते हुए ही कहा।

" हां वहां पर पकड़ने के लिए कोई सही जगह नहीं है। तुम चाहो तो मुझे पड़ सकती हो। देखो गिरने से अच्छा है कि तुम मुझे पकड़ लो हम जल्दी ही घर पहुंच जाएंगे।"

अवनी नागेंद्र को पकड़ देने के लिए थोड़ी हिचकिचा रही थी लेकिन उसकी बात सही भी थी। अगर वह गाड़ी से नीचे गिर जाएगी तो उसे काफी गंभीर चोट लग सकती है और इससे अच्छा है कि वह कुछ पल के लिए नागेंद्र को ही पकड़ ले।

उसने अपना एक हाथ नागेंद्र के कंधे में रखा और दूसरे हाथ से नरेंद्र को पेट से पकड़ लिया। आज से पहले बात था कि वह दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे। दोनों ही चुपचाप थे कोई कुछ नहीं बोल रहा था कि तभी वह लोग घर पर भी पहुंच गए। अंदर आते ही गायत्री जी ने दोनों को साथ में आते हुए देखा तो पूछा।

" तुम दोनों साथ में क्या कर रहे हो?"

फिर उन्होंने नागेंद्र की तरफ देखते हुए पूछा।

" मैंने तुम्हें वकील के बारे में जानकारी लेने के लिए भेजा था और तुम अवनी को लेकर आ गए। मैं तुम्हें पेट्रोल के पैसे कम के लिए देता हूं घूमने फिरने के लिए नहीं।"

" मासा आप नागेंद्र को कुछ मत कहिए गलती मेरी थी। मुझे आज ठीक नहीं लग रहा था और इसलिए मैं कर जल्दी आ गई और मैं नहीं इसलिए नागेंद्र को बुलाया था।"

गायत्री जी हैरानी से होने की तरफ देखने लगी क्योंकि वह कभी भी नागेंद्र का साइड नहीं लेती थी। आज पहली बार अवनी ने राजेंद्र की तरफ से कुछ सफाई दी थी। नागेंद्र अभी काफी हैरान था लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। अवनी जानती थी क्या गायत्री जी वैसे ही गजेंद्र सिंह के उसे कैसे के कारण परेशान है इसलिए उसने कुछ ना कहना ही ठीक समझा।

" मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही मैं कुछ देर आराम करना चाहती हूं और मैं खाना भी नहीं खाना चाहती।"

कहते हुए अपनी-अपने कमरे की तरफ जाने लगी।

" अरे लेकिन खाना क्यों नहीं खाना? कितनी बार कहा है खाली पेट नहीं सोया करते।"

गायत्री जी की अवनी को समझाते समझाते हैं उसके पीछे जाने लगी। जब दोनों ही वहां से चले गए तब नागेंद्र अपने कमरे की तरफ जाने लगा। नागेंद्र अपने कमरे की तरफ जा रहा था लेकिन दिमाग में यही बातें घूम रही थी कि आज उसने पहली बार किसी के ऊपर हाथ उठाया है। उनके नाग गुरु अब क्या करेंगे?

कहीं उसे इस काम से हटा ना दिया जाए। उसे कम से हट जाने का तो गम था लेकिन उससे बड़ा गम यह था क्या कर कम से हटना पड़ा तो उसे यह घर भी छोड़ना पड़ेगा और अपनी दुनिया में वापस जाना पड़ेगा। वह यह घर छोड़कर जाना नहीं चाहता था और आज के बाद तो बिल्कुल भी नहीं।

उसे पता था कि इस घर में क्या-क्या परेशानी है और खासकर अवनी के ऊपर तो दिलावर की बुरी नजर लगी हुई है। आज जो कुछ भी हुआ अगर वह समय में नागेंद्र वहां आसपास नहीं होता तो अवनी के साथ कुछ भी हो सकता था। वह बस अपने मन में यही सोच रहा था कि वह ऐसा क्या करें जिससे उनके गुरु उसे इस काम से भी ना रोके और इस जगह से भी जाने को ना कहे।

" अरे नागेंद्र कब से आवाज दे रहा हूं सुनाई नहीं दे रहा है क्या?"

