फिल्म रिव्यु इमरजेंसी
अभी चंद दिनों पहले ही हिंदी फिल्म ‘ इमरजेंसी ‘ रिलीज हुई है . यह फिल्म देश विदेश के सिनेमा घरों में दिखाई जा रही है . ‘ इमरजेंसी ‘ के निर्माता कंगना रनौत , ज़ी स्टूडियो और रेनू पित्ती हैं . फिल्म की कथा और निर्देशन भी स्वयं कंगना की है जबकि पटकथा रितेश शाह द्वारा लिखी गयी है . फिल्म को एक विशेष समुदाय सिक्खों के विरोध का सामना करना पड़ा है . सेंसर बोर्ड से सेंसर होने के बाद फिल्म रिलीज की गयी .
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल यानी इमरजेंसी एक काला अध्याय है . इस फिल्म के पहले 1975 में ‘ आंधी ' , 1977 में ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ और 2017 में ‘ इंदु सरकार ‘ फ़िल्में बनी थीं जो सीधे तौर इमरजेंसी पर नहीं थीं . ' आंधी ' श्रीमती गांधी के बारे में थी जिसे कुछ दिनों के प्रदर्शन के बाद आपातकाल में बैन कर दिया गया था हालांकि इमरजेंसी के बाद इसे फिर रिलीज किया गया . फिल्म ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ इमरजेंसी पर न थी पर श्रीमती गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के रोल पर थी जिसे बैन कर दिया गया और इसकी सभी कॉपियों को जब्त कर नष्ट कर दिया गया था . फिल्म ‘ इंदु सरकार ‘ भी सीधे इमरजेंसी पर न होकर इस आधार पर बनी एक फिल्म थी .
कहानी - वैसे इसमें कहानी की जरूरत ही नहीं है . कंगना ने युवा पीढ़ी को देश में हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण राजनैतिक घटना से अवगत करने का प्रयास किया है . फिल्म ‘ इमरजेंसी ‘ इसी विषय पर बनी पहली फिल्म है . इस फिल्म के निर्माण में बहुत कुछ कंगना ने अपने हाथों में ले लिया है , शायद यह फिल्म की कमजोर कड़ी हो . फिर भी उनका प्रयास कुल मिला कर सराहनीय कहा जा सकता है .
यह फिल्म ‘ इमरजेंसी ‘ पर फोकस न कर श्रीमती इंदिरा गाँधी की biopc ( जीवन चरित्र ) ज्यादा लगती है , कहना गलत नहीं होगा . इसमें आनंद भवन में गुजरे उनके बचपन से ले कर 1 , सफ़दर जंग तक के उनके प्रधानमंत्री बनने तक के सफर और 31 अक्टूबर 1984 को उनके सुरक्षा गार्ड द्वारा उनकी मृत्यु तक की कथा है . इस बीच की सभी प्रमुख घटनाओं को कम ओ बेस दिखाया गया है - उनका बचपन ,उनकी असफल शादी , उनका राजनीति में आना , चीन के साथ 1962 युद्ध , कांग्रेस पार्टी की चीफ बनना , पार्टी में उनका विरोध , पार्टी का टूटना , उनका चुनाव जीतना और उनका प्रधानमंत्री बनना . फिर 1971 में पाकिस्तान से हुआ युद्ध , बंगलादेश का जन्म , शिमला समझौता . 1971 युद्ध टालने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति और विदेश सचिव से बातचीत का भी वर्णन है . चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी के उपयोग के चलते इलाहांबाद हाई कोर्ट द्वारा उनका चुनाव रद्द करना और अगले छह वर्षों के लिए चुनाव न लड़ने का आदेश उनके जीवन का और देश का एक टर्निंग पॉइंट रहा . फिर अपने बेटे संजय गाँधी के दबाव में 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगाना दिखाया है पर इमरजेंसी के पीछे के कारण और उस दौरान हुई यातनाओं को बहुत कम दिखाया गया है .
जहाँ तक एक्टिंग का प्रश्न है , इस फिल्म में बहुत किरदार हैं और सभी की समीक्षा करना बहुत कठिन है और कदाचित अनावश्यक भी . इमरजेंसी की नायिका कंगना ने इंदिरा गाँधी का रोल किया है . उपरोक्त कहे सभी रोल सराहनीय रहा है पर उस में श्रीमती गाँधी वाला आयरन लेडी जैसी बोली और उनके जैसा रुतवा दिखने में कुछ कसर रह गयी है . फिर भी उनके प्रेसिडेंट निक्सन और फॉरेन सेक्रेटरी किसिंजर से मिलने का दृश्य अच्छा है . फिर इमरजेंसी के दौरान जिद्दू कृष्णमूर्ति ( एक मशहूर लेखक , दार्शनिक , वक्ता , आध्यात्मिक और श्रीमती गांधी के विश्वासपात्र ) से मिलना , इमरजेंसी को लेकर उनका पछतावा और विलाप का दृश्य भी बहुत अच्छा है . कृष्णमूर्ति की सलाह पर उनका इमरजेंसी हटाना और फिर चुनाव हारना . पुनः 1980 में चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनना और भिंडरावाले के देश विरोधी रवैये को देखते हुए कठोर निर्णय लेना , जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार का फैसला लेना , इन सभी में कंगना की अदाकारी ठीक रही है .
अन्य प्रमुख पात्रों में जय प्रकाश नारायण के रोल में अनुपम खेर , अटल बिहारी वाजपेयी के रोल में श्रेयस तलपड़े और जगजीवन राम की भूमिका में सतीश कौशल का अभिनय सराहनीय रहा है , अन्य किरदारों में फिल्ड मार्शल सैम मानिकशॉ की भूमिका में मिलिंद सोमन , संजय गाँधी के रोल में विषक नायर की भूमिका भी अच्छी है . बहुत दिनों के बाद पर्दे पर पुपुल जयकर ( श्रीमती गाँधी के विश्वासपात्रों में एक ) का किरदार महिमा चौधरी का अच्छा रहा है .
‘ इमरजेंसी ‘ मूवी के प्रति कुल मिला कर दर्शकों और आलोचकों की प्रतिक्रिया मिली जुली रही है . अभी तक बॉक्स ऑफिस पर इसे सफलता नहीं मिल सकी है . लेखन और निर्देशन और बेहतर हो सकता था . फिर भी इस फिल्म ने युवा पीढ़ी को ‘ इमरजेंसी ‘ से अवगत कराने का बहुत अच्छा प्रयास किया है . चूंकि फिल्म का निर्माण , निर्देशन और कथा स्वयं कंगना का है और वे सत्ता पक्ष की सांसद हैं , इस फिल्म को लेकर दर्शकों और आलोचकों के मन में कुछ पूर्वाग्रह होना सम्भव है .
मूल्यांकन - निजी तौर पर 5.5 / 10 .