pathreele knteele raste - 29 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 29

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पथरीले कंटीले रास्ते - 29

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

 

 29

 

वक्त को सबसे बेरहम कहा गया है । वह किसी की परवाह नहीं करता । न किसी के दुख की न किसी के सुख की । कोई लाख रोकने की कोशिश कर ले , वक्त किसके रोके रुका है । वह किसी के रोके नहीं रुकता । हमेशा अपनी रफ्तार से आगे बढता रहता है । यहाँ भी यही हुआ । कहाँ तो दोनों परिवार घी खिचङी हुए रहते थे । खाना , सोना,  बैठना,  जागना सब साझा था । अब बग्गा सिंह के खेत में घर बना लेने से दोनों के बीच दूरी धीरे धीरे बढने लगी थी ।  दोनों परिवार पहले हर रोज एक दूसरे से मिलते रहे । हर शाम कोई एक परिवार दूसरे के घर जाता फिर वे वहाँ एक साथ रोटी बनाते खाते । देर तक गपशप करते । बच्चे मिल कर खेलते । देर रात गये वे सब अपने घर जाते । यह क्रम कोई महीना भर से ज्यादा ही चला होगा । फिर सप्ताह में दो या तीन दिन एक दूसरे के घर  जाने लगे । फिर ये मिलना पंद्रह दिन बाद हो गया । फिर व्यस्तताएँ बढने लगी तो इस तरह रोज  रोज आना जाना मुश्किल होने लगा और फिर धीरे धीरे महीना दो महीने बाद मिलना हो पाता । अब तो तीज त्योहारों पर ही एक दूसरे के घर आना जाना हो पाता था । वह भी कोई एक सदस्य ही मिठाई और पक्कवान्न दूसरे घर दे आता । बदले में खाली बर्तन में उस घर से खीर या पंजीरी आ जाती । अलबत्ता रविंद्र आते जाते एक चक्कर उनके घर हर रोज जरूर लगा आता । जिस दिन न जा पाता , उस दिन पूरा समय खोया खोया सा रहता । बचपन धीरे धीरे पीछे छूट रहा था । गुणगीत भी अब सयानी लगने लगी थी । दोनों तरुणाई में कदम रख चुके थे तो बचपन का खिलंदङापन खोने लगा था । दोनों के बीच कुछ ऐसा हो रहा था जिसे समझना दोनों के लिए मुश्किल था ।

गुणगीत का कद लंबा हो गया था । रंगत निखर आई थी । उसके होंठ कुछ ज्यादा ही गुलाबी हो गये थे । आँखों में सुनहरी ख्वाब सजने लगे थे । किसी फिल्मी गीत के बोल होठों पर आते आते रुक जाते और वह लाज से दोहरी हो हो जाती । बाल सँवारती तो दर्पण में खुद को देख कर शर्मा जाती । रविंद्र आता तो आवाज सुनते ही भाग कर वह पीछे के स्टोर में जाकर छिप जाती । बिना काम ही कुछ उठा पटक करने लगती । कौशल्या पानी पिलाने को कहती तो उसका कलेजा धङकने लगता और वह काम में उलझे होने का बहाना कर वहाँ से टल जाती पर कान रविंद्र की बातों में लगे रहते । और जब रविंद्र चला जाता तो वह खुद से ही नाराज हो जाती कि रविंद्र थोङी देर रुका क्यों नहीं ।

 कि रविंद्र इतनी जल्दी चला क्यों गया ।

कि रविंद्र ने उसके बाहर आने का इंतजार क्यों नहीं किया ।

कि वह तब उससे बात क्यों नहीं कर पाई , कम से कम चाची या राने का हाल ही पूछ लेती तो इस बहाने दो बातें हो जाती ।

कि वह मैथस का एक सवाल ही लेकर आ जाती और सवाल समझने के बहाने उससे बात कर लेती ।

वह माँ से या सरताज से इस बात को लेकर लङ पङती कि उन्होंने रविंद्र को रोका क्यों नहीं । उसे बहुत जरूरी सवाल समझने थे ।

और वह उसी पल से रविंद्र के दोबारा आने का इंतजार करने लगती । कान दरवाजे की आहट पर लग जाते और आँखें दहलीज पर । मन तरह तरह की बातें सोचता जो उसे रविंद्र से करनी थी । पर उसके आते ही वह कोई बात न कर पाती ।