अचानक आवाज से नागेंद्र अपनी सोच की दुनिया से बाहर आया। उसने पलट कर देखा तो गिरधारी लाल उसके एकदम पीछे खड़े थे। गिरधारी नागेंद्र मेरा को ऊपर से नीचे तरफ देखते हुए कहा।

" तेरी तबीयत तो ठीक है ना? नीचे से आवाज देते देते ऊपर आया लेकिन तुम्हें तो कुछ सुनाई ही नहीं दिया। अच्छा बताओ खाना खा रहे हो ना? मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था। गायत्री जी ने खाना खा लिया है और अवनी खाने को मना कर रही है। चलो अब हम भी खाना खा लेते हैं।"

इस घर में पहले औरतें खाना खाती थी और बाद में आदमी। सुनने में काफी अजीब है लेकिन इस घर का यही नियम था। नगेंद्र ने गिरधारी लाल की तरफ देखा और कहा।

" नहीं पापा जी मुझे खाना नहीं खाना। आप खा लीजिए।"

इससे पहले के गिरधारी लाल से कुछ पूछे नागेंद्र कमरे के अंदर चला गया और उसने कमरा बंद कर दिया। कमरे के अंदर जाते ही एक चटाई जमीन में बिछाई और फिर उसके ऊपर पालठी मार कर बैठ गया। उसने अपने दोनों हाथों को घुटने पर रखा और पिक सीधी करके आंख बंद करके बैठ गया। 

" चक्र आपके नेत्र खोले।"

करीब 15 मिनट ऐसे ही रहने के बाद उसके सामने उसके गुरु खड़े थे। नागेंद्र अपनी जगह से खड़ा हुआ और उसने अपनी नजर नीचे कर ली। उसने अपने गुरु का एक आदेश नहीं माना था इस वजह से उसके मन में इसका एक खेद था। उसने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा।

" गुरुजी मुझे क्षमा कर दीजिए मैं आपकी बात का अनादर किया। आप क्यों शिक्षा देना चाहे वह मुझे दे सकते हैं। लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।"

" चक्र हमने आपसे पहले भी कहा था क्या जो पूछना चाहे हमसे पूछ सकते हैं। आपको कोई भी सवाल पूछने के लिए हमारी अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।"

नागेंद्र ने पहले एक गहरी सांस ली और फिर पूछा।

" जब 5 साल पहले आप लोगों ने मुझे यहां भेजने का निर्णय लिया था उसे वक्त आपने मुझे इंसानों की दुनिया में मौजूद हर वह चीज सिखाई थी जो मेरे लिए जरूरी थी। आप लोगों ने मुझे खाना बनाने से लेकर हर एक भाषा का ज्ञान दिया था। मुझे वहां को चलाने से लेकर लड़ाई तक का अभ्यास करवाया था। जब मैं हर चीज इस्तेमाल कर सकता हूं तो फिर लड़ाई करना मेरे लिए क्यों वर्जित है? आज मैंने पहली बार लड़ाई का इस्तेमाल किया क्योंकि मैं करना नहीं चाहता था। जब आपको मुझे लड़ाई करने नहीं देना था तो फिर मुझे यह सब सिखाया क्यों?"

नागेंद्र की बात सुनकर कुछ मिनट तक नाग गुरु कुछ नहीं बोले और फिर उन्होंने कहा।

" हमें आपके युद्ध कला से कोई आपत्ति नहीं है परंतु हमें सिर्फ इस बात की चिंता है कि कहीं आपने किसी मनुष्य के प्राण ले लिए तो? आप किसी भी मनुष्य के प्राण नहीं हर सकते। जब आप क्रोध करते हैं तो आपकी सच्चाई मनुष्य को दिख जाएगी। ऐसे में आपके ऊपर संकट बढ़ सकता है। परंतु आज आपने जो किया है उसका दंड तो आपको अवश्य मिलेगा।"

नागेंद्र इस बात को अच्छे से जानता था कि उसे दंड जरूर मिलेगा। उसने अपने आप को इस बात के लिए तैयार भी कर लिया था। बस उसे इस बात की चिंता थी कि उसे इस काम से हटा ना दिया जाए। वहां दूसरी तरफ दिलावर सिंह अपने साथियों के साथ हॉस्पिटल में मौजूद था। उसकी आंखों के सामने बार-बार नागेंद्र का चेहरा घूम रहा था और उसकी पीली हो चुकी आंखें। यही बातें सोच रहा था तो उसका फोन बजने लगा और उसने जब देखा तो उसकी मां का फोन था।

" दिलावर तू कहां है? तेरे पिता जब से घर आए हैं तब से पागलों जैसी हरकतें कर रहे हैं। वह कह रहे हैं ड्राइवर की आंखें पीले रंग की हो गई थी। कभी बोलते हैं कि ड्राइवर है और कभी बोलते हैं कि ड्राइवर नहीं है। तू बस जल्दी से आजा।"

क्या नागेंद्र जब गुस्सा करता है तो उसकी आंखों का रंग बदल जाता है? कहीं दिलावर को उसके ऊपर शक हो गया तो वह क्या करे

गा? नाग गुरु नागेंद्र को क्या दंड देंगे?