हाल रविंद्र का भी कुछ अलग न था । वह हर रोज अपने आप से वादा करता कि आज चाहे जो हो जाय , वह गुणगीत से मिलने नहीं जाएगा । वहाँ जाकर क्या फायदा । वह तो एक मिनट के लिए भी उससे मिलने नहीं आई । आधा घंटा चाची के पास बैठा रहा । फिर सरताज के पास पर क्या मजाल कि शक्ल ही दिखाई हो । यहाँ तककि चाची के दो बार बुलाने पर भी नहीं आई । पानी पिलाने भी नहीं तो वह ही हर रोज क्यों जाए । आज उधर जाना ही नहीं । वह खुद को बार बार समझाता । पर थोङी देर बाद खुद को मम्मी से कहते हुए देखता – मम्मी मैं सुरजीत से भूगोल की कापी लेने जा रहा हूँ । तूने चाची के लिए कुछ भेजना तो नहीं । और दस मिनट बाद ही उसके पैर साइकिल चला रहे होते और वह खुद से लङता हुआ उनके घर जा रहा होता ।

 रविंद्र ग्यारहवी में पढ रहा था और गुणगीत नौंवी में । राना दसवीं में हो गया था । सरताज रविंद्र की ही कक्षा में पढ रहा था । रविंद्र और गुणगीत पढाई में बहुत अच्छे थे । हमेशा एक फर्सट आता तो दूसरा सैकैंड । दोनों भाषण प्रतियोगिता में भाग लेने दूर दूर के स्कूलों में जाया करते । इनाम की ट्राफी उन्हें ही मिलती । राना और सरताज कबड्डी और क्रिकेट खेलते । पढाई उतनी ही करते कि फेल होने की नौबत न आए । चालीस पैतालीस प्रतिशत नम्बर आ जाते तो खुश हो जाते । अगर कोई समझाने की कोशिश करता तो सरताज के पास रटा रटाया जवाब होता – हमने बङे होके पिताजी की दुकान पर ही बैठना है , जहाँ की जरूरत भर जोङ घटाव मुझे आता है । अब ग्राहकों को पानीपत की लङाई या जूलियस सीजर तो पढाना नहीं तो बेकार में आँखें फोङने का क्या फायदा । राना और भी बेशर्मी से हँसता – भाई मैंने ट्रैक्टर चलाना सीख लिया है । खेतों में पापा के साथ हल चला लूँगा । तुझे सरकारी गाङी मिलेगी तो ड्राइवरी कर लूँगा ।

और ये स्कूल जिसमें नाम लिखवा रखा है , उसका क्या ?

वह तो भाई किसी लङकी का बाप आकर पूछेगा न कि तुम्हारा लङका कुछ पढा तो है कि नहीं । तो पापा को बेगाने के सामने शर्मिंदा न होना पडे इसलिए – और वे दोनों खिलखिलाकर हँसते हुए भाग जाते ।

बदमाश किसी जहान के – वह मारने के लिए हवा में उठाया मुक्का लहराता हुआ रह जाता ।

फिर उसके होठों पर भी एक गहरी मुस्कान छा जाती । गुणगीत यह सब देख हँसती हँसती लोटपोट हो जाती । 

रविंद्र को जेल की इस अंधेरी कोठरी में बैठे बैठे जब गुणगीत की दूध जैसी उजली हँसी याद आई तो वह भी सब कुछ भूल कर जोर जोर से ठहाके लगाने लगा । वह कई दिन बाद खुल कर हँस रहा था । इतना हँसा इतना हँसा कि उसकी आँखों से आँसू बह निकले । उसने उन आँसुओं को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया । आँसू लगातार बहते रहे । गुणगीत उसकी धुंधलाई नजर के सामने आती रही , ओझल होती रही । आखिर जब वह थक गया तो उसने सुराही से मग में पानी डाला । छींटे मार मार कर मुँह धोया । दोबारा मग भर कर पानी पिया और सोने की कोशिश करने लगा । हालांकि वह जानता था कि आज गुणगीत ने उसे सारी रात सोने नही देना । इसी तरह चुन्नी का पल्ला लेकर आधे पल्ले से मुँह आधा छिपाये शरारत भरी आँखों से देखती हुई हँसती रहेगी और वह उसे देखता रहेगा ।

 

 

बाकी फिर ...